दृढ़ इच्छाशक्ति से पाई सफलता / प्रभुदयाल श्रीवास्तव
चंदन वन आजकल गुलजार है। फिर भालू की पाठशाला के तो क्या कहने? शेर, हाथी, बारहसिंगा, चीता, गेंडा सभी अपने बच्चों के दाखिले के लिए चले आ रहे थे। बच्चे रंग-बिरंगी पोशाकों में बहुत सुन्दर लग रहे थे। हाथी की छोटी बेबी 'अपुनी' ने बंगाली कुर्ती पहनी थी तो गेंडे का बेटा 'गिंडु' रशियन जींस पहनकर अपने आपको धरती का राजकुमार समझ रहा था। शेर के छोकरे 'शिरुआ' ने बरमूडा पहनकर सबको चकाचौंध कर दिया था। वह सबको अपने मसल्स दिखाकर यह बताना चाहता था कि वह जंगल के राजा का शहजादा है। उधर चीते के बेटे 'चित्तू' ने लखनवी कुरता-पायजामा अपने चिकने बदन पर डाल रखा था। उसे अपने भारतीय होने का गर्व था। चारों ओर बहार छाई थी। हरे-भरे पेड़, पास में कल-कल, झर-झर करते झरने, पास की पहाड़ी पर बर्फ की चादर स्वर्ग का आभास करा रहे थे। पेड़ों पर चिड़िया चहक रही थीं। कहीं-कहीं तोते टें-टें की आवाज़ करते हुए एक पेड़ से उड़कर दूसरे पेड़ पर आ-जा रहे थे। कोयल की कूक सारे वातावरण को मोहक और मनोरम बना रही थी। इसी पहाड़ी की तलहटी में भालू की पाठशाला का चमचमाता हुआ शानदार पट्ट'भाग्योदय जानवर पाठशाला' बच्चों के अभिभावकों को अपनी ओर आकर्षित कर रहा था। अजगर भी अपने 3 बच्चों को लेकर उनके दाखिले के लिए रेंगता चला आ रहा था। सुरक्षा के लिए उसने तीनों को रंगीन रजाई के खोल पहना दिए थे। सभी जानवर शाला के प्राचार्य से मिलते, अपने बच्चों का साक्षात्कार कराते और कितना अनुदान देना है, इसकी जानकारी लेते और लेखा विभाग में खजांजी के पास जाकर राशि जमा करा देते। बच्चों का दाखिला हो जाता। नर्सरी के लिए 1 लाख, केजी प्रथम के लिए 2 लाख और केजी द्वितीय के लिए 3 लाख रुपए अनुदान सुनिश्चित था। सभी जानवर धनवान थे तथा खुशी-खुशी अनुदान देकर दाखिला करा रहे थे।
कई जानवर अपनी मूंछों पर ताव देकर अपने मित्रो के सामने अपने स्टेटस सिंबल का बखान कर रहे थे। भाग्योदय पाठशाला में दाखिला मिलना सच में गौरव और प्रतिष्ठा कि बात थी।
बच्चों का तीक्ष्ण बुद्धि का होना अनियार्य तो था, किंतु थोड़े कम अक्ल लोगों को भी दाखिला मिल जाता था बशर्ते अनुदान की राशि अधिक देने की स्थिति में पालकगण होते। 2 लाख के बदले 4 लाख देने पर गधे और कमजोर बच्चों के दाखिले पर प्रतिबंध नहीं था, परंतु ये सब बातें बहुत ही गोपनीय रखी जाती थीं। सुनिश्चित राशि से अतिरिक्त राशि प्राचार्य अपने पास ही रखता था तथा उसके निजी सचिव के अलावा यह बात कोई नहीं जानता था। उसने बच्चों के अभिभावकों को चेतावनी दे रखी थी-'यदि किसी ने यह बात जाहिर की तो उसके बच्चे को शाला से निकाल दिया जाएगा।'
आम, नीम, पीपल, सागौन और महुए के वृक्षों से ढंकी दो झरनों के मध्य स्थित यह पाठशाला सच में इन्द्रलोक का आभास कराती थी। इस शाला में दाखिले के लिए जंगल के सभी जानवर लालायित रहते थे किंतु सबको मालूम था कि स्पर्धा बहुत कठिन है। बच्चों के साथ ही उनके मां-बाप से भी कठोर सवाल पूछे जाते थे। कमजोर और निर्धन बच्चे तो शाला का नाम सुनकर ही डर जाते थे। बच्चे कमजोर, ऊपर से गरीब हों, तो उनके लिए तो यह शाला एक सपने की ही तरह थी। उन बेचारों को तो सरकारी स्कूल ही नसीब में थे। 'कहाँ राजा भोज कहाँ गंगू तेली' / 'दूर के अंगूर खट्टे' समझकर बेचारे पास के कूड़े-कचरे से वे संतोष कर लेते थे।
एक गधे का बच्चा 'गिद्धू' कई दिनों से भाग्योदय पाठशाला में दाखिले के लिए लालायित था। इसके लिए वह कई दिनों से सपने बुन रहा था। पिछले 2 महीने से दिन-रात परिश्रम कर उसने प्रतिस्पर्धा के लिए तैयारी की थी। उसे पूर्ण विश्वास था कि वह नर्सरी तो क्या, केजी प्रथम और केजी द्वितीय तक की परीक्षा में भी सफल हो सकता है। उसने अपने बापू से कहा था कि मुझे भी भाग्योदय पाठशाला में पढ़ना है। मुझे वहाँ ले चलो, निश्चित ही मैं प्रतियोगी परीक्षा में सफल हो जाऊंगा। गधे ने उसे समझाया था-'बेटे वह शाला बुद्धिमान, निपुण और मेधावी लोगों के लिए है, हम ठहरे गधा जाति के प्राणी। हमें वहाँ कौन पूछेगा? हमें तो वहाँ की चार दीवारी में घुसने भी नहीं मिलेगा।'
किंतु बेटा गिद्धू'तो ज़िद पर अड़ा था-' पढूंगा तो भाग्योदय में ही पढूंगा अन्यथा नहीं पढूंगा। '
बेचारा निरीह गधा क्या करता? पुत्र-प्रेम में अंधा। बेटे को लेकर वह पहुँच ही गया उस पाठशाला में।
गधे बाप-बेटे को देखकर सभी लोग हंसने लगे।
'लो अब गधे का बेटा भी अपनी शाला में पढ़ेगा।' हाथी की बेबी 'अपुनी' ने तंज कसा। -'अरे कहाँ से पढ़ेगा'। शेर का बच्चा 'शिरुआ' बोला-'प्राचार्य इसे यूं ही टरका देगा। इतनी कड़ी स्पर्धा है कि यह गधे का बच्चा एक भी प्रश्न का जवाब सही नहीं दे पाएगा।'
किंतु गधे के बच्चे को अपने ऊपर पूरा विश्वास था। धड़ल्ले से वह प्राचार्य के कमरे में गया और पूछे गए सभी प्रश्नों के सही और सटीक जवाब दे दिए। प्राचार्य अवाक् रह गया। किंतु दाखिले के लिए जब अनुदान देने बात आई तो गधे ने साफ़ इंकार कर दिया। 1 लाख कहाँ से देता वह बेचारा गरीब?
प्राचार्य ने तुरंत पलटी मारी-'तुम्हारा बेटा बहुत कमजोर है, हम उसे दाखिला नहीं दे सकते, गधे कहीं के चले आते दाखिला कराने' , ऐसा कहकर प्राचार्य ने उसे कमरे से बाहर भगा दिया। गधा बेचारा निराश हो गया।
परंतु उसका नन्हा-दुलारा हौसले वाला था-'बोला, बापू कुछ गड़बड़ है। यहाँ प्राचार्य भालू केवल उन्हीं बच्चों को दाखिला देता है, जो उसे भारी अनुदान देते हैं। परीक्षा, स्पर्धा सब ढकोसला है। देखो बापू, ये सांप और अजगर के बच्चे भी यहाँ घूम रहे हैं। इनका दाखिला कैसे हो गया? अजगर भी कोई बुद्धिमान होते हैं? खाया-पिया और सो गए आलसी कहीं के। उनके बच्चे तो निरे मूर्ख ही होते होंगे। यही तो इनकी दिनचर्या है।'
उसने आगे कहा-'मुझे लगता है कि इस शाला में उन्हें ही जगह मिलती है, जो ख़ूब सारा अनुदान देते हैं अथवा जो ताकतवर हैं और अपनी ताकत के दम पर ही बच्चों का दाखिला करा लेते हैं। अजगर और सांप के बच्चों को तो डर के कारण ही भालू ने दाखिला दिया होगा। मैं देखता हूँ कि यह प्राचार्य कैसे मुझे भर्ती नहीं करता।'
उसने शाला से बाहर आकर भालू प्राचार्य की मनमानी और तानाशाही की बात सब जानवरों को बताई-'मैंने सभी प्रश्नों के सही जवाब दिए फिर भी मुझे दाखिला नहीं दिया जबकि अजगर व सांप जैसे गधे बच्चों को दाखिला दिया गया है।'
गधे के बेटे की वेदना सुनकर बंदर, नेवला, सियार, लोमड़ी, गिलहरी सरीखे जानवरों को जोश आ गया।
'कमजोरों पर ऐसा अत्याचार! अब ऐसा नहीं चलेगा' बंदर चिल्लाया। 'हमें इंसाफ चाहिए, अपना हक़ हम लेकर ही रहेंगे' , नेवले ने हुंकार भरी। भालू प्राचार्य की यह हिम्मत! लाखों रुपए लेकर दाखिला देता है और कहता कि हम मेधावी और कुशाग्र बच्चों को ही लेते हैं', लोमड़ी धरती पर अपनी पूंछ पटककर बोली। वह गुस्से के मारे अपनी नाक फुला रही थी-' इस भालू को तो मैं कुचलकर रख दूंगी। समझता क्या है अपने आपको? यह प्रजातंत्र है। 'वह जोरों से चीख रही थी।' चलो हम अभी भालू की पाठशाला को तहस-नहस कर देते हैं', सियार का भी खून खौल रहा था।' क्या छोटे जानवरों की कोई इज़्ज़त नहीं है? '
सभी जानवरों ने चिल्ला-चिल्लाकर अपने साथियों को एकत्रित कर लिया और सैकड़ों की तादाद में यह भीड़ नारे लगाती हुई शाला कि तरफ़ कूच कर गई-'शाला का दोहरा व्यवहार, नहीं चलेगा भ्रष्टाचार' , 'शाला को मिटा देंगे, प्राचार्य को हटा देंगे' , 'जानवर एकता जिंदाबाद' जैसे नारे सुनकर भालू प्राचार्य घबरा गया। वह कमरे के बाहर आ पाता कि भीड़ दरवाज़ा ठेलती हुई अंदर घुस गई।
भालू की घिग्गी बाँध गई। यह क्या हो गया? इतने कमजोर से जानवर गधे ने मेरी शाला पर हमला करवा दिया। उसने तो सपने में भी यह नहीं सोचा था। वह हाथ जोड़कर खड़ा हो गया और सबसे क्षमा मांगने लगा। कोई दूसरा उपाय भी तो नहीं था।
'श्रीमान प्राचार्यजी, आपकी काली करतूतों का हमें पता चल गया है। आप अमीरों के बच्चों को भारी अनुदान लेकर दाखिला देते हैं। मेधावी, होशियार होना यह दिखावा है। हम आपकी शाला तोड़ने और आपको दंड देने आए हैं' , बंदर घुड़ककर बोला। नेवले ने तो वहीं गुस्से के मारे 2-3 सांप के बच्चों को काटकर टुकड़े-टुकड़े कर दिए।
'क्षमा कर दो भाई, हम इस गधे के मेधावी पुत्र' गिद्धू'को अभी दाखिला दे देते हैं।' प्राचार्य हाथ जोड़कर फिर से खड़ा हो गया।
'इतने से ही काम नहीं चलेगा। तुम्हें सियार, लोमड़ी, गिलहरी, गिरगिट, छिपकली इत्यादि सभी जीवों के बच्चों को शाला में भर्ती करना पड़ेगा, बिना किसी अनुदान के।' , गिरगिट धमकी भरे अंदाज़ में चिल्लाए जा रहा था।
'ठीक है, हमें आप लोगों की सभी शर्तें मंजूर हैं।' भालू को अपनी गलती का अहसास हो गया था।
अब भाग्योदय पाठशाला सभी के लिए खुली है। अनुदान लेना-देना बिलकुल बंद है। लिखित परीक्षा होती है। जो योग्य होता है उसे शाला में प्रवेश मिल जाता है।
शाला के बाहर एक पट्टी पर लिखा है-
अगर परिश्रम करें ठीक से, हम मंज़िल गढ़ सकते हैं /
छोटे से छोटे प्राणी भी, एवरेस्ट चढ़ सकते हैं।
नीचे गधे का चित्र बना हुआ है।