दीवानी / पुष्पलता कश्यप / कथेसर
मुखपृष्ठ » | पत्रिकाओं की सूची » | पत्रिका: कथेसर » | अंक: जनवरी-मार्च 2012 |
ग्यारह दिनां तांई मौत सूं जूझतां-जूझतां डागदर के.पी. री अकाल मौत हुयगी। मुग्धा आपरै नरसिंग स्टाफ सागै उण स्टेचर ट्रोली पाखती भारी मन सूं अणमणौ उणियारौ लियां ऊभी ही, जिण माथै डागदर री लास राख्योड़ी ही। वीं रौ चेरौ आंसूवां सूं हळाडोब हौ अर आंख्यां रा पपोटा सूज्योड़ा हा। वा पड़तख पीड़ री सजीव मूरत लखावै ही। वीं कालै सूं ई कीं खावणौ तो आगौ रैयो, अेक घूंट पाणी ई हलक रै हेठै नीं उतार्यो। बस आखी रात टेसूवा बैवावती जावै ही जार-जार। डागदर रा दूजा सगळा भाई जद लास नै घरै लेय जावण तांई एम्बुलैंस या कोई मोटी गाड़ी खातर अठी-ऊठी भागा-दौड़ी करता बठै सूं निसरगा, म्हैं अर मुग्धा लास कनै ऊभा हा। वा वठै रै सरकारू अस्पताळ मांय स्टाफ नरस है। म्हैं बठै अणमणौ ऊभौ हौ। डागदर नीं सिरफ म्हारौ सगौ छोटौ भाई हौ बल्कै अेक अजीज दोस्त ई हौ। म्हैं मुग्धा कानी जोवै हौ। म्हैं वीं रो दरद कठैई गेरै मैसूस करै हौ। डागदर रै वास्तै वीं रौ प्रेम अर समरपण साचौ हौ। वीं रौ उणियारौ अर आंख्यां इण साच री खुली गवाही देवै ही। साचौ प्रेम लुकायोड़ौ नीं रैवै। इण बगत वीं रौ रूं-रूं विलखै हो।
वा व्हीर हुयनै म्हारै कोडै आयी। रोवण तांई वीं नै अेक हमदरद कांधै री दरकार ही। म्हारै सीनै सूं लागनै वा फफकपड़ी, 'भाईसा'ब म्हारौ तौ सै कीं बुवौ ग्यो। सै खतम हुयगौ। अबै म्हैं जीवनै कांई करसूं, कोई मकसद नीं रैयगौ।' म्हैं मांय तांई हिलगौ। म्हारै हिवड़ै मांय भावनावां रा हबोळा उठै हा। म्हैं वीं री मगरां पंपोळतौ हिमळास दीवी। थ्यावस बंधायौ, 'बेटा, आपां सगळा वास्तै औ भोत अबखौ वगत है' पण हिम्मत तौ राखणी पड़सी!' वै लोग बावडऩै आवता दीख्या तौ वा म्हारै सूं अळगी हटनै ऊभगी। डागदर रौ फेटल कार एक्सीडेंट हुयौ हौ। बौ अठै स्हैर रै अेक निजी अस्पताळ रै आई.सी.यू में भरती हौ। वीं री नाड़ (नसड़ी) री रीढ़ री हड्डी मांय फे्रक्चर हुयौ हौ। न्यूरोसर्जन ऑपरेसन कर दियौ हौ पण डागदर री जिनगाणी रै बाबत वौ कीं बतावण री हालत में नीं हौ।
सी.अेम.ओ. डॉ. के.पी. एक्सीडेंट पछै अपणी जोड़ायत सौभाग्यश्री नै नीं बुलायनै मुग्धा नै बुलायी ही। वौ पूरै होस-हवास में हौ। वीं नै आपरी परणयोड़ी सूं बत्ती अपणी प्रेमिका, इण नरस माथै भरसौ हौ। म्हैं डागदर री लुगाई नै वीं रै एक्सीडेंट हुय जावण अर आईसीयू में भरती री बात सावळ मांडनै बताय दीवी ही। इण पछै ई वा तीजै दिन आयी। वीं रौ बेटौ- बहू अर बेटी-जंवाई अपणी ठोड़-ठिकाणै, आंतरै बैठ्या ई समाचार लेवै हा। बूझै हा के म्हे आवां कै नीं! कोई गंभीर बात तौ नीं? वौ वांनै कांई कैवतौ। आवणौ या नीं आवणौ तौ वां री खुद री समझ अर मरजी माथै हौ।
डॉ. के.पी. री घरवाळी वीं रै भाइयां माथै दोस मंढती आईसीयू में ई वां सूं झोड़ करण ढूकती। बठै रा डागदर तद सै नै बारै जावण सारू कैवै हा। अपणै भरतार री तिमारदारी माथै वीं रौ ध्यान नीं हौ। लागतौ वा इण घटना नै लेय'र जाबक ई गंभीर नीं। रात रा वीं रै कनै रैवती तौ वीं नै नींद री गोळी देयनै खुद बेखबर सुवती रैवती। अेक रोज आईसीयू में रात री ड्यूटी करणवाळौ अेक डागदर म्हारी धिरयाणी नै कैय ई दियौ, 'आप पाड़ोसियां नै रात मैं सुवण तांई सागै लेय आवौ कांई?' 'नीं तो! क्यूं, कांई बात हुयगी?' 'आप तौ मरीज रौ पूरौ ख्याल राखौ, पण जद आप थोड़ा अठी-ऊठी हुवौ, वा मैडम तो अंगाई ध्यान ई नीं देवै!' अेक रोज वठै रौ सीनियर डागदर वीं री लुगाई नै बुलायनै कैयो, 'आप इणरी धरमपत्नी हौ?.....भाई तौ खैरसल्ला भाई हुवै पण आपरौ बेटौ-बहू अर बेटी-जंवाई कठै है?...सेवा- टहल तौ दरअसल आप लोगां नै करणी जोइजै।'
मुग्धा सरकारी ड्यूटी सूं अवकास लेयनै भागफाटै साढै़ चार, पोणै पांच बज्यां तांई बठै पूग जावती। बा बाट जोवती के कद डागदर री परणिता बठै सूं निकळै अर वा डागदर कोडै पूगै। डागदर री पत्नी नीं खुद सेवा कर सकै ही अर नीं ई इण बापड़ी नरस नै नेड़ै फटकण देवती। वा करती तौ कांई करती! वीं रौ जीव मांय रौ मांय कटबौ करतौ, आकळ-बाकळ रैवतो। बेबसी माथै कसमसायनै मन नै किणी भांत समझाय लेवती। सौभाग्यश्री रै अस्पताळ सूं निसरतां ई वा टूटनै डागदर नै संभाळती। आलै गमछै सूं वीं रौ डील पोंछणौ। मालिस करणी। वीं रा गाभा बदलणां। फिजियोथेरेपिस्ट सूं हाथ-पगां तांई बतायोड़ी एक्सरसाइजेज करवावणी। मुग्धा अै सगळा कारज घणै मनोयोग सूं करती। साचाणी इणमें वीं रौ सुख बसतौ। डागदर ई वीं री मौजूदगी सूं घणौ खुस रैवतो। वीं री नजीकी वीं नै सुवावती। वौ भोत आछौ मैसूसतौ। न्यूरोसरजन जद विजिट माथै आवतौ, हरमेस वा ई वीं री सेवा करती दीखती। वौ वीं नै ई डागदर री घरवाळी समझतौ रैयौ। मुग्धा कैवती, 'अगर म्हनै लगोलग अठै आवण अर कोडै रैवण देवै तो साच कैवूं पनरह रोज में म्हैं आंनै पगां माथै ऊभा कर सकूं!' वीं रौ आतमविस्वास उणियारै माथै दमक उठतौ। वा साचाणी अेड़ौ करनै दिखाय सकती, वीं री लगन सूं कीवी गयी देखभाळ अर सेवा वीं री बात री साख भरै ही। ऑपरेसन करण री इजाजत सारू जद डागदर री लुगाई वास्तै 'कॉल' हुयी तो सौभाग्यश्री बठै हाजिर हुयी। सरजन बूझ्यौ, 'थूं कुण है? डागदर री पत्नी कठै है?' 'म्हैं ई डागदर री लुगाई हूं।' 'थूं डागदर री लुगाई है तौ पछै वा महिला कुण है?' डागदर री असल लुगाई म्हैं ई हूं। वा तौ म्हारै आदमी री रखैल है।' '....तौ थूं असल लुगाई, इण फारम माथै दस्तखत कर! ऑपरेसन तांई थारी हामल चाइजै।' .
भोत बरसां पैली री बात है, म्हैं डागदर के.पी. री पोस्टिंगवाळी ठोड़ ग्योड़ौ हौ। दिसंबर री कड़ाकेदार सरदी रा दिन हा। अेक सुबै डागदर नै ड्यूटी माथै जावण सूं पैला म्हैं अस्पताळ रै बारै, कुणै में तावड़ै ऊभी अेक गोरी-चिट्टी बीस-इक्कीस बरस री छोरी सागै नैन-मट्टका अर सेनबाजी करतां देख्यौ। डागदर रौ सरकारू क्वार्टर, सामी अस्पताल परिसर मांय ई हौ। म्हैं बूझ्यौ, 'कुण है आ?' 'म्हारै अठै नरस है।' म्हैं दोनूं री आंख्यां में चाहत पढ़ लीवी ही। म्हारी निजर में तद डागदर वां लोगां में सूं हो जिका नै घरवाळी रै सागै अेक बारैवाळी ई चाइजै। म्हैं वीं नै समझावण री कोसिस कीवी पण वौ खुद सूं आधी उमर री इण फूटरी पंजाबी छोरी रै प्रेम में इण कदर बावळौ हुयोड़ौ हो के वौ म्हारी कीं ई सुणण-मानण खातर त्यार नीं हो। म्हैं समझायौ- इस्क आग रौ दरिया है, .....म्हैं वीं रा दोय टाबरां रौ वास्तौ देवतां घर टूटण री बात कैयी तौ वौ म्हारै सूं संबंध तोड़ण री बात तांई आयगौ। प्यार री तिरस....तिसना में वौ भटकगौ हौ। अस्तु, म्हैं चुप धार लीवी।
पण कैवत है नीं! इस्क अर मुस्क लुकायां नीं लुकै, उजागर हुयनै रैवै। अठै ई औ ई हुयौ। अेक रात मरीज देखण रौ बहानौ बणायनै ग्योड़ौ डागदर जद बोळी ताळ तांई घरै नीं बावडिय़ौ तौ सौभाग्यश्री म्हनै अर घर रै नौकर देवकिसन नै सागै लेयनै उण नरस रै दरूजै जाय धमकगी, फेरूं जिकौ हंगामौ बरपा हुयौ, अेड़ी धमचक माची के बूझो ई मती! भोत तमासौ हुयौ। बेहद किरकीरी हुयी। किणी तरै समझाय-बुझायनै म्हैं दोनूवां नै घरै लायौ। उण रात दोनूं न्यारा-न्यारा तरीका सूं आत्महत्या करण री कोसिस कीवी। म्हैं दोनूं रै बिचाळै आखी रात समझाइस करतौ न्हाटतौ रैयौ। डागदर अपणी धरमपत्नी सौभाग्यश्री री निजरां सूं गिरगौ। सौभाग्यश्री घर-परिवार अर टाबरां सूं बंधयोड़ी ही। लोकनिंदा, पारिवारिक संस्कार, घरबार अर समाजू इज्जत सूं बंधयोड़ौ डागदर ई ब्याव रै रिस्तै अर जिम्मेदारियां नै निभावण तांई मजबूर हौ।
भोत अरसै पछै अेक दफै म्हैं डागदर रै बुलावै माथै नरस मुग्धा रै अठै ग्यौ। वौ बठै आयोड़ौ हौ। म्हैं जोयो, वा बूझ-बूझनै वीं री पसंद रौ नास्तौ अर खाणौ बणावती। पाखती बैठायनै हेत अर मनुहार सागै खिलावती-पिलावती। दूजी कानी, सौभाग्यश्री री रसोई नौकरां रै भरोसै रैवती। बठै वै ई खाणौ बणावता अर परोसता। के.पी. म्हनै बतायौ, 'भाईसा'ब, आप देख्यौ! आ म्हारी कित्ती सेवा-टहल अर देखभाळ करै। कित्तौ ख्याल, राखै आ म्हारौ! म्हारौ मन जीत लियौ है इण!'
'थारै कनै पइसौ है, पोजिसन है, स्यात इणसूं आ थंनै चावै!'
'भाईसा'ब! आ म्हारै सूं कीं नीं लेवै, कीं ई नीं मांगै-चावै, सिवाय सनेव रै! इणरौ प्यार साव नि:स्वारथ है। औ घर इण अपणां पइसा सूं मोलायौ, वो ई म्हारै नांव सूं! इणरी सरकारू नौकरी है। नरसां माथै इंचारज हुयगी है। आछी-खासी पगार मिलै इणनै! म्हारै सूं इणरै कोई संतान ई नीं। इण बिचापड़ी (बापड़ी) नै म्हारै सूं कांई मिल्यौ? कैवणौ हुसी, हुवै नीं हुवै इणरै सागै म्हारौ कोई लारलै जलम रौ नातौ, कोई सीर-संस्कार है जिकौ इण लुगाई रौ प्रेम अर समरपण म्हनै मिल्यौ। म्हैं खुदनै घणौ भाग्यवान समझूं। म्हैं इणरै साचै प्रेम नै कींकर ठुकराय सकूं!' म्हैं खुद जिकौ कीं जोयौ, मैसूस कर्यौ, वीं नै झुठलायौ नीं जाय सकै हौ। वीं आपरौ समूदौ जीवण, भविस के.पी. रै नांव अरपण कर दियौ हौ। आखी जिनगाणी वीं रै नांव मांड दीवी ही। वा धणी रै नांव माथै डागदर रौ नांव लिखती-लिखावती रैयी है। अपणै गळी-बास, सगळी ठौड़ वीं नै आपरौ धणी बतावै।
आज नामी सरजन के.पी. री मौत माथै मुग्धा आंसूं बैवावती अेकूकी ऊभी है। वीं रै सागै कोई नीं। सौभाग्यश्री कनै के.पी. रौ नांव है, बस्यौ-बसायौ घर-संसार अर वीं रा टाबर है, धमरपत्नी रा सगळा कानूनी हक-हकूक वीं नै मिल्योड़ा। महल जैड़ी सानदार ठाड़ी-टणकी कोठी, अकूंत धन-सपंदा, सै कीं तौ है वीं रै कोडै। पण मुग्धा कनै कांई है....? पण नीं, वीं रै प्यार री मीठी-मधुर नीं भूलिजै जैड़ी यादां है, समरपण रा मीठा-मदमदावता छिण है। वीं साचौ-नि:स्वारथ प्यार कर्यौ, अपणै पुरुस रौ प्यार पायौ, वीं रौ साथ अर सानिध्य मिल्यौ वीं नै। आ कांई कोई कमती उपलब्धि है? वीं री निजर में औ वीं रौ सै सूं लूंठौ प्राप्य है। वा अपणै प्रिय री ओळ्यूं में आपरौ बाकी रो जीवण बिताय देसी। रखैल हुवतां थकां ई वा डागदर के.पी. री परण्योड़ी सूं बेसी सौभाग्यसाली रैयी है। डॉ. के.पी. री लास वीं रै घरै लेय जायी जाय रैयी ही। अबै जद कै सै कीं खतम हुयगौ हौ मुग्धा नै ई लास रै सागै चालण बेई कैय दियो जावतौ तौ कांई हरज हौ? वा ई बठै वीं रा बारह दिन कर लेवती! पण म्हारै सोचण सूं कांई हुवै। वा तौ प्रेम दिवानी है जिणरौ दरद इण सुवारथ सूं भर्योड़ी दुनिया में कोई नीं समझ सकै। डॉ. के.पी. रा नजीकी रिस्तेदारमुग्धा नै फोन करै। कूड़ी सहानुभूति दिखायनै वीं तांई पूगणौ चावै। वीं नै पाय लेवण री कामना करै पण वीं रो परिताप, वीं रौ दु:ख-संताप कोई नीं समझै। बै कैवै, 'डागदर पछै तौ अबै वीं माथै म्हारौ ई हक लागै!' जियां वा इंसान नीं हुयनै कोई जिंस या जायदाद हुवै जिण मांथै आधिपत्य जमायौ जाय सकै।