दिल ने पाया था, आंखों ने गंवाया है / जयप्रकाश चौकसे

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दिल ने पाया था, आंखों ने गंवाया है
प्रकाशन तिथि : 18 जनवरी 2020


जापान में टूटे हुए बरतनों को गोंद के समान एक तरल पदार्थ में पिसी हुई चांदी और सोना मिलाकर जोड़ा जाता है। जुड़ाई किए गए बरतन में भोजन डालकर सगर्व मेहमानों को पेश किया जाता है। किफायत और बचत जापानी जीवन प्रणाली का स्वभाविक हिस्सा है। दूसरी ओर अमेरिका में टूटे हुए बरतन को फेंक दिया जाता है। उपयोग करके फेंक देना अमेरिकन जीवन शैली है। अमेरिका कचरे का ढेर बढ़ाता है। दिल्ली नगर निगम की सीमा के परे फेंके हुए कचरे का एक पहाड़ बन गया है। पंछी भी धोखा खा जाते हैं। कुछ वर्ष पूर्व आई वैश्विक आर्थिक मंदी का प्रभाव भारत पर नहीं पड़ा। किफायत और बचत के जीवन मूल्यों ने हमें बचा लिया, परंतु विगत वर्षों भारतीय समाज ने उन जीवन मूल्यों को त्याग दिया है। अत: दो वर्ष बाद आने वाली वैश्विक आर्थिक मंदी का हम पर गहरा प्रभाव पड़ सकता है।

एक दौर में फिल्में सेल्युलाइड पर बनती थीं। सेल्युलाइड में थोड़ा सा प्रमाण चांदी का होता था। शहरों और कस्बों में फिल्म दिखाने के बाद प्रिंट्स निर्माता को लौटाना होता था। इन लौटाए प्रिंट को गलाकर निर्माता चांदी निकाल लेता था। आजकल डिजिटल का प्रयोग होता है। इसमें चांदी के अंश नहीं होते। नोलन जैसे फिल्मकार आज भी सेल्युलाइड का इस्तेमाल करते हैं। उनका ख्याल है कि डिजिटल किसी भी दिन अदृश्य हो सकता है, जबकि सेल्युलाइड अधिक समय तक कायम रहता है। एक दौर में पुराने अखबारों को गलाकर लुगदी बनाई जाती थी। इसी तरह घटिया किताबों को लुगदी साहित्य कहा जाता है। इस लुगदी से बरतन बनाए जाते थे। इस तरह खबरें पी भी जाती थीं। आज तो इतनी अधिक खबरें प्रकाशित होती हैं कि सब को पढ़ने पर अपच भी हो सकता है। व्यवस्था को अपच नहीं होता। उसकी भूख अजगर के समान है।

फिल्म की शूटिंग के बाद सेट को डिसमेंटल किया जाता है। इस प्रक्रिया में कुछ चीजें टूट जाती हैं। सेट विभाग में कारपेंटर और दर्जी होते हैं। वे अगली शूटिंग तक सब कुछ दुरुस्त कर लेते हैं। फिल्म निर्माण में किफायत और बचत का ध्यान रखा जाता है, परंतु सितारा नाज-नखरों को उठाने में सब कुछ जाया हो जाता है। फिल्म संपादन करते समय शूटिंग के समय हुई लापरवाही को दुरुस्त किया जाता है। फिल्म संपादन काटने नहीं, वरन दृश्यों को सही ढंग से जोड़ने की कला है। पार्श्व संगीत में अन्य फिल्मों से चुराए गए अंश का भी इस्तेमाल होता है। कुछ फिल्मकार केवल नाटकीय दृश्यों के लिए पार्श्व संगीत रिकॉर्ड करते हैं। शेष फिल्म में स्टॉक संगीत का प्रयोग किया जाता है।

एक्शन फिल्मों में कारों की दौड़ और दुर्घटना तथा गोला-बारूद द्वारा कार के उड़ाए जाने के स्टॉक शॉट्स ही इस्तेमाल किए जाते हैं। कभी गोला लगने पर कार हवा में उछाल नहीं लेती, परंतु नाटकीय प्रभाव के लिए यह किया जाता है। इसी तरह किसी कार को ऊंचाई से फेंकने के दृश्य में कार से इंजन निकाल लिया जाता है। मनुष्य के ऊंचाई से गिरने के दृश्य में पुराने कपड़ों से बना पुतला फेंका जाता है। हिंसा के दृश्यों में नायक के डबल का प्रयोग किया जाता है। नायक के केवल क्लोज अप लिए जाते हैं। टूटे हुए बरतनों को दुरुस्त करने के काम की तरह ही फटे हुए कपड़ों को भी दुरुस्त करके पहना जाता है। प्राय: कपड़े की सिलाई उधड़ जाती है। फटे कपड़ों को रफू करके इस्तेमाल किया जाता है। दूध भी फट जाता है। फटे दूध से पनीर बनाया जाता है। अधिकांश बंगाली मिठाइयां फटे हुए दूध से ही बनाई जाती हैं। प्राय: हाथ की कोहनी के पास का ऊनी वस्त्र फट जाता है। उस स्थान पर चमड़े का पैच लगाया जाता है। प्राय: फौजी वस्त्रों में यह देखा गया है।

शादी उत्सव के समय मेहमान अपनी प्लेट पर आवश्यकता से अधिक भोजन ले लेते हैं। इस जूठन के अपव्यय का अनुमान लगाना कठिन है। राजकुमार हिरानी की थ्री-ईडियट्स में इस बाबत् एक मजेदार दृश्य रचा गया था। रीसाइकिलिंग से बचत और किफायत की जाती है। बहरहाल फिल्म मधुमति में शैलेंद्र का गीत है- टूटे हुए ख्वाबों ने, हमको ये सिखाया है, दिल ने जिसे पाया था, आंखों ने गंवाया है...।