देखते रहिये क़यामत तक... / कमलेश पाण्डेय

Gadya Kosh से
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परलोक के मुख्य-द्वार पर यमदूतों के बीच एक जीव मजमा-सा लगाए खड़ा है. वो डुगडुगी तो नहीं बजा रहा पर मदारियों की तरह चीख-चीख कर लगातार कुछ बोले जा रहा है. हरेक बात में पहले ये कहता है कि- “देखिये मैं आपको बताना चाहूँगा”, फिर कुछ आयं-बायं-सांय बोलता है, आगे सांय-बायं-आयं. यानी एक ही बात के लफ़्ज़ों की तरतीब बदल कर दुहराता है. आखिर में अपने साथ किसी अदृश्य कैमरामैन के होने का ज़िक्र कर अपने नाम की घोषणा करता है. यमदूतों की हा-हा-ठीठी का उसके जोश पर कोई असर नहीं है. चित्रगुप्त जी उसकी फाइल मंगवा कर पलट रहे हैं. अचानक गुर्रा कर पूछते हैं कि कौन लाया है बे इसको. सामने आये यमदूत को घुड़कते हैं तो वो बगलें झाँकने लगता है. वे अपनी लम्बी दाढ़ी के भीतर ही बुडबुडाते हैं- साले मृत्युलोक की सारी ओछी हरक़तें सीख गये हैं. ले आया गिफ्ट लेकर और लिफ्ट देकर किसी को. पर प्रकट में कहते है- हटा इसे मेरे सामने से, फेंक आ धरती पर. इसके दिन पूरे नहीं हुए अभी! जीव धरती के एक धरना-प्रेमी धुरंधर नेता की मुद्रा में बैठ जाता है. कहता है- मैं नहीं जाता, जब तक मेरी रिपोर्टिंग पूरी नहीं हो जाती. पहले ये बताईये कहाँ भेजा है आपने हमारी श्रीजी को. बस दो चार बाइट्स ही चाहिए. उनके मरने की वज़ह और कुछ पर्सनल सवाल पूछूंगा. हमारा चैनल धरती पर नम्बर वन है, इसलिए ये न्यूज़ तो हमीं ब्रेक करेंगे. लगे हैं सब साले कहानियां गढ़ने में. आपको भी फुटेज मिलेगा. आइये न! इंटरव्यू कर लें. शाप देने के इरादे से बाबा ने आँखे लाल की ही हैं कि इस जीवपुंगव की गंध सूंघते हुए रिपोर्टिंग के आदिपुरुष नारदजी प्रकट हो गए हैं. उन्हें धरती पर चैनलों के बीच गलाकाट प्रतियोगिता से आई रिपोर्टिंग-क्रान्ति का कुछ कुछ ज्ञान है. इस जीव की ऊर्जा से भरी उछल-कूद देख कर वे मुदित भये हैं और स्वयम भी रिपोर्टरावतार में आ गये हैं. इस स्वजातीय जीव का इंटरव्यू लेने के इरादे से उसे बरगला कर एकांत में ले आये हैं. जीव बड़बड़ा रहा है- यहाँ तो कोई सुनता ही नहीं और वहां सारी दुनिया गला फाड़ के चिल्लाती रहती है ज़रा मेरी सुन ले प्रभु. अभी ऐसा क्या मांग लिया मैंने, श्रीजी को कौन-सा लोक अलाट हुआ, ये बताने में क्या घिस जाएगा. आगे तो अपन सम्हाल ही लेंगे. अथ नारद-रिपोर्टर संवाद- नारद- हे वत्स! चैनल रिपोर्टिंग के प्रति तेरी आस्था से मैं प्रसन्न हुआ. सुना था कि रिपोर्टिंग के लिए कुछ भी करेगा- तुम लोगों का मोटो है. सबसे पहले ख़बर देने के लिए तुम मरने-मारने को तैयार रहते हो, ये तो तुमने कर ही दिखाया. पर सोचो, क्या खबर जुटाने परलोक तक पहुँच आना रिपोर्टिंग कर्म की अति नहीं है?

रिपोर्टर: एक असली रिपोर्टिंग की कीमत तुम क्या जानो नारदजी. सिंगल स्टेट-रन चैनल चलाते हो. बस क्षीर सागर और इंद्र के दरबार में ट्रांसमीशन है. यहाँ-वहां घूमे, कुछ चटपटी ख़बरें उड़ा कर एक बुलेटिन रच दिया. फिर वीणा टुनटुना के सुना दिया. ज़रा हमारे यहाँ आईये, देखिये कैसा कम्प्लीट कवरेज़ देते हैं हम. मामले को एकदम ए टू जेड रगड देते हैं. हमारे रचे हुए रिपोर्ट करोड़ों लोग फटी-फटी आँखों से दिन रात देखते हैं. हमें भरोसा है कि ये आँखें कभी नहीं खुलेंगी, पर वो ज़ुरूर देखेंगी जो हम दिखाएँगे. ना- ऐसा क्या कर देता है तू रे मानव? रि.- हम फील के साथ रिपोर्टिंग करते हैं. खबर पेड़ की हो तो पेड़ पर चढ़ जाते हैं, सुरंग की हो तो सुरंग में घुस जाते हैं. सीधे स्पॉट पर जाकर खांटी ख़बर लाते हैं. संभव हो तो स्पॉट को ही उठाकर स्टूडियो ले आते हैं, नहीं तो उसका मॉडल तो खड़ा कर ही देते हैं. खबर की हर परत को उधेड़ना और खोल-खोल के दुनिया की हर आँख के सामने परोस देना ही हमारा मिशन है. हकीकत न जुगाड़ पायें तो कल्पना की आखिरी हद तक जा कर अपना मिशन पूरा करते हैं. रिपोर्टिंग में हमने हकीकत और फ़साने का फर्क ही खत्म कर दिया है. मंगल यान के कवरेज़ के लिए हमने अपने स्टूडियो को ही मंगल ग्रह बना दिया था. हर खबर अब नाट्य-शास्त्र के सिद्धांतों के हिसाब से दिखाई जाती है. हमारा एंकर सूत्रधार की तरह बैक-ग्राउंड म्यूजिक, ड्रामेटिक कैप्शंस, विडियो-क्लिपिंग्स और एक्टरों के साथ न्यूज़ को स्क्रिप्ट करता है और एक नाटक की तरह पेश करता है. हमारे टाइटल और कैप्शंस ड्रमैटिक और पोएटिक होते हैं. दर्शक को एकदम असली वाली फील आती है. वो पूरी तरह एंटरटेन होता है. ना- किन्तु समाचार तो एक सूचना-भर है, जिसकी जानकारी दे देना पर्याप्त है, इसमें मनोरंजन तत्व की क्या आवश्यकता ? रि- रेडियो और दूरदर्शन-युग से आगे चलिए नारदजी! अब सब कुछ ग्लोबल है. हम सीएनएन को फॉलो करते हैं. ये लोग घटना से पहले ही हर स्पॉट पर मौजूद होते हैं, आप की तरह अन्तर्यामी टाइप. सोचिये, श्रीजी के बारे में पहले ही पता होता तो वहां कैमरा-वैमरा लगा के सब लाइव दिखा सकते थे. इन्वेस्टिगेट करने के लिए मुझे क्यों अपनी शाहदत देनी पडती. हमारा बस चले तो हम खबरों, सीरियलों और फिल्मों का फर्क ही मिटा दें. उनकी बॉक्स ऑफिस है तो हमारी भी टीआरपी है. इसलिए जब असली खबरों का अकाल पडा होता है तो हम खुद ही कोई काण्ड रच लेते हैं. पर भला हो अपनी दुनिया का, अब मज़ेदार कांडों की कोई किल्लत नहीं. कुछ दिन हुए किसी धरने में एक बन्दा एकदम पेड़ से झूल गया. मैंने सबसे अच्छे एंगल से उसे शूट कर चैनल पर लाइव दिखाया था. ना- पर क्या उस प्राणी को लटकने से बचना तेरा पहला धर्म नहीं था दुष्ट? आखिर तुम लोगों की रूचि पाप-कर्मों के प्रसार में ही क्यों है? मृत्यु के बदले जीवन क्यों नहीं दिखाता? रि- आप तो रहने ही दीजिये. स्कैंडल रिपोर्ट करने में हम आपको ही गुरु मानते हैं. खबर को सेंसेशनल बनाने के लिए बन्दों और इवेंट्स को मेन्युपुलेट करने में आपका कोई जवाब नहीं. जब नेताओं से बाईट्स लेनी होती है तो हम आपके ही फार्मूले यूज़ करते हैं, यानी इसकी बात उसके मुंह में डाल देते हैं. सनसनी ही बिकती है गुरूजी. सिर्फ खबरे ही क्यों, हर स्लॉट का यही फार्मेट है. फिर स्लॉट ही कितने हैं. चैनल तो विज्ञापन दिखाने के लिए खुले हैं. उनके बीच जो दस-पांच मिनट निकलते हैं, उन्हीं में सारा खेल दिखाना है. चैनल के सेठजी को टीआरपी मांगता, जो जिंदगी-फिन्दगी के कवरेज़ से तो नहीं मिलता. रेप, लूट, ह्त्या, खौफ, अंधविश्वास, भूत-प्रेत, अफवाहें और भ्रम ही वो कच्चा माल है जिसे हम अपनी कल्पनाशीलता से एक मस्त खबर में बदल सकते हैं. ना- पर हे रिपोर्टर! तेरी श्रीजी की ईहलीला तो समाप्त हो चुकी. पोस्टमार्टम भी संपन्न हो गया. अब उनकी राख कुरेदने के पीछे तेरी जुस्तजू क्या है? रि- अरे रिपोर्टरों के ऋषि महाराज, आखिर दर्शक क्या देखना चाहता है? हमारा ज़वाब है- वही जो हम चाहते हैं कि वो देखना चाहे. स्लम में फैली महामारी के बदले एक स्टार दम्पति के नन्हें पुत्र को कब्ज़ होने की खबर दिखाना बेहतर है क्योंकि इससे सेठ, सरकार और प्रशासन तीनों खुश रहते हैं. हाँ, कभी-कभी गाँव के स्कूल के मिड-डे-मील में छिपकिली निकल आये तो मनोरंजन के लिहाज़ से हम उसे भी दिखा देते हैं.

ना- तेरे तर्क सुन कर मुझे ऐसा प्रतीत हुआ कि तेरी सम्वेदनाएँ मर चुकी हैं. तू त्रासदी, दुःख, यंत्रणा, पीड़ा, शोषण यहाँ तक कि मृत्यु को भी तमाशे की तरह देखता-दिखाता है. रि- आपको क्या लगता है हम प्लूटो से आये एलिएंस हैं? टीआरपी उसी जनता से बनता है जो शरीर में आग लगा कर, एक्सीडेंट से सडक पर पड़े या गुंडों के हाथों पिटते मर रहे आदमी को बचाने नहीं दौड़ती, मोबाइल से उसका विडिओ बनाने लगती है. हमारी तो फिर भी रोज़ी-रोटी है, वे क्या इन फोटो-विडियो का अचार डालते हैं? सोशल मीडिया में हमारी तरह ही ब्रोडकास्ट करते हैं. ख़बरों के अलावा ये जनता कटखनी बिल्लियों की तरह लडती सास-ननद-जिठानियां, इच्छाधारी नागिन और भूत-प्रेत पसंद करती है. इसलिए हमारी रिपोर्टिंग में इसी पसंद की छाप होती है. बाकी दिखाने के लिए क्या-क्या न हम दिखा देते कि दुनिया देखती चली जाती, जो वो यों भी इन्टरनेट और जाने कहाँ-कहाँ खोज के देख ही लेती है. हम रिपोर्टरों के आइडियल होकर आप इत्ते इमोशनल क्यों होते हैं. मेरी हेल्प करें. इससे पहले कि किसी और चैनल का रिपोर्टर यहाँ पहुंचे प्लीज़ मेरा काम करा दें. श्रीजी से मिलने के लिए पास जुगाड़ दें. बदले में धरती से जब भी कोई न्यूज़ चाहिए तो बस टिंकल दीजिये. आपके फोन पर पर इंस्टेंट न्यूज़ ब्रेक कर दूंगा. नोट: इस रिपोर्टर की प्रतिभा पर नारदजी ऐसे मोहित हुए हैं कि उसे अपना असिस्टेंट रख लिया है. उधर उसके चैनल पर ये घोषणा आ रही है कि श्रीजी के परलोक पहुंचने पर क्या हुआ ये जानने के लिए देखते रहिये ‘क़यामत तक’...