देशी-विदेशी 'प्रेरणा' का आदान प्रदान / जयप्रकाश चौकसे

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देशी-विदेशी 'प्रेरणा' का आदान प्रदान
प्रकाशन तिथि : 02 दिसम्बर 2014


अब्बास मस्तान निर्देशक भाइयों को एक कहानी बहुत पसंद आई परंतु यह ज्ञात होने पर कि यह किसी विदेशी फिल्म से 'प्रेरित' होकर मौलिक रचना है, उन्होंने उस पर फिल्म बनाने से इनकार कर दिया। उनकी सभी फिल्में 'प्रेरित' रही हैं आैर इसके कारण उनकी अरबाज को प्रस्तुत करने वाली फिल्म 'दरार' इसलिए असफल हो गई कि उनकी फिल्म के पहले उसी 'प्रेरणा' से बनी नाना पाटेकर-मनीषा कोइराला अभिनीत फिल्म 'अग्निसाक्षी' सफलता से प्रदर्शित हो चुकी थी। यह खेल नया नहीं है। विगत सदी के तीसरे दशक में ही एक गुजराती भले मानुस को हॉलीवुड की भारत में प्रदर्शित होने वाली फिल्मों की प्रचार सामग्री अनुवाद आैर विज्ञापन के लिए दी जाती थी। उन्होंने बुक लेट से कथासार पढ़कर थोड़े रद्दोबदल से कहानियां लिखना बेचना प्रारंभ किया। लंबे समय तक वे सफल लेखक माने गए, बाद में यह हथकंडा अन्य लोगों के भी हाथ लग गया है।

विगत कुछ वर्षों से दक्षिण भारत में बनी फिल्मों का 'उत्तर भारतीयकरण' करके अनेक सफल फिल्में बनी हैं। दक्षिण भारत के फिल्म उद्योग में भी मुंबइया फिल्मों को रद्दोबदल करके बनाया गया है, अत: कहानियों का यह आवागमन हमेशा दोनों आेर जारी रहा है बल्कि ऐसा भी हुआ है कि दक्षिण के माल में खूब परिवर्तन करके मुंबई में बनाया गया आैर इस बम्बइया फिल्म के अधिकार भी दक्षिण में बिके गोयाकि 'तेरा तुझको अर्पण, क्या लागे मेरा'। मुझे एक फिल्म के 'उत्तर भारतीयकरण' के लिए बुलाया गया आैर मूल के निर्देशक से मिलाया तो उन्होंने कहा कि इनसे मुलाकात आज हो रही है परंतु इनकी लिखी आरके नैय्यर की 'कत्ल' तो हम पहले ही बना चुके हैं। इस बात को उन्होंने बिना किसी क्षमा याचना के सुनाया गोयाकि 'कत्ल' के 'कत्ल' के लिए किसी अनुमति की आवश्यकता नहीं है।

हाल में गुलशेर शानी की 'शौकी' पुन: बनाई गई तो उसमें शानी साहब का नाम नहीं था क्योंकि रीमेक के अधिकार निर्माता के पास होते हैं। इसी तरह अजय देवगन-सोनाक्षी अभिनीत फिल्म जब शुरू हुई थी उसकी 'प्रेरणा' हॉलीवुड से मिली थी परंतु उसी समय निर्माता को मालूम पड़ा कि इसी 'प्रेरणा' पर बन रही 'धूम-3 शीघ्र ही प्रदर्शित होने वाली थी, अत: 'एक्शन जैक्सन' को दक्षिण की अन्य कहानी की 'प्रेरणा' से बनाया गया। इसी तरह वर्षों पूर्व इंदर कुमार ने दक्षिण से एक फिल्म के अधिकार कानूनन खरीदे परंतु निर्माण प्रारंभ करने के पहले ही उन्हें मालूम पड़ा कि उसके कचूमर पर दो फिल्में प्रदर्शन के लिए तैयार है परंतु बोनी कपूर की 'नो एंट्री' के पहले उसी 'प्रेरणा' पर इंदर कुमार की एक फिल्म बन चुकी थी, अत: 'नो एंट्री' के लेखक अनीज बाज्मी ने अपनी 'नो एंट्री' के शेष भाग को अलग ढंग से लिखा तथा अपनी फिल्म विलंब से प्रदर्शित की। यह खेल ही विचित्र है। बलदेवराज चोपड़ा की 'धूल का फूल' की 'प्रेरणा' का तो नाम ही 'ब्लाजस्म इन डस्ट' था। नया नाम सोचने का कष्ट भी क्यों करें?

इस प्रकरण पर एक अनुभवी व्यक्ति का कहना है कि जब तक मूल का स्रोत नहीं मालूम तब तक उसे मौलिक ही मानना चाहिए। हमारे कॉपीराइट कानून पहले बहुत लचीले थे, नए एक्ट में कुछ प्रावधान हैं। जावेद अख्तर ने नए कानून के लिए बहुत प्रयास किए तो फिल्म संगीत माफिया ने उन्हें प्रतिबंधित कर दिया। फिल्म लेखक संघ में रचना का पंजीकरण करने से लाभ होता है। सुना है कि संजय लीला भंसाली को अपनी 'गुजारिश' के लिए किसी पंजीकृत कथा के लेखक को हरजाना दिया। इसी तरह उद्योग की एक संस्था में टाइटिल पंजीकृत किए नाते हैं आैर कुछ लोग अपना टाइटिल दूसरे निर्माता को बेचते भी हैं। इस संगठन के मजबूत किले में सेंध मारने के लिए पतली गली यह है कि 'शौकीन' को 'द शोकिन्स' कर दिया, 'आग-द फायर' दीवार-द वाल इत्यादि कर दिया गया। भारत पतली गलियां खोजने में निष्णात है।

कभी-कभी 'प्रेरणा' जाने-अनजाने इधर से उधर भी गई है, मसलन शांताराम की 1941 में बनी 'आदमी' एक पुलिस कांस्टेबल आैर तवायफ के इश्क की कथा थी जो उन्होंने देवदास के नैराश्य के खिलाफ रची थी। इस कथा को 'इरमा लाडूस' के नाम से 1961 में हॉलीवुड में बनाया गया जिसे फ्रेम दर फ्रेम शम्मी पूर ने 1971 में 'मनोरंज' के नाम से बनाया। हाल ही में हीरानी के सहयोगी लेखक ने कहा कि 'पी.के.' लिखने के बाद उन्होंने रॉबर्ट नोलन की 'इंसेप्शन' देखी आैर थीम की समानता के कारण उन्होंने 'पी.के.' का नया संस्करण लिखा जिसमें सब कुछ बदल दिया है परंतु थीम वहीं है- दूसरे के सपनों आैर अवचेतन में पैंठना। विचार संसार में सपने सदियों से प्रेरणा के नाम से अपनाया जाता है।