दूसरा विश्वयुद्ध और उसकी फिल्मों का स्मरण / जयप्रकाश चौकसे

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दूसरा विश्वयुद्ध और उसकी फिल्मों का स्मरण
प्रकाशन तिथि :01 सितम्बर 2015


दूसरे विश्वयुद्ध को 76 वर्ष होने आए हैं। जब अल्बर्ट आइंस्टीन से पूछा गया कि तीसरा विश्वयुद्ध कब होगा तो जवाब था "तीसरे का पता नहीं पर चौथा पत्थरों से लड़ा जाएगा।' साहिर लुधियानवी की पंक्तियां हैं- 'गुजश्ता जंग में तो घर बार ही जले अजब नहीं इस बार जल जाए तनहाइयां भी। गुजश्ता जंग में तो पैकर (शरीर) ही जले, अजब नहीं इस बार जल जाए परछाइयां भी।'

युद्ध की हमारी ललक इतनी प्रबल है कि हमने दूसरे विश्वयुद्ध के बाद इतने छोटे युद्ध लड़े हैं, जिनकी कुल हानि दूसरे विश्वयुद्ध से अधिक ही है। हथियार बनाने वाले उद्योगों का खामोश प्रचार तंत्र इतना प्रबल है कि वह युद्ध करवाता ही रहता है। यह शोध का विषय है कि क्या श्रीकृष्ण के प्रयास के बाद भी कुरुक्षेत्र का युद्ध इसलिए नहीं टला, क्योंकि व्यापारियों ने युद्ध सामग्री प्रबल मात्रा में बना ली थी। संभवत: इन्हीं व्यापारियों का कोई वंशज अमेरिका में जा बसा और दुनिया का सबसे बड़ा हथियारों का जख़ीरा अमेरिका में ही है। वहां का अवाम भी अपने हथियार रखने के अधिकार को अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता से जोड़ता है और हथियार सरेआम नहीं बेचे जाएं, इस तरह के प्रस्ताव का विरोध करता है। वहां हथियार अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का प्रतीक है, हमारे यहां आजकल खामोशी है और यह खामोशी बहुत कुछ बोल रही है। हुक्मरानों के कान में विदेश में बजी तालियां गूंज रही हैं, वे इस खामोशी को कैसे सुनें!

अमेरिका और रूस में इतनी अधिक युद्ध फिल्में बनी हैं कि उनके इतिहास के अन्य स्रोत समाप्त हो जाएं तो भी फिल्मों के आधार पर उनका इतिहास लिखा जा सकता है। हमारे यहां तो अभी तक कुरुक्षेत्र पर भी प्रामाणिक फिल्म नहीं बनी। दूसरे विश्वयुद्ध पर बनी अमेरिकन फिल्मों से अधिक दर्द है रूसी फिल्मों में। सबसे अधिक जन-धन की हानि रूस की हुई। युद्ध ने कभी अमेरिका के दरवाजे पर दस्तक नहीं दी, वह यूरोप की जमीन पर लड़ा गया था और अब कोई भी पश्चिमी देश अपनी जमीन पर युद्ध नहीं होने देना चाहता। रूस में बनी 'बैलाड ऑफ ए सोल्जर' और 'क्रेन्स आर फ्लाइंग' महान फिल्में हैं। उस युद्ध में अमेरिका का धन, ब्रिटेन का दिमाग, रूस के लोग लड़े। अमेरिका ने कहीं भी युद्ध प्रारंभ किया हो, वह हर युद्ध में सिर्फ धन ही लगाता है। अमेरिका की सड़कों से अनेक सिपाहियों की शवयात्रा गुजरे तो वहां महीनों तक लोग बीमार पड़ जाते हैं। उन्हें क्या मालूम रक्तरंजित जमीन कैसी होती है। अपने सिविल वॉर के अलावा उन्होंने कभी जनहानि देखी ही नहीं।

हिटलर के यंत्रणा शिविरों पर अनेक फिल्में बनी हैं। स्टीवन स्पिलबर्ग की 'शिंडलर्स लिस्ट' ने अनेक इनाम जीते हैं। वे यहूदी हैं और हिटलर ने अनगिनत यहूदी मारे हैं। हिटलर का उग्र राष्ट्रवाद और जर्मन जाति ही सर्वश्रेष्ठ है, इन दो धारणाओं ने पूरे विश्व को ही खतरे में डाला। उसके प्रचारक गोएबल्स ने ही कहा था कि एक झूठ को अनेक बार बोलो तो अवाम उसे सच मानने लगता है। आजकल यह नज़ारा हम अपने यहां देख रहे हैं। दूसरे विश्वयुद्ध के नायक चर्चिल से युद्ध के बाद पूछा गया कि क्या कारण था युद्ध का तो उन्होंने कहा कि सभी युद्ध अकारण होते हैं। जब मनुष्य तर्क का साथ छोड़ देता है, तो युद्ध हो जाता है। मनुष्य की स्वतंत्र विचारशैली और तर्क सम्मत होने की ताकत के खिलाफ निहित स्वार्थों के षड्यंत्र सदियों से जारी हैं। अब हमारे यहां यह काम शिक्षा संस्थाएं कर रही है और उन्हें सरकार से मान्यता प्राप्त है। हिटलर के सर्वमान्य नेता बनने का कारण यह है कि उसने जर्मन अस्मिता के भ्रम को खड़ा किया, उनकी श्रेष्ठता के राग अलापे और उग्र राष्ट्रवाद का शंख बजाया। उसने सारे संसार पर राज करने के सपने को गोएबल्स और अपनी वृत्तचित्र बनाने वाली लेनी रोजन्थाल के माध्यम से जनता का सपना बनाया! हर तानाशाह सपनों का सौदागर होता है और एक भावना की लहर जगाता है, जिसमें लोग अपनी तर्कशक्ति खो देते हैं। महान चार्ली चैपलिन की फिल्म 'द ग्रेट डिक्टेटर' में उन्होंने तानाशाह को एक मूर्ख हंसोड़ की तरह प्रस्तुत किया है, जो वह करता नहीं, जो बोलता और जो करता है, वह बोलता नहीं। उस दौर के अनेक दर्शकों ने चैपलिन की फिल्म देखी तो उनके मन से हिटलर का आतंक समाप्त हो गया।

उस दौर पर अनेक फिल्में बनी जिनमें कुछ अविस्मरणीय प्रेम-कथाएं भी हैं। 'समर ऑफफोर्टी टू' कमसिन उम्र में प्यार के अंकुरित होने की महान फिल्म है। इतनी प्रभावोत्पादक कि अंग्रेजी में मुहावरा बन गया कि हर किसी के जीवन में समर ऑफ फोर्टी टू आता है। बचपन व जवानी के बीच की अलसभोर है कमसिन उम्र। आज यह लेख इसलिए लिखा जा रहा है कि हिटलर ने 1 सितंबर 1939 को युद्ध छेड़ने का संकल्प लिया और 3 सितंबर तक हवाई जहाजों से बम बरसाए गए।