देवी जोन / गणेशशंकर विद्यार्थी

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फ्रांस संसार का पूज्‍य स्‍थान है। यही नैपोलियन की अभ्‍युदय भूमि है। यही साम्‍य और भ्रातृत्‍व का घोषणास्‍थल है। फ्रांसीसी विप्‍लव के मुकाबले में विप्‍लव आज तक संसार-भर में कहीं भी नहीं हुआ। फ्रांस की भाषा आज सार्वदेशिक भाषा है। फ्रांस का गौरव आज भी पृथ्‍वी भर में व्‍याप्‍त है। सभ्‍यता और सुशिक्षा में, भद्रता और शिष्‍टाचार में, उन्‍नतेच्‍छा और शक्मित्‍ता में फ्रांस, जगत का आदर्श है। वाटरलू और सिदान युद्ध के बाद भी वह आज संसार-भर में अपनी टक्‍कर का एक ही है। उसकी पेरिस नगरी के सौंदर्य और तड़क-भड़क से संसार की कोई भी राजधानी बढ़ी-चढ़ी नहीं है। फ्रांस संसार में अतुल सम्‍मान से पूजनीय है।

प्राचीन रोम, ग्रीस, भारत और मिस्र के पतन की याद आते ही सभी इतिहासवेत्‍ताओं के मन व्‍यथित हो जाते हैं, मगर फ्रांस मानो अब भी नया ही है। फ्रांस की छाती पर जितनी ही चोटें लगीं, उतनी ही बार वह नया ही होता गया। संसार ने देखा कि उसका पतन सदैव के लिए हुआ, किंतु थोड़े ही काल में संसार उसके नवीन उत्‍थान को देख कर चकित हो गया है। संसार ने उसे डूबते हुए छोड़ा, मगर वह दूसरे ही दिन उदय वाले सूर्य के साथ हिमालय की चोटी पर दिखायी दिया।

फ्रांस अपूर्व क्‍यों है? पेरिस नगरी के लिए नहीं, और नैपोलियन की लीला-भूमि, साम्‍य-घोषणा या फ्रांसीसी विप्‍लव के कारण नहीं। फ्रांस इसलिए भी अपूर्व नहीं है कि उसने प्रजातंत्र शासन चलाया, बल्कि फ्रांस अपूर्व है एक कन्‍या के उत्‍पन्‍न होने के कारण। प्राय: पाँच सौ वर्षों के बाद यह बात संसार ने एक मत से स्‍वीकार कर ली कि ऐसी कन्‍या को संसार के किसी देश ने आज तक उत्‍पन्‍न नहीं किया। फ्रांस संसार में पूज्‍य है किसान की लड़की जोन को पैदा करने के कारण। वह अनंत काल तक इसीलिए भक्तिभाव से देखा जायेगा।

अमेरिका पूज्‍य है इमर्सन और वाशिंगटन के लिए, जर्मनी पूज्‍य है गेटे और बिस्‍मार्क के लिए, चीन पूज्‍य है कन्‍फ्यूशस के लिए, रसिया पूज्‍य है टालस्‍टाय के लिए, भारत पूज्‍य है गौतम और प्रताप के लिए, इंग्‍लैंड पूज्‍य है मिल्‍टन और कार्लाइल के लिए, अरब पूज्‍य है मुहम्‍मद के लिए, पेलिस्‍टाइन पूज्‍य है ईसा के लिए, इटली पूज्‍य है मैजिनी के लिए, किं‍तु फ्रांस पूज्‍य है वाल्‍टर (वाल्‍तेयर-संपा.) और रूसो के लिए, और खास कर केवल देवी जोन के लिए। जोन जगत्पिता की एक अपूर्व सृष्टि। ऐसी सृष्टि और कहीं हुई है, या नहीं, कौन जाने? कौन कह सकता है कि दरिद्र किसान की लड़की और जगत के सर्वश्रेष्‍ठ रत्‍नों में! जोन का सम्‍मान इन साढ़े-चार शताब्दियों में भी पूरा न हो सका। उसकी प्रशंसा में लोगों की जबान दबी नहीं। किंतु कालचक्र ने पलटा खाया। सन् 1909 में रोम के पोप ने जोन ऑफ आर्क का महागौरव बड़े ही सम्‍मानपूर्वक स्‍थापित किया। जिन धर्म-याजकों ने अंग्रेजों के पैरों तले बैठ कर, निष्ठुरता से अपमान और राक्षसी अत्‍याचारों के साथ उसको जीते-जी अग्नि में जला दिया था, उन्‍हीं के वंशधरों ने आज उसे ईसा के पवित्र सिंहासन पर सम्‍मान के साथ बिठाया। इतिहास के पन्‍ने उलट जाइए, यह बात अपूर्व ही मिलेगी कि पाँच सौ वर्षों के बाद जोन सेंट कहलाई। इस समय उसी जोन को, जिसका लोग नाम तक लेने से भी हिचकते थे, आज खीस्‍ट जगत देवता के तुल्‍य पूजता है। इतने दिनों के बाद उसके शत्रुओं को स्‍वर्ग में अपना मुख लज्‍जा से नीचा करना पड़ा। धिक्‍कार है ऐसी निष्‍ठुरता और उसके दासों को!

पृथ्‍वी पर सबसे सुंदर कौन है? स्‍वदेश के लिए आत्‍मोत्‍सर्ग ही सबसे सुंदर है। हम अपने नहीं, बल्कि अपने देश के, हम अपने भाइयों की पदरज के समान हैं - यह शिक्षा ही संपूर्ण शिक्षाओं की सार शिक्षा है। इस शिक्षा की जय घोषणा करने के लिए ही जोन ने जन्‍म धारण किया था। जिसके स्‍वार्थ-त्‍याग की उन्‍मादिनी शक्ति से एक दिन सारा फ्रांस मतवाला हो गया था, जिसके इशारे से एक दिन फ्रांस के असंख्‍य मनुष्‍य घर छोड़ कर स्‍वदेश के लिए प्राण न्‍योछावर करने को दौड़ पड़े थे। उस देश-कन्‍या की याद आते ही शरीर के रोंगटे खड़े हो जाते हैं और आँखों से पानी बहने लगता है। उसी कृषक-दुहिता की कहानी संक्षेप में भी सुनने वालों को इस घोर दुर्दिन में भी स्‍वार्थ-त्‍याग की बहुत कुछ शिक्षा मिल सकती है।

1412 ई. में देवी जोन का जन्‍म फ्रांस के उत्‍तर-पश्चिम कोण में, एक किसान के घर में हुआ था। उस समय शिक्षा का प्रसार न था। सुशिक्षा केवल पुरोहितों की ही बपौती समझी जाती थी। इसी कारण से जोन को भी कोई उच्‍च शिक्षा नहीं मिली थी। लड़कपन से ही जोन एकांत-उपासना में नित्‍य मग्‍न रहा करती। घर का काम-काज वह बहुत ही कम देखती। बाल्‍यकाल से वह देश की दुर्दशा की कहानी बड़े चाव से दूसरों के मुख से सुना करती। यहाँ फ्रांस की तत्‍कालीन अवस्‍था का कुछ हाल बतलाना अनुचित न होगा।

पाँच सौ वर्ष पूर्व, फ्रांस के कितने ही प्रदेश अनेकों छल-बल और उत्‍तराधिकार के सूत्र से इंग्‍लैंड ने अपने हस्‍तगत कर लिये थे। फ्रांस के छठवें चार्ल्‍स की कन्‍या इंग्‍लैंड के पंचम हेनरी को ब्‍याही थी। चार्ल्‍स के स्‍थान पर पंचम हेनरी ही छल द्वारा उत्‍तराधिकारी बन बैठा। हेनरी की मृत्‍यु के बाद छठा हेनरी फ्रांस के अधिकांश प्रदेशों का राजा हुआ। इन दिनों विदेशी शासन की कठोरता से फ्रांस की प्रजा यहाँ तक अस्थिर हो रही थी कि बीच-बीच में छोटे-मोटे कितने ही बलवे हुए। बालक छठे हेनरी के सिंहासन पर बैठने के पूर्व एक बार खूब जोर-शोर से बलवा हुआ था। बालक हेनरी का राज्‍य बेडफोर्ड और गलाउसेस्‍टर के ड्यूक चलाते थे। इधर छठे चार्ल्‍स के पुत्र सप्‍तम चार्ल्‍स के दल के लोग बीच-बीच में शासन-कार्य में बड़े-बड़े विघ्‍न डालने लगे। उस समय फ्रांस सैनिकों से पूर्ण था।

तेरह-चौदह वर्ष की अवस्‍था में ही जोन ने फ्रांस को विदेशियों के चंगुल से निकालने का मंसूबा कर लिया था। इधर सप्‍तम चार्ल्‍स के राज्‍य-प्राप्ति की आशा भी निर्मूल हो गयी थी। जोन को फ्रांस के उद्धार के लिए ईश्‍वरीय आज्ञा हुई कि फ्रांस तेरी ही सहायता से इंग्‍लैंड के चंगुल से फिर निकल सकेगा, और इस पर उसने प्रतिज्ञा की कि आजन्‍म क्‍वाँरी रह कर देशोद्धार की चेष्‍टा में ही अपना जीवन व्‍यतीत करूँगी। किंतु परिवार ने उसकी इस बात का घोर विरोध किया। उसके पिता ने उसे इस विचार से हटाने के लिए यहाँ तक प्रतिज्ञा की कि जरूरत पड़ने पर उसे नदी में डूबोकर मार तक डालूँगा। इसी समय एक अमीर आदमी जोन के साथ विवाह करने का प्रार्थी हुआ। माता-पिता उसके प्रस्‍ताव से सहमत हो गये, किंतु जोन किसी तरह से भी राजी नहीं हुई। उस अमीर ने यह बात फैला दी कि जोन ने विवाह के लिए अपनी सम्‍मति दे दी है। मामला अदालत तक गया, मगर वहाँ भी जोन की ही जय हुई। जोन की इस दृढ़ प्रतिज्ञा और उसकी इस सच्‍चाई पर सारा फ्रांस मोहित हो गया।

इसी समय बेडफोर्ड के ड्यूक ने फ्रांस पहुँच कर बरगंडी की सेना की सहायता से एक छोटी-सी फौज का टुकड़ा चार्ल्‍स के विरुद्ध लड़ने के लिए भेजा। कितने ही छोटे-छोटे शहर हथिया लेने के बाद चार्ल्‍स के प्रधान अड्डे आर्लिंस पर आक्रमण करने का उद्योग होने लगा। इस आक्रमण पर ही चार्ल्‍स के भाग्‍य का निपटारा था। 1428 के अक्‍तूबर महीने में आर्लिंस घेर लिया गया। पहली ही मुठभेड़ में अंग्रेजो की जीत हुई, पर उनका सरदार सलिसबरी इसी युद्ध में मारा गया। उसके शून्‍य पद पर सफोक का अर्ल नियत हुआ। अर्ल ने नगर को घेर लिया और बाहर से अन्‍न न जाने दे कर दुर्भिक्ष से नगर को वश में करने की युक्ति ढूँढ़ निकाली। आर्लिंस के घेरे जाने के समाचार से जोन बहुत उत्‍तेजित हुई। उसने आर्लिंस-उद्धार के बाद चार्ल्‍स को रिमूस नगर में विधिपूर्वक अभिषिक्‍त करने की प्रतिज्ञा की। उसी समय से जोन राजा से मिलने की चेष्‍टा करने लगी। उसके माता-पिता उसे रोकने लगे और गवर्नर ने भी बाधा डाली। किसी के निषेध को न मान कर अपने संकल्‍प की सिद्धि के लिए जोन को अंत में अपनी जन्‍मभूमि की कुटी को सदा के लिए त्‍यागना पड़ा। जोन अपने मामा डूरेंड लेकजर्ट से अत्‍यंत प्रेम करती थी। घर छोड़ने के बाद सात दिन वह अपने मामा के ही यहाँ जा कर रही। उसने अपने हृदय की सारी बातें अपने मामा से खोल कर कह दीं। फल यह हुआ कि इतने दिनों बाद उसने अपने मामा को अपने सहायक के रूप में पाया। उसके मामा ने उसकी सहायता करने का वचन दिया। उसने गवर्नर से जा कर मुलाकात की, किंतु गवर्नर ने सब बातें हँस कर उड़ा दीं और जोन को उसके माता-पिता के पास भेज देने का उसे परामर्श दिया। जोन सहज में अपने विचार को त्‍याग देने वाली लड़की न थी। उसने इस उपहास पर बिल्‍कुल ही कान न दिया और स्‍वयं जा कर गवर्नर से मिलने की ठानी। मामा साथ गया, पर तो भी गवर्नर उसके हृदय की बात सुनने को राजी न हुआ। जोन रात-दिन ईश्‍वर प्रार्थना में अपना समय काटने लगी। उसका मामा फिर जा कर गवर्नर से मिला। राजा के दर्शनों के लिए उसने एक बार गवर्नर के पैर तक पकड़े थे। इसी बीच में जोन, बेकलर्स आसियाँ से मिली। वहाँ के बहुत-से आदमी उसके सहायक बन गये। जोन और उसके साथियों की बहुत दिनों की निरंतर चेष्‍टा से अंत में गवर्नर भी पसीजा। इसी समय बेकलर्स के दो संभ्रांत व्‍यक्ति जोन के दल में आ कर सम्मिलित हुए। ये ही दोनों उसे राजा चार्ल्‍स के पास ले जाने के लिए प्रयत्‍न करने लगे। देवी जोन की अमानुषिक क्षमता की ख्‍याति चारों ओर फैलने लगी। जोन के मामा ने उसके लिए एक अच्‍छा घोड़ा खरीदा। जोन ने पुरुष के वेश में राजा से मुलाकात करने के लिए यात्रा की। गवर्नर ने यात्री दल को रास्‍ते में किसी प्रकार का कष्‍ट न होने देने का वचन दिया।

जोन के माता-पिता इस खबर को सुन कर यहाँ तक घबड़ा गये कि वे बेकलर्स पहुँच कर जोन को समझाने लगे। पर माता-पिता के आँसुओं से जोन के विचारों में कोई परिवर्तन न हुआ। उसने माता-पिता से क्षमाप्रार्थी हो कर (1429ई. की 13 फरवरी को) शुभ यात्रा शुरू कर दी। उसके साथ केवल छह विश्‍वासी साथी थे। मार्ग के दारूण कष्‍टों को जाने प्रसन्‍नचित से सहने लगी। प्रार्थना ही उसका प्रधान अवलंब था। अब जोन खुल्‍लमखुल्‍ला अपनी बातें फैलाने लगी। जोन के संदेश सुन कर उसके साथी नवीन आशाओं से फूल उठे। इसी समय चार्ल्‍स के ऊपर एक विपत्ति और पड़ी। उसकी सेना अंग्रेजों से पराजित हुई।

चिनोन नाम का स्‍थान जोन से राजा की मुलाकात के लिए निश्चित हुआ। पहले जोन की अच्‍छी तरह की परीक्षा की गयी। राजा के छद्म वेश धारण करने पर भी जोन ने उसे पहचान लिया और कहा, "राजन्! ईश्‍वर ने आपको आमूल्‍य जीवन प्रदान किया है।"

राजा ने कहा, "मैं राजा नहीं हूँ। राजा यह बैठे हैं।"

जोन इस भुलावे में न आ कर बोली, "आप ही राजा हैं। मैं कुमारी जोन हूँ। जगत्पिता के आदेश से आपके पास आयी हूँ और घोषणा करती हूँ कि मैं अंग्रेजो के हाथ से राज्‍य का उद्धार करके आपको रिमूस में विधिपूर्वक सिंहासन पर बैठाऊँगी।"

राजा ने विस्मित हो कर आर्लिंस की कुमारी को सादर अपने पक्ष में लिया। चिनोन की एक सेना ने जोन के पास से जाते समय बुरे शब्‍दों से उसका दिल दुखाया था। उस पर जोन ने कहा था कि तुम्‍हारी मृत्‍यु निकट है। उसी दिन ही जल में डूब जाने से सारी सेना को प्राण खोना पड़ा। जोन की अलौकिक शक्ति से बहुत-कुछ विस्मित होने पर भी पईटर्स विश्‍वविद्यालय उसकी परीक्षा के लिए निर्दिष्‍ट किया गया। बहुत कुछ अनुसंधान और उस समय की प्रचलित धर्म-परीक्षाओं के बाद निश्चित हुआ कि राजा जोन की सहायता ले सकते हैं।

परीक्षाओं के बाद लोगों का जोन पर बेहद विश्‍वास हो गया। फ्रेंच सेना ने बड़े आदर से उसे अपनी नेतृ (नेत्री-संपा.) बनाया। विश्‍वास, साहस और त्‍याग के बल से उसने फ्रेंच सेना के हृदय में अपनी प्रतिमा स्‍थापित कर दी और उसी के इन गुणों से फ्रांसीसियों ने बड़ी ही वीरता और धीरता से अंग्रेजो को पीछे हटाना आरंभ कर दिया। आर्लिंस की विजय पर देवी जोन आर्लिंस की कुमारी कहलाने लगी। देश का एक बड़ा भाग हाथ में आ जाने पर जोन ने चार्ल्‍स का अभिषेक रिमूस में बड़ी धूमधाम से किया।

अब जोन के जीवन में अपूर्व परिवर्तन शुरू हो गया। पहले का तेज, साहस, अध्‍यवसास और दृढ़ प्रतिज्ञा में यद्यपि कोई कमी नहीं आयी, पर तो भी उसके बाद से 'मैं विधाता के आदेश से कार्य करती हूँ' यह विश्‍वास उसमें न था, और वह सेनापतियों की मर्जी के खिलाफ कोई काम न करती थी।

जय के बाद जय आ कर चार्ल्‍स के सामने सिर झुकाने लगी। शहर के बाद शहर उसके हस्‍तगत होने लगे। जोन ने यह बात देखी कि जीत के अभिमान से सारी फ्रांसीसी फौज धीरे-धीरे दुर्विनीत, उदंदड और चरित्रहीन हो गयी है। इससे वह बहुत ही निराश हुई। एक दिन का उदंदड सैनिक पर जोन ने अपनी सुप्रसिद्ध तलवार का वार किया। तलवार टूट गयी, किंतु इस कार्य से राजा के अप्रसन्‍न होने पर जोन मन-ही-मन कुछ और असंतुष्‍ट हो गयी।

इधर युद्ध जारी रहा। जोन ने अंग्रेजो को राजा के वशीभूत होने की सलाह दी, किंतु उन्‍होंने उसके प्रस्‍ताव पर घृणा की दृष्टि से देखा। एक युद्ध में जोन के एक पैर में बड़ी जबर्दस्‍त चोट लगी, किंतु वह अपने सैनिकों को आगे बढ़ चलने का हुक्‍म ही देती गयी। इधर बेडफोर्ड का ड्यूक अमित तेज से पेरिस नगर में घुस पड़ा। फ्रांसीसी सेना में मतभेद फैल गया। यहाँ तक कि कोई-कोई तो जोन पर नाना प्रकार के संदेह करने लगे। पर इसके थोड़े ही दिनों बाद (दिसंबर, 1429ई. में) राजा ने खुल्‍लमखुल्‍ला जोन को धन्‍यवाद दिया। साथ ही, राजा ने जोन के भाईयों को उपहार में बहुत कुछ दे कर खुश किया और जोन को राजसी रूप में सजाना चाहा, और उसे देवी कहकर सम्‍मानित किया-किंतु इन बातों के होने पर भी जोन का चरित्र, और साज-सज्‍जा पूर्ववत् ही रही।

आज तक जोन को किसी लड़ाई में असफलता नहीं मिली थी। पर अब रंग पलट गया। ओइस नदी के किनारे कंपेन नामक शहर पर अंग्रेजो ने धावा किया और उसको बचाने के लिए मुट्ठी भर लोगों के साथ जोन आगे बढ़ी। पहले तो उसने अंग्रेजो को मार भगाया, पर पीछे से दूसरी अंग्रेजी सेना आ गयी। जोन को अपनी भूल मालूम हुई, तब उसने अपनी सेना को रण छोड़ कर भागने का हुक्‍म दिया। यह जान कर कि जाने इस दल में है, अंग्रेजो ने सेना का पीछा किया। अंग्रेजो ने जाने की पोशाक पहचान ली थी। भगे हुए में कितने ही नदी में डूब कर मर गये। कितने ही शत्रुओं के हाथ में बंदी हो गये। जोन ने विस्‍मय से देखा कि मैं चारों ओर से अंग्रेजो से घिर गयी हूँ। उसने आत्‍मरक्षा के लिए भरसक प्रयत्‍न किया, पर फ्रांसीसी सिपाही अपने-अपने प्राण ले कर, जिसे जिधर रास्‍ता मिला भाग गये।

आर्लिन-कुमारी अभिमन्‍यु की तरह शत्रु-व्‍यूह में अकेली फँस गयी। एक तीर-धारी ने आगे बढ़ कर उसे गिरफ्तार कर लिया। एक दूसरे आदमी ने उसके हथियार अपने कब्‍जे में कर लिये। अंग्रेजी कैमपों में आनंद की हिलोरें उठने लगीं और फ्रांसीसी इस घटना से विषाद-सागर में गोते लगाने लगे।

इसके बाद इतिहास के पृष्‍ठ कलंकपूर्ण हैं। उस शोककथा को लिखते समय हृदय विदीर्ण होता है। अंग्रेजो का जोन के प्रति अत्‍याचार यूरोप के इतिहास में एक बड़ा कलंक है। भारतीय ब्‍लैकहोल हत्‍या की बात लिखते अंग्रेज इतिहास-लेखक न मालूम क्‍यों जोन पर अंग्रेजो के अत्‍याचार की बात भूल जाते हैं। इस अत्‍याचार से छुटकारा पाने के लिए जोन ने एक बार और चेष्‍टा की थी, किंतु भागते समय ऐसी चोट लगी कि वह गिर पड़ी। इसके बाद की बात लिखने में लेखनी काँपती है। इस बात को सोच कर कि जोन के लिए किस प्रकार षड्यंत्र के बाद षड्यंत्रों की रचना की गयी थी, धोखेबाजों की धोखेबाजी से जाने किस प्रकार घबरा उठी थी, धर्मन्‍यासकों, पुरोहितों ने धन के दास हो कर किस प्रकार न्‍याय और धर्म से हाथ धो कर जोन को जीते-जी चिता में जला देने की व्‍यवस्‍था दी थी, इन सब बातों को सोच कर रोंगटे खड़े होते हैं और आँखों से आँसू बहने लगते हैं। धिक्‍कार है ऐसे धर्म को, जो अपनी आड़ में अर्थलोलूप धर्मयाजकों के स्‍वार्थ-साधन में सहायक रूप हो कर मानव समाज का इस प्रकार सर्वनाश करे। 'बुक ऑफ मार्टिर्स' नाम की पुस्‍तक में कितने ही लोगों के ऊपर किये गये ईसाई धर्म के विरोधियों के अत्‍याचारों का वर्णन है, किंतु जोन के प्रति ईसाई धर्म पर विश्‍वास रखने वालों ने जिस प्रकार अत्‍याचार किये, उसकी तुलना ईसा के सूली पर देहत्‍याग के अतिरिक्‍त कहीं भी नहीं मिलती। ईसा के आत्‍मोत्‍सर्ग से पेलिस्‍टाइन धन्‍य है और जोन के प्राण-त्‍याग से फ्रांस पूज्‍य है।

इक्‍कीसवीं फरवरी 1430 को उसका विचार हुआ। जोन के अंतिम वाक्‍यों ने उसके जीवन की पवित्रता को और भी उच्‍च बना दिया। ईश्‍वर क्‍या अंग्रेजो से घृणा करता है? इस प्रश्‍न के उत्‍तर में उसने कहा था कि "मैं नहीं जानती कि ईश्‍वर उनसे घृणा करता है या नहीं, पर मैं यह जानती हूँ कि जो अंग्रेज युद्ध से बच रहेंगे वे अवश्‍य ही फ्रांस के राजा के द्वारा इस देश से निकाले जायेंगे। मैंने ईश्‍वरीय आज्ञा का पालन किया-नरहत्‍या नहीं की। इन बातों को निडर चित्‍त से कहने पर भी उसके लिए कठोर दंड का हुक्‍म हुआ। एक सहृदय अंग्रेज ने विचार देख कर कहा था-ए वर्दी वुमन, इफ शी वेर, बट इंग्लिश।" पूरे एक वर्ष में विचार का अंत हुआ और 30 मई 1431 को रोयन के मैदान में आग में जीते-जी खड़ी करके उसकी हत्‍या की गयी। जोन ने अंतिम समय जो मर्मभेदी प्रार्थना की थी, उसे सुन कर पाषाण भी विदीर्ण होता है। जिस समय उसको आग में डालने का हुक्‍म हुआ, जोन ने विश्‍वासघातक बिशप ब्‍यूवाइस और बेनचेष्‍पूटा के कार्डिनल के समक्ष क्रूस चूम कर प्रार्थना की थी। इसके बाद सबको क्षमा करके उसने ईश्‍वर में आत्‍मसमर्पण कर दिया। देखते-देखते जोन का नाशमान (नाशवान-संपा.) शरीर जल गया। किंतु जोन की चिता की भस्‍म ठंडी भी न होने पायी थी कि फ्रांस ने नया जन्‍म धारण किया। ईसाई धर्म ने ईसा की मृत्‍यु के बाद नवीन बल से अपने पैरों पर खड़ा हो उठा। जोन के आत्‍मोत्‍सर्ग की शक्ति ने फ्रांस की आत्‍मा में जादू फूँक दिया। देखते-देखते, देश पर देश, नगर पर नगर अंग्रेजो के हाथ से निकलने लगे। देखते-देखते सारा फ्रांस चार्ल्‍स की मुट्ठी में आ गया और स्‍वाधीनता की मीठी वायु फ्रांसीसियों के हृदय को शीतल करने लगी।