दुबई में आयोजित पुरस्कार समारोह / जयप्रकाश चौकसे
प्रकाशन तिथि :25 फरवरी 2015
'महाराष्ट्र इंटरनेशनल सिनेमा एवं थिएटर' नामक संस्था पांच वर्षों से कलाकारों का सम्मान समारोह आयोजित कर रही है। आजादी के बाद पंडित जवाहरलाल नेहरू ने टेक्नोलॉजी एवं विज्ञान शिक्षा का शुभारंभ किया था। इससे विगत दशकों में अनगिनत हिंदुस्तानियों को विदेशों में नौकरियां मिली है और ये प्रवासी भारतीय 19वीं सदी के 'गिरमिटिया' लोगों से अलग हैं। वे बेचारे तो मजदूरी करते थे परंतु ये पढ़े-लिखे लोग 'अफसरी' करते हैं। कनाडा और इंग्लैंड में तो यह हाल है कि शायद अगली सदी में उनकी संसद में इतने भारतीय होंगे कि कोई हिंदुस्तानी उनका प्रधानमंत्री बन जाए गोयाकि इतिहास का पहिया चक्र पूरा करेगा और उपनिवेशवाद का ठीक उल्टा दृश्य उभरेगा। उपनिवेशवाद का प्रतीक ईस्ट इंडिया कंपनी का लंदन स्थित दफ्तर हिंदुजा ने खरीद लिया है।
20 फरवरी को दुबई में 'मिक्या' ने भव्य आयोजन में रंगमंच और सिने कलाकारों का सम्मान किया और इस वर्ष का उच्चतम पुरस्कार 'महाराष्ट्र गौरव' सलीम खान को दिया। देशी-विदेशी दर्शकों की उमड़ती भावना के कारण सलीम खान को कहना पड़ा कि ताउम्र वे शब्दों का प्रयोग करते रहे और शब्द की नींव पर उनका जीवन खड़ा है परंतु बेवफा शब्द सम्मान के इस अवसर पर उनके साथ विश्वासघात कर रहे हैं और जीवन में पहली बार शुक्रिया अदा करने के लिए उनके पास शब्द नहीं हैं। शब्द के सफेद घोड़े अपने सवार को शेर के सामने गिराकर भाग जाते हैं। कहते हैं कि शेर की गंध घोड़ों को सम्मोहित करती है। बहरहाल, दर्शक के प्यार के तूफान में सलीम साहब बह गए। उस क्षण उन्हें याद आए होंगे अनगिनत रतजगे जब दीए की जगह स्वयं को रोशन करके उन्होंने किताबें पढ़ीं, पटकथाएं और प्रेम-पत्र लिखे। सलीम साहब ने कहा कि वे इंदौर में जन्मे, युवा हुए और उनके पिता होलकर स्टेट पुलिस में आला अफसर थे तथा सलीम स्वयं इंदौर के होलकर कॉलेज में पढ़े। दशकों बाद पनवेल में किसी होलकर 'दंगालवाडा' नामक फार्म हाउस खरीदा। मराठी भाषी होलकर उनकी कुंडली में भाग्य स्थान पर बैठा है, क्योंकि उनकी पत्नी सुशीला मराठी भाषी हैं और पांच वर्ष की प्रेमकथा आज से पचास वर्ष पूर्व शादी के बंधन में बंधी, इसलिए उनकी यात्रा के इस मोड़ पर उन्हें महाराष्ट्र की संस्था ने शिखर सम्मान दिया है। उनके भावी ससुर ने जब इस्लाम को मानने वाले संघर्षरत अभिनेता का विवाह प्रस्ताव धर्म के अंतर के आधार पर अस्वीकार किया तब उन्होंने कहा कि उनकी पुत्री के विवाह में धर्म कभी कारण नहीं बनेगा और सचमुच ऐसा ही हुआ! उनका घर पूरी तरह धर्मनिरपेक्ष रहा है। सलीम ने हिंदू स्त्री से विवाह किया तो उनकी दोनों पुत्रियों का विवाह हिंदुओं से हुआ। एक बहू पंजाबी है तो दूसरी कैथोलिक। जो उन्होंने उस समारोह में नहीं कहा, वह संभवत: यह है कि भारत का मूल धर्मनिरपेक्ष स्वभाव कभी नहीं बदलेगा। चंद उछाले पत्थर उस मजबूत भवन से टकराकर चूर हो जाएंगे। यह मेरी व्याख्या है। उनकी सभी फिल्मों की बुनावट में यह रेशा है, जंजीर के शेरखान की याद होंगे अौर संपूर्ण धर्मनिरपेक्षता की फिल्म 'ईमान-धरम' भी उन्होंने लिखी है।
पुरस्कार समारोह में मौजूद राज ठाकरे ने विस्तार से बताया कि सलीम खान के परिवार के ट्रस्ट ने अनगिनत गरीब लोगों का इलाज कराया है और 10 करोड़ प्रतिवर्ष चैरिटी की जाती है। सलीम को फिल्म लेखन के लिए कई पुरस्कार मिले हैं, जिन्हें उन्होंने युवा फिल्म लेखकों और फिल्मकारों को दिया। अब क्या वे अपने इस सम्मान को भी किसी योग्य व्यक्ति को देंगे? उनके लिए यह संभव है, क्योंकि 'देते रहना' उनकी जीवन-शैली है। गौरतलब यह है कि 'महाराष्ट्र गौरव' का पुरस्कार वे किसे दें? उन्हें क्रिकेट से अभूतपूर्व प्रेम है, अत: क्रिकेट खिलाड़ी को दिया जा सकता है।
संभवहै कि वे यह 'गौरव पुरस्कार' अपनी पत्नी को दें या उनके स्वर्गीय पिता की स्मृति को समर्पित करें, जिसने उन दिनों बिना नियमित आय वाले युवा को अपनी बेटी दी। क्या उन्होंने उनके माथे पर उभरते त्रिशूल को देख लिया था?