देश प्रेम जगाने वाली फिल्में / जयप्रकाश चौकसे
प्रकाशन तिथि : 10 नवम्बर 2021
गौरतलब है कि शहीद उधम सिंह के जीवन से प्रेरित फिल्म ओ.टी.टी मंच पर दिखाई जा रही है। फिल्म में विकी कौशल के अभिनय की प्रशंसा की जा रही है। लंबे समय बाद अपने जमाने के मशहूर अभिनेता राज बब्बर को फिल्म में देखकर बड़ी खुशी हुई। राज बब्बर का नाम लेते ही स्मिता पाटिल और उनकी फिल्म ‘वारिस’ की याद आ जाती है। बहरहाल, शहीद उधम सिंह से प्रेरित एक फिल्म वर्षों पहले भी बनी थी। गौरतलब है कि कई दशक पूर्व पंजाब के शिक्षक सीताराम शर्मा ने शोध करके भगतसिंह के जीवन से प्रेरित पटकथा मनोज कुमार को सुनाई थी। मनोज कुमार ने ‘शहीद’ नामक फिल्म बनाई जिसे सराहा गया। बाद में मनोज कुमार इसी तरह की फिल्में बनाते रहे। अपने ‘याहू’ दिनों के पहले शम्मी कपूर अभिनीत भगत सिंह प्रेरित फिल्म असफल रही थी। ज्ञातव्य है कि शहीद भगत सिंह पर 5 फिल्में दो वर्षों में प्रदर्शित हुई थीं परंतु मनोज कुमार की फिल्म ही यादगार सिद्ध हुई थी।
फिल्मकार राकेश ओमप्रकाश मेहरा की आमिर खान अभिनीत फिल्म ‘रंग दे बसंती’ भी महान रचना है। गोया की मस्ती की पाठशाला में अर्थहीन जीवन जीने वाले युवाओं की कहानी थी यह फिल्म। कहानी कुछ इस तरह आगे बढ़ती है कि इंग्लैंड से एक युवती भगतसिंह और चंद्रशेखर आजाद से प्रेरित डॉक्यूड्रामा बनाने भारत आती है। उसकी भारतीय मित्र उसे मस्ती की पाठशाला में ले जाती है। अंग्रेज महिला द्वारा भगत सिंह, चंद्रशेखर आजाद, राजगुरु, सुखदेव और रामप्रसाद बिस्मिल की भूमिकाओं के लिए पात्र चयन के बाद रिहर्सल प्रारंभ होती है। इसी दौरान सभी की विचार प्रक्रियाओं में परिवर्तन होने लगता है। संकीर्ण विचारधारा वाले युवा को जब उसके पुराने साथी पीटते हैं तब इस पिटाई से उसे विश्वास हो जाता है कि संकीर्णता से मुक्ति में ही जीवन की सार्थकता है। सारे युवा भी अपने इस परिवर्तन से अचंभित हैं। अब उन्हें जीवन का अर्थ समझ में आता है। मस्ती दल का एक साथी भारतीय वायु सेना के लिए चुना जाता है। वह प्रशिक्षण पूरा करता है। दलाल द्वारा व्यवस्था को नकली पुर्जे बेचे जाने के कारण विमान में आग लग जाती है। वह पैराशूट का उपयोग करके अपने प्राण बचा सकता है लेकिन वह विमान को सुनसान क्षेत्र में ले जाता है क्योंकि हवाई जहाज अगर घनी बस्ती में गिरता तो अनेक लोग मारे जाते। इस तरह कई लोगों के प्राण बचाते हुए वह दुर्घटना में शहीद हो जाता है। इस घटना से उसकी मस्ती की पाठशाला के मित्र अवसाद में डूब जाते हैं। मित्रों के जख्म पर नमक तब छिड़का जाता है, जब यह प्रचारित किया जाता है कि हादसा पायलट की गलती से हुआ था। शहीद पायलट की मां की भूमिका वहीदा रहमान ने अभिनीत की है। फिर सारे मित्र योजना बनाकर रिश्वतखोरों और भ्रष्ट व्यक्तियों को दंडित करने की योजना बनाते हैं। वे देश प्रेमियों की शैली में ही भ्रष्ट लोगों को मार देते हैं। फिल्मकार ने यथार्थ घटना के उपलब्ध भाग के साथ अपने द्वारा शूट किए गए भाग को संपादन टेबल पर बड़े प्रभावोत्पादक ढंग से जमाया है। कुलमिलाकर देशप्रेम जगाने वाली फिल्मों के इतिहास में ‘रंग दे बसंती’ महत्वपूर्ण मानी जाती है। पूरी फिल्म में राम प्रसाद बिस्मिल का अमर गीत
सरफ़रोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है, देखना है ज़ोर कितना बाज़ू-ए-क़ातिल में है, ऐ शहीद-ए-मुल्क-ओ-मिल्लत मैं तिरे ऊपर निसार, ले तिरी हिम्मत का चर्चा ग़ैर की महफ़िल में है.. वक़्त आने दे दिखा देंगे तुझे, ऐ आसमां हम अभी से क्यूं बताएं, क्या हमारे दिल में है, अब न अगले वलवले हैं और न वो अरमां की भीड़, सिर्फ़ मिट जाने की इक हसरत दिल-ए-’बिस्मिल’ में है।’
सुनाया गया है।
शहीद उधम सिंह के जीवन से प्रेरित फिल्म बनाने वालों को धन्यवाद। देश की स्वतंत्रता के लिए देश के कोने-कोने से लोग सामने आए। शहीदों से प्रेरित फिल्में बनी हैं और आज भी बन रही हैं। खुशी की बात है कि पंजाब से आए लाला लाजपत राय, भगत सिंह, उधम सिंह पर फिल्में बनना जारी रहेंगी।