देवदास की चंद्रमुखी और हरियाणवी कोमल / जयप्रकाश चौकसे

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देवदास की चंद्रमुखी और हरियाणवी कोमल
प्रकाशन तिथि :25 मई 2015


अजय ब्रह्मात्ज से जानकारी मिली कि किसी दौर में बनारस के कलेक्टर ने एक कवि सम्मेलन पर रोक लगाई तो कवि कुछ दूरी पर बसे चंदोसा चले गए, जहां कानूनी प्रबंध लागू नहीं होता था। सारे लाउड-स्पीकर काशी की ओर रखे गए और बनारस निवासियों ने कवि सम्मेलन लाउड-स्पीकर पर सुना। आनंद राय की 'तनु वेड्स मनु रिटर्न्स' में एक पात्र विरोध की मुद्रा में कहता है, 'ऐसी तैसी भूरेलाल की'। संदर्भ नहीं मालूम होने के कारण इस संवाद का महत्व कोई समझ नहीं पा रहा है परंतु बनारस के दर्शक अवश्य प्रसन्न होंगे।

इस प्रकरण में दो तथ्य हैं- एक तो यह कि आनंद राय और उनके लेखक हिमांशु शर्मा उत्तरप्रदेश के हैं और माटी से जुड़े कलाकार हैं। यही कारण है कि उनके रचे पात्र मिट्‌टी से उगे पौधों, वृक्षों की तरह लगते हैं जबकि विदेशी प्रभावग्रस्त फिल्मकारों के पात्र धरती में ऊपर से धंसाए हुए खंजर की तरह होते हैं। हर देश का विशुद्ध देशज सिनेमा ही सार्थक होता है और आनंद राय, तिग्मांशु धूलिया, सुजॉय घोष, शूजीत सरकार और शोनाली बोस, अजय बहल जैसे फिल्मकारों के सक्रिय रहते हॉलीवुड का अश्वमेध सफल नहीं होगा। सारी तकनीकी चकाचौंध हरियाणवी कुसुम से पराजित होगी।

दूसरा तथ्य यह है कि कवि स्वभाव से ही व्यवस्था विरोधी होता है और कविता के बचे रहने में ही मानवता की रक्षा हो पाएगी। शायद इसी कालजयी सत्य के लिए प्लेटो ने कहा था कि जब कवि राजा होगा तब सबको न्याय मिलेगा। इतिहास गवाह है कि कवि के मुखौटे में कई भांड राजा हुए हैं। कोई आश्चर्य नहीं कि इजरायल के डेविड की सलाह पर पश्चिम की शिक्षा संस्थाओं ने साहित्य, इतिहास व दर्शनशास्त्र के विभागों का बजट घटा दिया और एक करोड़ चौतीस लाख अप्रवासी भारतीय लोगों की डॉलर ताकत के कारण भारतीय शिक्षा के पाठ्यक्रम में पश्चिम की भोंडी नकल है। शायद इसी कारण हमारा युवा दर्शक फास्ट और फ्यूरियस हो गया है और स्वयं को अवेन्जर मान बैठा है। भारतीय सिनेमा में ठेठ हिंदुस्तानी ठाठ वाले आनंद राय और साथियों से बड़ी उम्मीद बनती है, बकौल राज शेखर 'उम्मीद पर जीते हैं।'

प्राय: यह देखा गया है कि अंग्रेजी भाषा की समालोचना और देशी भाषाओं के फिल्म समीक्षकों के नज़रिये में ही अंतर होता है। सूरज बड़जात्या की 'विवाह' को उन्होंने दकियानूसी बताया है और हमने विशुद्ध प्रेम-कथा क्योंकि नायक अधजली कन्या से विवाह करके हनीमून का सारा समय उसकी सेवा में लगाता है। इस बात का यह अर्थ नहीं कि सूरज की अन्य फिल्में भी इस तरह की हैं। यह अत्यंत प्रसन्नता की बात है कि सारे भारत के समीक्षकों ने 'तनु वेड्स मनु' की एकमत से प्रशंसा की है और कंगना की दोहरी भूमिकाओं को विलक्षण माना है। अनुपमा चोपड़ा लिखती हैं कि हरियाणवी कोमल आपके हृदय में बस जाती है। 'मिरर' के राहुल देसाई और खाकसार ने इस बात पर ध्यान दिया है कि आनंद राय ने प्रारंभ में 'सुन साहिबा सुन' और अंत में 'जा जा रे बेवफा' का इस्तेमाल अत्यंत सटीक और सार्थक ढंग से किया है।

क्या हम कल्पना करें कि शरत के 'देवदास' के देवदास व पारो का विवाह हो जाता है। पारो और देवदास भी यकीनन तनु और मनु की तरह आपस में टकराएंगे और बात दूर तलक तक पहुंचेगी। देवदास अपना दूसरा विवाह चंद्रमुखी से करना चाहते हैं और बिमल रॉय के संस्करण में राजेन्द्र सिंह बेदी का चंद्रमुखी के लिए संवाद था, 'देवदास पारो के विरह में तुम्हें तड़पता मैंने देखा है और तुम्हारे दर्द ने ही मुझे पारो से परिचित कराया, मैं भी पारो को चाहने लगी हूं। अत: चंद्रमुखी ही पारो और देवदास को फिर से मिलाएगी। कुछ इसी तर्ज पर हरियाणवी खिलाड़ी कोमल मनु और तनु को मिलाती है। इसका यह तात्पर्य नहीं कि आनंद व हिमांशु देवदास से प्रेरित हैं। उनकी जड़ें उस जमीन में हैं, जिसके किसी छोर पर शरत तो किसी छोर पर राजिंदर सिंह बेदी जन्म लेते हैं। सृजन की कोपलें कैसे कहां फूटती हैं, यह जानना कठिन है।