दिल्ली की बेदिली / प्रमोद यादव
‘एक बात कहूँ जी? ‘पत्नी ने बिस्तर ठीक करते कहा.
‘हाँ...कहो..’ पति ने टी.वी. में आँखें जमाये जवाब दिया.
‘अरे...ये टी.वी.आपसे छूटे तो आपकी बीबी बात करे..पहले आप इसे “ आफ “ कीजिये तभी हम “ आन “ होंगे..’ पत्नी ने शर्त रख दी.
‘अरे बाबा..बोलो भी...सब सुन रहे हैं हम..’ उसने पत्नी की ओर सिर घुमाकर कहा.
‘मैं सोचती हूँ...काश..हमारा ये बंगला दिल्ली में होता..तो कितना अच्छा होता...’ पत्नी लम्बी सांस लेते बोली.
‘क्या मतलब? ‘पति ने चौंकते हुए कहा- ‘यहाँ भोपाल में भला कौन सा रोज भूचाल आ रहा है कि दिल्ली में बंगला होने की बात कर रही हो...’
‘अजी आप समझे नहीं..मेरा मतलब है कि दिल्ली देश का दिल है..वहां होते तो सबके दिलों में रहते..धड़कते..’ पत्नी ने अतुकांत सफाई दी.
‘ओ मेम साब..सबके दिलों में धड़कने का क्या मतलब? तुम्हारा ठिकाना..आशियाना तो केवल मेरा दिल है...औरों के दिल में क्योंकर धड़कोगी? तुम तो जानती हो..इस बंगले से भी ज्यादा “ स्पेस “ मेरे दिल में है..जो पूरी तरह मैंने मुहब्बत के दिनों ही तुम्हारे नाम ”एलाट” कर दी ..शादी के बाद तो तुम्हारा पूरा अमला( कमला,सरला.मुन्नू, टुन्नू, माँ-बाबूजी ) इस बंगले में आ बसे (घुसे) फिर भी मैंने दिल थामें रखा..अचानक क्या बात हो गई कि दिल्ली पे दिल आने लगा? ‘
‘अरे बाप रे...आप भी ना..क्या से क्या सोच डालते है पल भर में...मैं तो आपके ( “आप”के ) उस बेचारे की समस्याओं के मद्देनजर दिल्ली की बात कर रही थी जो चार-पांच महीने पहले दिल्ली के सिरमौर और मुखिया थे...हीरो थे..दिल्ली के दिल थे’
‘कौन? वो टोपी और मफलरवाले महाशय की बात कर रही हो क्या?’ उसने चौंककर पूछा.
‘हाँ..एबस्लूटली वही..बेचारे की क्या गति ( दुर्गति ) हो गई है..उसने पूरे दिल्ली वालों को टोपी पहनाई,अब दिल्ली वाले उन्हें टोपी पहना रहें..चंद ही दिनों में उन्हें हीरो से जीरो बना दिया...बेदर्दों ने सिरे से उसे खारिज कर दिया...’
‘साफ़- साफ़ कहो यार बात क्या है? ‘पति ने मुद्दे पर आने कहा.
‘अरे बेचारे को दिल्ली में कोई किराए का मकान नहीं दे रहा....कहाँ-कहाँ नहीं भटक रहे-दस-बारह कालोनी घूम आये पर उन्हें अपनी पसंद का बंगला नहीं मिल रहा..एक-दो जगह बात तय हुई..किराया भी तय हुआ..पर सामान शिफ्ट करने की तैयारी में जुटे कि मकान मालिक का पैगाम आ गया- “ सॉरी ..पडोसी एतराज कर रहे..धमका रहे हैं...आपके आने से यहाँ नित हो-हल्ला होगा. आन्दोलन और हड़ताल का सिलसिला होगा.....कालोनी की शान्ति भंग होगी.. कान्ति कम होगी.. सो, हम किराये पर मकान नहीं देंगे..हमें कृपया क्षमा करेंगे.“
‘तो तुम्हें इससे क्या मतलब यार.. वैसे भी किराए पर मकान मिलना इतना आसान नहीं....देखती नहीं- हमारे भोपाल में ही कितने लोग मुंहमांगे पैसे लिए मकान के लिए भटकते रहते हैं..ढूँढने से एक बार “ जॉब “ मिल जाएगा पर किराए का मकान नहीं....वे पहले भी आम आदमी थे.. आज भी है..उन्हें मालूम है कि आम आदमी की देश में कितनी क़द्र है..तुम्हें सुनकर बुरा लग रहा कि उनके साथ ऐसा बुरा बर्ताव हो रहा..लेकिन उन्हें तनिक भी बुरा नहीं लग रहा..चुनाव में कितने ही थप्पड़ खाए.. “उफ़” तक नहीं किये..उलटे उनके घर जाकर पूछते रहे- “ मेरा कुसूर क्या है? “ लोगों ने उनके चेहरे पर स्याही फेंकी..उन्होंने बुरा नहीं माना..कहा- लोकतंत्र में यह सब चलते रहता है..’
‘बात उनके आम या विशेष होने की नहीं जी..चार-पांच महीने में ही उन्होंने ऐसा क्या गजब ढा दिया कि दिल्ली वाले इतने बेदर्द और बेदिल हो गए..किराए के एक मकान के लिए उन्हें तरसा रहे..कहीं ऐसा तो नहीं कि इसमें उनके विरोधी पार्टीवालों का हाथ हो..’ पत्नी ने संदेह जाहिर किया.
‘अब इनके सारे विरोधी तो सत्ता में हैं..या फिर सता के आसपास ही हैं..अब जब उनके ही आदमी उन्हें “ चवन्नी-अठन्नी “ समझ छोड़ रहे हैं..पार्टी छोड़ भाग रहें हैं..तो मैं नही समझता कि सत्ता में बैठे लोग इस नाचीज के साथ ऐसा तुच्छ व्यवहार करेंगे. ऐसा घटिया काम करेंगे...’
‘अरे.. आप भी उन्हें चवन्नी-अठन्नी कह रहे हैं ..भूल गए..कभी आप भी “आप“ हुआ करते थे..उन्हीं की टोपी लगा तारीफ़ के पुल बांधा करते थे..उनके सुर से सुर मिलाया करते थे..आपसे ऐसी आशा न थी.. छिः..’ पत्नी विचलित होकर बोली.
‘देखोजी..राजनीति में भावुकता का कोई स्थान नहीं होता.. हमें वक्त के साथ चलना चाहिए.. उनका वक्त था तो उनके साथ था..अब अच्छे दिनों की बात ये कर रहे तो इनके साथ हूँ..हमें वर्तमान को साधकर चलना चाहिए ..’ पति ने फिलासफी बघारी.
‘फिर भी आप बड़े खुदगर्ज निकले.. दिल्ली वालों की तरह बेदर्द निकले..आपसे ऐसी उम्मीद नहीं थी..’ पत्नी गुस्से से बोली.
‘अरे भागवान..”न सूत न कपास. आपस में लठम-लठा” जैसी स्थिति मत बनाओ.. तुम्ही कहाँ –कहाँ की बातें छेड़ती हो.. मुझे लड़ने को उकसाती हो...खैर..अब छोडो इन बातों को और बताओ- तुम दिल्ली में बंगला होने की कुछ बातें कह रही थी...’ पति ने बड़े ही सहजता से कहा.
‘अब जाने भी दो...’ पत्नी दो टूक जवाब दे बिस्तर पर पसर गई.
‘कहीं ऐसा तो नहीं कि महारानीजी दिल्ली में उस “बेचारे” को किराया देने का मूड बना रही थी ..’ पति ने कटाक्ष करते पूछा.
वह लजाकर मन्द-मन्द मुस्कुराने लगी.
‘तो ये बात है..’ पति ने छेड़ते हुए कहा - ‘तुम्हारी दिली इच्छा है तो दिल्ली में इन्हें किराये पर मकान तो दे सकते हैं..पर पहले वहां एक बड़ा-सा बंगला खरीदना होगा.और इसके लिए यहाँ के बंगले को बेचना होगा..तुम्हारे माता-पिता ,भाई-बहनों को “बेक टू पेवेलियन“.भोपाल से सीहोर भेजना होगा.. कहो तो इनसे बातें करूं? ‘
‘फालतू बातें बहुत करते हो जी.. जाओ...मुझे नींद आ रही....मैं सो रही हूँ..’ इतना कह वह करवट बदल लुढ़क गई.
पतिदेव उसकी बेसिर पैर की बातों को याद करते, हौले-हौले मुस्कुराते फिर न्यूज देखने बैठ गए....टी.वी. खोलते ही वही हजरात दिखे -- ट्रक में सामान लादे कहीं शिफ्ट होने जा रहे थे..पीछे मुड-मुड अपने पुराने (सरकारी) आवास को निहार रहे थे.. उसने सोचा कि पत्नी को उठाकर ये दृश्य दिखाए..
फिर सोचा- नहीं.. किरायेदार खो देने का गम उसे रात भर सोने नहीं देगा....दिली धक्का लगेगा.. दिल्ली उसे सचमुच बेदिल लगेगा..
उसने पत्नी को नहीं उठाया.. चुपचाप टी.वी.बंद कर वह भी बगल में लुढ़क गया.