दो बहनों का बहनापा और प्रतिद्वंद्विता / जयप्रकाश चौकसे
प्रकाशन तिथि :13 जुलाई 2017
लता मंगेशकर एवं आशा भोसले का बहनापा और आपसी प्रतिद्वंद्विता भी कमाल की है। दोनों के फ्लैट के बीच का दरवाजा हमेशा खुला रहता है। लता मंगेशकर के फ्लैट में पूजा-कक्ष है, जहां वे प्रतिदिन रियाज़ भी करती हैं और उनके बाद आशाजी भी वहां रियाज़ करती हैं। उनकी रियाज़ की ध्वनियों से उनके घर हमेशा गूंजते रहते हैं और ध्वनि को ब्रह्म का स्थान देने वाली हमारी संस्कृति के अनुुरूप वह स्थान सदैव पवित्र बना रहता है। वैज्ञानिकों का मत है कि ध्वनि तरंगें कभी नष्ट नहीं होतीं, वे अविनाशी हैं। यहां तक कि पेड़-पौधों के सामने बैठकर संगीत साधने पर वे जल्दी पनपते हैं अर्थात खाद और पानी से अधिक आवश्यक है माधुर्य। संभवत: भैंस एकमात्र प्राणी है, जिसके सामने बीन बजाने का प्रभाव नहीं होता। ऐसी एक मान्यता जरूर है परंतु दूध निकालते समय संगीत के कारण भैंस अधिक दूध देती हैं अर्थात संगीत के प्रभाव से वे भी अछूती नहीं रहती हैं। सरकार अवाम का दूध प्राप्त करती हैं परंतु चारा नहीं डालती। उसके दोहन से बचना असंभव है।
जब शशि कपूर दो संस्कृत नाटकों से प्रेरित होकर गिरीश कर्नाड की फिल्म 'उत्सव' का निर्माण कर रहे थे तब वसंत देव के लिए लिखे एक गीत को दोनों बहनें गाने वाली थीं परंतु उन दिनों उनके बीच अबोला था। अत: पहले लताजी ने अपनी पंक्तियां रिकॉर्ड कराई और फिर आशा ने अपनी पंक्तियां रिकॉर्ड की परंतु मिक्सिंग इतनी बढ़िया हुई कि स्वर गलबहियां करते हुए ध्वनित होते हैं। यह गीत फिल्म में रेखा और अनुराधा पटेल पर फिल्माया गया है। वसंत देव ने कमाल का गीत लिखा है- 'बेला महका रे महका आधी रात को, रात शुरू होती है आधी रात को।' कहीं ऐसा तो नहीं कि इसी गाने से प्रेरित होकर संसद ने जीएसटी की घोषणा आधी रात को की? जिन दो रचनाओं से फिल्म प्रेरित है, उनमें से 'मृच्छकटिकम' नाटक को पृथ्वीराज कपूर तब अभिनीत कर चुके थे, जब वे एंडरसन थिएटर कंपनी में माहवारी वेतन पर अभिनय करते थे। यह शशि कपूर के जन्म से दस वर्ष पूर्व की घटना है।
कुछ वर्ष पूर्व दो गायिका बहनों के आपसी प्रेम और प्रतिद्वंद्विता पर एक सीरियल भी टेलीविजन पर दिखाया गया था परंतु वह बीच में ही रोक दिया गया। यह संभव है कि बहनों ने कोई दबाव निर्माता या सैटेलाइट चैनल पर बनाया हो। कभी पत्रकार रहे खालिद मोहम्मद ने दो गायिका बहनों पर फिल्म बनाई थी। एक बहन की भूमिका शबाना आज़मी ने अभिनीत की थी। लता-आशा के अलावा तीसरी बहन उषा ने भी पार्श्वगायन किया है। इनके पिता दीनानाथजी महान गायक थे और एक घुमक्कड़ नाटक कंपनी भी चलाते थे। एक प्रदर्शन के समय वे कुछ दिन इंदौर रुके और सिख मोहल्ले के घर में लता मंगेशकर का जन्म हुआ था। इस इत्तेफाक पर इंदौर गर्व कर सकता है। परंतु इस मामले में इंदौर की हेकड़ी पर देवास का टीला भारी पड़ता है, जहां कुमार गंधर्व का जन्म हुआ था। एक दौर में केतन मेहता कुमार गंधर्व पर वृत्तचित्र बनाना चाहते थे और इस विषय पर उनकी राहुल बारपुते से लंबी बातचीत हुई थी। बारपुते कुमारजी के घनिष्ठ मित्र थे। एक बार कुमार गंधर्व अजंता की गुफाओं में गायन करना चाहते थे परंतु सरकारी विभाग उन्हें अनुमति नहीं दे रहा था। इंदिरा गांधी के हस्तक्षेप से उन्हें अनुमति मिली। आकाशवाणी के विभिन्न केंद्रों पर अद्भुत रिकॉर्डिंग होती थी परंतु अपनी सांस्कृतिक धरोहर के प्रति सरकारी उदासीनता के कारण इस सम्पदा को खूब हानि पहुंची है। किसी दौर में इंदौर आकाशवाणी केंद्र के वाचनालय में 'ट्रायबल कस्टम्स ऑफ वेस्टर्न इंडिया' नामक बहुमूल्य किताब भी होती थी। अब वह गायब है। अनेक गुमशुदा चीजों को खोजने का विज्ञापन दिया जा सकता है और प्रयास भी किया जा सकता है। हुक्मरान भारतीय संस्कृति के नाम पर नारेबाजी बहुत करता है परंतु उसके संरक्षण के मामले में उदासीन बना रहता है।
एक बार पाकिस्तान के प्रधानमंत्री ने कहा था कि लता मंगेशकर उन्हें दे दें और कश्मीर ले लें। लताजी और आशा भोंसले हमारी राष्ट्रीय संपत्ति हैं। इनके बिना हम सचमुच बहुत ही गरीब और दयनीय होते। देश के विभाजन के समय गायिका नूरजहां पाकिस्तान में बस गई थीं परंतु वहां उनकी कला शिखर पर नहीं पहुंच पाई। वे स्वयं बहुत बड़ी लता प्रशंसक थीं। लताजी ने अपने कॅरिअर की शुरुआत में नूरजहां की शैली अपना थी, जिससे उन्हें राज कपूर ने मुक्त कराया और अपनी निजी शैली के विकास की सलाह दी। उनकी 'बरसात' से लताजी का स्वर्णयुग प्रारंभ हुआ। इतने लंबे समय तक किसी भी क्षेत्र में कोई भी व्यक्ति सिंहासन पर नहीं बैठा रहा। फिल्मकार बोनी कपूर ने जब अपनी फिल्म 'पुकार' का एक गीत लताजी से गवाया था तब संगीतकार रहमान लताजी के सम्मान में रिकॉर्डिंग करने मुंबई आए अन्यथा वे सारी रचनाएं चेन्नई स्थिति अपने स्टूडियो में ही करते हैं। इतना ही नहीं बोनी कपूर के निवेदन पर लताजी ने इस गीत के छायांकन में स्वयं कैमरे के सामने अदाकारी भी की है। ज्ञातव्य है कि लताजी ने अपना कॅरिअर अभिनय से ही प्रारंभ किया था।
लता मंगेशकर के जीवन से ही प्रेरित काल्पनिक फिल्म है 'सत्यम शिवम सुंदरम' और इसी फिल्म के टाइटल गीत से वे अपने स्टेज शो प्रारंभ करती हैं। खाड़ी देश के एक आयोजन में आयोजक ने लताजी से प्रार्थना की थी इस्लाम के मानने वालों के भूखंड पर आयोजित कार्यक्रम वे इस प्रार्थना गीत से नहीं प्रारंभ करें परंतु लताजी नहीं मानीं और इस गीत को खूब चाव से सुना गया। दरअसल, कला एवं संस्कृति राजनीतिक सरहदों से बंधती नहीं है वरन सरहदों के ऊपर इंद्रधनुुष की तरह छा जाती है। निदा फाज़ली की पंक्तियां हैं, "यह पत्थर कंकर की दुनिया जज़्बात की कीमत क्या जाने/ दिल मंदिर भी है, मस्जिद भी है, यह बात सियासत क्या जाने/ आज़ाद तू, आज़ाद मैं, जंजीर बदलती रहती है, दीवार वही है बस तस्वीर बदलती रहती है।' यहां शायर आर्थिक आज़ादी की बात कर रहा है। गुलजार ने फरमाया है कि जब सूरज की अंगीठी बूझने लगेगी तब धरती से कविता का कोई पन्ना उसे फिर दहका देगा।