दृष्टिहीनों के देश में आईनों का व्यापार / जयप्रकाश चौकसे
दृष्टिहीनों के देश में आईनों का व्यापार
प्रकाशन तिथि : 19 सितम्बर 2012
सभी धर्मों में उपवास की परंपरा रही है। भारत में उपवास के राजनीतिक अर्थ भी हैं। गांधीजी ने इसे अंग्रेजों के खिलाफ शस्त्र की तरह उपयोग किया। हालांकि महान बाबा आंबेडकर ने आजादी के बाद ही कहा था कि स्वतंत्र संसदीय गणतंत्र में इसका इस्तेमाल नहीं किया जाए, परंतु यह आज भी जारी है। भारत महान में एक तरफ राजनीतिक दबाव बनाने और अवाम में जुनून जगाने के लिए इसका उपयोग किया जाता है, दूसरी ओर आबादी का कुछ प्रतिशत हिस्सा अनाज के अभाव में उपवासी है। फाकों और उपवास में अंतर यह है कि एक जगह भोजन उपलब्ध नहीं है और दूसरी ओर उपलब्ध है, परंतु भूख सत्ता की है और उसे कुछ नाम दिया जाना आवश्यक है।
बहरहाल, अमेरिका में ऑटम वाइटफील्ड-मेडरानो ने आईने से उपवास किया। उन्होंने तय किया कि वे आईना नहीं देखेंगी। इस एक महीने के उपवास द्वारा वे अपने आत्मविश्वास का इम्तहान लेना चाहती थीं।
बाजार और विज्ञापन की ताकतों के युग में सुंदर दिखने को बहुत महत्व दिया गया है और इससे जुड़ा प्रसाधन उद्योग अरबों रुपए का है। खूबसूरती में इजाफे के लिए अंतरराष्ट्रीय प्रसाधन उद्योग ने कुछ स्पद्र्धाओं में भारतीय प्रतियोगियों को विजयी बनाया, क्योंकि यह व्यापक क्षेत्र उनकी लहर से लगभग अछूता-सा था। वे लोग अपनी व्यापार नीति में सफल रहे। इस देश में गोरे रंग के प्रति हमेशा प्रबल आग्रह रहा है। वैवाहिक विज्ञापनों को गौर से पढ़ें- सभी लोग गोरी-चिट्टी बहू चाहते हैं, उनका लड़का भले ही कोयले की खान से निकला हुआ लगे। सुंदरता को सिक्के में बदलने से प्रसाधन उद्योग स्वयं टकसाल हो गया। पुर्बा दत्त ने एक अंग्रेजी अखबार में सार्थक मुद्दा उठाया है कि विश्वास का दर्शनीय होना क्यों जरूरी है। जीवन में आत्मविश्वास अत्यंत महत्वपूर्ण है, परंतु उसको आईने में अपनी छवि निहारने से कैसे जोड़ा जा सकता है? सूरत से अधिक महत्व सीरत का है, जिसके लिए समाज में आपके व्यवहार द्वारा बनाई गई छवि महत्वपूर्ण है। गोयाकि समाज के आईने में अपनी सीरत देखिए।
कोई दो दशक पहले सचिन पिलगांवकर ने मराठी भाषा में 'आत्मविश्वास' नामक फिल्म बनाई थी। एक मध्यम वर्ग का दादर में रहने वाला परिवार है, जिसके युवाओं के अलग-अलग सपने हैं। पति काम से अधिक बात करता है और सभी की इच्छा है कि पुश्तैनी मकान बेचकर अपने सपने पूरे करें तथा कोई अच्छी कमाई वाला व्यवसाय करें। गृहिणी लगभग अनदेखी-सी है, कोई उसे महत्व नहीं देता। वह मशीनवत सबको यथासंभव सहूलियतें प्रदान करती है। गृहस्थी की चक्की में वह कब पिस गई, उसे आभास ही नहीं हुआ। कोई कभी किसी भी मसले पर भूले से भी उसकी राय नहीं पूछता। वह न होने के बराबर है, जैसे अटाले में कोई गैर-उपयोगी चीज कबाड़ी को देने के लिए रखी गई है।
बहरहाल, इस स्त्री की एक बचपन की सखी वर्षों बाद अफ्रीका से लौटती है। वह सारे हालात समझकर अपनी सहेली को आत्मविश्वास का एक ताबीज देती है और कहती है कि कुछ माह बाद वापस लेगी। उसके बाद गृहिणी अपनी सहज बुद्धि से परिवार की सारी समस्याओं का हल खोज लेती है। लंबे विवाहित जीवन में हमेशा खामोश रहने वाली जीवन में पहली बार बोलती है और सब उसके आत्मविश्वास से अचंभित हैं। वह परिवार की सत्ता हाथ में लेती है। घर में पक्ष और विपक्ष दो दल थे, परंतु उस बेचारी की गिनती ही नहीं थी, गोयाकि वह घरेलू संसद का कक्ष मात्र थी और अब अध्यक्ष पद पर बैठी है। क्या भारत के अगले चुनाव में भी ऐसा ही कुछ होने वाला है? सिंहासन अज्ञात घुड़सवार का इंतजार कर रहा है, परंतु जनता के पास स्वयं विचार करने की ताकत कहां? आमजन तो भीड़ रहे हैं। नायक गढऩा उनका काम नहीं रहा है। नायक की तरह कभी सोचा ही नहीं। उनकी कोई सखी भी नहीं, जो आत्मविश्वास का ताबीज उन्हें दे।
बहरहाल, अब घर में सब ठीक है और सहेली दोबारा आई है। जब गृहिणी उसे ताबीज लौटाने लगती है तो वह कहती है कि इस ताबीज का कोई अर्थ नहीं। यह तो एक बेकार-सी चीज है, जो मैंने तुम्हें इसलिए दी थी, ताकि इसी बहाने तुम अपना खोया आत्मविश्वास पुन: प्राप्त कर सको। वह जानती थी कि छात्रा के रूप में वह किसी से कम नहीं थी। जाने शादी के बाद उसे क्या हो गया? सत्य है कि आत्मविश्वास किसी गंडे-ताबीज से नहीं आता। कोई बाबा, फकीर या साधु इसे नहीं ला सकता। यह ज्योत हृदय के भीतर होती है।
अत: प्रसाधन कारगर नहीं हो सकता। आत्मविश्वास का दर्शनीय होना आवश्यक नहीं है। लिपिस्टिक कोई बारूद की गोली नहीं है। ओठों का रंगना जरूरी नहीं है, उनसे सत्य वचन निकलना आवश्यक है। प्रसाधन का ही अंग है सौंदर्य ल्य चिकित्सा, जिसमें इंजेक्शन द्वारा ओठों को रसीला दिखाया जा सकता है, परंतु उस दशा में कुछ चख नहीं सकते, स्पर्श मात्र से दर्द होता है।
आईने से उपवास का अर्थ यह नहीं है कि उसका बहिष्कार करें, वरन उससे मोहित होना छोड़ दें। आत्मविश्वासी बनें, आत्म-मुग्धा नहीं। उपवास आध्यात्मिक अनुशासन है। उसका सरेआम दिखावा एक छलावा है।
बहरहाल, आईने अनेक साइज में उपलब्ध हैं। अपने बटुए में भी रखे जा सकते हैं। आईने आदमकद भी होते हैं और बौने भी आदमकद के सामने खड़े हो सकते हैं। विकृत छवि दिखाने वाले आईने भी होते हैं। भारतीय राजनीति में इस समय विविध आईने मौजूद हैं और मनपसंद छवियां भी देखी जा सकती हैं।