दीपिका, श्रीराम राघवन व विकास स्वरूप / जयप्रकाश चौकसे

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दीपिका, श्रीराम राघवन व विकास स्वरूप
प्रकाशन तिथि :01 मई 2015


'बदलापुर' की सफलता के बाद श्रीराम राघवन ने विकास स्वरूप के उपन्यास 'द एक्सीडेंटल एपरन्टिस' से प्रेरित पटकथा दीपिका पादुकोण को सुनाई और उसने सहर्ष काम करना स्वीकार किया है। आजकल दीपिका की बॉक्स ऑफिस हैसियत लगभग नायक की तरह है और फिल्म उद्योग का अर्थशास्त्र ऐसा है कि एक बिकाऊ सितारा हाथ आते ही कारपोरेट धन उपलब्ध हो जाता है। श्रीराम राघवन एक गुणी फिल्मकार हैं और उनकी फिल्मों में केवल एक 'एजेंट विनोद' बहुत घाटे की फिल्म सिद्ध हुई। यह संभव है कि सैफ की सुपर एक्शन हीरो की छवि गढ़ने की मंशा से कुछ गलतियां करते रहे और संभवत: पहली बार श्रीराम राघवन अपने आकल्पन पर टिक नहीं सके।

बहरहाल, विकास स्वरूप की पुस्तक से प्रेरित 'स्लमडॉग मिलिनोयर' बनी और उनकी 'सिक्स विक्टिम' के फिल्म अधिकार बिक चुके हैं, अत: यह उनकी तीसरी कृति का फिल्मांकन होने जा रहा है और यह भी सुना है कि लेखक आजकल एक राजनीतिक दल के अधिकृत प्रवक्ता हो चुके हैं और उनके वक्तव्य अत्यंत संतुलित एवं तार्किक ध्वनित होते हैं। विकास स्वरूप सत्य घटनाओं के चारों ओर कल्पना के रेशों से काफी यथार्थवादी रचना करते हैं।

वे अपनी सारी कृतियों में पाठक की रुचि बनाए रखते हैं क्योंकि घटनाक्रम नाटकीय घुमावदार होकर बहुत रोचक बन पड़ता है। उनकी शैली में रहस्य-रोमांस के साथ सामाजिक एवं आर्थिक विसंगतियों के संकेत भी होते हैं। मसलन स्लमडॉग मिलिनोयर में टीवी प्रतिस्पर्धा का एन्कर श्रेष्ठि वर्ग का है और उसे झौपड़पट्‌टी में पले लगभग अनपढ़ बालक के जीवन अनुभव आधारित सही उत्तर बौखला देते हैं और उसकी पराजय का षड़यंत्र भी रचता है। गोयाकि शोषित तबके के व्यक्ति का अपनी जनम की सतह से उठना एक वर्ग को अच्छा नहीं लगता। संभवत: उनकी विचार शैली में संत का पुत्र संत और डाकू का पुत्र डाकू ही होगा। ज्ञातव्य है कि इसी दूषित विचार पर अब्बास की लिखी 'आवारा' राजकपूर ने बनाई थी।

श्रीराम राघवन की फिल्म शैली भी यथार्थवादी होने के साथ उसकी बाहरी सीमा पर रोमांस भी खड़ा होता है और वे मनुष्य की कमजोरियों की गाथा बड़ी कुशलता से कहते हैं। अपराध उनके सिनेमा का जरूरी हिस्सा है। श्रीराम राघवन समाज के शोषित वर्ग के पात्रों को बड़ी करुणा से प्रस्तुत करते हैं।

"बदलापुर' में परिस्थितियों के कारण इंसानी गोश्त की मंडी पर बैठी स्त्री के पात्र को उन्होंने एक नई ऊंचाई दी है और जरायमपेशा अपराधी के हृदय में भी कुछ संवदेना होती है- यह बात ही उनके मानवीय दृष्टिकोण की पुष्टी करती है।

ज्ञातव्य है कि दूसरे महायुद्ध के पश्चात फ्रांस में एक नया सिनेमा यह उभरा था कि रहस्य रोमांच की कथा में सामाजिकता के संकेत रखो ताकि दर्शक तीव्र गति से चलते घटनाक्रम में बंध जाए और अगर दर्शक के मन का एंटिना सामाजिक सोद्देश्यता को ग्रहण करना चाहे तो उसका स्वागत है। इसी तरह की एक फिल्म में दूसरे विश्वयुद्ध के समय जब फ्रांस हिटलर के अधीन था तब देशभक्त छुपकर गुरिल्ला युद्ध जारी रखते थे।

ऐसे ही एक दल को हथियार भेजने के लिए एक गोश्त से लदे ट्रक का इस्तेमाल किया जाता है, परंतु सामने से अन्य ट्रक का एक हिस्सा उस ट्रक के ऊपर बिछे कपड़े में एक छेद कर देता है और गोश्त के टुकड़े सड़क पर गिरते हैं, तो कुत्ते उसका पीछा करते हैं तथा तत्काल ही हिटलर के इंसानी लिबास में छुपे कुत्ते भी पीछा करते हैं। यह रोचक घटना फिल्म का क्लाइमैक्स है। बहरहाल, दीपिका पादुकोण को मॉडेस्टी ब्लेज नुमा भूमिका में श्रीराम राघवन के निर्देशन में देखना रोचक होगा।