दुश्मन / मधुकर सिंह
पुलिया पर जवानों के अलावे बूढ़े भी थे और सूअर के छौने जैसे दर्जनों बच्चे। बाड़े के भीतर से सूअरों का रिरियाना शोरगुल को अन्दर-अन्दर चीरता हुआ आकाश में ऊपर निकल जाता था। ख़ुशी के मारे औरतें बीता-भर ज़मीन के भीतर खुरपी धँसाकर हाँफती हैं और भूख को पेट के भीतर दबाए जा रही हैं। भीखम ने लड़कों को डपटकर कहा, ‘जा, भाग जा यहाँ से। जगेसर मोटर में आएगा। कुचलकर साले चींटी की तरह मर जाओगे।’
लड़के तालियाँ पीटकर खूब हँसते हैं। मगर सबको भीखम की सुर्ख आँखों से बड़ा डर लगता है। वे खुशियाँ कुचलते हुए पुलिया के नीचे उतर जाते हैं।
‘अगवानी कौन करेगा?’ कोई युवक पूछता है।
‘मैं करूँगा, और कौन?’
भीखम ने मुस्कुराकर सुर्ख आँखें छिपा ली हैं। टोले के लोग भीखम को तब समझेंगे जब देखेंगे कि वह भी जगेसर की मोटर में आ रहा है। मगर माथा ठनका। परसों-चौथे रोज़ बी.डी.ओ. ने पर्चे की बात चलाई थी और तक़रीबन सबसे दरख़ास्त माँग ले गया है। ठाकुर का साला कल रात कुछ लठैतों के साथ धमकी दे गया, अगर बासगीत ज़मीन की फिर से बात चली तो ख़ून की धारा चलेगी। किसने कहा यह ज़मीन गैरमजरुआ मालिक है, हमने सालों के पुरखों को बसाया था, जब चाहेंगे निकाल देंगे।
‘क्या सचमुच ठाकुर का साला हमारी बहुओं की छाती काटेगा?’ भीखम ने हवा में सवाल को फेंक दिया है।
‘संयोग समझो कि उसी ज़मीन पर जगेसर का भी नया मकान बन रहा है। यही तो देखना है कि जगेसर अपने को अलग कैसे कर लेता है।’
‘घटना टाली नहीं जा सकती न?’
‘जगेसर साथ दे दे, हम लाठी-बर्छे के साथ तैयार हैं। फिर ताक़त की बात रह जाएगी कि कौन किसकी छाती काट लेता है।’
भीखम का निश्चय पहले हवा में घुल रहा है। धूप फैलते जगेसर गाँव पहुँचेगा। मगर धूप काफ़ी ऊपर छलाँग मार चुकी है। जगेसर की गाड़ी का कहीं पता नहीं है। मिनिस्टर होने की वजह से ही तो देर नहीं कर रहा है।
‘जगेसर होगा, औरत होगी, लौंडे होंगे- और...?...और...?’
‘दो-चार चपरासी। क्या बी.डी.ओ को कभी नहीं देखा?’
‘बी.डी.ओ तो नम्बरी है। यह भी तो ठाकुर और मुखिया के ही जमात का है।’
‘आएगा, जगेसर का नाम सुनेगा तो आएगा — उसका बाप आएगा।’
इस टोल में कैसे कोई सम्भव है। थाना, पुलिस, गाँव, शहर, पंचायत, सरकार और जगेसर — सब तो एक ही शैतान का नाम है।
‘जगेसर जब से राजनीति में गया, एक भी चिट्ठी नहीं दी।’
‘सबको चिट्ठी लिखना सम्भव कैसे है? यहाँ बी.डी.ओ से पता नहीं चलता कि कितना काम रहता है? जीप की हालत ख़राब रहती है।’
‘मगर जगेसर इतना तो कर सकता है कि तुम्हारी चिट्ठी में सबको याद कर ले। ऐसा वह क्यों नहीं करता?’ रह-रहकर लोगों में गुस्सा उठता है। मगर यह गुस्सा किस पर है? जगेसर तो अपना है, अपना हिस्सा — अभिन्न और ख़ून।
‘ख़ुशबूदार गन्ध आ रही है।’ लड़के चहकते हैं।
‘साले, भूखड़ कहीं के!’ भीखम उन्हें डाँटता है।
‘दो सूअर और एक मन भात जगेसर काका अकेले खाएगा?’
‘नहीं तो क्या तेरा बाप खाएगा?’
लड़कों की आँखें फट जाती हैं, बाप रे! जगेसर काका मिनिस्टर है कि राकस। वे लोग इतना खा जाते हैं? इसी तरह के बीस-पच्चीस मिनिस्टर हो गए तो गाँव-जवार के सब सूअर और भात खाएँगे।
‘सारे गाँव को वे लोग हजम कर जाएँगे तो हम रहेंगे कहाँ?’ एक युवक बहुत सोच-विचार के बाद पूछता है।
‘रहना जगेसर के ठेंगा पर।’
कोई वयस्क लड़कों को डांटता है, ‘अब हटो यहाँ से। हँसी-मज़ाक का समय नहीं। हम लोग कुछ गम्भीर बात कर रहे हैं।’
लड़के गदगद होकर उधर खेत में उतर जाते हैं और मछली की तरह भूख से छटपटाने लगते हैं — जगेसर काका की प्रतीक्षा सही नहीं जा रही है।
उससे एक बात जरूर पूछनी है — ‘आदमी सरकार होने के बाद आदमी क्यों नहीं रह जाता?’
‘खान-पान बदलने से ख़ून बदल जाता है।’
‘तुम लोगों ने कुछ सुना है? ठाकुर हमारे सर्वनाश के लिए किसान-सम्मेलन और जुलूस-प्रदर्शन कराएगा। दो सौ रुपये आदमी बिक रहा है।’
‘हमें धरती और दुनिया से बेदखल करेगा?’
‘नहीं, ख़ाली गोली से मार देंगे।’
‘जगेसर से कौल लेना है कि हमारा साथ देगा या नहीं?’
सारी तैयारी ख़त्म हो चुकी है। इन्तज़ामकर्ता भीखम से पूछने के लिए दौड़ा आ रहा है। उनके पास अब कोई काम नहीं है। उन्हें अब क्या करना चाहिए? जगेसर बाबू नहीं आएगा क्या? वह सबको सब्र और धीरज देकर लौटता है, ‘जगेसर बाबू ज़रूर आएगा। तुम सब जाते क्यों नहीं? पुलिया पर मैं अकेला रहूँगा।’
‘यहीं हम लोग उसे मोटर से उतार लेंगे और कन्धे पर गाँव ले चलेंगे। अधिकांश लोगों की ऐसी इच्छा है।’
‘पुलिया से गाँव तक जो सड़क हमने जगेसर बाबू के लिए बनाई है अपना जगेसर उसी सड़क से आएगा। देखना है, बी.डी.ओ. रास्ता नहीं होने का कैसे बहाना करता है और पर्चे ठाकुर के दरवाज़े पर बुलाकर देता है?’
‘जगेसर कन्धे पर होता तो बड़ा मज़ा आता।’ कोई बूढ़ा बोलता है।
‘धत्’ भीखम चिल्लाता है, ‘ज़िन्दगी-भर करमहीन रहोगे। हमने जो सड़क बनवाई है आख़िर उस पर चलेगा! ठाकुर सारी दुनिया को अन्धकार में रखता है कि हमारे जाने के लिए कोई रास्ता नहीं है। बासगीत ज़मीन के लिए दरख़ास्त नहीं लिए जाएँगे! जगेसर को इस रास्ते से जाना ही होगा।’
‘जगेसर हमारे साथ खाएगा न!’
‘उसका बाप खाएगा। सरकार की तरह नहीं, आदमी की तरह खाएगा।’ भीखम पुलिया पर अकेला नहीं हो पाता है। अकेले में बहुत तरह की बातें दिमाग को सताती हैं। जगेसर को भी हमारे ख़िलाफ़ नफ़रत तो नहीं है! यहाँ आता तो देखता जगेसर कि लोग उसके नाम पर कितना ज़िन्दा और ताज़ा हैं। सब काम-धन्धा छोड़ आए हैं। औरतें व्रतमुद्रा में बैठी हैं। मगर अब सब कुछ बेमज़ा हो रहा है। उसने जेब से काग़ज़ और क़लम काढ़ी है और दो-चार सवाल जगेसर के लिए नोट करता जा रहा है। उसे जवाब देना पड़ेगा, वरना वह भी हमारा दुश्मन है। एक सवाल बराबर उसे चोट मारता है, अगर ठाकुर जगेसर को बेदख़ल नहीं कर सकता तो और लोगों को कैसे कर सकता है! भीखम बेचैनी में पुलिया से नीचे उतरता है और पानी के ऊपर ईंट के टुकड़े उठाकर फेंकता जा रहा है। मगर वह किसको मारता है! दो-चार मछलियाँ नज़र आती हैं। भीखम को हँसी आती, लोगों के साथ मछलियाँ ही पकड़ी जातीं। क्या किया जाए? जगेसर को अगर ऐसी व्यस्तता थी तो ख़बर भेज देनी चाहिए थी। वह तो शहर में जाकर जगेसर से निपट सकता है, मगर इनका क्या होगा!
लोगों का दूसरा झुण्ड फिर चला आ रहा है। उसे सन्देह होता है, कहीं जगेसर किसी दूसरे रास्ते से तो नहीं पहुँच गया। वह रास्ता कहाँ है!
‘फिर क्यों चले आए तुम लोग?’ वह भूख और गुस्से से तिलमिला रहा है।
‘तुम पहले चलकर खा लो, भूख लगी होगी।’
‘सब लोग मिलकर खाएँगे।’
भीखम नदी से पानी पीकर उनके पास जाता है और एक की गर्दन को पंजे से रगड़ते हुए कहता है, ‘तुम सब वहीं क्यों नहीं रहते! जगेसर के साथ मैं चला जाऊँगा। ऐसा क्यों नहीं सोचते कि वह सरकार है?’
लोगों का थका हुआ झुण्ड फिर लौटता है।
भीखम को गुस्सा बहुत चढ़ता है और ख़त्म भी हो जाता है। इन्तज़ार इतना तनता जा रहा है कि वह गालियाँ बकता है। उसकी गाड़ी तो आ ले, छूटते ही पहला सवाल करता, ‘अच्छा जगेसर यह तो बताओ, बी.डी.ओ भी तुम्हारे साथ आएगा?’
‘आना पड़ेगा’, जगेसर जवाब देता।
‘हमारे न्योता पर बी.डी.ओ आता क्यों नहीं?’
‘वह शाकाहारी होगा।’
‘बहुत ठीक। जगेसर भाई बहुत ठीक। तुम तो हमारे घर के आदमी हो, अपने सवांग हो। तुम्हारा इन्तज़ार हमें क्यों है?’
भीखम के सवाल के जवाब में भीखम के मुंह से ही आवाज निकलती है, ‘वह साला क्या बताएगा, वह तो बी.डी.ओ का चचा निकल गया। तरह-तरह की बातें बताएगा। क्या कहेगा, सो सबको जानकारी है।’ ‘अच्छा एक बात और। ठाकुर की ड्योढ़ी में हजारों मन गेहूं क्यों है!’ इतना बड़ा मजाक शायद जगेसर नहीं सह सके। मजाक सहने के पहले ही वह मिनिस्टर बन गया है। गांव के लोगों जैसा मजाक सहना पड़े तो बैलून की तरह फट जाए।
कड़ी धूप की हवा उसे जला रही है। दूर से आती हुई बैलगाडि़यों से यही लगता कि धूल उठाती जगेसर की मोटर आ रही है। वह बीड़ी में मन को लगाता है। उसने जगेसर को बढि़या सिगरेट पीते हुए देखा है। खुशबू से तबीयत भर जाती है। बहुत आग्रह के बाद भी भीखम उसका सिगरेट नहीं छूता। बराबर उसकी कोठी पर जाता-आता रहता है। पी.ए. ती.ए. सब उसे पहचानते हैं। बाभन पी.ए. है- लंबी चुटिया और तिलक वाला। बहुत लोग तो उसे जगेसर का भाई समझ लेते हैं। गांव चलने के लिए पूछने पर कहता है, चलता- मगर लड़के वहां बिगड़ जाएंगे। वहां कोई सुसायटी नहीं है। आ तो जाए, खूब मजा आएगा।
उसने देखा कि लोग फिर इकट्ठा हो रहे हैं, मगर यहां नहीं, वहां सड़क पर जिसे उन्होंने जगेसर के लिए बनाई थी। वे लोग जगेसर को कंधे पर उठाने की बात को फिर से तो नहीं सोच रहे हैं? एकदम गलत बात है। आखिर वे बेवकूफ उसे भगवान बनाने पर क्यों तुले हुए हैं? अगर भगवान बन गया तो फिर कभी हाथ नहीं आ सकता। अब तक यही होता रहा है।
उसका माथा सोचने से उड़ने लगता है, जैसे माथा, माथा नहीं- चूल्हे का तवा हो। लोग जगेसर के लिए नारे लगा रहे हैं। क्रोध चढ़ने लगता है- सालों को एक-एक कर बताऊंगा। उन्हें मना किया है कि जगेसर नारों से बहक जाएगा। फिर तो उसे संभालना मुश्किल हो जाएगा। लोग वहीं काम कर रहे हैं जिसमें कि जगेसर उसका नहीं रहे। वह चिल्लाता जा रहा है, मगर शोरगुल और नारों के बीच कोई नहीं सुनता। वह झोंक से दौड़ जाता है।
‘बंद करो नारे।’ उसके काले चेहरे के भीतर गुस्सा सिकुड़ा हुआ है।
‘जगेसर हमारा नेता है।’
‘मगर नारा और फूलमालाओं के लिए तो मना किया था न? मेरी बात क्यों नहीं समझे।’
वह देखता है कि बहुत पीछे आकाश में धूल उठ रही है और लोग अपनी खुशी को संभाल नहीं पा रहे हैं। भीखम के क्रोध के भीतर से अचानक मुस्कुराहट फूट जाती है। वह उन्हें समझाता है- दोनों तरफ कतार बांधकर खड़े हो जाओ। जगेसर खुद गाड़ी रोक देगा। मगर वे उसकी समझ और काबू के बाहर थे। धूल देह से लिपट गई है और मोटर उसमें डूब गई है। भीखम उसे रोकने के लिए बीच में खड़ा हो जाता है। वे धूल में ताकने की कोशिश करते हैं। लड़कों की आंखें भर गई हैं और वे बहुत दूर भाग रहे हैं। और लोग खेतों में उतर जाते हैं। कोशिश करता है, मोटर के लोग उसे पहचान लें। मगर बीच में धूल काफी मोटी हो गई है। वह जोर से आवाज लगाता है। एक हाथ मुर्दों की तरह बाहर लटकता दिखलाई पड़ता है और मोटर चलती जाती है। वह उनसे आग्रह करता है, ‘सब लोग मिलकर चलो। सारा प्रोग्राम एक साथ करेंगे।’ मगर सुनता कौन है? सब-के-सब भाग रहे हैं। वे मोटर से भी आगे भागना चाहते हैं- आपस में विचित्र किस्म की होड़ है।
भीखम का सब किया-किराया बंटाधार हो गया। वह गालियां बकता हुआ एकदम मंथर चलने लगता है, ‘जा ससुरा सबके लिए जगेसर शहर से ठेंगा ले आया है। आफत पड़ने पर हमारे पास आए तो बांस कर दूंगा?’
जगेसर अच्छी तरह जान गया है कि सबसे अलग-अलग बात की जाती है। लोग सामूहिक बात पसंद नहीं करते हैं। उन्हें बराबर एहसास रहता है कि हमें कितना पूछ रहा है। उसके भीतर का जगेसर बड़ी कुटिलता से उन्हें भांप गया है। इसीलिए जगेसर की कुटिलता जगेसर से पूछती है, ‘कब चलोगे यहां से?’
‘सूरज के अस्त होने के पहले।’
‘गांव के सुख-दुख में फंस तो नहीं जाओगे?’
‘बिल्कुल नहीं, तुम्हारी कसम।’
‘इनके कितने सवालों का जवाब दोगे?’
‘बेचारे कितने भोले हैं।’
‘भोले नहीं, उल्लू हैं।’
‘यहां गाली मत बको, उधर खूब मजाक उड़ाना।’
उसके पीछे किसी ने कुर्सी लाकर रख दी है और जगेसर उस पर बैठ गया है। धीरे-धीरे सभी जगह पर बैठते जा रहे हैं। उन्होंने देखा कि जगेसर पहाड़ की नोंक पर बैठा है और वे दूर तक घाटियों में फैलते जा रहे हैं। कौन गांव की बात शुरू करे, भीखम तो अभी तक आया नहीं है। जगेसर उन लोगों से क्या बात कर सकता है? लोग उस चुप्पी को तोड़ने के लिए पीछे घूमकर देखते हैं कि औरतें-लड़कियां किस प्रकार बेपर्द होकर जगेसर को घूर रही हैं। या, फिर लड़कों को आंख दिखा रहे हैं कि शोरगुल हुआ तो उठाकर फेंक देंगे।
‘कहो भरोसा भाई, अच्छे हो?’ जगेसर सन्नाटा तोड़ता है।
‘अच्छा हूं, भइया।’ हालांकि भरोसा से जगेसर तीन साल छोटा है।
‘और क्या नाम है तुम्हारा...?’
‘दुखित।’
‘दुखित, तुम कोई नौकरी चाहते हो?’ वह कुटिलता से विचार करता है, थोड़ी देर में यही कहेगा कि नौकरी दिला दो।
‘पूरे टोल पर आफत है।’
‘और, तुम मानिक दादा...?’
‘परमात्मा से यही प्रार्थना है कि दुनिया में सबसे गरीब और छोटा नाम हटा दो।’
‘सोमारू ठीक से रहता है?’
‘उसकी जवानी में घुन लग गई है।’
वह वक्र होकर बूढ़े को ताक रहा था।
भीखम आया तो आश्चर्य से उसकी आंखें फट गईं। जगेसर के साथ ये लोग कैसे आए हैं। तो क्या इसीलिए उसने गाड़ी नहीं रोकी, उसके साथ ठाकुर और बी.डी.ओ बैठे थे? चलो अच्छा हुआ, ठाकुर और बी.डी.ओ. की कंठी टूट तो गई- (वे लोग इस टोल में आ गए)। फिर भी वह जगेसर को देखकर हंसा। कोई कुर्सी खाली नहीं थी। जगेसर, ठाकुर और बी.डी.ओ बैठे थे। तब भीखम कहां बैठे? वह कुर्सी पकड़कर जगेसर के पीछे खड़ा हो गया। वह इंतजार करने लगा कि जगेसर उससे कुछ कहे। परेशानी तो सबके लिए एक ही है जो काल बनकर यहां तक पहुंच गई है।
‘तुम भी बैठते क्यों नहीं? पीछे काहे खड़े हो?’ बी.डी.ओ. ने उसे टोका।
‘हां भीखम, कहीं बैठ क्यों नहीं जाते?’
भीखम ने आंखें तरेरकर जगेसर को देखा। क्या जगेसर कुर्सी छोड़कर नीचे नहीं बैठ सकता था? या, फिर तीनों जमीन पर बैठते, सब लोग बैठे रहे हैं। इनके मकान में कुर्सियों की क्या कमी है?
ससुरे लोग कितने उल्लू हैं। किसी ने प्रतिकार तक नहीं किया। सबकी छाती पर माधो ठाकुर फिर यहां आ गया है। जैसे ठाकुर बाभन हो गया है। वह भी जमीन पर नहीं बैठ सकता।
‘बैठ न, भीखम।’ जैसे जगेसर ने उसे अपनी आवाज से पकड़कर नीचे दबा दिया हो। उसी के पैर के नीचे धम-से बैठ गया।
‘और बोलो, कैसा कट रहा है?’
‘हम लोग तो भारी आफत में पड़ गए हैं।’
‘वहां भी सरकार आफत में ही चल रही है।’
जगेसर ने देखा कि सब अपने-अपने घर से लोटा लाकर गोलाकार बैठ गए हैं। उसे हंसी आती है। बाप रे! ये लोग कितने भुक्खड़ हैं! भरसक लोग इनसे घृणा नहीं करते।
मगर वे काफी भूखे थे। जगेसर के लिए और भीखम के लिए जगह छोड़कर सभी बैठे थे। वे पत्तल में भात को जगेसर बुझकर बहुत सहमे हुए थे। भीखम बोला, ‘लोगों ने शौक से तुम्हारे लिए मांस-भात पकाया है। सब लोग और बच्चे भी तुम्हारे लिए व्रत रह गए हैं। वे पत्तल पर कब से तुम्हारा इंतजार कर रहे हैं।’
‘मेरा खाना तो ठाकुर जी के यहां बना है।’ वह सहज भाव से कह गया। लेकिन लोग सकते में आ गए।
‘तब इनके व्रत का खाना क्या होगा?’
‘और मिनिस्टर होने के बाद मैंने मांस भी छोेड़ दिया है।’ उसने तीन गज लंबा जनेऊ कमीज के भीतर से निकालकर लोगों को हैरत में डाल दिया।
‘क्या तुम सचमुच हरिजन नहीं रहे?’
भीखम गज-भर जमीन ताकने लगा, जो अपनी होती और फट जाती। ससुर जगेसर राम की गर्दन पकड़कर उसी में समा जाता, मगर ऐसी धरती कहां है? कौन है धरती जो भीखम को और टोले को अपमान से बचाने के लिए फटेगी? सभी जगह तो इसका- उसका पंजा है। सब खूंखार और शैतान है। उसने चिल्लाकर कहा, भाई रे! अपना मिनिस्टर बाबू भी बड़ा आदमी हो गया है- माधो ठाकुर। इसके जय-जयकार से आकाश को चीर दो। ऐसा जोर लगाओ कि तुम्हारे पैर की धरती फटकर बेेकाम हो जाए, जहां जगेसर को दुबारा नहीं आना पड़े।
जगेसर माधो ठाकुर के दरवाजे की ओर जा चुका था। उन्होंने जगेसर को जिंदा रखने के लिए जोर से नारे लगाए। उन्हें जोरों से यही चिंता सताए जा रही थी, जगेसर अपना नहीं रह गया है। धत्तेरे की! आदमी भी जमीन की तरह पराया हो सकता है!
लोगों के पास अभी तक ख्वाहिश जिंदा थी कि वे उसकी मोटर के पीछे-पीछे बहुत दूर तक जाते। मगर उन्हें भूख बेबस कर चुकी थी। भीखम ने उन्हें ललकारा, ‘दुश्मन के लिए हमें इतना मोह क्यों है? जो दुश्मन होगा वही हमारे साथ खाना नहीं खाएगा।’