देवदास-पारो और सार्त्र-सिमन द ब्वू / जयप्रकाश चौकसे

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देवदास-पारो और सार्त्र-सिमन द ब्वू
प्रकाशन तिथि : 08 नवम्बर 2018


शरतचंद्र के उपन्यास 'देवदास' से प्रेरित बारह फिल्में विभिन्न भाषाओं में बन चुकी हैं। हिन्दुस्तानी भाषा में ही सहगल अभिनीत 'देवदास' के कैमरामैन रहे बिमल रॉय ने दिलीप कुमार अभिनीत 'देवदास' निर्देशित की। संजय लीला भंसाली की शाहरुख खान अभिनीत 'देवदास' रंगों और ध्वनि की होली की तरह रची गई फिल्म थी। इस रचना की पैरोडी भी की गई है। सुधीर मिश्रा 'देव डी' और 'दास देव' नाम से बना चुके हैं। इन दिनों मुंबई में 'देवदास' नाटक के रूप में मंचित किया जा रहा है। शरतचंद्र का लिखा यह उपन्यास लिखे जाने के पंद्रह वर्ष पश्चात प्रकाशित हुआ और उपन्यास में देवदास सतरह वर्ष का है और पारो चौदह वर्ष की है तथा चंद्रमुखी बाईस वर्ष की है। अब तक बनी सभी फिल्मों में अधेड़ वय के नायक ने भूमिका का निर्वाह किया है। पैंतीस-चालीस वय के व्यक्ति के दिल टूटने पर वह दर्द नहीं हो सकता, जो सतरह वर्ष के युवा के दिल टूटने पर होता है। अत: इस तरह 'देवदास' एक बार और फिल्माई जा सकती है।

देवदास और पारो बचपन से एक-दूसरे के मित्र रहे हैं परंतु उनका विवाह नहीं हो पाता। रोमियो-जूलियट, शीरीं-फरहाद, लैला-मजनूं की तरह देवदास-पारो भी त्रासद प्रेम कहानी ही है। उपरोक्त सभी पात्रों की शादियां हो जाती तो वे एक-दूसरे से लड़ते रहते। उनका चरित्र-चित्रण ऐसा ही किया गया है कि वे अपनी धुन के इतने पक्के थे कि एक-दूसरे को शायद सहन ही नहीं कर पाते। इस तरह देखें तो विरह को गरिमा से वहन करना ही सच्चा प्रेम है। विवाह नामक संस्था विरोध के बावजूद साथ बने रहने की कला है। सुखी दाम्पत्य एक यूटोपिया है और दोनों पात्रों के अभियन कौशल पर ही इसकी सफलता आधारित है। इस कौशल को प्रेम कहकर हम गरिमा प्रदान करते हैं। जीवन की गाड़ी के दो पहियों की तरह है यह रिश्ता। एक पहिए की साइकिल केवल सर्कस में दिखाई जाती है। विवाह संस्था समाज संचालन के लिए आवश्यक संस्था है। विवाहहीन समाज की कल्पना भी नहीं की जा सकती है। वह अवैध समाज होता।

सारे विरोध के बावजूद प्रेम ही इस संस्था का ईंधन है और प्रेम के तेल से ही यह दिया प्रकाशवान बना रहता है। शेक्सपीयर का हेमलेट ही सबसे अधिक लोकप्रिय पात्र है और उससे प्रेरित फिल्मों की संख्या भी दर्जन भर से अधिक ही है। हेमलेट की त्रासदी यह है कि वह जानता है कि उसकी मां और चाचा ने मिलकर उसके पिता की हत्या की है। उसकी दुविधा यह है कि वह बदला लेने के लिए अपने चाचा और मां को कैसे मारे? कुरुक्षेत्र में अर्जुन की दुविधा भी यही थी कि वह अपने ही परिवार के खिलाफ युद्ध कैसे करे? पिता समान भीष्म पितामह पर तीर कैसे चलाएं? अर्जुन को परामर्श देने के लिए श्रीकृष्ण मौजूद थे परंतु हेमलेट और देवदास की सहायता के लिए श्रीकृष्ण उपलब्ध नहीं थे। दुविधाग्रस्त, संशयग्रस्त पात्र हमेशा लोकप्रिय होते हैं, क्योंकि अवाम भी दुविधाग्रस्त रहता है। जाने क्यों वह उस नेता को मत देने के लिए बाध्य हो रहा है, जिसने उसके जीवन को असहनीय बना दिय है। अनिश्चय ग्रस्त पात्र लोकप्रिय होते रहे हैं।

यह भी आश्चर्यजनक है कि योद्धा और पराक्रम करने वालों की प्रेम कहानियां अस्तित्व में नहीं है। महाराणा प्रताप, शिवाजी महाराज जैसे योद्धाओं का प्रेम उनके कार्य से ही रहा है। महान भगत सिंह ने तो देशप्रेम के ऊपर पारिवारिक रिश्तों को भी नहीं रखा। जो देशप्रेम के लिए फांसी पर चढ़ते हैं वे दूल्हा बनकर घोड़ी पर नहीं चढ़ते।

महान लेखक जां पॉल सार्त्र और उतनी ही प्रतिभाशाली सिमॉन द ब्वू हमेशा साथ-साथ रहे परंतु उन्होंने विवाह नहीं किया। इस लंबे समय में कभी-कभी सार्त्र अन्य महिलाओं के प्रति आकर्षित हुए और सिमॉन दब्वू भी अन्य पुरुषों की ओर आकर्षित हुईं। उन दिनों को सार्त्र और सिमॉन ने क्रिकेट के लंच ब्रेक की तरह ग्रहण किया। उनके रिश्ते में कोई शर्त नहीं थी। इस तरह की प्रेम कथा उनके पहले और उनके बाद घटित नहीं हुई। शायद इसी बिना शर्त वाले रिश्ते के कारण दोनों ही खूब सृजन कर पाए।