दिव्यदृष्टि / राहुल शिवाय
सूरज अपनी मॉ के साथ स्वामी बिमलानंद के आश्रम पहुंचा। उसके साथ उसका छोटा भाई आनंद भी था। सूरज ने अभी-अभी ही कम्प्यूटर विभाग से अभियांत्रिकी की थी। सूरज की मॉ ललिता ने सूरज को स्वामी जी को प्रणाम करने को कहा। सूरज ने स्वामी जी को पाँव छुकर प्रणाम किया। स्वामी जी ने कहा "जय भवानी" फिर बोले "बच्चे तुम पढाई करते हो ना।" सूरज ने हॉ कहते हुये अपना सिर हिलाया। फिर स्वामी जी ने कहा "यह बच्चा कम्प्यूटर सिखता है ना और तुम इसकी भविष्य की चिंता में आई हो ना।" ललिता जय हो कहते हुये उनके चरण में गिर पडी, फिर स्वामी जी ने हाथ उपर किया और भभूत प्रकट करके बोले "इसे सिर पर लगाकर, सुबह-सुबह पढने को कहो, सफलता प्राप्त होगी।" ललिता ने भभूत ले लिया और प्रणाम कर अपने दोनो बच्चों के साथ बाहर चली आयी।
बाहर में सूरज ने कहा "मॉ क्या तुम इन बाबाओं के चक्कर में पडती हो?" इसपर ललिता नाराज हो गयी और बोली "बाबा के पास दिव्यदृष्टि है वह सब कुछ जानते हैं। तुमने नहीं देखा उन्होंने यह बता दिया की तुम कम्प्यूटर पढते हो और तुम नौकरी के सम्बंध में यहाँ आये हो।" सूरज ने कहा "मॉ ये तो उनका अंदाजा भी हो सकता है।" इसपर ललिता गुस्सा हो गई और कहा, "तुम नहीं समझोगे बाबा की महिमा को।"
थोडी देर बाद बाज़ार आ गया, आनंद बार-बार खिलौनों की तरफ देख रहा था। तब ललिता ने कहा "आनंद मैं जानती हूँ तुम खिलौना खरीदना चाहते हो।" यह सुनते ही सूरज बोला "जय हो ललिता मैया आप तो अंतरयामी हैं, आप तो मन की बातें पढ लेती हैं अपनी दिव्यदृष्टि से।