दुनिया की मंडी में नारी देह का सिक्का / जयप्रकाश चौकसे

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दुनिया की मंडी में नारी देह का सिक्का
प्रकाशन तिथि :03 फरवरी 2017


कंगना रनौट का कथन है कि पश्चिम के देशों में सिनेमा देखने वालों की संख्या निरंतर घट रही है और भारत, पाकिस्तान, बांग्लादेश तथा चीन में सिने दर्शकों की संख्या बढ़ रही है। अत: प्रियंका चोपड़ा और दीपिका वृहत दर्शक वर्ग की अपेक्षा न्यून दर्शक वर्ग वाली फिल्मंे अभिनीत कर रही है। इसका एक कारण तो डॉलर के मुकाबले में गिरते हुए रुपए का मूल्य रहा है। प्रियंका चोपड़ा ने 10 लाख डॉलर का घर खरीदा है। आर्थिक समीकरण राजनीतिक धारणाओं को बदल देते हैं। राजेंद्र सिंह बेदी की रचना 'एक चादर मैली सी' में देवर को अपनी विधवा भाभी से विवाह करना पड़ता है, क्योंकि वह उसके स्वर्गवासी भाई का व्यवसाय अपनाता है, जिससे इतनी आय नहीं हो सकती कि वह भाभी के परिवार के साथ स्वयं अपना विवाह करके एक और पारिवारिक यूनिट खड़ी कर सके। उस देवर को बचपन में उसकी इसी भाभी ने निर्वस्त्र नहलाया भी है, क्योंकि पूरे परिवार का दायित्व वही निभा रही थी। इस उपन्यास ने यह रेखांकित किया कि आय पारिवारिक मूल्यों को भी बदल सकती है। 'बाप बड़ा न भैया सबसे बड़ा रुपैया।' संभवत: कुंती द्वारा अपने पांचों पुत्रों को द्रोपदी से विवाह भी इसी आर्थिक एवं राजनीतिक कारणों से कराया था।

राजेंद्र सिंह बेदी के इस उपन्यास पर बारह रीलों तक की फिल्म शम्मी कपूर की पत्नी गीता बाली ने बनाई थी, जिसमें धर्मेंद्र उनके देवर की भूमिका कर रहे थे। बचपन में टीका नहीं लगवाने के कारण युवा गीता बाली को चेचक के कारण अपने प्राण गंवाने पड़े। दु:ख में डूबे शम्मी कपूर को लगा कि फिल्म की आउटडोर शूटिंग में ही गीता को यह रोग लगा था। अत: रेमनार्ड लेबोरेटरी जाकर उन्होंने उन बारह रीलों का निगेटिव ही नष्ट कर दिया। राज कपूर ने उस रीलों को देखा था और उनका विचार था कि वे बारह रीलें विश्व सिनेमा की धरोहर थीं तथा अधूरी फिल्म भी कॉमेन्ट्री के साथ सफलता से प्रदर्शित की जा सकती थी। मृत्यु प्राय: मनुष्य की आंख पर पट्‌टी बांध देती है। अति दु:ख या अति सुख के समय लिए गए निर्णय का आधार तर्क नहीं होकर भावना होती है या उसका अतिरेक होती है। निर्णय संतुलन का खेल है। मुद्रा परिवर्तन के अनावश्यक व अंधे निर्णय को न्यायसंगत सिद्ध करने के लिए बजट उसी ढंग का बनाया गया है। एक गलती इस तरह गलतियों की शृंखला का रूप ले लेती है। बहरहाल, इसी उपन्यास पर टोपॉज ब्लैड बनाने वालों ने फिल्म बनाई थी, जिसमें ऋषि कपूर ने देवर, हेमामालिनी ने भाभी रानो तथा कुलभूषण खरबंदा ने बड़े भाई की भूमिका निभाई थी। इस फिल्म में भी पहले प्रयास की तरह देवर-भाभी के विवाह की रस्म को पूरा करने वाला दृश्य अत्यंत प्रभावोत्पादक बनाया गया था। मधुरात्रि के बिना विवाह को पूरा नहीं माना जाता।

आठवें दशक में एक मलयालम भाषी इस्लाम को मानने वाले फिल्मकार ने 'लुबना' नामक फिल्म बनाई थी। अपनी पत्नी को तलाक देने वाला व्यक्ति अपनी गलती को देर से समझ पाता है तो वह अपनी तलाक दी गई पत्नी से पुन: विवाह करना चाहता है परंतु परम्परा है कि उस स्त्री का दूसरा निकाह किसी और व्यक्ति से हो, जो तलाक दे दे तब ही उसका पहला पति उससे विवाह कर सकता है। अत: इस रस्मी विवाह के लिए धन देकर एक व्यक्ति को तैयार किया जाता है, जो बचपन से ही उस कन्या से प्रेम करता है परंतु आर्थिक सरहदों के कारण विवाह नहीं हो पाता। मधुरात्रि को वह व्यक्ति अपनी पत्नी को छूना भी नहीं चाहता, क्योंकि उसे धन इसी शर्त पर दिया गया है कि वह रस्मी विवाह करे परंतु पत्नी को स्पर्श नहीं करे और अगले दिन तलाक की रस्म अदा करे। मधुरात्रि को वह शर्त का पालन करता है यद्यपि बचपन से ही वह इस लड़की से प्रेम करता रहा है। लड़की भी उसे प्रेम करती रही है, अत: वह कहती है कि विवाह की आखिरी शर्त अत: मधुरात्रि उसे मनाना चाहिए। लड़का कहता है कि इस कक्ष की गोपनीयता के कारण कोई देख नहीं पाएगा कि विवाह की आखिरी रस्म अर्थात हमबिस्तर होना अपने 'कॉन्ट्रेक्ट' के कारण वह निभा नहीं रहा है। उसकी बीबी कहती है कि ठीक है कि कक्ष में कोई तीसरा व्यक्ति नहीं है परंतु खुदा तो यहां मौजूद है। वह हमबिस्तर होता है परंतु कॉन्ट्रेक्ट के अनुसार ली गई राशि लौटा देता है और तलाक भी नहीं देता। इस तरह थी यह अनूठी प्रेमकथा िसमें आर्थिक समीकरण भी शामिल था। यह कथा पुन: फिल्माई जा सकती है।

बहरहाल, सारे धर्म एक स्तर पर समाज हैं कि वे सभी स्त्री के प्रति अन्यायपूर्ण रवैया रखते हैं। एक व्यक्ति गुरुदक्षिणा देने के लिए अपनी बेटी को तीन राजाओं की दासी रूपी पत्नी बनाकर मात्र चार सौ सफेद घोड़े एकत्रित कर पाता है तो गुरु कहते हैं कि उसकी बेटी इतनी रूपवती है तो वह सफेद घोड़े नहीं मांग कर उसे ही मांग लेते। क्रिश्चियन धर्म में भी चर्च में नन के साथ हुए ऐसे ही कार्यों के अनेक प्रकरण हैं, जिन पर फिल्में भी बनी हैं। सारांश यह कि किसी भी धर्म ने नारियों के साथ न्याय नहीं किया है। इतना ही नहीं वरन कई बार तो लगता है कि ये सारी संचरनाएं ही नारी शोषण पर केंद्रित हैं।