दो बहनों की भावपूर्ण फिल्में / जयप्रकाश चौकसे
प्रकाशन तिथि : 14 जून 2019
अनीस बज्मी जब राज कपूर के लिए 'प्रेम रोग' की पटकथा एवं संवाद लिख रहे थे तो वे जैनेन्द्र जैन के प्रमुख सहयोगी थे। राज कपूर ने निर्देशन का भार भी जैनेन्द्र जैन पर सौंपा था परंतु कुछ दिन की शूटिंग के फुटेज को संपादित करके देखने पर पाया कि पटकथा के साथ न्याय नहीं हो पा रहा है। शम्मी कपूर और अन्य कलाकार भी जैनेन्द्र जैन के काम से संतुष्ट नहीं थे। अतः जैनेन्द्र जैन की सहमति से ही उनसे निर्देशन का दायित्व वापस लिया गया। उस समय अनीस बज्मी ने राज कपूर का सहायक निर्देशक बनने का निर्णय लिया। जब कभी राज कपूर अपनी टीम से बातचीत कर रहे होते वे अनीस बज्मी से पूछते कि दृश्य तीस में क्या किया गया है तो अनीस बज्मी पूरा दृश्य सुना देते। उन्होंने पटकथा को जुबानी याद कर लिया था। अनीस बज्मी ने कुछ फिल्मों का निर्देशन किया और कुछ पटकथा लिखीं। आज से कुछ वर्ष पूर्व बोनी कपूर अपनी सलमान खान अभिनीत फिल्म 'नो एंट्री' का भाग 2 बनाना चाहते थे तो उन्होंने 'नो एंट्री' के लेखक अनीस बज्मी को ही यह काम सौंपा परंतु 'नो एंट्री में एंट्री' नामक यह हास्य फिल्म कुछ कारणों से बन ही नहीं पाई। ताजा खबर यह है कि जाह्नवी कपूर ने अनीस बज्मी से मुलाकात की और उन्होंने श्रीदेवी की पुत्री के लिए पटकथा लिखना स्वीकार किया है। जाह्नवी की छोटी बहन खुशी भी अभिनय क्षेत्र में आ रही है और कुछ समय पश्चात दो बहनों की फिल्म बनाई जा सकती है। ज्ञातव्य है कि गुरुदत्त की फिल्म 'बहारें फिर आएंगी' भी दो बहनों के आपसी स्नेह और द्वंद्व की कथा थी। इस फिल्म को गुरुदत्त की मृत्यु के बाद उनके भाई ने पूरा किया था।
दरअसल, दो बहनों पर एक फिल्म विमल राय भी बना चुके थे। एक अन्य फिल्म में धनाढ्य व्यक्ति की मृत्यु के बाद उसकी बड़ी बेटी पिता का कारोबार संभालती है। वह एक प्रतिभाशाली युवक को अपना सहायक नियुक्त करती है। साथ-साथ काम करते हुए उन्हें प्रेम हो जाता है परंतु वह इस बात को नहीं जानती कि उसकी छोटी बहन भी उसके पति को प्रेम करने लगती है। वह अपने हनीमून से लौटती हैं तो छोटी बहन को घर पर नहीं पाती है। उसे छोटी बहन की डायरी से ज्ञात होता है कि वह भी उसके पति से प्रेम करने लगी थी परंतु उसने अपने प्रेम को अभिव्यक्त नहीं किया था। यह संभव है कि प्रेम को अभिव्यक्त करना वह प्रेम का अपमान मानती हो या शायद इसे अश्लीलता मानती हो। याद आता है 'श्री 420' का गीत 'प्यार हुआ इकरार हुआ, फिर प्यार से क्यों डरता है दिल' यह प्रेम नहीं वरन् उसके प्रदर्शन से भय है। इस फिल्म के अंतिम भाग में छोटी बहन मदर टेरेसा नुमा संस्था से जुड़ी पाई जाती है। बड़ी बहन कहती हैं कि वह तलाक देकर अपने पति से उसका विवाह करा देगी, परंतु छोटी बहन कहती है कि मानव सेवा में ही उसे परम आनंद मिल रहा है।
ज्ञातव्य है कि दक्षिण भारत में बनी हिंदी फिल्म 'नज़राना' में वैजयंती माला और उषा किरण बहनों की भूमिका में हैं, जिन्हें एक ही व्यक्ति से प्रेम हो गया है। राज कपूर इस फिल्म के नायक थे। कुछ वर्षों बाद 'नज़राना' का चरबा ही 'तोहफा' के नाम से बनाया गया, जिसमें श्रीदेवी और जयाप्रदा ने बहनों की भूमिका अदा की थी। शोभा डे के उपन्यास 'सिस्टर्स' में एक उद्योगपति के निधन के पश्चात उसकी वसीयत पढ़ी जा रही है और सारी संपत्ति उसकी इकलौती पुत्री के नाम है। ठीक उसी समय एक युवती आकर सबूतों सहित सिद्ध करती है कि वह उस उद्योगपति की प्रेयसी की पुत्री है और जायदाद पर उसका भी बराबरी का हक है। इस उपन्यास के रोचक घटनाक्रम से जायज बेटी यह मन ही मन स्वीकार करती है कि बराबरी का दावा करने वाली उसकी बहन ही है, क्योंकि नाजायज बेटी वही दांव-पेंच लगाती है, जिसके द्वारा उसके पिता ने इतना धन अर्जित किया था। शोभा डे की इस सशक्त कहानी से साहसी शारीरिकता के कुछ तत्व हटा दिए जाएं तो यह फिल्म के लिए आदर्श विषय है। भाइयों के प्रेम और द्वंद्व पर बहुत फिल्में बनी हैं परंतु पुरुष केंद्रित सिनेमा और समाज में दो बहनों के विषय को कम ही उठाया गया है। दो सहेलियों के बीच भी बहनापा पनपता है। पुरुष मित्रों के बीच अपशब्द उनके रिश्ते की मजबूती रेखांकित करती है, परंतु सहेलियां अपशब्द का प्रयोग नहीं करती, क्योंकि ऐसा करने पर उन्हें गलत समझा जाता है। नारियों को 'लिहाफ' में ही सिमटे रहने का आदेश है। हमारे समाज में कहावत है कि साली आधी घरवाली होती है। इम्तियाज अली की शाहिद कपूर और करीना कपूर अभिनीत फिल्म 'जब वी मेट' में इस आशय की बातचीत है कि करीना शाहिद से कहती है कि उसे उसकी बहन से शादी करना चाहिए। इस तरह वह उसकी साली तथा आधी घरवाली हो जाएगी। शाहिद कहता है कि उसे आधी नहीं पूरी चाहिए।
बहरहाल, जाह्नवी और खुशी में कितनी श्रीदेवी हैं और कितने बोनी कपूर यह तो समय ही बताएगा परंतु मनुष्य जेनेटिक प्रभाव के परे भी अपनी एक स्वतंत्र हैसियत रखता है। ज्ञातव्य है कि रवींद्रनाथ टैगोर ने भी 'दो बहनें' नामक उपन्यास में बहनों की अंतर्व्यथा का बेहद भावपूर्ण चित्रण किया है।