दीवार पर हटाए गए कैलेंडर के निशान / जयप्रकाश चौकसे

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दीवार पर हटाए गए कैलेंडर के निशान
प्रकाशन तिथि :01 जनवरी 2019


नए वर्ष के पहले दिन घर की दीवारों से पुराने कैलेंडर हटाए जाने से निशान बन जाता है। नया कैलेंडर मिलने में समय लगता है तब तक आपकी निगाह बरबस बस उस स्थान पर पड़ती है और शृंगार रहित दीवार नाराज सी नजर आती है। यह खाली स्थान आपको गरीब नग्न शरीर बच्चों की याद दिलाता है और साधन संपन्न होने पर आप शर्मसार होते हैं। आजकल युवा वर्ग मोबाइल से तारीख और समय जान लेते हैं परंतु उम्रदराज लोग आज भी कैलेंडर देखने के अभ्यस्त होते हैं। कैलेंडर में तारीख के साथ संवत की तिथि भी दी हुई होती है और पारम्परिक महिलाएं प्रदोष व्रत की जानकारी इसी कैलेंडर से जान पाती हैं। वे महाशिवरात्रि और राम जन्म की तिथि भी देख लेती हैं। उपवास करने वाले के लिए बनी साबूदाने की खिचड़ी वे लोग भी खाते हैं, जिन्होंने व्रत नहीं रखा। रोजा नहीं रख पाने वाले भी सहरी खाते हैं और रोजा इफ्तारी में शरीक होते हैं। जैन उपवास में काया तपती है, वैष्ण‌व उपवास में धन खर्च होता है।

कैलेंडर में रविवार का दिन और तीज-त्योहार के दिन अलग-अलग रंग में प्रस्तुत किए जाते हैं। प्राय: लाल रंग का इस्तेमाल होता है। स्पेन में बुल फाइटिंग एक खेल है। खिलाड़ी लाल रंग का कपड़ा दिखाता है और बैल उस पर आक्रमण करता है। यह पूरा खेल एक नृत्य की तरह प्रस्तुत किया जाता है। यह नृत्य मनुष्य और जानवर करते हैं। कैलेंडर से स्मृति जुड़ी होती है। 'सुख-दुख की हरेक माला कुदरत ही पिरोती है/ हाथों की लकीरों में ये जागती सोती हैं/ खुद को छुपाने वालों का पीछा ये करें/ जहां भी हो मिट्‌टी के निशां, वही जाकर पांव ये धरे/ फिर दिल का हरेक घाव अश्कों से यह धोती हैं/ सुख-दुख की हरेक माला कुदरत ही पिरोती है।' यह गीत कतील शिफ़ाई ने चेतन आनंद की जन्म जन्मांतर की प्रेमकथा 'कुदरत' के लिए लिखा था। हवा के झोंके से कैलेंडर हिलता-डुलता नजर आता है, मानो हवा भी तीज-त्योहार या तारीख देखने के लिए आई है। हवा पर लिखी इबारत हुक्मरान पढ़ नहीं पाता परंतु हुक्मरान के पोशीदा इरादे अवाम ने पढ़ लिए हैं। हमराज राज न रहा, खुल गए भेद सारे। मासिक वेतन पाने वाले व्यक्ति पर महीने का आखिरी सप्ताह भारी होता है। जब उसे उधार लेना होता है। ब्याज देने में कट जाती है उम्र सारी।

एक दौर में शराब का व्यापार करने वाला एक धनवान 12 सुंदर महिलाओं के शरीर के फोटोग्राफ्स का इस्तेमाल अपने कैलेंडर में करता था। वह चुनी हुई सुंदरियों को समुद्र तट पर ले जाता, जहां विशेषज्ञ फोटोग्राफर लहरों से अठखेलियां करतीं इन महिलाओं के दर्जनों चित्र लेता था। बाद में चुनिंदा चित्रों का इस्तेमाल कैलेंडर में किया जाता था। वह अपना नशा नारी शरीर की मादकता में मिलाकर कैलेंडर बनवाता था। लम्पट लोग 500 रुपए प्रति कैलेंडर देकर अपना जलसाघर सजाते थे। बैंकों को चूना लगाकर वह कथित तौर पर वित्त मंत्री से मिला और संभवत: उन्हीं की सलाह पर विदेश भाग गया। अब उसे वापस लाने की कवायद जारी है। प्रचार के लिए सारा खजाना लुटा दिया गया है। बैंक दिवालिया होने की कगार पर खड़े हैं।

कैलेंडर छोटे-बड़े सभी आकार में उपलब्ध होते हैं। पर्स में रखने से लेकर टेबल पर रखने के छोटे कैलेंडर भी उपलब्ध होते हैं। जेल में सजा काटने वाला व्यक्ति अपने अवचेतन में छुपे कैलेंडर से तारीख की जानकारी लेता है। दूसरे विश्वयुद्ध के समय हिटलर की जेल में बंद व्यक्ति समय को पढ़ लेता था। यह उसकी जन्मजात विशेषता थी और इसी की सहायता से वह अपने साथी सहित जेल से भागने में सफल होता है। लंबी हवाई यात्रा के बाद स्वदेश लौटने पर व्यक्ति दिन में सोता है और रात में जागता है, जिसे जेट लैग कहा जाता है। उसका शरीर भारत लौट आता है परंतु शरीर में स्थित घड़ी और कैलेंडर अमेरिकी समय से ही चल रहे होते हैं। कुछ दिनों बाद सब कुछ सामान्य हो जाता है। समय ही जेट लैग समस्या से बाहर निकालता है।

दीवार पर लगी कुछ घड़ियों में समय बताने के लिए ध्वनि भी समाहित होती है। गुरुदत्त और बिमल मित्र की 'साहब बीवी और गुलाम' में घड़ी बाबू का पात्र रचा गया है जो सामंतवादी हवेली की घड़ियों में चाबी भरने का काम करता है। यह पात्र हरेन चट्‌टोपाध्याय ने अभिनीत किया था। मोबाइल में स्थित घड़ी में भी अलार्म की व्यवस्था है कि आप जिस समय उठना चाहते हैं उस समय अलार्म बजता है, यह हर 5 मिनट बाद बजता रहता है ताकि आप उठ जाएं।


आज से दो माह पूर्व कृष्णा राज कपूर का देहांत हुआ था। उनका जन्म 1930 में 1 जनवरी को रीवा में हुआ था। वे असाधारण, विलक्षण महिला थीं। वे राज कपूर के जीवन में ऊर्जा की नदी की तरह प्रवाहित थीं, जिस पर कुछ घाट बने थे। घाट जहां के तहां रहे, वे बहती रही हैं और कूड़ा-करकट किनारों पर फेंकती रहीं।