दृश्यम : परिवार बनाम निर्मम व्यवस्था / जयप्रकाश चौकसे

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दृश्यम : परिवार बनाम निर्मम व्यवस्था
प्रकाशन तिथि ::01 अगस्त 2015


अजय देवगन ने अपने फिल्म कॅरिअर में हमेशा पारंपरिक फिल्मों के साथ साहसी सार्थक फिल्मों में भी सहयोग किया। सफलतम एक्शन डायरेक्टर वीरू देवगन के सुपुत्र अजय ने 'फूल और कांटे' नामक एक्शन फिल्म से सितारा हैसियत अर्जित की, कुछ समय तक एक्शन फिल्में करते हुए उन्होंने अपने बाजार मेहनताने से कम राशि लेकर प्रकाश झा, गोविंद निहलानी और राजकुमार संतोषी की फिल्में की और अभिनय के लिए राष्ट्रीय पुरस्कार भी पाया। उन्होंने अपने पिता के मित्र एक्शन डायरेक्टर शेट्‌टी के सुपुत्र रोहित शेट्‌टी को प्रेरित किया और कुछ हास्य फिल्मों में काम किया तदुपरांत रोहित शेट्‌टी के अपने ब्रैंड की फिल्मों में भी काम किया परंतु वे इतने उदार हैं कि उन्होंने रोहित की उड़ान को अपने स्वार्थ के लिए नहीं रोका और आज रोहित शेट्‌टी सबसे अधिक धन पाने वाले डायरेक्टर हो गए है। अजय अन्य सितारों के विपरीत खामोशी से काम करने वाले व्यक्ति हैं। उनकी पत्नी कॉजोल अत्यंत सफल रहीं। प्राय: ऐसे में सफल पति-पत्नी अलग आशियाने में रहते हैं परंतु अजय अपने माता-पिता और पूरे परिवार के साथ एक ही बंगले में रहते हैं। संयुक्त परिवार नामक संस्था का विघटन हो चुका है परंतु देवगन परिवार आज भी एक साथ रहता है गोयाकि पिता के ग्राम अटारी का ही 'पिंड' मुंबई के श्रेष्ठि वर्ग के जुहू में साथ रहता है। वे पारंपरिक मूल्यों के निर्वाह के साथ आधुनिक हैं, क्योंकि आधुनिकता पहनावा नहीं वरन तर्क सम्मत विचार शैली है।

यह लिखना इसलिए जरूरी है कि एक परिवार का अर्थ जीने वाला अजय देवगन ही परिवार को उदात्त परिभाषा देने वाली 'दृश्यम' रच सकता है। दरअसल, आज भारत में परिवार नामक संस्था अपने संस्कार खो रही है और इस अविश्वास के दौर में पारिवारिकता की शक्ति को दिखाने वाली 'दृश्यम' कोई नज़र का धोखा या जादू नहीं है वरन वह एक मात्र चौथी परीक्षा पास करके चाय के ठेले से कॅरिअर शुरू करने वाले मेहनती व ईमानदार नायक, उसकी पत्नी व दो बेटियों की साहस कथा है। एक तरफ यह मध्यम वर्ग का परिवार है, जिसके विरुद्ध पूरा पुलिस महकमा अपनी पूरी ताकत से जुटा है और अपने पारस्परिक प्रेम और एकता के दम पर विजय प्राप्त करते हैं, आईजी अफसर को त्यागपत्र देना पड़ता है, भ्रष्ट अफसर निलंबित होते हैं परंतु अंतिम दृश्य आपका दिल दहला देता है जब नया अफसर नायक को धमकी देता है कि पुलिस विभाग अपनी पराजय नहीं भूलेगा और उसे फंसाने की फिर कोशिश की जाएंगी। दरअसल यह दृश्य इस समय पूरे देश के मध्यम वर्ग, मजदूर वर्ग और कृषक वर्ग को दमन की निर्मम शक्ति की उद्‌घोषणा का दृश्य है। महात्मा गांधी ने 1915 में काशी विश्वविद्यालय के उद्‌घाटन समारोह में कहा था कि डर को त्यागना ही स्वतंत्रता का पहला कदम होगा, उस देश में आजादी के 67 वर्ष बाद भी डर का हव्वा कायम है और पहले से अधिक विकराल स्वरूप ले लिया है।

इस फिल्म में दो परिवार है - एक नायक का मध्यमवर्गीय परिवार है, जिसने अपने संस्कार की रक्षा की है और दूसरी ओर पुलिस की आला अफसर व उसके धनाड्य व्यापारी पति का शक्तिशाली परिवार है जिसके इकलौते लड़के के पास धन है और सुविधाओं की अनैितकता के दलदल में वह धंसता जा रहा है। लड़कियों के नहाते समय छुपाए कैमरे से फोटो लेना और फिर उन्हें डराकर अय्याशी करना उसका शौक है। वह इतना गिरा हुआ है कि जबकि उसकी शिकार कमसिन लड़की को उसकी मां बचाने आती है, तब वह कहता है, कि बेटी न सही उसकी मां ही उसके साथ हमबिस्तर हो जाएं। इस तरह के अमीरजादे बहुत हैं। दरअसल, आज परिवार के सारे सदस्यों को सारे समय सावधान रहने की आवश्यकता है और अपनी कमसिन औलादों को इन दरिंदों से स्वयं ही बचाना होगा, क्योंकि व्यवस्था इनके साथ है। फिल्म की आला पुलिस अफसर कहती है कि पूरे घटनाक्रम में सिनेमा का लिंक महत्वपूर्ण है, क्योंकि यह अनपढ़ गरीब उसी पाठशाला में पढ़ा है। सच है केवल सिनेमा में ही विरोध का स्वर मुखर है, अन्य माध्यम बिक चुके हैं या बहुत डरे हुए हैं। शिकायत यह है कि अंतिम दृश्य में लाश नए थाने के फर्श में ही गाड़ी है। इसका संकेत है परंतु यह खुलकर दर्शक को बताते तो वह खुश होता कि जिस कुर्सी पर नया अफसर बैठा है, उसी के नीचे लाश गड़ी है।