देओल परिवार की तीसरी पीढ़ी / जयप्रकाश चौकसे
प्रकाशन तिथि : 29 अगस्त 2019
सनी देओल ने अपने पुत्र करण को 'पल पल दिल के पास' नामक फिल्म में प्रस्तुत किया है, जिसका प्रदर्शन अगले माह होने जा रहा है। धर्मेन्द्र ने सनी देओल को राहुल रवैल के निर्देशन में फिल्म 'बेताब' में प्रस्तुत किया था। ज्ञातव्य है कि शेक्सपीयर के नाटक 'टेमिंग ऑफ श्रू' से प्रेरित पहली भारतीय फिल्म दिलीप कुमार और नादिरा अभिनीत मेहबूब खान की 'आन' थी। जावेद अख्तर ने इसी कथा में थोड़ा परिवर्तन करके 'बेताब' लिखी थी। सनी देओल की करण अभिनीत फिल्म के टाइटल से इसके रोमांटिक होने का आभास होता है गोयाकि इस फिल्म में 'ढाई किलो का हाथ, जिस पर पड़ता है, वह उठता नहीं, उठ जाता है' नुमा संवाद नहीं होंगे।
धर्मेंद्र ने बड़ा कठिन संघर्ष किया था। उन्हें पहला अवसर आसानी से नहीं मिला, क्योंकि उनके पिता फिल्म निर्माता नहीं वरन एक किसान थे। फिल्म उद्योग पर प्राय: वंशवाद का आरोप लगता है परंतु डॉक्टर की संतान के डॉक्टर होने की बात नजरअंदाज की जाती है। प्राय: परिवार के व्यवसाय को ही नई पीढ़ी अपनाती है और उसे नई ऊंचाई देने का प्रयास करती है। अभिनेता का पुत्र अपने पिता की सहायता से अवसर पा जाता है परंतु अवाम की पसंद ही उसे सितारा बनाती है। धर्मेन्द्र के बड़े भाई के पुत्र अभय देओल का मिज़ाज़ अलग प्रकार का है और वे देओल परिवार के भव्य बंगले में नहीं रहते। उनका अपना एक फ्लैट है। उनकी अभिनीत फिल्में भी लीक से हटकर बनी हैं। फिल्मकार इम्तियाज अली को उन्होंने ही निर्देशन का अवसर दिया था।
किसी भी परिवार के सारे सदस्य एक-सा नहीं सोचते और यही विचार देश की विविधता के भव्य स्वरूप में सामने आता है। करण को प्रस्तुत करने वाली फिल्म के लिए राहुल रवैल और इम्तियाज अली के नाम पर भी विचार हुआ था परंतु सनी देओल ने स्वयं ही फिल्म निर्देशित करने का फैसला लिया। बतौर निर्देशक सनी देओल का रिकॉर्ड उत्साहवर्द्धक नहीं है परंतु पुत्र के लिए वे कोई कसर नहीं छोड़ेंगे। पृथ्वीराज कपूर ने अपने पुत्रों को प्रस्तुत करने वाली फिल्में नहीं बनाई परंतु राज कपूर ने ऋषि कपूर को लेकर 'बॉबी' फिल्म बनाई। रणधीर कपूर को राज कपूर ने कभी निर्देशित नहीं किया परंतु उन्होंने रणधीर कपूर के निर्देशन में 'कल आज और कल' तथा 'धरम-करम' में अभिनय किया। राज कपूर के निधन के बाद 31 वर्षों में तीनों ने मात्र एक ही फिल्म बनाई। इसलिए स्टूडियो बेचा गया। फिल्म विरासत का एक ऐतिहासिक केंद्र नष्ट हो गया। अवाम को इसका दु:ख है परंतु वारिस मुतमइन हैं। सुविधाएं इसी तरह प्रतिभा और परम्परा को डुबा देती हैं।
सनी देओल की पत्नी का कोई फोटोग्राफ आज तक कहीं प्रकाशित नहीं हुआ है। उन्होंने निजता की रक्षा की है। अब करण देओल के नाक-नक्श से सनी देओल को हटाकर उनकी पत्नी के चेहरे-मोहरे के बारे में अनुमान लगाना होगा। इस तरह पहचान में गणित का प्रवेश होता है। फिल्म उद्योग में तो दो और दो पांच भी होते हैं। फिल्म घराने संगीत घरानों से अलग होते हैं। कई वर्ष पूर्व टेलीविजन पर प्रसारित एक संगीत प्रतियोगिता के फाइनल में पहुंचा एक प्रतियोगी पाकिस्तान से आया था और दूसरा भारत का था। फाइनल जीतने वाले को मोटी रकम मिलने वाली थी परंतु पाकिस्तान से आए गायक ने यह कहकर गाने से इनकार कर दिया कि उनका प्रतियोगी उन्हीं के ग्वालियर घराने का गायक है। संगीत घरानों की परम्पराएं अलग होती हैं। कला का इंद्रधनुष सीमाओं को तोड़ते हुए उजागर होता है। आज तो इंद्रधनुष के रंगों में ही एक रंग को अन्य से अधिक चटख और बेहतर सिद्ध करने की होड़ लगी हुई है।
बहरहाल, सुना है कि सनी देओल ने अपने पुत्र करण को प्रस्तुत करने वाली फिल्म एक प्रेम-पत्र की तरह रची है, जो संभवत: उनकी पत्नी के लिए लिखा गया है। यह भी हो सकता है कि फिल्म अपने पिता या उनके स्कूल शिक्षक पिता के प्रति आदरांजलि हो।