दोस्त-दुश्मन-दोस्त कहानियां व फिल्में / जयप्रकाश चौकसे

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दोस्त-दुश्मन-दोस्त कहानियां व फिल्में
प्रकाशन तिथि :20 जुलाई 2015


कबीर खान और अजय देवगन ने कभी साथ काम नहीं किया परंतु उनमें एक समानता यह है कि दोनों ही तटस्थ रहकर संतुलन बनाए रखते हैं। कबीर खान की गहरी मित्र और प्रिय नायिका कटरीना कैफ है परंतु आजकल वह सलमान खान के निकट नहीं हैं। हालांकि, कबीर खान सलमान के साथ दो फिल्में कर चुके हैं और उन्हें प्रसन्न करने के लिए कभी कोई ऐसी बात नहीं करते, जिसमें उनका यकीन नहीं हो और सलमान खान के साथ 'एक था टाइगर' में उनके फिल्मी प्रस्तुतीकरण में भेद होते हुए भी सलमान खान ने अपनी सितारा हैसियत के दम पर कोई परिवर्तन नहीं किया। 'बजरंगी भाईजान' तक दोनों में ऐसी आपसी समझ विकसित हो गई है कि बिना बोले ही दोनों बात समझ लेते हैं। कबीर की कलात्मक निष्ठा सलमान खान स्टाइल से अलग है परंतु दोनों बिना विवाद साथ काम करते हैं। इसी तरह अजय देवगन की शाहरुख खान से नहीं पटती परंतु उन्होंने कभी अपनी पत्नी काजोल को शाहरुख के साथ काम करने से नहीं रोका। महबूब खान और नौशाद की संगीत समझ में अंतर था परंतु दोनों ने साथ-साथ कई फिल्में की हैं। धर्मेंद्र और हेमा मालिनी की रुचियां अलग-अलग है परंतु विगत चार दशकों से उनके मधुर संबंध बने हुए हैं।

आज समाज में सहिष्णुता की कमी है और अलग विचार रखने का अर्थ शत्रुता लगाया जाता है। स्वतंत्रता संग्राम में रत गांधीजी और नेहरू के विचार अनेक मामलों में अलग थे परंतु उन्होंने साथ काम किया। यह मिथ्या प्रचार है कि सरदार पटेल और नेहरू में शत्रुता थी। उनके पत्राचार से तो ऐसा नहीं लगता। गांधीजी ने स्वयं सरदार पटेल से कहा था कि स्वतंत्र भारत में अनेक समस्याओं से जूझने के लिए अपेक्षाकृत युवा प्रधानमंत्री चाहिए और गांधीजी सरदार पटेल की गिरती हुए सेहत से अनिभिज्ञ नहीं थे। वे नाड़ी वैध भी थे बहरहाल, परिवार के सदस्यों में अलग-अलग विचार होते हैं परंतु वे साथ रहते हैं, क्योंकि एक-दूसरे से प्रेम करते हैं। आज सहिष्णुता के साथ ही प्रेम का भी लोप हो रहा है। विधु विनोद चोपड़ा और राजकुमार हीरानी के सिनेमाई दृष्टिकोण में गहरा अंतर है परंतु उन्होंने साथ मिलकर सिनेमाई इतिहास ही रच दिया है। आमिर खान और 'पीपली लाइव' के रचने वालों में वैचारिक भेद रहा है परंतु उन्होंने यादगार फिल्म रची है। दो मित्रों के बीच किसी एक आदर्श को लेकर उनमें मतभेद के होने पर उनमें हिंसात्मक शत्रुता हुई है - इस विचार पर सर्वश्रेष्ठ फिल्म 'बैकेट' है, जिसका हिंदी संस्करण ऋषिकेश मुखर्जी की फिल्म 'नमक हराम' थी। इसी विचार पर सलीम-जावेद की अलग शैली की 'दोस्ताना' थी। लोकप्रिय उपन्यास 'कन एंड एबल' से प्रेरित राकेश रोशन की 'खुदगर्ज' फिल्म में जितेंद्र और शत्रुघ्न सिन्हा अभिनीत भूमिकाएं भी एक आदर्श को लेकर दोस्ती के दुश्मनी में बदलने की कहानी थी।

इतिहास भी इस तरह की घटनाओं से भरा है। सिकंदर ने पोरस की यह बात सुनकर कि भले ही वह पराजित है परंतु उसके साथ वही व्यवहार किया जाएं,जो एक राजा दूसरे के साथ करता है, उन्हें राजपाट लौटा दिया। जिस औरंगजेब ने अपने सगे भाइयों को मारने में संकोच नहीं किया, उसी ने अपने परम शत्रु शिवाजी महाराज को अपनी जेल में कभी मारने का प्रयास नहीं किया, क्योंकि वह उनकी बहादुरी का प्रशंसक था। शिवाजी महाराज ने साधनों के अभाव के बावजूद कई बड़े युद्ध जीते थे। 'बैकेट' की कथा भी अंग्रेजों के इतिहास की एख सच्ची घटना से प्रेरित है। सारे मानवीय रिश्तों में एक तनाव होता है परंतु सहिष्णुता और आदर के कारण इसे युद्ध नहीं मान सकते। उपनिषद के खंड बारह के एक श्लोक का आशय यह है कि पिता और पुत्र का रिश्ता जैसे तीर और कमान का रिश्ता। सही तनाव के कारण ही पुत्र रूपी तीर पिता की कमान से निकलकर जीवन में निशाने पर जा लगता है। इसी श्लोक में सभी रिश्तों के तनाव और प्रेम को समझा जा सकता है। गौरतलब यह है कि इतनी उदात एंव महान संस्कृति के वारिस हम लोग कैसे अपनी सहिष्णुता को खो रहे हैं, ईमानदारी खो रहे हैं, आदर्श से विमुख हो गए हैं। यही आत्म अवलोकन आवश्यक है कि वे कौन-सी शक्तियां हैं जो इस उदात्त संस्कृति की संकीर्ण परिभाषा से हमें भ्रम में डाल रहा है?