दोलड़ी जूण / मदन गोपाल लढ़ा

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आज बो म्हनैं मारग में मिलग्यो। बीं नैं देख’र म्हनैं घणो हरख हुयो। लारलै केई दिनां सूं म्हारी निजरां उणनै जोवै ही। उणरी जिनगाणी मांय म्हनैं अेक सांतरी कहाणी री पूरसल संभावना निगै आवै ही। म्हैं मनोमन धार लियो कै म्हारी आगली कहाणी रो नायक बो ई हुवैला। म्हैं उणरै चरित्र नैं सावळ समझणो चावूं। इणींज कारण आं दिनां बीं री जूण-जातरा में म्हारी रुचि बधगी।

आलोचक जदै-कदै म्हारी रचनावां रै पात्रां नैं हवाई बता परा म्हारी आलोचना करता रैवै पण अबै म्हैं अेक मिनख री असल जिनगाणी माथै कहाणी रच’र आलोचकां रो मूंडो बन्द करणै री तेवड़ली है। भोगेड़ो सांच गोडै घड़्यै माथै सदीव भारी रैवै। म्हारो लिखारो ई गोडै घड़्यै री ठौड़ जथारथ में भरोसो राखै। म्हारी कामणगारी कलम री करामात देख’र आलोचकां भेळा दूजा लिखारां ई चेताचूक हुय जावैला। अेक वेबपत्रिका रा सम्पादक म्हारै सूं टाळवीं कहाणी मांगी है। इंटरनेट रै मारफत आखो देस म्हारी नवी कहाणी बांचैला। देस ई क्यूं, सात समंदर पार बैठ्या लोग ई म्हारी कहाणी रो सुवाद लेवैला। हुय सकै अंगरेजी आद बीजी भाषावां में म्हारी कहाणी रो अनुवाद पण हुय जावै। इणरै सागै कोई पुरस्कार ई ताबै आ सकै। स्यात इणींज कारण म्हारै मन में कहाणी लिखणै रो कोड सदां करता बेसी हो।

अेक बीजै कारण सूं ई म्हनैं कहाणी लिखणै री उंतावळ ही। कांई ठाह ओ प्लॉट किणीं दूजै लिखारै रै हाथ चढज़ै अर बो म्हारै सूं पैलां ई मोरचो मार लेवै। म्हैं किणीं हालत में मौको चूकणो कोनी चावूं।

कहाणी लिखणै सूं पैलां म्हैं उणरै अतीत रै बारै में विगतवार जाणकारी चावूं। उणनै देखतां ई म्हारो लिखारो जागग्यो अर म्हैं उणनै हेलो कर’र थाम लियो।‘राम-राम मनोहर जी, इयां कांई भाजो हो ?’

‘राम ही राम सा, भाज’र कठै जावूं। घर नैड़ो लेवै हो।’ बो होळै सुर मांय बोल्यो।

‘घर तो बठै ई लाध जासी। आवो, चावड़ी पीस्यां।’

म्हैं उणंनै सडक़ किनारै अेक ढाबै में लेग्यो अर दो चाय रो ऑर्डर दे दियो।

‘कियां चालै है स्कूल? पगार बगतसर मिलै है का कोनी?’ माचै माथै बैठतां म्हैं बात टोरी।

‘चालै है जियां-तियां। निजू स्कूलां रो ढंग-ढाळो थारै सूं कांई छानो है।’ छात कांनी तकावता बण कैयो।

‘थांरी बात सांची है। म्हैं तो खुद भुगतभोगी हूं। ग्रामसेवक लागणै सूं पैलां तीन बरस म्हैं ई तो खाल कढाई है। बेटा दसखत दस हजार माथै मंडावै अर महीना रा रिपिया देवै तीन हजार।’ म्हैं उणरी बात री हामळ भरी।

बातां केई ताळ चाली पण मनोहर हां-हूं सूं आगै कोनी बध्यो। म्हैं ई लगोलग बोलतो रैयो। इयां लखावै जाणै बो आपरी पीड़ नंै लुकोवणी चावै। उणरै चेहरै माथै उदासी पसर्योड़ी ही। चाय रो कप हेठै धर’र उठती बेळां म्हनैं लाग्यो कै कहाणी ओजूं खासा मैणत मांगै।

बियां तो म्हैं मनोहर नैं बाळपणै सूं जाणूं। उणरा बापूजी इलाकै रो मानीजता ठाकर हा। बीजी जात री छोरी सागै लव-मैरिज कर्यां उणरा आपरै घर आळां सूं समंध भलांई तूटग्या हुवै पण बाप री मिरतु पछै पांती री दो मरब्बा जमीं उणनंै ई मिली। सहर रा सपनां देखतै इण कस्बै मांय उणरै ब्याह री चरचा कई दिनां तांई चाली। रजपूती रगत माथै गरब करतै ठाकर रो लाडेसर जद अेक कायस्थ छोरी सागै परणीजग्यो तो पछै बातां री जुगाळी तो भरीजणी ई ही। ठाकर साब नंै बेटा री बगावत सूं अैड़ो झटको लाग्यो कै ब्याह रै अेक बरस मांय ई बां नैं सौ बरस पूगग्या। मा उणरी ठौड़ छोटै बेटै सागै रैवणो सावळ समझ्यो।

मनोहर री जुवानी रै जोस आगै घरवाळां री नाराजगी कांई मायनो राखती। बो भोत राजी हो। अैड़ा भागी कम ई हुवै जका आपरै पैलै प्यार नैं मंजल तांई पुगा सकै। बीं रो सपनो सांचो हुग्यो। मनोहर री हिम्मत नैं ई लखदाद देवणी पड़सी। आपरी प्रीत खातर बो जमानै साम्हीं पग रोप दिया। अैड़ी जीत तो गीरबाजोग हुवै ई हुवै।

चाणचकै म्हैं सोच्यो कै डायरी में आं बातां रा नोट्स बणा लेवणा चाइजै जिणसूं कहाणी लिखती बेळां सुभीतो रैवै।

ब्याह पछै मनोहर री गाडी घणै मजै सूं चाल पड़ी। फसल दीठ अेक लाखरिपिया सूं बेसी ठेको मिल जावतो अर घर जोगा दाणियां ई बण जावता। मोकळी उरळाई ही। ब्याह रै दूजै बरस अेक नानकी अर पांचवंै बरस अेक नानियो उणरै आंगणै रमण लागग्यो। अैड़ी गुवाड़ी में हरख रो पछै कांई छेड़ो!

इयां करतां ई मनोहर री जिनगाणी मांय भळै अेक नवो मोड़ आग्यो। सरकार कस्बै में पेट्रोल पम्प आंवटन सारू अरजी मांगी। पम्प महिला आवेदक सारु आरक्षित हो। मनोहर ई आपरी जोड़ायत रै नांव सूं अरजी लगा दी। जोग सूं पम्प अलोट हुग्यो। मोटी आमदनी री आस में मनोहर दोनूं मरब्बा बेच दिया अर आपरी जोड़ायत नैं अेक पैट्रोल पम्प री मालकण बणा दी। कमाई बधी तो घर रा ठाठ ई बधग्या।

पण स्यात हेत कलम री रोसनाई का दिवलै रै तेल री भांत हुवै जको बगत परवाण खूट जावै। मनोहर अजै इण बात सूं अणजाण हो। जद ठाह पड़्यो तद तांई पाणी पाळां तोड़’र निकळग्यो।

ब्याह रै सात बरस पछै मनोहर री गुवाड़ी में खटास बापरगी। भरोसै रो धागो सफा काचो हुवै। अेक झटकै में टूट जावै। असलियत तो भगवान जाणै पण सुणी बात आ है कै लुगाई रै आचरण सूं मनोहर रो बिसवास अैड़ो उठ्यो कै उणरी किरचां अजै तांई बीं रै काळजै चुभती रैवै। बोलाचाली सूं जकै आंतरै री सरूआत हुई बा छेकड़ घर तूट्यां ई थमी। तगा मामलै नैं बिगाड़णै में कसर कोनी राखी अर राजीपै रा सगळा जतन अळिया गया। अबै मनोहर घरै टाबरां भेळो रैवै अर मास्टरी कर’र धाको धिकावै। उणरी जोड़ायत पम्प री धणियाणी बण’र न्यारो मकान बणा लियो। पंच पंचायती सूं पार कोनी पड़ी अर अबै मनोहर तलाकनामै खातर अदालत रा गेड़ा काटै।

कहाणी री सफळता सारू म्हनैं मुकदमै रै फैसलै री जाणकारी जरूरी लखाई। अंत-पंत ‘क्लाईमेक्स’ में ई तो कहाणी री जान हुवै। दूजी कांनी म्हारो ध्यान मनोहर री जोड़ायत माथै हो। मनोहर सूं तो म्हैं मिलतो रैवूं पण उणरी जोड़ायत नैं तो कदी सावळ देखी तकात कोनी। म्हारो लिखारो ई ऊपरा-सूपरी सूं धाप कोनी करै। बो बात री जड़ तांई पूगणो चावै। सुणी-सुणाई बातां में घणो सार कोनी हुया करै। अरूं-भरूं मिल्यां ई बात रो खुलासो हुवै। म्हैं भींत अर लाठी बिचाळै हो। लिखारै री सुणूं का दुनियादारी सूं डरूं। साधन-सुविधावां री दीठ सूं तो ओ कस्बो सहर सूं होड करै पण सोच रो सांकड़ैलो गांव नै ई मोटो कैवावै। फगत मिल्यां ई कांई हुवै? सीधो तो पूछीजै कोनी। कठैई गळै पडज़ै। बात रो बतगंड़ बणतां कित्तीक ताळ लागै। लोग तो आंगळी घस

भळै ई अेक दिन बिध बैठगी। मतदाता सूची में सुधार सारू सरकार अेक अभियान चलायो। इण काम सारू म्हारी ड्यूटी ई लागगी। म्हनैं मौको लाधग्यो। मतदाता सूची अर वोट जुड़ावणै रा फॉर्म लेय’र म्हैं मनोहर री जोड़ायत रै घरै पूगग्यो। दरूजो बंदहो। म्हैं घंटी बजाई। दरूजो बण ई खोल्यो।

‘नमस्कार ग्रामसेवक जी’ बण कैयो तो म्हनैं इण बात रो अचंभो हुयो कै बा म्हनैं ओळखै।

‘नमस्कार जी। आपनै वोट जुड़ाणो है कांई? सरकार अभियान चलायो है।’ म्हैं अेक सांस में बोलग्यो।

‘पण म्हारो वोट तो बणेड़ो है। पहचान पत्र ई मिलग्यो।’

‘...................’ म्हैं चुप। आगै कांई बोलतो। मौको हाथ सूं तिसळतो दीसै हो। उणरो वोट मनोहर सागै हो। म्हनैं इण बाबत आगूंच ठाह हो पण भळै ई कहाणी खातर ताफड़ा तोड़ै हो।

पूठो मुड़ै हो कै उणरा बोल कानां में पड़्या-‘चाय-पाणी पी लेवो।’

‘नीं, काम बोहळो है। भळै कदी।’ म्हैं पगोथिया उतरग्यो अर मारग झाल लियो। इयां लागै जाणै कोई लारै खींचतो हुवै। म्हैं जाण-बूझ’र मौको गमा दियो। भळै अरूं-भरूं मिलणै री बात ई मन सूं काढ दी।

इंनै म्हारी कहाणी लिखणै री खतावळ बधती जावै। पत्रिका रै संपादक रा दो बार फोन आग्या। अंक त्यार है। फगत म्हारी कहाणी उडीकै। म्हैं गतागम में पजग्यो। मुकदमै रो कांई ठाह? कद फैसलो हुवै। असलियत ई लिखणी है। गोडै घड़्यै री तो सरू में ई टाळ कर दी। तालामेली बधती जावै।

अळोच रै समंदर में डूबतां-तिरतां म्हनैं रघुवीर चेतै आयो। रघुवीर पम्प माथै मुनीमी करै। पम्प रो घणखरो काम बो ई संभाळै। मोटोड़ी स्कूल रै अेन साम्हीं उणरो घर हो। रघुवीर म्हारो काम काढ सकै। म्हैं मौको तकै हो अर उणसूं सफाखानै में भेंट हुयगी। बो आपरै टाबर नंै दिखावणै आयो हो। म्हैं मेडिकल बिल माथै डाकदर रै दसखत खातर बारी उडीकै हो। रामा-सामी हुयां पछै म्हैं मोरचो लियो। बो स्यात रोजीनैं रा दपूचा सूं धापेड़ो हो अर इण बात नैं टाळणो चावतो। म्हारी खासा माथापच्ची कर्यां बो इत्तो ई बोल्यो-‘‘सब तकदीरां रा चक्कर है ग्रामसेवक जी। थे स्याणा-सोता हो। ताळी अेक हाथ सूं कोनी बाजै। हाथ ई रळायां धुपै। मैडम जी इत्ता माड़ा कोनी। मनोहर जी री जिद सूं ई घरियो खिंडग्यो।’’

म्हारां अळुझाड़ औरूं बधग्यो। म्हैं इंनै-बिंनै खोदा लेवूं। भायलां बिचाळै बात छेड़ूं। बै मनोहर री बातां में रस तो लेवै पण मुकदमै बाबत बां नैं ई कीं ठाह कोनी। म्हारी मुस्कल बधती जावै। कहाणी ताबै ई कोनी आवै।

अेक दिन सिंझ्या रो बगत। म्हैं घरै बावड़ै हो। मारग में मनोहर दीसग्यो। बो ठेकै सूं बारै निकळै हो। बीं नैं देखतां ई म्हैं हरो हुयग्यो। म्हारो लिखारो ई चेतग्यो। अधूरी कहाणी रै पूरी हुवणै री आस जागगी।

बियां तो म्हैं नितनेमी कोनी पण सौगन ई कोनी। कदी-कदास घूंट मार लेवूं। आज सवाल अेक कहाणी रो हो। गळै में उतर्यां पछै आदमी मत्तै ई सांच बोलण लाग जावै। म्हैं कूंटियो अड़ायो- ‘खम्माघणी ठाकरां, सोमरस अेकला-अेकला ई .....?’

म्हनैं देख’र बो काचो पड़ग्यो। अेक घड़ी थम’र बोल्यो- ‘अैड़ी बात कोनी। आप ई पधारो। सुवागत है।’

‘कठै? घरै??’

‘नीं-नीं, म्हैं टाबरा साम्हीं कोनी पीवूं। ट्रक यूनियन रै दफ्तर में बैठ जास्यां।’

बा जगैं म्हनैं ई जचगी। हताई सारू अेकायंत जरूरी हो। बठै जावती बेळा म्हैं अेक अंगरेजी पव्वो अर नमकीन भळै ले ली।

विलायती वाइन री सौरम अर मधरी पून रै लैरकां सूं मनोहर बेगो ई बीजी दुनिया में पूगग्यो। म्हारी लगाम म्हारै लिखारै रै हाथ ही।

‘कांई ठाकरां, बीं लेठै रो कांई सळटारो हुयो?’ मौको देख’र म्हैं बात टोरी।

‘सळट-सळटाग्यो।’ बण निसकारो न्हाखतां कैयो।

‘कियां सळट्यो? पम्प तो थांनैं मिलग्यो हुवैला।’ म्हारो धीरज जबाब देवै हो।

‘अबै बाळस्यां कांई पम्प रो। जद बा ई म्हारी कोनी हुई पछै धन रो कांई तड़बो लेस्यां।’ बो गळगळो हुग्यो।

म्हैं चुप! कांई बोलतो। बण ई भळै मून भांजी।

‘धन री लालसा कोनी ग्रामसेवक जी। दुख फगत इण बात रो है कै बा म्हारी आतमा री प्रीत नंै धोखो दे दियो।’ बीं रा कंठ रुधग्या। आंख्यां रै समंदर री पाळ तूटगी।

म्हारै सागै बीं री सिंझ्या ई बिगडग़ी। मानखै री पीड़ साम्हीं दारु रो कांई जोर!

म्हैं घरै रोटी जीम’र आडो हुग्यो पण नींद नेड़ै-तेड़ै ई कोनी। आधी रात बीतगी पण मन में घरळ-मरळ बियां ई चालै। कांई मनोहर री राम-कथा अेक कहाणी में नावड़ सकै? उण लुगाई री ई कोई मजबूरी हुय सकै। कुण जाणै मनोहर रो बैम ई झूठो हुवै। कांई मनोहर अर उणरी जोड़ायत पाछा भेळा बस सकै? कहाणी छप्यां आलोचक म्हनैं नारी विरोधी ई बता सकै। म्हारो लिखारो ई हाथ ऊंचा कर दिया। कहाणी अधबिचाळै छोड़णै में ई भलाई लागी।

पण अबकै मन मरणो मांड दियो। म्हैं हिम्मत कर’र ऊभो हुयग्यो अर बत्ती जगा’र डायरी काढ ली। च्यानणो हुवता ई म्हारी जोड़ायत री नींद तूटगी। बा ई म्हारै खंनै आय’र बैठगी। बोल्यां बिना बां कियां रैय सकै।

‘म्हैं आज थारी डायरी बांची। थे मनोहर जी माथै कहाणी लिखो हो नीं?’

‘हूं...’ म्हैं मन रा उळझाव सुळझावण खातर खसै हो।

‘थे कहाणी पूरी कद करस्यो ?’

‘अबै ही।’ म्हैं गैल छुड़ावण खातर कैयो।

‘हं...ओ, बापड़ै टाबरां रो तो थे नांव ई कोनी मांड्या। मां थकां टाबरिया मा बायरा दांई जीवै। उण लुगाई नैं ई टाबरां बिनां कींकर आवड़तो हुवैला। थे टाबरां रो ई कीं जिकर करता....।’ बीं री बात में दरद हो।

दोलड़ी जूण जीवतै म्हनैं ई तिणकलै रो सायरो लाधग्यो।