दिलीप कुमार को हम भूल ना पाएंगे / जयप्रकाश चौकसे
प्रकाशन तिथि : 12 दिसम्बर 2021
आज दिलीप कुमार का जन्मदिन है। दिलीप के निधन के बाद से उनकी पत्नी सायरा बानो काफी बीमार रहने लगी हैं । बहरहाल, दिलीप कुमार और राज कपूर दोनों का जन्म पेशावर में हुआ और उनके परिवार में गहरी मित्रता रही। दोनों ही परिवार वहां किस्सागो गली यानी कहानी सुनाने वाली गली में पड़ोसी रहे। जाने कैसा संयोग था कि दोनों ने आगे चलकर सेल्यूलाइट पर किस्सागोई रची! उनके बीच की प्रतिद्वंद्विता, मीडिया रचित थी। जबकि वे एक-दूसरे से प्राय: मिलते थे और आपस में सलाह-मशविरा भी करते थे। मेहबूब खान की ‘अंदाज’ एकमात्र फिल्म है, जिसमें राज कपूर और दिलीप कुमार ने साथ अभिनय किया था। राज कपूर ने ‘संगम’ की पटकथा दिलीप कुमार को दी और कहा कि वे अपनी मनपसंद भूमिका का चुनाव कर लें। दिलीप का विचार था कि साथ काम करने पर दोनों के प्रशंसक एक-दूसरे से भिड़ सकते हैं। अत: ‘संगम’ राजेंद्र कुमार के साथ बनाई गई। दिलीप कुमार के पिता अपने परिवार के साथ मुंबई के निकट आकर देवलाली में बस गए थे और वे मेवे का अपना पुश्तैनी व्यापार करने लगे थे। दिलीप कुमार, देवलाली से मुंबई कॉलेज में पढ़ने के लिए जाते थे। बॉम्बे टॉकीज की देविका रानी ने उन्हें फिल्म में अभिनय के लिए आमंत्रित किया। उन दिनों दिलीप का परिवार आर्थिक संकट से जूझ रहा था अतः दिलीप ने अभिनय करना स्वीकार कर लिया। उन्होंने यह बात अपने परिवार से छुपाए रखी। दूसरी ओर राज कपूर की शैली अलग थी वे फिल्म में प्रस्तुत भावना को मन ही मन बार-बार दोहराते थे। अपने आपको भावना के स्तर पर तैयार करते थे। अत: उनके अभिनय में सरलता होती थी और वह स्वाभाविक भी लगता था। दिलीप कुमार ने लगातार गंभीर किरदार किए जिसका प्रभाव यह हुआ कि वे एक समय निराशा से भर गए थे। वे अपने मनोचिकित्सक से मिलने लंदन गए जिनकी सलाह पर उन्होंने ‘राम और श्याम’ में हास्य भूमिका अभिनीत की। फिल्म अत्यंत सफल रही।
एक बार दिलीप कुमार के आग्रह पर तत्कालीन प्रधानमंत्री पं. नेहरू एक समारोह में आए थे। दिलीप ने राज कपूर को भी उस कार्यक्रम के लिए आमंत्रित किया था। लेकिन राज कपूर को आने में देरी हो गई। राज कपूर दौड़ते-हांफते वहां पहुंचे और सभा स्थल की सीढ़ियों पर बैठ गए। राजकपूर ने वहां बीच सभा में शिकायती लहजे में दिलीप के बारे में नेहरू जी से कहा कि ‘दिलीप ने उन्हें सभा का समय और स्थान तक नहीं बताया था।’ लेकिन नेहरू जी दोनों के स्वभाव और मित्रता से परिचित थे। उन्होंने ठहाका लगाया और हाथ पकड़ कर राज कपूर को मंच पर लाए, जहां दिलीप पहले से मौजूद थे।
दिलीप कुमार को मधुबाला से गहरा प्रेम था। मधुबाला के पिता ने यह शर्त रखी कि निकाह के बाद मधुबाला और दिलीप केवल उनकी बनाई फिल्मों में ही अभिनय करेंगे। दिलीप ने इसे अस्वीकार कर दिया क्योंकि वे विविध निर्देशकों के साथ काम करके अपने अभिनय में नए आयाम जोड़ना चाहते थे।
अंग्रेजी फिल्म निर्देशक डेविड लीन ने दिलीप अभिनीत फिल्में देखी थीं। उन्होंने दिलीप कुमार को अपनी फिल्म ‘लॉरेंस ऑफ अरेबिया’ में अभिनय के लिए आमंत्रित किया। लेकिन दिलीप दुविधा के कारण डेविड लीन के साथ काम नहीं कर पाए और उन्होंने ऑस्कर पाने का मौका खो दिया। बिमल रॉय की ‘देवदास’ और ‘मधुमति’ दिलीप अभिनीत श्रेष्ठ फिल्मों में शामिल है। ‘प्यासा’ व ‘जंजीर’ जैसी श्रेष्ठ फिल्में भी उन्होंने अस्वीकृत की थीं। ‘शक्ति’ में उन्होंने जरूर अभिनय किया। गोया की अनेक कलाकारों ने अभिनय में दिलीप कुमार की नकल की थी। जैसे फिल्मकारों का सपना निर्देशक राज कपूर की तरह काम करना रहा, वैसे ही अभिनेता भी दिलीप को आदर्श मानते रहे।
बहरहाल, दिलीप कुमार को भुलाना कठिन है। क्या ‘मधुमति’ की तरह उनका भी पुनर्जन्म हो चुका होगा या होने वाला है?