दुलारी/ मुकेश मानस

Gadya Kosh से
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दुलारी छत पर बैठी सोच रही है। चारों तरफ धूप चमक रही है। खूब तेज धूप उसे अच्छी लगती है। नहाकर, बाल सुखाने के बहाने वह अक्सर छत पर धूप में बैठ जाया करती है। इन पुनर्वास बस्तियों में मकान एक दूसरे से सटे हुए हैं। यहां सारे मकान इस तरह से बनते हैं कि उनमें ताजी हवा और धूप कमरों में नहीं आ सकती है। उसे अपने भीतर आजकल एक अजीब सी नमी महसूस होने लगी जो भीतर ही भीतर पिसपिसाती रहती है। उसे ताजी हवा और धूप की सख्त जरूरत महसूस होने लगती है और वह अक्सर छत पर आ बैठती है।

चाहे वह नहाई न हो, चाहे उसे बाल न भी सुखाने हों, वह पिफर भी छत पर आ बैठती। चमकती धूप के बावजूद उसके भीतर बादलों के झुंड के झुंड उमड़ने-घुमड़ने लगते हैं। उसके भीतर बादलों के जैसे विचारों की उथल-पुथल होती रहती है। वह तय नहीं कर पा रही है कि मां को बताए या पिताजी को..... बताए भी या नहीं। वह परिणामों के बारे में भी सोचने लगती कि बताएगी तो क्या होगा? और नहीं बताएगी तो क्या हो सकता है?.... वह सोचती जाती है....सोचती जाती है....उसे लगता है कि जैसे वो किसी समंदर के बीचों-बीच खड़ी है और दूर-दूर तक कोई साहिल नजर नहीं आता।

दुलारी पिताजी की आदतों से पूरी तरह वाकिफ है। पिताजी एक सरकारी दफ्तर में निचले दर्जे के क्लर्क हैं। रोज शराब पीने वाले पिताजी बहुत चुप-चुप रहते हैं, बहुत कम बात करते हैं। वे बहुत कम नाराज होते हैं मगर जब कभी वे किसी बात पर नाराज होते हैं तो उनका गुस्सा संभाले नहीं संभलता। बचपन से ही उसके मन में पिताजी की ऐसी छवि थी कि उसे उनसे बहुत डर लगता था। उसके बढ़ने के साथ पिताजी से यह भय उसके मन में कम नहीं हुआ बल्कि और बढ़ता ही गया। अब तो वह पिताजी के माथे की परेशानियां देखकर ही समझ जाती कि पिताजी खूब गुस्से में हैं फिर वह पिताजी से बच बचकर रहती।

आजकल भी वह पिताजी से बच-बचकर रहती है। दुलारी उस क्षण की कल्पना करती है जब वह पिताजी को एक वह बात बता देगी जिसे दबाए वह पिछले कई दिनों से परेशान है। उसकी मां तो पूरी गली में ‘मरखनी गाय’ के नाम से मशहूर है। एकदम झगड़ालू और गाली गलौच करने वाली। बात-बात में किसी से भी झगड़ पड़ती है। वह दिन भर दुलारी और उसके भाई की छोटी-छोटी गल्तियों पर खूब चिल्लाती है। दुलारी का छोटा भाई तो दिन भर में कई बार उससे पिट जाता है। कई बार मां से उसकी भी पिटाई हो चुकी है। घर में उन पर मां का एकछत्रा राज है। मां की तेज आवाज सुनकर वह अक्सर भयभीत हो जाती और उसकी जुबान तालू से चिपक जाती। फिर भी कई अवसरों पर दुलारी को महसूस होता कि उसकी मां उससे बहुत प्यार करती है। “हमने बहुत दुख झेले हैं बेटा। जब तेरे बाप का काम नहीं था तब मैं कोठियों में जा जाकर काम करती थी। बहुत मुसीबतों में पाला है तुम दोनों को।” कई बार मां को जब उस पर प्यार आता तो वह उसके बाल सहलाते हुए उसे यह बताती थी। मां से ऐसी बातें सुनकर उसका मन मां की तरफ से साफ हो जाता। उसे एकाएक मां ममता की एक नदी की तरह महसूस होने लगती।

दुलारी अच्छी तरह से जानती है कि उसकी मां के पेट में कोई बात पचती नहीं है। उसे कोई बात पता चलती है तो वह उसका ढ़िढोरा पूरी गली में पीटती पिफरती है। मगर उसे बहुत हैरत हो रही थी कि उसकी मां ने उसकी शादी की बात कैसे छुपा ली? उसके माता-पिता ने उसकी शादी एक पफौजी सिपाही से शादी तय कर दी है। एक दिन मां-बाप की खुसुर-पुसुर उसने सुन ली। भय की एक सिहरन दौड़ गई उसके शरीर में। उसे लगा जैसे उसके मां-बाप को पूरन से उसके प्यार के बारे में पता चल गया है तभी तो तभी वे उसकी शादी चुपके-चुपके कर देना चाहते हैं। दुलारी को जरूरी लगने लगा कि पूरन के बारे में उसे अपने मां-बाप से बात कर लेनी चाहिए, वरना अनर्थ हो जाएगा।

पूरन को एक विदेशी फार्म में नौकरी मिल गई थी। उसकी दिन-रात की शिप~फट लगती रहती थी। अभी एक महीने पहले वे लोग एक पार्क में मिले थे। पूरन ने उसका हाथ अपने हाथ में लेकर कहा था- “देखो दुलारी, भले ही मुझे आफिस ब्याय की नौकरी मिली है। मगर यह विदेशी पफर्म है, इसमें अच्छा पैसा मिलेगा। अब मैं कुछ पैसा कमा लूं, तब अप्पन शादी करेंगे, अपने-अपने मां-बाप को बताकर।”

दो-तीन साल से उनका प्यार चल रहा है। तब पूरन और दुलारी पढ़ रहे थे। उनका एक ही स्कूल था। जब दुलारी की छुट~टी होती तो पूरन का स्कूल लगता। उन दोनों की मुलाकातें तब होती थीं जब दुलारी घर जा रही होती और पूरन स्कूल। कभी पूरन सुबह-सुबह भी उससे मिलने आता था। भगवान का शुक्र था कि उनके प्यार के चर्चे ज्यादा नहीं हुए थे। और दुलारी अपने पिता की चुप्पी और मां की जबान की तीखेपन से बची रही थी। किन्तु आज उसे लग रहा था कि उसकी चोरी पकड़ ली गई है तभी तो यह सब चुपके-चुपके किया जा रहा था।

जल्दी ही घर में उसकी शादी का सामान आना शुरू हो गया। एक दिन दुलारी मां से बहाना करके पूरन के घर के आस-पास घूमती रही। उसे पूरन नहीं मिला। उसके छोटे भाई ने बताया कि पूरन कहीं बाहर दफ्तर के काम से गया है। पूरन ने उसे यह नहीं बताया था। “पूरन को भी ऐसे समय में बाहर जाना था। विधना का यह कैसा विधान है। मेरी तो किस्मत ही खराब है।” दुलारी छत पर बैठी सोच रही है। उसका मन किसी काम में नहीं लगता था। वह मायूसी भरी खामोशी के साथ मां के बताए कामों को करती जाती थी। उसे समझ नहीं आ रहा था कि वह क्या करे। वह चुपके-चुपके रोती और अपने आंसू पोंछ लेती। उसे अब तक लगता था कि उसकी शादी पूरन के साथ ही होगी। कितना प्यार करता है वह दुलारी को। “जब तक नौकरी नहीं होगी, मैं किस औकात से तुम्हारे पिताजी से कहूं” पूरन परेशान घूमता था नौकरी के लिए। अनेकों जगहों से असपफल होकर लौटता। जब वे मिलते तो उसकी असफलताओं के बारे में जानकर वह रूआंसी हो जाती। पूरन भी उदास हो जाता “तुम्हें उदास देखकर मुझे खुद पर बहुत गुस्सा आता है। तुम्हारी आंखों की उदासी मुझे अपनी बेबसी लगती है। नौकरी मिलते ही हम शादी कर लेंगे।”

दुलारी सोचती है। वह करे तो क्या करे? अब तो पूरन की नौकरी भी लग गई है मगर पूरन बाहर गया है और यहां उसके मां-बाप उसकी शादी करने पर तुले हैं। एक-एक करके दिन बीत गए। शादी का दिन आ गया। दुलारी औरतों से घिरी बैठी है और अपने दुर्भाग्य का इंतजार कर रही है। इन दिनों में उसने कितनी कोशिशें की कि वह मां-बाप को बता दे मगर वह हिम्मत न कर सकी। अभी दो तीन दिन पहले ही उसने किसी तरह मां को बता दिया कि वह पूरन से मुहब्बत करती है। पूरन अच्छा लड़का है, विदेशी पफर्म में नौकरी करता है।.....मां ने आव देखा न ताव वह उससे गाली-गलौच करने लगी। “हाय, रांड, क्या इसी दिन के लिए तुझे पेट काट काटकर बड़ा किया है। इसीलिए तुझे पढ़ाया था कि तू प्यार करती पिफरे। लौडे-लपाड़ों के साथ मुंह मारती फिरे। अरे मेरी सौत, तू तो हमारी इज्ज़त मिटाने पर तुली है। हमारे खानदान में आज तक ऐसा किसी ने नहीं किया।”

फिर मां उसे पीटने लगी। दुलारी अपने पिता की मार का अहसास करने लगी। बात उसके पिता तक नहीं पहुंची वरना जाने क्या होता? उसकी मां ने उसको घर से बाहर नहीं निकलने दिया। उसने सोचा नहीं था कि माहौल इतना खराब हो जाएगा। औरतें आ-आकर उसे बधाइयां दे रही हैं कि इतना अच्छा रिश्ता मिला है, लड़का फौजी है। अच्छा घर है, सब सुविधाएं हैं। उसे लगातार पूरन की याद आ रही है। एक दिन घूमते घूमते उसे ठोकर लगी और वह गिर पड़ी थी। पूरन ने उसे उठाकर कितने प्यार से गले लगा लिया था। उसकी हथेलियों में उभर आई खरोचों से निकलने वाले खून को कैसे उसने चूस लिया था। दुलारी ।फेरे लगाने की वेदी पर जाने वाली है। पूरन उसकी आंखों में घूम रहा है। उसे वेदी पर बिठाया गया। उसने अपनी बगल में बैठे अपने होने वाले पति की ओर देखा। उसने फौजियों की अच्छाइयों के कई किस्से सुने थे। कितने समझदार होते हैं, दिल के कितने अच्छे होते हैं। उसे लगा कि उसे अपने होने वाले पति से बात करके देखना चाहिए। शायद कुछ हो जाए लेकिन वह हिम्मत नहीं कर पा रही थी। उसके होठ जैसे तालू से चिपक गए थे।

ऐन फेरों के मौके पर उसमें न जाने कहां से हिम्मत आ गई। उसने पफेरे लेने से इंकार कर दिया। एक भूचाल सा आ गया जब उसने वहां उपस्थित लोगों को अपने और पूरन के प्यार के बारे में बताया। उसकी मां तो सिर पकड़ के रोती हुई चिल्लाने लगी। उसके पिता ने करीब आकर उसका जूड़ा पकड़ा और दो-तीन तमाचे जड़ दिए। दुलारी के आंसू निकल पड़े। लोगों ने बीच बचाव किया तो उसके पिता ने उसकी गरदन छोड़ी। उसकी मां और चाची ने जबरदस्ती उसके फेरे पड़वाए। फेरे तो हो गए लेकिन वो अड़ गई। उसने कार में बैठने से इंकार कर दिया। अब तो दूल्हे को खुंदक आ गई। दूल्हा घर के भीतर से उसे खींचकर बाहर लाने लगा। मां-बाप के हाथ बंध गए। दुलारी चीखने चिल्लाने लगी लेकिन उसकी चीख पुकार का किसी पर असर नहीं पड़ा। “मेरी इज्ज़त को बट्टा मत लगा। मैंने तेरे साथ फेरे डाले हैं। अब तू मेरी बीवी है। तुझे चलना ही पड़ेगा मेरे साथ”-दूल्हा चिल्लाया इतनी तेज और तीखी आवाज़। उसे उसके मुंह से शराब की बदबू आने लगी। उसने अपने पांव जमा लिए। “तूने मेरे साथ नहीं, मेरी लाश के साथ फेरे डाले हैं।” जाने कहां से उसमें इतनी हिम्मत आ गई थी। उसके अड़ोसी-पड़ोसी हैरान थे कि जिसको वो अब तक शालीनता की मिसाल समझते थे वो कितनी बदचलन निकली। वे आपस में फुसफुसाने लगे। “देखता हूं तुझे अब कौन रोकता है? तू मेरी ब्याहता है। मैं भी फौजी हूं। तुझे अपनी मर्दानगी दिखा के रहूंगा।” दूल्हे ने उसकी पीठ पर मुक्का मारा। वह कराह उठी। उसकी पकड़ ढीली होते ही दूल्हा उसे खींचने लगा। वह गिर पड़ी, वह जमीन पर घिसट रही थी और दूल्हा उसे किसी सामान की तरह खींच रहा था। पूरी गली देख रही थी। उसके मां-बाप देख रहे थे। सब हाय-हाय कर रहे थे और दुलारी को कोस रहे थे।

कार के पास ले जाकर दूल्हे ने उसे दो चार घूंसे और मारे और उठाकर कार के भीतर पटक दिया। वह टूट चुकी थी, उसकी आवाज खो गई थी। कार में बैठकर दूल्हे ने उसकी छातियां पकड़ लीं और उन्हें बेरहमी से मसलते हुए बोला- “घबरा मत बहनचो.....ई, एक रात मेरे साथ सोएगी तो सब भूल जाएगी। मैं भी पक्का मर्द हूं। एक बार सोयी तो तीन-चार दिन तक बिस्तर से उठ नहीं पाएगी।”

कार तेजी से धुआं उड़ाती चली गई। बाराती भी चले गए। दुलारी के मां-बाप खड़े देखते रहे। उनके माथे पर बोझ कम होने का भाव दिखाई देने लगा था। दुलारी को भी प्यार करने की सजा मिलने वाली थी।

मैं जब शाम को लौटा तो मुझे सारे किस्से का पता चला। मुझे दिल चीर देने वाला दु:ख महसूस हो रहा है। अब किसी भी इतवार को मैं उस बहादुर लड़की को धूप में उसकी छत पर नहीं देख पाऊँगा।।


रचनाका :1995