दीपिका पादुकोण और द्रौपदी प्रेरित फिल्म / जयप्रकाश चौकसे

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दीपिका पादुकोण और द्रौपदी प्रेरित फिल्म
प्रकाशन तिथि : 31 अक्तूबर 2019


दीपिका पादुकोण सिंह द्रौपदी की भूमिका अभिनीत करने जा रही हैं। इस फिल्म में वे आंशिक पूंजी निवेश भी कर रही हैं। उनके पति रणवीर सिंह फिल्म में अभिनय नहीं कर रहे हैं। अभी यह तय हो रहा है कि अन्य पात्रों को कौन अभिनीत करेगा। रामायण के कुछ पात्रों और घटनाओं का समावेश महाभारत में भी किया गया है। इन महान ग्रंथों की व्याख्या के प्रयास में कई किताबें लिखी गई हैं। शिवाजी सावंत की कर्ण केंद्रित किताब मृत्युंजय का अनुवाद कई भाषाओं में हुआ है। यह उपन्यास फिल्म पटकथा की तरह लिखा गया है। युद्ध समाप्त होने की घोषणा के बाद अश्वत्थामा ने द्रौपदी के भाई व पुत्रों की हत्या कर दी थी। इसलिए द्रौपदी ने उसे शाप दिया था कि वह कभी मर नहीं सकता गोयाकि सतत जीवित रहना एक दंड की तरह माना जाए और वर्तमान की असहिष्णुता इसकी पुष्टि करती है। आज भी रात में घटी कार और ट्रक दुर्घटनाओं के लिए अश्वत्थामा को जिम्मेदार ठहराया जाता है। जब हम तर्क के सहारे किसी परिणाम पर नहीं पहुंच पाते तो उसे दैवीय घटना मानने लगते हैं गोयाकि हमारी सीमित शक्तियों का दोष हम किसी दैवीय शक्ति के सिर पर थोपने के लिए आतुर रहते हैं।

रामायण पर लिखी एक किताब में इस तरह का विवरण है कि रावण ने छाया सीता का अपहरण किया था। असली सीता उस समय अदृश्य हो गई थी। रावण की कैद से मुक्त सीता अग्नि परीक्षा में भस्म हो गई और अग्नि कुंड से असली सीता सामने आई। उस समय श्रीराम ने छाया सीता को यह वरदान दिया कि वे द्रौपदी के रूप में आएंगी और कृष्ण अवतार के समय वे उसकी सहायता करेंगे। महाभारत में वर्णित घटनाक्रम में श्रीकृष्ण बार-बार द्रौपदी की रक्षा करते हैं। चीरहरण से लेकर उसके अज्ञातवास तक में श्रीकृष्ण उसकी सहायता करते हैं। द्रौपदी के स्वयंवर में कर्ण को सूत-पुत्र होने के कारण अवसर नहीं दिया गया। दरअसल, महाभारत के अनेक पात्र मन ही मन द्रौपदी से प्रेम करते हैं। द्रौपदी स्वयंवर में अर्जुन ने मछली की आंख पर तीर लगाकर द्रौपदी का वरण किया! अपनी पत्नी के साथ घर लौटकर उन्होंने अपनी मां कुंती से कहा कि वे बाहर आकर देखें कि वे क्या लाए हैं और माता कुंती ने बिना देखे ही कहा कि आपस में बांट लो। इस तरह द्रौपदी पांच पतियों से ब्याही गई। इस प्रकरण में अर्जुन का द्रौपदी का नाम नहीं लेना और कुंती द्वारा बिना देखे ही आपस में बांट लेने के आदेश की दुविधा और दु:ख को द्रौपदी ने ताउम्र भोगा। यहां तक कि सशरीर स्वर्ग जाने के अवसर पर उसका देहांत इसलिए हुआ कि उसने भीम को अधिक प्रेम किया था। जयद्रथ द्वारा अपहरण किए जाते समय भी भीम ने द्रौपदी की रक्षा की और युधिष्ठिर ने अपने वंश में विवाहित होने के कारण जयद्रथ को क्षमा कर दिया। केवल उसका सिर मूंड दिया गया। क्या गंजे जयद्रथ ने विग पहना होगा?

महाभारत के शांति पर्व में श्लोक 167.27 इस तरह है- 'धर्म समाचरेत पूर्व ततोदर्थ धर्म संतुलम्। तत: काम चरेत पश्चात सिद्धार्थ स हि तत्परम्।' काम भावना से जन्मी अंतरंगता का जन्म इच्छा से होता है। यह इच्छा ही मनुष्य में काम भावना उत्पन्न करती है। इच्छा के अभाव में मनुष्य धन भी अर्जित नहीं कर सकता। कृषि और व्यापार के सारे कार्यकलाप इच्छा की कोख से ही जन्म लेते हैं। यह जानकारी बद्रीप्रसाद चतुर्वेदी के ग्रंथ से प्राप्त की गई है। इस आशय का भी श्लोक है कि आर्थिक विकास के बिना अध्यात्म भी नहीं साधा जा सकता। ययाति की कथा भी काम भावना पर प्रकाश डालती है।

ओडिशा की प्रतिभा रॉय ने द्रौपदी पर शोधपरक किताब लिखी है। दीपिका पादुकोण उनसे संपर्क कर सकती हैं। द्रौपदी भारत का कालातीत, स्थानातीत और युगातीत चरित्र है। नारी मन की वास्तविक पीड़ा, सुख-दुख और व्यक्तिगत अन्न संबंधों की जटिलता और गहराई को पकड़ पाना कठिन होगा। महाभारत के उपेक्षित पात्रों पर ग्वालियर के पवन करण ने स्री शतक के दो खंड लिखे हैं। मसलन, अम्बिका की दासी इंदु दासी ही बनी रही। अगर इंदु और वेदव्यास की अंतरंगता से कन्या का जन्म होता तो उसे दासी बनाया जाता। पुरुष प्रधान समाज की यही परम्परा है। अगर विदुर को सिंहासन पर बैठाया होता तो कुरुक्षेत्र के नरसंहार से मानवता को बचाया जा सकता था। स्री शतक में पवन करण एक पात्र की व्यथा इस तरह प्रस्तुत करते हैं- हम दोनों ही अपनी-अपनी आयु को/ आगे और पीछे नहीं धकेल सकते मगर एक-दूसरे को अपनाकर/ उसके अंतर को जरूर थका सकते हैं/ मेरे वृद्ध होने का यह अर्थ नहीं कि मैं स्त्री नहीं रही/ ये भी नहीं कि तप ने सुखा दिए मेरे भीतर के झरने/ जिनका बहाव किसी पुरुष की तरफ होता है।'

सारा मामला देह पर आकर ठहरता है। आत्मा को आभामंडित करते हुए शरीर के महत्व को गौण किया गया, जबकि आत्मा का निवास शरीर में ही होता है। शरीर के बिना आत्मा के पास अंतरिक्ष तक भटकने के सिवाय कोई रास्ता नहीं है। शरीर को साध लेना ही बड़ा तप है। आत्मा पर संभवत: बीमारियों का प्रभाव कम पड़ता है। शरीर ही बीमारियां झेलता है, तपता है, टूटता है। बहरहाल, द्रौपदी प्रेरित फिल्म बनाना साहस का काम है और इस प्रयास के लिए हम दीपिका पादुकोण का अभिनंदन करते हैं।