दृष्टि अटल :खण्डकाव्य / कविता भट्ट
युवा रचनाकार श्री संजीव द्विवेदी के खण्डकाव्य 'दृष्टि अटल' का आद्योपान्त अध्ययन करने का सुअवसर प्राप्त हुआ। सर्वप्रथम बात की जाए खण्डकाव्य के शीर्षक एवं विषयवस्तु की तो एक वाक्य में यह कहा जा सकता है कि यह भारत के युगपुरुष पूर्व प्रधानमंत्री भारत रत्न श्री अटल बिहारी बाजपेयी के विराट व्यक्तित्व एवं कृतित्व का शब्द-चित्रण एवं समग्र लेखा-जोखा है। एक प्रश्नात्मक उक्ति है-"जितं जगत् केन?" उत्तर मिलता है-मनोहियेन्। अर्थात् जगत् को किसने जीता प्रश्न का उत्तर मिलता है-जिसने मन पर विजय प्राप्त कर ली उसने ही जगत् पर विजय प्राप्त की। जीवन के विपरीत एवं संघर्ष युक्त ऊँचे-नीचे रास्तों पर स्वयं के मन को नियन्त्रित एवं विजित करते हुए जो व्यक्ति आगे बढ़ते हैं; वे यथार्थतः प्रसिद्धि प्राप्त करते हुए अन्य सामान्य जन के लिए उत्कृष्ट उदाहरण बन जाते हैं। ऐसे महापुरुष लोककल्याण के कार्याें को करते हुए स्वयं के जीवन को धन्य करते हैं तथा अन्य लोगांे के जीवन को प्रेरणा प्रदान करते हैं। ऐसे व्यक्तियों द्वारा निर्लिप्त भाव से किये गये कर्मों को ही गीता में निष्काम कर्म की संज्ञा दी गयी है। ऐसे निष्काम कर्मयोगी स्वयं के लिए कुछ भी उपार्जित नहीं करते उनका जीवन राष्ट्र, राष्ट्रवाद एवं लोककल्याण के भाव को परिपोषित करता है। वे युगपुरुष बन जाते है; उदाहरणतः अटल जी.
युवा कवि श्री द्विवेदी के अथक प्रयास के फलस्वरूप अनवरत राष्ट्रवादी भाव-सरिता में पाठक आप्लावित होता चला जाता है। कवि ने राष्ट्रवादी विचाराधारा को परिपोषित करते हुए अटल जी के बचपन, शिक्षा-दीक्षा, संघर्ष तथा राष्ट्र-सेवा आदि जैसे पक्षों के साथ ही कांग्रेसकालीन आपातकाल, संघ के मूल्यों, भारतीय जनता पार्टी के निर्माण के साथ अटल जी के राजनीति में पदार्पण, उनके प्रधानमंत्रित्व काल के भारत-पाक युद्ध आदि जैसे अतिमहत्त्वपूर्ण पक्षों को भी सम्पन्न शब्द-विन्यास के द्वारा चित्रित किया है। यह पाठक की काव्य-पिपासा को शान्त करते हुए वैचारिक उद्दीपन का भी कारक है। अटल जी निर्विवाद रूप से सत्यनिष्ठ, कर्त्तव्यपरायण तथा सच्चे राष्ट्रसेवक हैं। इसके अतिरिक्त वे स्वयं में उत्कृष्ट कवि भी रहे। देशप्रेम के भाव से ओत-प्रोत उनकी कविताएँ अत्यंत मार्मिक, ओजपूर्ण एवं प्रासंगिक रही हैं। इसलिए ऐसे व्यक्ति जो श्रेष्ठ नेतृत्व से युक्त होने के साथ ही एक श्रेष्ठ कवि भी हों; उन पर प्रथम खण्डकाव्य का लिखा जाना वस्तुुतः अद्वितीय कार्य है।
अटल जी के समग्र जीवन चरित का ऐतिहासिक एवं राजनीतिक घटनाक्रम के साथ रोचक शब्द-चित्रण पाठक को प्रारम्भ से अन्त तक बाँधे रखता है। इसमें विविध स्थानों पर प्रासंगिक तत्कालीन राजनीतिक घटनाक्रम की चर्चा तो है; किन्तु रचनाकार ने इसमें किंचित् भी पक्षधर्मिता नहीं अपनायी; पूर्ण तटस्थता के साथ समस्त विषयवस्तु के साथ रचनाकार ने पूर्ण न्याय किया है। इसमें राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ, भारतीय जनता पार्टी तथा कांग्रेस आदि के द्वारा किये गये कार्यों तथा लिये गए निर्णयों को पूर्ण तटस्थता के साथ प्रस्तुत किया गया है। अटल जी के कार्यकाल में उनकी सरकार की महत्त्वपूर्ण योजनाओं तथा उपलब्धियों यथा-सर्वशिक्षा अभियान, परमाणु परीक्षण, पोलियो मुक्त भारत, चतुर्भुज स्वर्णिम भारत, भारत-पाक-मैत्री एवं शान्ति के प्रयास आदि का काव्यात्मक विवेचन कवि ने सुन्दर ढंग से किया है। भारत के पूर्व राष्ट्रपति एवं महान वैज्ञानिक स्व0 श्री ए0 पी0 जे0 अब्दुल कलाम के महत्त्वपूर्ण कार्यों का भी यथोचित उल्लेख किया गया है। नारी के सम्मान जैसे महत्त्वपूर्ण विषय को भी कवि ने सुसमायोजित कर प्रस्तुत किया है; उद्धरण निम्न है-
गंगोत्री स्वरूप भारत है और है नारी शक्ति स्वरूप।
राष्ट्रवाद के संकल्पों से रहे देश सिद्धान्त अनूप॥
कुल मिलाकर विषयवस्तु सारगर्भित, रोचक एवं प्रासंगिक है; यह ज्ञान की धारा साहित्यिक रस से परिपूर्ण है।
अब बात करते हैं; भावपक्ष एवं कलापक्ष की। भाव पक्ष का प्रबल होना आवश्यक है। इस दृष्टि से 'दृष्टि अटल' मानवीय मूल्यों एवं चारित्रिक सद्गुणों का भी सुन्दर काव्यात्मक प्रस्तुतीकरण है; ये मूल्य आधुनिक युवा पीढ़ी के लिए अनुकरणीय हैं। यह प्रस्तुतीकरण इसलिए भी प्रासंगिक हो जाता है; क्योंकि आधुनिक पीढ़ी में नैतिक मूल्यों का स्थान भयावह मशीनी प्रवृत्ति ने ले लिया है। अनवरत श्रम, त्याग तथा प्रेम आदि जैसे श्रेष्ठ गुणों का एक काव्यमय प्रस्तुतीकरण अत्यंत रोचक एवं पठनीय है; इसका एक उद्धरण निम्न है-
एक शक्ति थी पास अटल के त्याग गुरुत्वाकर्षण।
अपनाया जनता ने उनको करके प्रेम प्रवर्षण॥
लक्ष्य अटल ने निज जीवन में सदा उच्च अपनाया।
राजनीति के कठिन मार्ग पर अपना कदम बढ़ाया॥
खण्डकाव्य में विविध स्थानों पर सत्ता, लोकतन्त्र तथा राजनीति के नैतिक मूल्यों की आवश्यकता को भी यथास्थान नानाविधि प्रस्तुत किया गया है; इसका एक उद्धरण यथोचित है-
प्रायः सत्ता संचालन के निर्णय होते हैं गम्भीर।
प्रज्ञावान पुरुष समझेगा या समझंेगे सन्त-फकीर॥
साररूप में यह कहा जा सकता है कि कवि ने राष्ट्रवाद की विचारधारा को नैरन्तर्य प्रदान करते हुए भाव पक्ष को अभिसिंचित किया है।
कला पक्ष की बात की जाय तो कवि ने पर्याप्त तत्सम शब्दावली के साथ ही कुछ स्थानों पर मजलूम, शिकस्त, एटम बम, सेक्यूलर तथा कैबिनेट आदि जैसे प्रचलित उर्दू एवं अंग्रेज़ी शब्दों का भी प्रयोग किया है। विषेष बात यह है कि कुछ संस्कृत सूक्तियों का भी यथोचित उपयोग किया गया है; जैसे-"न दैन्यं न पलायनं"। साथ ही प्रस्तुत खण्डकाव्य में उपमाओं का भरपूर एवं सुन्दर उपयोग किया गया है; यह विशेषता इसे सुन्दर से सुन्दरतम बनाती है।
उपर्युक्त समस्त विषेषताओं के साथ ही कवि ने भारत के एक सुन्दर चित्र की कल्पना के साथ ही खण्डकाव्य का उपसंहार पूर्ण किया है; यह चित्र निम्न शब्दों के माध्यम से खींचा गया है-
हरी-भरी नदियों सागर से कन्या से लेकर कश्मीर।
अटल स्वप्न द्रष्टा का होगा पावन भारत की तस्वीर॥
इस प्रकार सारांश यह है कि खण्डकाव्य को पढ़ना एवं अटल जी के आदर्शों का अनुकरण करना पाठक की महत्त्वपूर्ण उपलब्धि होगी। रचनाकार निम्न शब्दों में अटल जी के आदर्शों पर चलने का अपना संकल्प तथा भविष्यकालीन आशाओं को प्रस्तुत करते हैं-
मेरा वृत्त मेरा आराधन अटल पुरुष का राष्ट्र विधान!
जिनके स्वाध्याय से होगा भारत दर्शन सम्भव ज्ञान।
कभी न अंत अटल युग होगा, होगा साक्षी भारत देश।
संसद संविधान जनमत निधि राष्ट्रनीति संदर्भ स्वदेश।
पाठकों हेतु एक सुन्दर एवं सुसमायोजित साहित्यिक रचना प्रस्तुत करने के लिए युवा रचनाकार को मेरी-मेरी हार्दिक बधाई एवं उनकी अनन्त भविष्यकालीन साहित्यिक काव्यमय यात्रा हेतु कोटिशः शुभकामनाएँ। माँ शारदा के श्रीचरणों में उनकी गतिशील यात्रा हेतु प्रार्थना एवं मंगलकामना।
दृष्टि अटल (खण्डकाव्य) : संजीव द्विवेदी, पृष्ठः100, मूल्य रु0 199 वर्षः 2018, प्रकाशक वर्चुअस पब्लिकेशन, नोएडा उ.प्र. -0-