दूसरा सरोवर / रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’

Gadya Kosh से
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एक गाँव था। उसी के पास में था स्वच्छ जल का एक सरोवर। गाँववाले उसी सरोवर का पानी पीते थे। किसी को कोई कष्ट नहीं था। सब खुशहाल थे।

एक बार उजले-उजले कपड़े पहनकर एक आदमी गाँव में आया। उसने सब लोगों को मुखिया की चौपाल में इकट्ठा करके बहुत अच्छा भाषण दिया। उसने कहा-"सरोवर आपके गाँव से एक मील की दूरी पर है। आप लोगों को पानी लाने के लिए बहुत दिक्कत होती है। मैं जादू के बल पर सरोवर को आपके गाँव के बीच में ला सकता हूँ। जिसे विश्वास न हो वह मेरी परीक्षा ले सकता है। मैं चमत्कार के बल पर अपना रूप-परिवर्तन कर सकता हूं। गाँव के मुखिया मेरे साथ चलें। मेरा चमत्कारी डंडा इनके पास रहेगा। मैं सरोवर में जाऊँगा। ये मेरे चमत्कारी डंडे को जैसे ही ज्ञमीन पर पटकेंगे, मैं फिर आदमी का रूप धारण कर लूँगा।"

लोग उसकी बात मान गए। उजले कपड़े किनारे पर रखकर वह पानी में उतरा। मुखिया ने चमत्कारी डंडा ज्ञमीन पर पटका। वह आदमी खौफनाक मगरमच्छ बनकर किनारे की ओर बढ़ा। मुखिया सिर पर पैर रखकर भागा। डंडा भी उसके हाथ से गिर गया। अब उस सरोवर पर कोई नहीं जाता। उजले कपड़े आज तक किनारे पर पड़े हैं। गाँववाले चार मील दूर सरोवर पर जाने लगे हैं।

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