दोहराव की धूल आैर उसका डस्टर / जयप्रकाश चौकसे
प्रकाशन तिथि :07 जनवरी 2015
भाग मिल्खा भाग कीसफलता के बाद फरहान अख्तर से पूछा गया कि अब बिकाऊ सितारा होने के बाद नाच-गाने आैर हिंसा की लार्जर देन लाइफ फिल्में करेंगे? उनका जवाब था कि मिल्खा की शूटिंग के एक वर्ष बाद भी उन्होंने धावक के स्पाइक्स नहीं उतारे हैं जिसका तात्पर्य यह था कि वे फिल्में सावधानी से चुनेंगे आैर आम मसाला फिल्म से बचेंगे। प्राय: सितारा हैसियत मिलते ही कलाकार टकसाल बन जाता है। 'मिल्खा' के अरसे बाद उन्होंने विधू विनोद चोपड़ा की 'वजीर' करना तय किया है, जिसमें अमिताभ बच्चन के साथ उन्हें अभिनय का अवसर मिलेगा। वे अमिताभ बच्चन को 'लक्ष्य' में निर्देशित कर चुके हैं। दशकों पूर्व अमिताभ बच्चन ने सलीम जावेद की लिखी 'जंजीर' से सितारा हैसियत पाई थी आैर उन्होंने सलीम-जावेद की लिखी अनेक सफल फिल्में अभिनीत की। उस दौर में इन तीनों का एक दूसरे के घर आना-जाना होता था आैर अमिताभ बच्चन ने फरहान को शायद गोद में खिलाया हो। वे सलीम के पुत्र सलमान खान आैर अरबाज खान के साथ फिल्में कर चुके हैं। धर्मेंद्र के पुत्र सनी देअोल के साथ उन्होंने कोई फिल्म नहीं की है। अब वे विलक्षण प्रतिभा के धनी विधू विनोद चोपड़ा के निर्देशन में शतरंज की बिसात पर फरहान के साथ बाजी खेलेंगे। इसके पूर्व वे चोपड़ा के साथ 'एकलव्य' कर चुके हैं। जब कोई कलाकार अपनी गोद खिलाए बालक के साथ फिल्म करता है तो उसे अपनी बुजुर्गियत का अहसास शिद्दत के साथ होता है। फरहान ने अपने को मांजने का काम हमेशा किया है आैर वे 'वजीर' में अतिरिक्त सावधानी आैर संजीदगी से काम करेंगे। इसे समझने के लिए कल्पना करें कि विराट कोहली ब्रेडमैन के साथ खेलते तो कैसा महसूस करते?
फरहान अपनी घरेलू संस्था के लिए बनाई जा रही 'रईस' में शाहरुख खान के साथ काम कर रहे हैं। शाहरुख खान भव्य सितारे हैं परंतु अमिताभ बच्चन की तरह मंजे हुए कलाकार नहीं हैं। हर भव्य सितारा अपने सफल लटके-झटके दोहराता रहता है आैर इसी कारण उसकी स्वाभाविक प्रतिभा पर धूल की मोटी परतें जमा हो जाती हैं। आम आदमी भी जीवन में दोहराव झेलता है, परंतु सितारे को इसी काम के लिए अधिक धन आैर प्रशंसा मिलती है जबकि आम आदमी प्राय: दुत्कारा जाता है। दरअसल आम आदमी के अंधविश्वास आैर कुरीतियों के प्रति रुझान का एक कारण यही भी है कि हमारी निर्मम व्यवस्था में आम आदमी की गरिमा को अक्षुण्ण नहीं रखा है। हमारे देश में आम नागरिक के साथ अफसर आैर अमीर प्राय: अभद्र व्यवहार करते हैं। हमारे देश में अनेक सामंतवादी प्रवृत्तियां आज भी जारी है आैर आम आदमी से बेगार आज भी कराया जाता है। आज की युवा पीढ़ी के पाठक शायद बेगार का अर्थ नहीं जानते। यह वह काम है जिसके लिए पारिश्रमिक नहीं दिया जाता। साधारण कर्मचारी साहब के कुत्ते को टहलाने ले जा रहा है तो वो बेगार ही कर रहा है। इस व्यवहार आैर गरिमा के बार-बार खंडित होने के कारण आम आदमी अपना तर्क खोकर अंधविश्वास आैर कुरीतियों का पालन करता है। बहरहाल आम आदमी अपने जीवन में काम के दोहराव के साथ स्वयं को मांजने के लिए कोई काम अपनी रूचि का भी करे, तो हमेशा तरोताजा रह सकता है। जीवन में काम के परे हॉबी का होना आवश्यक है। सामरसेर मोम, ए.जे. क्रोनिन आैर सर आर्थर कॉनन डायल ने डॉक्टर होते हुए उपन्यास आैर नाटक लिखे तथा आज वे बतौर डॉक्टर नहीं वरन् साहित्यकार जाने जाते हैं। सत्यजीत रॉय ने फिल्म निर्माण के समय भी अपने पूर्वजों द्वारा प्रारंभ बच्चों की पत्रिका का संपादन जारी रखा आैर बाल साहित्य का सृजन भी किया।
बहरहाल फरहान अख्तर ने अपनी सितारा हैसियत को भुनाने के बदले अच्छी पटकथा का इंतजार किया। इस तरह वे लंबी दौड़ का 'धावक' सिद्ध हो सकता है। आमिर खान ने भी अपने कैरियर में एक बंद गली में पहुंचकर यह निर्णय किया था कि अब वे लीक से हटकर काम करेंगे। 'लगान' से 'पीके' तक की यात्रा इसी का प्रमाण है। अजय देवगन ने अपनी पहली एक्शन फिल्म में सफलता पाई परंतु शीघ्र ही उन्होंने कम मेहनताने पर महेश भट्ट आैर प्रकाश झा की सार्थक फिल्मों में काम किया आैर अब वे 'सिंघम' से बाहर आने के लिए स्वयं एक फिल्म निर्देशित कर रहे हैं।