दीपिका : नेट पर स्थिर शटल कॉक / जयप्रकाश चौकसे
प्रकाशन तिथि : 20 जून 2013
इस वर्ष अभी तक दीपिका पादुकोण की 'कॉकटेल' और 'रेस' के बाद रणबीर कपूर के साथ 'ये जवानी है दीवानी' अत्यंत सफल रही है और सफलता की इस तिकड़ी के बाद अपने पहले नायक शाहरुख खान के साथ 'चेन्नई एक्सप्रेस' में वे नजर आएंगी और वर्ष के अंत में संजय लीला भंसाली की 'रामलीला' प्रदर्शित होगी। संभावना यह है कि इस वर्ष वे पांच सफल फिल्मों में काम करके कैटरीना कैफ के सिंहासन को चुनौती देंगी। रणबीर कपूर और दीपिका का प्रचारित प्रेम-प्रसंग काफी पहले समाप्त हो गया था, जब कैटरीना ने उनकी जगह ले ली थी, अत: उसका बदला व्यवसाय क्षेत्र में लेने का सुख उसे मिल सकता है। इस खेल में सतह के नीचे यह भी छुपा है कि भंसाली की 'सावरिया' में प्रस्तुत रणबीर कपूर ने उनके साथ दोबारा काम नहीं किया। ज्ञातव्य है कि शाहरुख और दीपिका की प्रवेश फिल्म 'ओम शांति ओम' तथा 'सावरिया' एक ही दिन प्रदर्शित हुई थीं और इसे लेकर दोनों निर्माताओं के बीच कड़वाहट आई थी। उसी समय 'सावरिया' रणबीर और 'ओम शांति ओम' दीपिका के बीच मधुर संबंध बन रहे थे।
मनोरंजन जगत में निर्माताओं की आपसी प्रतिस्पद्र्धा और युवा सितारों के बीच प्रेम तथा अलगाव का खेल निरंतर चलता रहता है। गौरतलब यह है कि दीपिका पादुकोण के अभिनय में निरंतर सुधार जारी है और अपने भूतपूर्व प्रेमी रणबीर के साथ 'ये जवानी है दीवानी' के प्रेम दृश्य और उनके बीच के रसायन से संकेत मिलता है कि वे इस खेल में भी पारंगत हो रही हैं। 'चेन्नई एक्सप्रेस' में उन्होंने तमिलभाषी पात्र अभिनीत किया और अपने संवाद विशेष दक्षिण उच्चारण के साथ बोले हैं। प्राय: इस तरह के प्रयोग हास्यास्पद हो जाते हैं और दोनों भाषाओं का मखौल उड़ाते हुए लगते हैं, परंतु दीपिका ने विश्वसनीयता के साथ यह काम किया है और कहीं कोई मखौल या फूहड़ता ध्वनित नहीं होती। बेंगलुरू में लंबे समय तक रहने के कारण वे दक्षिण की भाषाओं से सुपरिचित हैं।
खिलंदड़ दीपिका अब अभिनय के लिए संजीदा हो गई हैं। उनकी देह की भाषा भी मंजी और सुती हुई दिखती है। वह थरथराती प्रत्यंचा पर चढ़े हुए तीर-सी दिखती हैं। निशाने पर लगने के लिए बेकरार है यह तीर। मनोरंजन व्यवसाय में सफलता बहुत बड़ी निर्णायक शक्ति है और निर्माता इसे शास्त्र की तरह नहीं साधते हुए सफलता को नुस्खा और तावीज समझने की भूल करते हैं। अत: 'ये जवानी है दीवानी' की रिकॉर्ड सफलता के कारण रणबीर कपूर और दीपिका की जोड़ी सफलता के टोटके के रूप में देखी जाती है और दोहराई जाती है। प्रदर्शन-पूर्व दीपिका इस आशय की बात भी कह चुकी हैं कि उनकी जोड़ी राजकपूर-नरगिस की तरह सिद्ध हो सकती है। कैटरीना कैफ भी रणबीर कपूर के साथ दो सफल फिल्मों में काम कर चुकी हैं - प्रकाश झा की 'राजनीति' एवं राजकुमार संतोषी की 'अजब प्रेम की गजब कहानी', जबकि दीपिका और रणबीर कपूर की पहली फिल्म असफल रही थी।
मनोरंजन जगत की सितारा प्रेम कहानियों में बॉक्स ऑफिस के नतीजे अत्यंत महत्वपूर्ण होते हैं। इन सितारों की जोडिय़ां ऊपरवाला नहीं वरन बॉक्स ऑफिस बनाता है। इस खेल में उनका अभिनय परदे पर प्रस्तुत अदाओं से बेहतर होता है। यह भी विचारणीय है कि फिल्म-दर-फिल्म खूबसूरत स्थानों पर कलाकार प्रेम कहानियों में अभिनय करते हैं और भले ही जोडिय़ां बदलें, भूमिकाओं और पोशाकों में परिवर्तन हो, परंतु सारा समय अभिनय करने से उनकी अपनी संवेदनाएं भी मैकेनिकल हो जाती हैं। डायरेक्टर के 'कट' कहने पर रुकना होता है, 'एक्शन' कहने पर प्रेम का संवाद दोहराना पड़ता है। एक ही शॉट अनेक बार लिया जाता है। अत: उनके प्रेममय जीवन में मशीनों की क्रूरता का प्रवेश संभव है। क्या मेकअप उतारते ही वे अपने स्वाभाविक स्वरूप में लौट आते हैं? कहते हैं कि मिठाई बनाने वाले व्यक्ति की मीठा खाने की इच्छा मर जाती है। इस गोरखधंधे को समझना कठिन है।
ज्ञातव्य है कि दीपिका के पिता प्रकाश पादुकोण बैडमिंटन के अंतरराष्ट्रीय खिलाड़ी थे और उनके जमाने में 'पॉवर' नहीं, खेल को 'कला' समझा जाता था। वे बैडमिंटन कोर्ट के किसी भी कोने से शटल को इस खूबसूरती से मारते थे कि वह नेट पर स्थिर होकर विरोधी के कोर्ट में गिर जाती थी, उसे लौटाने का अवसर ही नहीं मिलता। वह एक क्षण जब शटल नेट पर स्थिर रहती थी, अत्यंत रोमांचक होता था। समय के थमने का आभास होता था। उनकी सुपुत्री दीपिका पादुकोण भी बैडमिंटन की तरह अपने मनोभाव की शटल नेट पर स्थिर करने में महिर हैं और प्रतिद्वंद्वी के लिए अवसर नहीं रहता।