देशी सलमान खान और विदेशी प्रियंका चोपड़ा / जयप्रकाश चौकसे
प्रकाशन तिथि :19 अप्रैल 2018
सलमान खान की बहन अलविरा द्वारा बनाई जा रही 'भारत' में प्रियंका चोपड़ा को अनुबंधित किया गया है। अंतरंग मित्र कैटरीना कैफ को न लेकर प्रियंका चोपड़ा को लिए जाने का एक कारण यह हो सकता है कि वे विदेशों में बहुत लोकप्रिय हैं। प्रधानमत्री नरेंद्र मोदी की एक अमेरिकी यात्रा के दौरान उनसे अधिक प्रियंका चोपड़ा का प्रचार हो रहा था। विदेश वितरण क्षेत्र में शाहरुख खान बहुत लोकप्रिय रहे हैं परंतु सलमान खान के साथ प्रियंका चोपड़ा के जुड़ जाने से समीकरण बदल सकता है। बॉक्स ऑफिस के आंकड़े रिश्तों को भी प्रभावित करते हैं। विदेशों में हिंदुस्तानी फिल्में लोकप्रिय हैं, क्योंकि विदेशों में भारतीय लोग कार्यरत हैं। इसी बात को हल्के लहजे में इस तरह भी कहा जा सकता है कि ऐसा कोई देश नहीं जहां आलू और भारतीय न हों। एक दौर में 'डॉलर सिनेमा' उन फिल्मों को कहा जाता था, जिनका व्यवसाय विदेशों में भारत से अधिक होता था। इस डॉलर लोभ में हमारे फिल्मकार गैर-भारतीय फिल्में बनाने लगे। कुछ फिल्मकार तो बड़ी हेकड़ी से यह कहने लगे थे कि वे बिहार और उत्तर प्रदेश के दर्शकों के लिए फिल्में नहीं बनाते। सिनेमाघरों की कम संख्या के कारण हिन्दुस्तानी सिनेमा की बॉक्स ऑफिस क्षमता कभी मालूम ही नहीं की गई। 'दंगल' और 'बजरंगी भाईजान' ने चीन में जबर्दस्त आय अर्जित की है, क्योंकि वहां 45 हजार सिनेमाघर हैं। यह बात अलग है कि चीन भारतीय निर्माता को आय का केवल 20 प्रतिशत ही देता है गोयाकि हमारी फिल्में चीन को आर्थिक लाभ पहुंचा रही हैं। मीडिया में प्रकाशित बॉक्स ऑफिस आय ग्रास आंकड़ा है, जिसका चालीस प्रतिशत ही आय होती है। बॉक्स ऑफिस पर अर्जित आय का अधिकांश हिस्सा सितारों के मेहनताने के रूप में चला जाता है। सारे निर्माता अब कर्मचारी-निर्माता हो चुके हैं। वे सितारों के लिए दिहाड़ी कर रहे हैं।
इसी तरह आईपीएल क्रिकेट तमाशे में भी भारतीय खिलाड़ियों से अधिक मेहनताना विदेशी खिलाड़ी ले रहे हैं। उनके लिए भारतीय ग्रीष्म ऋतु में खेलना बहुत कष्टकारक होता है परंतु आयोजक शीतल पेय निर्माता हैं, इसलिए यह तमाशा ग्रीष्म ऋतु में आयोजित किया जाता है। राजनीतिक कारणों से पाकिस्तानी खिलाड़ी इस लूट में भागीदार नहीं हो पाते। वे इंग्लैंड में आयोजित लीग क्रिकेट खेलते हैं। वर्तमान के राजनीतिक अखाड़े के दोनों पहलवान देशों- चीन और अमेरिका में क्रिकेट नहीं खेला जाता। अंग्रेजों द्वारा शासित रहे देशों में ही क्रिकेट खेला जाता है।
एक दौर में वेस्टइंडीज की क्रिकेट टीम का बड़ा दबदबा था परंतु वेस्टइंडीज का युवा वर्ग अब बेसबॉल और फुटबॉल खेलना पसंद करता है, क्योंकि इसमें उन्हें अधिक पैसा मिलता है। ज्ञातव्य है कि वेस्टइंडीज नामक कोई देश नहीं है। अनेक टापुओं से आए हुए खिलाड़ियों से मिलकर उनकी क्रिकेट टीम बनी है। खेलकूद की दुनिया भी आर्थिक समीकरण से शासित होती है।
बहरहाल, प्रियंका चोपड़ा ने न्यूयॉर्क की एक बहुमंजिला में ऊपरी माला खरीदा है। वे अपनी भारत यात्रा में अपनी फिल्म निर्माण कंपनी का काम भी देखती हैं। उन्होंने मराठी भाषा में फिल्में बनाई हैं। अनुष्का शर्मा भी फिल्म निर्माण करती हैं। उनकी 'फिल्लौरी' सफल नहीं हुई। अनुष्का शर्मा की 'एन.एच. 10' सार्थक एवं सफल फिल्म थी। उनके पति विराट कोहली ने कुछ विज्ञापन फिल्में की हैं। अच्छा हो यदि अनुष्का शर्मा एवं उनके पति विराट कोहली किसी कथा फिल्म में अभिनय करें। यह संभव नहीं लगता, क्योंकि क्रिकेट अब बारहमासी खेल हो चुका है और विराट कोहली के लिए समय निकालना कठिन होगा।
बहरहाल, सलमान खान की 'भारत' में देश के साठ वर्ष के सामाजिक इतिहास को एक मनोरंजक कथा में गूंथा गया है। फिल्म के एक पात्र में सलमान खान 18 वर्षीय युवा के रूप में नज़र आएंगे। आजकल प्रोस्थेटिक मेकअप द्वारा यह संभव है। एक फिल्म 'कपूर एंड सन्स' में ऋषिकपूर 90 वर्षीय वृद्ध की भूमिका में नज़र आए थे। प्रतिदिन मेकअप में चार घंटे लगते थे और मेकअप करने के बाद वे स्ट्रॉ से जूस पी सकते थे परंतु ठोस खाने से मेकअप का तिलिस्म टूट जाता था। हाल में अमिताभ बच्चन और ऋषिकपूर ने '102 नॉट ऑउट' नामक फिल्म की शूटिंग पूरी की है। यह क्रिकेट केन्द्रित फिल्म नहीं है वरन् 102 एक पात्र की उम्र है।
सलमान खान पर चल रहे अदालती मुकदमों के कारण उनकी लोकप्रियता पहले से ज्यादा बढ़ चुकी है और सितारा हैसियत भी बढ़ गई है। हमारे देश में जेल जाने की परम्परा पुरानी है। भगवान श्रीकृष्ण का तो जन्म ही कैदखाने में हुआ था, 'स्वतंत्रता संग्राम के दरमियान हमारे अनेक नेता जेल गए'। पंडित जवाहरलाल नेहरू ने तो जेल में रहते हुए सर्वकालिक महान पुस्तक 'डिस्कवरी ऑफ इंडिया' लिखी है। उस दौर में इंदिरा गांधी भी कई बार जेल गई थीं।
अदालती दंड विधान और अवाम के दंड विधान में अंतर होता है। दिल की नज़र और जज की नज़र में अंतर होता है। फ्योदोर दोस्तोवस्की की 'क्राइम एंड पनिशमेंट' में यह मुद्दा भी उठाया गया है कि प्रतिभाशील सृजनकर्ताओं के लिए अलग दंड विधान होना चाहिए। आश्चर्य है कि आयन रैंड ने अपने उपन्यास फाउंटनहेड में भी यह मुद्दा उठाया है। यह बात व्यावहारिक नहीं है, क्योंकि यह कौन तय करेगा कि कौन-सा व्यक्ति प्रतिभाशाली है। दरअसल, नेहरू के हव्वे से कोई मुक्त नहीं हो पाता। अगर वे राजनीति की जगह साहित्य क्षेत्र में ही सक्रिय होते तो संभवत: नोबेल प्राइज़ पा जाते।