दिवाली माह में मनोरंजन उद्योग / जयप्रकाश चौकसे

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दिवाली माह में मनोरंजन उद्योग
प्रकाशन तिथि : 23 सितम्बर 2013


संजय लीला भंसाली की प्रेम-कथा का नाम कृष्ण लीला नहीं होकर रामलीला है, क्योंकि संभवत: 'सावरिया' की कटु स्मृति उन्हें इसकी आज्ञा नहीं देती। दो बड़ी असफल फिल्मों से विचलित भंसाली ने प्रभुदेवा से अपनी 'राउडी राठौर' निर्देशित कराई ताकि बाजार में साख बनी रहे। उनके मन में अवश्य ही रणबीर कपूर और दीपिका पादुकोण को लेकर अपनी रोमियो-जूलियट बनाने का विचार आया होगा, परंतु जाने क्यों उन्हें रणबीर कपूर से समय नहीं मिल रहा है। इसका 'सावरिया' की असफलता से कोई संबंध नहीं है, परंतु निर्माण के समय शायद हेडमास्टर भंसाली अपने शिष्य के प्रति निर्मम और अशिष्ट रहे होंगे, क्योंकि उनकी सृजन प्रक्रिया में एक तानाशाह की सख्ती से फिल्म बनाना आवश्यक अंग रहा होगा, प्राय: सृजनशील लोग निर्मम होते हैं और 'मैं' 'मैं' 'मैं' का अहंभाव इतना मजबूत होता है कि ऐसे प्रखर व्यक्ति जिस जगह से गुजरते हैं, वहां कतार में खड़े आम लोग लहूलुहान हो जाते हैं। इस तरह की प्रवृत्ति के अनेक फिल्मकार हुए हैं और यह सृजन क्षेत्र की आम घटना है। बहरहाल, रणबीर कपूर और रनवीर सिंह के नामों की समान-सी ध्वनि के साथ ही एक बात उन्हें और जोड़ती है कि रणबीर के दादा राज कपूर की 'बूट पॉलिश' में रनवीर सिंह की नानी चांद बर्क की महत्वपूर्ण भूमिका थी और फिल्म में दो गाने भी उन पर फिल्माए गए थे। इस समानता के अतिरिक्त उनमें कुछ भी समान नहीं है। प्राय: मनुष्य समान नहीं होते, क्योंकि प्रकृति डुप्लीकेटिंग मशीन नहीं है। रनवीर सिंह की पहली फिल्म 'बैंड बाजा बारात' सफल फिल्म थी, परंतु 'सावरिया' जैसी असफल फिल्म से करियर शुरू करने वाले रणबीर कपूर आज प्रथम श्रेणी के सितारे और अत्यंत कुशल अभिनेता हैं तथा युवा दर्शक वर्ग में उनकी लोकप्रियता की कल्पना करना कठिन है।

भंसाली की 'रामलीला' में रणबीर कपूर की भूतपूर्व प्रेमिका दीपिका पादुकोण काम कर रही हैं, जो इस समय सफलतम नायिका हैं और शाहरुख खान अभिनीत 'चेन्नई एक्सप्रेस' की भी केन्द्रीय ऊर्जा हैं। संजय लीला भंसाली अपनी नायिकाओं को प्रस्तुत करने में अत्यंत निपुण हैं। उन्होंने ऐश्वर्या रॉय को अपने सुंदरतम रूप में प्रस्तुत किया। नृत्य-गीत प्रस्तुतीकरण में उन्हें महारत हासिल है। ज्ञातव्य है कि उनकी माता लीला भंसाली ने अनेक गुजराती नाटकों में कमाल का नृत्य-निर्देशन किया है। उनके पिता भी निर्माता थे। उन्होंने स्वयं अपना करियर विधु विनोद चोपड़ा की '१९४२ ए लव स्टोरी' के गीतों के फिल्मांकन से प्रारंभ किया था। उनकी नृत्य-गीत प्रस्तुति हमें वी. शांताराम की याद दिलाती है, वही कौतुक, वैचित्र्य एवं ऊर्जा उनमें है।

भंसाली को संगीत की गहरी समझ है और अपनी एक फिल्म के गीत भी वे रच चुके हैं। हाल ही में 'रामलीला' की झलक उन्होंने दिखाई है और उससे एक बड़ी सफलता की आशा जागती है। यह बात जरूर अजीब है कि प्रेम-कथा की प्रचार पंक्ति में बुलेट्स की वर्षा का संकेत है। हबीब फैजल की 'इश्कजादे' भी ऐसी ही रोमियो-जूलियट से प्रेरित प्रेमकथा थी, जिसमें दूसरे विश्वयुद्ध में चलाई गई गोलियों से थोड़ी-सी कम चली थीं। दरअसल, हमारा समाज एक अत्यंत हिंसात्मक और असहिष्णुता के दौर से गुजर रहा है और नेताओं के भाषण भी ऐसे ध्वनित होते हैं, मानो स्टेनगन चल रही हो। खाप पंचायतों के निष्ठुर निर्णय और दो युवा लोगों की आपसी चुहलबाजी को जातीय दंगे में बदलने का यह दौर है।

आज का प्रेम भी छायावाद से बाहर आकर प्रगतिवाद से गुजरता हुआ अब प्रतिक्रियावादी हो गया है। पूरे देश में ही सारे मानदंड एवं मूल्य बदल रहे हैं। मासूमियत अब गई-गुजरी चीज हो गई है। जूड़े में गजरा लगाना और चांदनी रात में नौका विहार के स्वप्न कब के भंग हो चुके हैं। युवा वर्ग में वाचाल होना बुद्धिमानी का पर्याय हो गया है।