दो पल के जीवन से एक उम्र चुरानी है / जयप्रकाश चौकसे

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दो पल के जीवन से एक उम्र चुरानी है
प्रकाशन तिथि : 10 दिसम्बर 2019


शशि थरूर ने अपनी पहली पुस्तक 50 वर्ष की आयु में लिखी और अब उनकी बीसवीं किताब प्रकाशित होने जा रही है। उनका विचार है कि 60 वर्ष से 80 वर्ष तक की आयु सृजन का स्वर्ण काल होता है। वे यह कहने से चूक गए कि 80 पार की उम्र हीरों की तरह बहुमूल्य हो सकती है। शशि थरूर कहते हैं कि 'न्यू इंग्लैंड जर्नल ऑफ मेडिसिन 2016' में भी 60 पार सृजन को स्वर्णकाल लिखा है। नोबेल पुरस्कार पाने वालों को यह औसतन 62 की उम्र के बाद ही मिला है। शशि थरूर यह भी जानते ही हैं कि महाकवि जयशंकर प्रसाद, अंग्रेज कवि शैली और कीट्स 40 वर्ष की आयु के पहले ही नश्वर शरीर त्याग कर चुके थे। विष्णु खरे ने टी.एस. इलियट की कविताओं का अनुवाद अपनी उम्र के बीसवें वर्ष में ही कर लिया था। मोजार्ट ने 8 वर्ष की उम्र में एक सिंफनी की रचना कर दी थी। 'एमिडियस' नामक फिल्म मोजार्ट का बायोपिक है और महान फिल्म मानी जाती है।

'एमिडियस' फिल्म में प्रस्तुत किया गया है कि मोजार्ट की एक सिंफनी को सुनकर, उनके तत्कालीन संगीतज्ञ सेलरी, जो अपने राज्य के प्रतिनिधि संगीतकार के पद पर विराजे थे, जंगल की ओर भाग गए। एक निर्जन स्थान में वे कहते हैं कि 'हे ईश्वर आपने सारी प्रतिभा 'एमिडियस' मोजार्ट को दी और सेलरी को महत्वकांक्षा दी।' प्रतिभाहीन व्यक्ति का महत्वकांक्षी हो जाना उतना भयावह नहीं है जितना प्रतिभाहीन व्यक्ति का सत्ता प्राप्त करना होता है। वर्तमान में डोनाल्ड ट्रम्प और उन जैसे लोग ही अधिकांश देशों में सत्तासीन है। ट्रम्प पर तो महाभियोग क्रिसमस पूर्व ही दायर हो जाएगा। डेमोक्रेसी का यह मॉडल अन्य देशों ने नहीं अपनाया है।

'एमिडियस' मोजार्ट चाइल्ड प्रोडेजी माने जाते हैं अर्थात उन्होंने बचपन में ही महानता अर्जित कर ली थी। पश्चिम में चाइल्ड प्रोडेजी एक सामाजिक बीमारी बन गई। कई माता-पिता अपने बच्चों के बचपन में ही उनके महान सृजन कार्य करने की महत्वकांक्षा पालने लगे। इस प्रक्रिया में बच्चों ने बड़े अत्याचार सहे हैं। आजकल टेलीविजन पर बच्चों के गायन व नृत्य के कार्यक्रम दिखाए जाते हैं, जिनमें अपने बच्चों को शामिल करने के लिए माता-पिता तरह-तरह के जतन करते हैं। टेलीविजन पर प्रसारित नृत्य कार्यक्रम में बच्चे हड्डी तोड़ सर्कस के करतब दिखाते हैं, जिसे नृत्य माना ही नहीं जा सकता। शास्त्रीय नृत्य और शास्त्रीय संगीत की विरासत को हमने खो दिया है। कंप्यूटर जनित ध्वनियों के प्रयोग के कारण पारंपरिक वाद्य यंत्र बजाने वालों की संख्या नगण्य हो चुकी है। नागपुर निवासी श्री मनोज रूपड़ा के उपन्यास 'साज और आवाज' में एक सेक्साफोन वादक की त्रासदी का चित्रण भावना की गहराई के साथ किया गया है। आर.डी. बर्मन के सहायक मनोहारी सेक्साफाेन बजाने में माहिर थे और राजस्थान की एक संस्था उन्हें बार-बार आमंत्रित करती रही है।

प्रतिभा का आणविक विस्फोट उम्र का मोहताज नहीं है। अधिकांश लोग यह मानते हैं कि असाधारण प्रतिभा ऊपर वाले की देन है और प्रतिभा अनुवांशिक भी हो सकती है। दूसरी तर्क सम्मत विचारधारा यह है कि प्रतिभा परिश्रम से विकसित की जा सकती है। एकलव्य ने गुरु की प्रतिमा के सामने अभ्यास किया और प्रशिक्षित अर्जुन के समकक्ष बन गए। उनका अंगूठा काटा जाना स्वअर्जित प्रतिभा को समाप्त करने का काम माना जा सकता है। प्रतिभा के खिलाफ षड्यंत्र सदियों से जारी है। सामाजिक अंधकार गढ़ा जाता है। उल्लू अंधकार में ही देख पाते हैं। किशोर कुमार ने शास्त्रीय संगीत का अध्ययन नहीं किया था परंतु वे 'छह मात्रा गिनकर दादरा भी सुना पाए' और शिवरंजनी आधारित गीत भी गा पाए। हरफनमौला किशोर कुमार जीनियस थे। हर क्षेत्र में अनुभव से बहुत अंतर पड़ता है परंतु युवा अवस्था में भी लोगों ने महान कार्य किए हैं। मनुष्य शरीर में कितनी हड्डियां होती हैं, इत्यादि जानकारियां देने वाले डॉक्टर ग्रे की मृत्यु 32 वर्ष की अवस्था में हो गई, परंतु उनकी किताब मेडिकल कॉलेज के पाठ्यक्रम में शामिल है। यहां तक कि चीन में भी डॉक्टर ग्रे की लिखी एनोटॉमी पढ़ाई जाती है।