दिल्ली वाया आगरा एवं बरेली / जयप्रकाश चौकसे

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दिल्ली वाया आगरा एवं बरेली
प्रकाशन तिथि : 25 फरवरी 2019


बरेली से एक रपट जारी हुई है कि देश में ऐसे हजारों व्यक्ति हैं, जिन्हें पागलपन के इलाज के लिए अस्पताल में भर्ती किया गया और अब वे पूरी तरह सेहतमंद हो चुके हैं परंतु उनके परिवार उन्हें वापस नहीं ले जाना चाहते। अत: ऐसे लोगों को वृद्धाश्रम भेज दिया जाता है। पहले यह माना जाता था कि आगरा के अस्पताल में पागलों का इलाज होता है। यहां तक कि सामान्य वार्तालाप में भी कहा जाता है कि इस व्यक्ति को आगरा भेज दो। तथ्य यह है कि बरेली में इलाज की माकूल व्यवस्था है। वह जमाना बीत गया जब अभिनेत्री साधना' पर एक गीत का फिल्मांकन हुआ था, जिसका मुखड़ा था 'झुमका गिरा रे बरेली के बाजार में’। कुछ दिन पूर्व ही 'बरेली की बर्फी' फिल्म प्रदर्शित हुई थी। आगरा की मिठाई पेठे भी बहुत स्वादिष्ट माने गए हैं। कभी-कभी कुछ शहर अपनी मिठाई के कारण लोकप्रिय हो जाते हैं। जैसे दराबा नामक मिठाई केवल मध्यप्रदेश के बुरहानपुर में ही बनती थी। बुरहानपुर में मुगल महारानी मुमताज महल की मृत्यु हुई परंतु दराबा उन पर भारी पड़ता है। यहां जिक्र केवल लोकप्रियता के लिहाज से किया जा रहा है और इतिहास की अवमानना कतई नहीं है। खाकसार ने 'दराबा' नामक उपन्यास लिखा है। राजकुमार हिरानी की फिल्म 'लगे रहो मुन्नाभाई' में दिमागी बीमारी को मस्तिष्क में हुआ 'केमिकल लोचा’ कहा गया है। कुछ फिल्में भाषा को नए मुहावरे भी देती है। बहरहाल 10 हजार लोग दिमागी बीमारी से मुक्त हो चुके हैं परंतु इनके परिवार उनका दायित्व नहीं लेना चाहते। शारीरिक व्याधियों के इलाज में मेडिकल विज्ञान ने कई करिश्मे कर दिखाए हैं परंतु दिमागी बीमारी से मुक्त किए जाने के क्षेत्र में अपेक्षाकृत कम काम हुआ है। स्त्री का गर्भाशय और मानव मस्तिष्क आज भी रहस्य ही बने हुए हैं। गुलजार की वहीदा रहमान केंद्रित फिल्म 'खामोशी’ में अपने स्नेह से बीमारों की सेवा करने वाली नर्स स्वयं ही अपना संतुलन खो देती है। कुछ समय पहले ही सोनाक्षी सिन्हा अभिनीत एक फिल्म में केंद्रीय पात्र को षड्यंत्र कर के पागल खाने भेज दिया जाता है। गुरुदत्त की 'प्यासा’ में परिवार की सहायता से नायक को पागलखाने भेज दिया जाता है। जहां से उसका मित्र उसे भगाने में सफल होता है। इस मित्र की भूमिका जानी वॉकर ने अभिनीत की थी। अंग्रेजी साहित्य के प्रसिद्ध निबंधकार चार्ल्स लैम्ब की बहन ने पागलपन के दौरे में अपने माता-पिता का कत्ल कर दिया था। अदालत ने उन्हें पागलखाने भेज दिया। कुछ समय पश्चात चार्ल्स लैम्ब ने कहा कि वे अपनी बहन की जवाबदारी लेंगे। अतः उनकी बहन को उनके हवाले किया गया। भाई के स्नेह से बहन चंगी हो गई परंतु उन्हें अकेले नहीं छोड़ा जा सकता था। अतः चार्ल्स लैम्ब ने नौकरी छोड़ दी और जीवन यापन के लिए निबंध लिखना प्रारंभ किया। इस तरह एक साधारण बैंककर्मी निबंधकार बन गया। ताजा आदेश यह है कि बैंक में जमा राशि केवल निकटतम रिश्तेदारों के खाते में जमा की जा सकती है। गोयाकि व्यक्ति के धन पर सरकार का अधिकार बढ़ गया है। हमारी बैंकिंग व्यवस्था में बार-बार किए गए परिवर्तन और नोटबंदी जैसे कदम कुछ लोगों को पागल बना सकते हैं। केतन मेहता ने फ्रेंच भाषा में लिखे उपन्यास 'मैडम बॉवरी’ से प्रेरित फिल्म 'माया मेमसाब’ बनाई, जिसे बॉक्स ऑफिस सफलता भी मिली। ज्ञातव्य है कि फ्रांस की सरकार ने भी केतन मेहता को वित्तीय सहायता दी थी। ज्ञातव्य है कि केतन मेहता पुणे फिल्म संस्थान में प्रशिक्षित हुए थे। उनकी फिल्में 'भवनी भवाई' और स्मिता पाटिल अभिनीत 'मिर्च मसाला’ भी सफल हुई थी। केतन मेहता देवास में रहने वाले महान गायक कुमार गंधर्व पर एक वृत्त चित्र बनाना चाहते थे। राहुल बारपुते ने उन्हें कुमार गंधर्व से मिलाया। कुछ कारणों से यह वृत्तचित्र बन नहीं पाया। केतन मेहता इस लेख से इस तरह जुड़ जाते हैं कि मैडम बॉवरी के लेखक ने यह कभी स्वीकार नहीं किया कि वे मैडम बॉवरी नामक किसी स्त्री को जानते थे परंतु कुछ शोधकर्ताओं को विश्वास है कि मैडम बॉवरी एक यथार्थ महिला थीं। कुछ लोगों का विचार है कि वह महिला भी केमिकल लोचे की शिकार थी। राजकुमार संतोषी की फिल्म 'दामिनी’ भी ऐसी महिला की कथा है, जिसके पति के रिश्तेदार एक सेविका के दुष्कर्म के दोषी हैं तथा दामिनी दोषियों को दंडित कराना चाहती है। धनाढ्य परिवार उसे पागलखाने भेजना चाहते हैं। यह एक सामाजिक सोद्देश्यता की महान फिल्म थी। हमारी व्यवस्था इतनी बुरी है कि आज अपने दिमागी संतुलन को बनाए रखना कठिन हो गया है।