दिल्ली में मैडम तुसाद म्यूजियम और मधुबाला / जयप्रकाश चौकसे

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दिल्ली में मैडम तुसाद म्यूजियम और मधुबाला
प्रकाशन तिथि :12 अगस्त 2017


दिल्ली के मैडम तुसाद म्यूजियम में मधुबाला का मोम का पुतला लगाया जा रहा है। आज का दर्शक दीपिका पादुकोण, प्रियंका चोपड़ा, अनुष्का शर्मा को जानता है और मधुबाला के व्यक्तित्व के आकल्पन के लिए उसे इन तीनों को जोड़कर कोई मिली जुली आकृति में दस का गुणा करना चाहिए तब उसे मधुबाला की कुछ कल्पना हो सकेगी। टेलीविजन पर सी.आई.डी. नामक कार्यक्रम में प्राय: किसी चश्मदीद गवाह से अपराधी का विवरण सुनकर चित्रकार एक पेन्सिल स्केच बनाता है, परन्तु अनेक लोगों द्वारा जुबानी वर्णन सुनकर भी मधुबाला के अभूतपूर्व सौंदर्य का पूरा आकल्पन हम नहीं कर पाएंगे। डी.वी.डी. पर 'मुगले आजम', 'चलती का नाम गाड़ी', 'काला पानी' इत्यादि फिल्मों में मधुबाला को देखिए तो आपको लगेगा कि ऊपर वाले ने सौंदर्य का यह ढांचा ही फेंक दिया है और अब वैसा सौंदर्य जन्म ही नहीं ले रहा है। माधुरी और सुचित्रा सेन को देखने पर मधुबाला के ताप को महसूस किया जा सकता है।

जावेद अख्तर ने विधु विनोद चोपड़ा की '1942- ए लव स्टोरी' के लिए गीत लिखा था 'एक लड़की को देखा तो ऐसा लगा, जैसे खिलता गुलाब, जैसे शायर का ख्वाब, जैसे मंदिर में हो एक जलता दीया...'। संभवत: इस गीत की प्रेरणा उन्हें मधुबाला से मिली है। पाकिस्तान के जुल्फिकार अली भुट्‌टो राजनैतिक यात्रा पर दिल्ली आए थे परन्तु मधुबाला के दीदार के लिए मुंबई भी आए। मधुबाला के जीवन काल में जितने लोग आगरा में ताजमहल देखने आते थे, उनसे अधिक लोग मधुबाला को देखना चाहते थे। आज दिलीप कुमार की भूख मर गई है, जिस कारण उन्हें कुछ दिनों के लिए अस्पताल में रहना पड़ा और उनकी याददाश्त भी जा चुकी है। ऐसे में यदि मधुबाला और उनकी अभिनीत 'मुगले आजम' उन्हें दिखाई जाये तो भूख भी जाग जायेगी और गुमशुदा याद का हिरण फिर उनके अवचेतन में छलांगें लगाने लगेगा। जो कभी दर्द थी, आज उसकी स्मृति दवा बन सकती है। प्रेम रोग किसी वैद्य या डॉक्टर के रोग निदान के दायरे के बाहर की बात है।

हाड़ मांस की मधुबाला का मोम का पुतला दिल्ली में लगेगा तो देखने वालों की नजरों और स्वयं मधुबाला के ताप से मोम पिघल भी सकता है गोयाकि वह मोमबत्ती की तरह कुछ पहर जलकर समाप्त हो सकती है। उसका सौंदर्य संगमरमर में ही तराशा जा सकता है। मधुबाला की मृत्यु उसके जीवन की दोपहर के पहले ही हो गई, संभवत: उसे नजर लग गई। मधुबाला को एक हृदय रोग था जिसे 'कार्डिएक मरमर' कहते हैं। सुई की नोक बराबर छिद्र था। आजकल यह शल्य चिकित्सा से ठीक हो जाता है।

मधुबाला प्रेम में विफलता से मरी थीं। दिलीप कुमार और उसका प्रेम था परन्तु प्रेमनाथ ने दिलीप कुमार के कान भरे कि मधुबाला उससे प्रेम करती है। जांच पड़ताल किये बगैर उन्होंने इस पर यकीन कर लिया। प्रेम का सम्बल विश्वास होता है और दिलीप कुमार तो हमेशा दुविधा के शिकार रहे तथा हैमलेट की दुविधा की तरह 'करूं या न करूं' के जंजाल में उलझे रहे। कुरुक्षेत्र में अर्जुन, हैमलेट और शरतबाबू का देवदास ये सब दुविधा के शिकार रहे हैं। प्रेम की उजास को उनकी दुविधा का अंधेरा निगल गया। कहते हैं कि आधीरात को देखा स्वप्न कभी यथार्थ स्वरूप नहीं ले पाता और अलसभोर में देखे सपने साकार हो सकते हैं। अत: मधुबाला हमारी आधीरात में देखे सपने की तरह है और माधुरी, सुचित्रा सेन तथा प्रियंका चोपड़ा अलसभोर के स्वरूप हैं। अब हम दिल्ली केवल कुतुब मीनार या लाल किला देखने नहीं जायेंगे वरन मैडम तुसाद के म्यूजियम में मधुबाला का मोम का पुतला देखने जायेंगे। ज्ञातव्य है कि मैडम तुसाद फ्रांस में क्रांति के समय किसी तरह भागकर लंदन पहुची थीं जहां उन्होंने मोम के पुतलों का म्यूजियम बनाया। उनकी बायोग्राफी बरसों पहले प्रकाशित हो चुकी है। अब दिल्ली के म्यूजियम में उन्हें दिलीप व प्रेमनाथ के पुतलों के बीच मधुबाला का पुतला लगाना चाहिए। आधी रात पर्यटकों के जाने के बाद ये पुतले आपस में बतियाकर पुराने विवाद समाप्त कर सकते हैं। यह मुमकिन है कि किसी सुबह म्यूजियम का दरवाजा खोलें तो पाएं कि मधुबाला का पुतला दिलीप के पुतले में समा गया है और ईर्ष्या के मारे प्रेमनाथ का पुतला पिघलकर फर्श पर चिपचिपा रहा है।

एक नामुमकिन सा खयल यह है कि भारत, चीन व पाकिस्तान के हुक्मरानों के मोम के पुतले भी मैडम तुसाद के म्यूजियम में लगाएं। शायद किसी रात वे आपस में बतियाकर सुलगती सरहदों को ठंडा कर सकें। युद्ध की भभकियां केवल अवाम को उलझाये रखने के लिए हैं क्योंकि आणविक शस्त्रों से सुसज्जित मुल्क युद्ध नहीं करेंगे। साहिर लुधियानवी की पंक्तियां हैं 'गुजश्ता जंग में तो घर बार ही जले, अजब नहीं इस बार जल जायें तन्हाइयां भी, गुजश्ता जंग में तो पैकर (शरीर) ही जले, अजब नहीं इस बार जल जायें परछाइयां भी'।