देवर-भाभी / सुरेश सौरभ
जब उसका पति मर गया तब उसका और उसके दो छोटे-छोटे बच्चों का निर्वाह मुश्किल होने लगा, अब उसका संदर्भ उसके देवर से जुड़ने लगा, जिसके फलस्वरुप प्रेम प्रसंगों के पेंच, ऊंचे गगन में हालातों की पतंगो से शुरु हुए।
तभी देवर की शादी के रिश्ते आने लगे, उसके घरवालो ने शादी का उस पर दबाव बनाना शुरु किया।
अब हालातो की पतंगें ऊंचे आकाश में उड़ते हुए नई व्याख्या बनाने को आतुर थीं, पर परिवारी जन उनकीं सद्दी को नीचे से काटने की घात में लगे हुए थे, जब उन्हें लगा उनकी व्याख्या पूरी अब नहीं हो पायेगी, तब उन्होंने ज़हर खाकर जान दे दी और अपने प्रेम की दुखद व्याख्या बना डाली।
इस प्रेम व्याख्या के निष्कर्ष में निकले दो छोटे-छोटे बच्चे, अब पूरे समाज को मुंह चिढ़ा रहे थे और अब उनके पूरेे परिवार का रचनात्मक सौन्दर्य वीभत्स हो गया था और देवर-भाभी का अमर प्रेम समाज की रसात्मक अभिव्यक्ति बन चुकी थी।