दिल ने ही जाल फैलाए, कैसे-कैसे नाग लहराए / जयप्रकाश चौकसे
प्रकाशन तिथि : 15 अक्टूबर 2018
खबर है कि हैदराबाद स्थित क्रिकेट स्टेडियम के एक भाग में जब से मंदिर बनाया गया है तब से भारतीय क्रिकेट टीम उस मैदान पर हारी नहीं है गोयाकि जीतने का कारण खिलाड़ियों की काबिलियत नहीं है। इसी आशय की बात उपन्यास 'जोया फैक्टर' में कही गई है, जिस पर फिल्म बन रही है। इस उपन्यास में भारतीय क्रिकेट टीम वे सारे मैच जीत जाती हैं जिनकी रपट देने एक महिला पत्रकार स्टेडियम में मौजूद होती है। घटनाक्रम ऐसा चलता है कि कप्तान और पत्रकार का प्रेम हो जाता है। वे दोनों प्रेम के कारण देश-विदेश का दौरा करते हैं। उस महिला के लकी मैस्कॉट होने की खबर तेजी से फैलती है। कप्तान को लगता है कि उसके और साथियों के परिश्रम और प्रतिभा का अपमान हो रहा है। अतः ऑस्ट्रेलिया में अंतिम टेस्ट के पहले वह अपनी प्रेमिका को भारत भेज देता है ताकि उसके लकी मैस्कॉट होने से जीतने का मिथ टूट सके।
नायिका भारत आती है उसके मकान को हजारों प्रशंसक घेर लेते हैं और नारेबाजी करते हैं कि भारत की जीत के लिए उसे ऑस्ट्रेलिया वापस जाना चाहिए। शहर की पुलिस भी अपरोक्ष रूप से हुड़दंगियों की सहायता करती है। अधिकांश लोग अंधविश्वासी होते हैं। क्रिकेट को भी सगर्व 'भाग्य का खेल' कहा जाता है। यहां तक कि अत्यंत प्रतिभाशाली खिलाड़ी भी अंधविश्वास करते हैं कि अमुक शर्ट या अंडरवियर वे पहने थे जब उन्होंने शतक लगाया या 5 से अधिक विकेट लिए। उस लकी वस्त्र को बार-बार पहनते हैं। उसके फट जाने के बावजूद पहनते हैं। एक सफल भारतीय कप्तान ने किसी महत्वपूर्ण मैच के पहले अपने गृह नगर के माता के मंदिर में एक पाड़े की बलि देने का संकल्प किया था और विजय प्राप्त करने के बाद उसने जेपी दत्ता की एक फिल्म के दृश्य की तरह ही बलि भी दी थी। खिलाड़ी का रिश्तेदार एक राजनीतिक दल का महत्वपूर्ण सदस्य है, इसलिए इस अवैध बलि की जांच नहीं की गई। वह खिलाड़ी एक उद्योगपति का दामाद है, इसलिए मैच फिक्सिंग कांड से भी बेदाग निकाल लिया गया। 'समरथ को नहीं दोष गोसाई'। इसी तरह एक खानदानी प्रतिभाशाली खिलाड़ी टेस्ट मैच में सफेद कपड़े पहनता है परंतु गले में लाल रंग का रुमाल बांधता है वह चटक लाल रंग चहू ओर छाई सफेदी को भंग करता है। याद आता है कि स्टीवन स्पिलबर्ग की फिल्म 'शिंडलर्स लिस्ट' श्वेत- श्याम फिल्म के एक दृश्य में एक मासूम बालक का लाल रंग का मफलर विश्व युद्ध में बहाए खून से अधिक प्रभावोत्पादक लगता है। क्रांति में 'लाल सलाम' भी एक उद्बोधन बना। कल्पना करें कि धर्म पांच मंजिल का भव्य भवन है जिसमें प्रकाश रहता है, पवन भी सदैव चलती रहती है। इस भवन के भीतर एक तलघर है जिसमें अंधविश्वास के जाले हैं, कुरीतियों की चमगादड़ें उल्टी लटकी हैं। विषधर नाग सरसराते रहते हैं। रात के समय तलघर में रहने वाले नाग, मकड़ियां इत्यादि नकारात्मक शक्तियां भवन में प्रवेश करती हैं। जिस व्यक्ति ने इस भवन को दिन में देखा है, उसे यह खुला-खुला प्रकाशमय लगा है और जिसने इस भवन को रात में देखा, उसे जाले, नाग, बिच्छू इत्यादि नज़र आते हैं। अब यह व्यक्ति पर निर्भर करता है कि भवन को दिन में देखे या रात में देखे। प्राय: हम वही यकीन करते हैं, जो सचमुच में करना चाहते हैं। हुक्मरान के भव्य सचिवालय में विद्वानों से अधिक भाग्य बाचने वाले अपना चोपड़ा खोले बैठे होते हैं। बैलेंस सीट की जगह पंचांग देखी जा रही है।
फिल्मकार भी प्रदर्शन के पूर्व फिल्म की एक रील लेकर मंदिर, मस्जिद, चर्च या गुरुद्वारे जाते हैं। सफलता प्रतिभा व परिश्रम से मिलती है। इस परम सत्य को हम अनदेखा करते हैं। हाल ही में एक मंदिर में महिलाओं के जाने से पाबंदी हटा दी गई। एक स्वयंभू नेता ने कहा कि मंदिर में प्रवेश करने वाली स्त्री को काट देंगे। तलवार के एक ही वार से दो हिस्से कर देंगे। अगर सचमुच वह ऐसा करता है तो एक कटा हुआ धड़ सीधे उसके सीने से चिपक जाएगा। हर पुरुष में आधा शैतान, आधा ईश्वर और आधी नारी होती है। अब एक व्यक्ति डेढ़ व्यक्ति कैसे होता है, यही समझ लें तो बात बन जाएगी। हुक्मरान द्वारा जगाया यह जिन अब बोतल में वापस नहीं जाएगा। भारत में बौद्धिक संपदा का खनन प्रतिबंधित है।