दो भाई / ओमप्रकाश कश्यप

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तो दो भाई थे. एक का नाम था गड़बड़. दूसरे का सड़बड़. दोनों ही जुड़वां, चेहरे-मोहरे से एक. गड़बड़ हमेशा गड़बड़ करता. सड़बड़ उसको समेटता फिरता. एक दिन तंग आकर सड़बड़ ने कहा—

‘बस बहुत हुआ…आगे ऐसा हरगिज नहीं चलने वाला!’

‘क्या नहीं चलने वाला भैया?’ गड़बड़ ने झूठी विनम्रता के साथ कहा. जैसा कि वह अक्सर कहा करता था. सड़बड़ तय कर चुका था कि इस बार वह गड़बड़ की बातों में हरगिज नहीं फंसेगा.

‘यही कि गलती तू करे और दंड मुझे मिले… उस दिन दादाजी की छड़ी छिपाकर तूने रखी. उन्हें शक मुझपर हुआ…मार भी मुझको पड़ी.’

‘यह तो दादाजी की गलती हुई छोटू. यानी बड़ों की गलती. जो वे अक्सर करते रहते है. दूसरों की गलती के लिए झगड़ना हम बच्चों को शोभा नहीं देता. फिर हम दोनों तो सगे भाई हैं.’ गड़बड़ ने बातों में उलझाने की कोशिश की.

‘तू कुछ भी कह. पर मैं मानने वाला नहीं हूं…’ सड़बड़ ने ऐलान किया, ‘आगे तू जाने…मैं चला अपनी राह.’ इतना कहकर सड़बड़ अपने रास्ते चला. गड़बड़ अपने रास्ते. धीरे-धीरे कई दिन बीते. सड़बड़ अब खुशी था. वह जितनी मेहनत करता. उसका फल भी पाता. जिससे उसकी हालत दिनोंदिन सुधरती जा रही थी. एक दिन उसे अपने भाई गड़बड़ की याद आई.

‘कई दिन हुए भाई से बिना मिले. वह जैसा भी हो, हैं तो आखिर मेरा भाई ही. चलकर देखूं तो कि उसकी कैसी हालत है?’ सड़बड़ ने सोचा. परंतु मन के कोने से तभी आवाज आई, ‘पुराने दिन भूल गया? गड़बड़ के दिमाग पर शैतानियत का साया है. उससे जितना दूर रहे उतना ही अच्छा.’

सड़बड़ के कदम ठिठके. पर मन में तो भाई का प्रेम उछाहे मार रहा था. सो पुरानी सारी बातें, गड़बड़ के कारण भोगे गए दुख-दर्द सब हवा हो गए. सारी बातें बिसराकर वह भाई से मिलने चल दिया. गड़बड़ का ठिकाना दूर था. सो चलते-चलते शाम हो आई. धुंधलका छाने लगा. चारों ओर घना जंगल था. मंजिल दूर. उसने रात जंगल में ही बिताने का फैसला किया. एक पेड़ के नीचे सुरक्षित ठिकाना देखकर सड़बड़ लेट गया. दिन-भर का थका हुआ था. सोते ही नींद ने आ घेरा. तभी किसी ने उसका कंधा झिंझोड़कर जगाया.

‘क…क…कौन है?’

‘उठो, हम हैं बड़बड़ राजा के सिपाही.’

‘यहां किसलिए आए हो?’

‘तुमने हमारे तालाब के पानी को झूठा किया है.’

‘पर मैंने तो यहां कोई तालाब नहीं देखा. चारों तरफ जंगल ही जंगल है…उल्टे प्यास से मेरा गला सूखा जा रहा है.’

‘झूठ मत बोलो. हमारे रक्षकों ने तुम्हें पहचान लिया है.’ बड़बड़ राजा के सेनापति ने कहा.

‘उन्हें जरूर कोई गलतफहमी हुई होगी…’

‘जो भी कहना है हमारे राजा साहब के सामने कहना…’

सड़बड़ हैरान था. उसकी बुद्धि काम ही नहीं कर रही थी. सेनापति के संकेत पर सिपाहियों ने उसे गिरफ्तार कर लिया. उसको लेकर वे बड़बड़ के दरबार में पहुंचे.

महराज बड़बड़ को सदा बड़बड़ करते रहने की आदत थी. चुप रहना उसकी नजर में अपराध था. रोज वह इतना बोलता, इतना बोलता कि दो-चार दरबारी मूर्छित होकर गिर जाते. अकेला रहने से वह घबराता. यहां तक कि स्नानघर में भी ज्यादा देर अकेला रहने से बचता. दो-चार लोटे पानी सिर पर उलीच फौरन दरबार में चला आता. पीछे-पीछे कपड़े पहनाने वाले दास-दासियां भी आते. उस समय भी वह नहाकर निकला था. अधनंगे बदन. चार सेवक कपड़े पहनाने में लगे हुए थे.

‘तो तुम हो जिसने हमारे तालाब के पानी को झूठा करने की हिमाकत की है?’ बड़बड़ ने पूछा. सड़बड़ जवाब दे पाए उससे पहले ही वह पलटा, ‘जरा धीरे से कमबख्त! क्या बालों को उखाड़ ही डालेगा.’ उसने मुकुट बांधने के काम में लगे सेवक को धमकाया.

‘मैंने तो तालाब देखा तक नहीं महाराज!’ मौका देख सड़बड़ ने सफाई पेश की.

‘पहले इस सफेद बाल को मेरे मस्तक से उखाड़ो. नामाकूल जाने क्यों उग आते हैं…नहीं तुम वहीं खड़े रहो…तो क्या हमारे सैनिक झूठ कह रहे हैं?’

‘उनसे कोई चूक हुई है महाराज…’

‘हम इससे बाद में निपटेंगे…पहले हमारे दर्जी को पेश किया जाए…’ बड़बड़ ने सेनापति को आदेश दिया. यह सुनकर सब सकते में आ गए. जरूर दर्जी ने कोई गलती की है. चार सैनिक तीर की तरह निकले. कुछ ही देर में वे दर्जी को लेकर हाजिर हो गए. दुबला-पतला दर्जी भय से कांप रहा था.

‘इसको भरे दरबार में सौ कोड़े की सजा दी जाए.’

‘मुझसे कौन-सा अपराध हुआ है महाराज…’

‘तुम वर्षों से हमारे वस्त्र सिलते आ रहे हो. फिर भी गलती. अंगरखे में बटन ऐसा टांका कि लगाते समय ही टूट गया.’

‘माफ कर दीजिए महाराज! लाइए मैं अभी टांके देता हूं.’ दर्जी आगे बढ़ा.

‘अंगरखे का बटन टूटना तो बहुत बड़ा अपशकुन होता है महाराज…’ पुरोहित ने बीच में ही टोका.

‘अगर ऐसा है तो इस दर्जी को कैद कर लिया जाए और इस अपशकुन को टालने के लिए जरूरी इंतजाम किए जाएं.’ बड़बड़ ने नादानी से भरी बड़बड़ की. दर्जी को जेल भेज दिया गया. राजा का मूड खराब हो चुका था. इसलिए सड़बड़ का मामला भी अगले दिन पर टाल दिया गया. दर्जी के साथ-साथ उसे भी कारागार के हवाले कर दिया गया. एक अंधेरे कमरे में उन दोनों को कैद कर दिया गया.

दर्जी निश्चिंत नजर आ रहा था. सड़बड़ ने उससे इसका कारण पूछा.

‘तुम नहीं समझोगे…’ दर्जी ने बताया.

‘तुम समझाओगे तो क्यों नहीं समझूंगा?’

‘यह सबकुछ एक तमाशा है…खाली तमाशा. महाराज बड़बड़ को सिवाय जवांदराजी के कुछ और आता ही नहीं. इसीलिए वह डरता भी है. इसी का फायदा उठाने में पुरोहित-सेनापति सब लगे रहते हैं. किसी ने राजा का बटन जान-बूझकर तोड़ दिया होगा. जिससे उसको अपशकुनी का डर दिखा तंत्र-अनुष्ठान के नाम पर कुछ धन ऐंठा जा सके. इसी कारागार में मुझ जैसे सैंकड़ों निरपराध बंद मिल जाएंगे.’

‘फिलहाल तो तुम जेल में हो. जिन लोगों ने तुम्हारे विरुद्ध साजिश की है वे सजा दिलवाने में भी क्यों पीछे रहेंगे.

‘मैं गुनिया लुहार की तरह लाचार नहीं हूं. जिसे तलवार पर जंग लगने के बहाने से सालों से कारागार में बंद किया हुआ है. मेरी बुद्धिमान बेटी मुझे मुझे इस कारागार से बाहर निकाल ही लेगी. उसपर मुझे पूरा भरोसा है.’

‘मेरा तो कोई नहीं है…गुनिया की तरह क्या मुझे भी जिंदगी-भर इस कारागार में रहना पड़ेगा.’ सड़बड़ सचमुच उदास हो गया. उसने अपनी कहानी सुना दी. दर्जी हंसने लगा, ‘मेरी तरह तुम भी षड्यंत्र का शिकार हुए हो. तुम्हें फंसाने वाला सेनापति है. अपनी कारगुजारी दिखाने के लिए वह हमेशा ऐसे ही कदम उठाता है. जिससे प्रजा में डर फैला रहे और कोई उसकी शिकायत लेकर राजा के पास जाने की हिमाकत न करे.’

‘मेरा तो कोई मददगार भी नहीं है.’

‘तुम फिक्र मत करो. सुबह मेरी बेटी मिलने के लिए आएगी. मैं उससे कहूंगा कि वह तुम्हारे लिए भी कुछ करे.

‘तुम बहुत भाग्यशाली हो जो ऐसी बुद्धिमान बेटी मिली…’ सड़बड़ ने कहा. इसपर दर्जी एकाएक उदास हो गया. सड़बड़ ने उसकी उदासी का कारण जानना चाहा. पर वह चुप्पी साधे रहा. आखिर बहुत टोकने पर उसने कहा— ‘सिर्फ बुद्धिमान होना ही आजकल के जमाने में कुछ नहीं है.’ इससे आगे दर्जी का मन टटोलने के लिए सड़बड़ ने बहुत प्रयास किया पर नाकाम रहा.

मुंह-अंधेरे ही दर्जी के बेटी उससे मिलने के लिए आ पहंुची. दर्जी उससे अकेले में बात करता रहा. सड़बड़ उसे देखता रह गया. लड़की का रंग बहुत ही काला था. इतनी काली लड़की उसने देखी तक नहीं थी. दर्जी से बात करने के बाद लड़की वापस लौट गई. उसके कुछ देर बाद ही उन दोनों की रिहाई के आदेश आ गए. सड़बड़ हैरान था.

‘अब कहां जाओगे?’ दर्जी ने सवाल किया.

‘मैं तो अपने भाई से मिलने निकला हूं. तुम बुरा न मानो तो मैं कुछ देर के तुम्हारी बेटी से बात करना चाहूंगा.’

‘मुझे भला क्या आपत्ति हो सकती है. बल्कि मुझे तो तुम भले इंसान लगे. इससे पहले भी मेरी बेटी ने कई निरपराध लोगों को इस कारागार से मुक्त कराने में मदद की थी. पर वे धन्यवाद का एक भी शब्द कहे बिना चले गए. कम से कम तुममें इतनी इंसानियत तो है जो मेरी बेटी का आभार व्यक्त करना चाहते हो. वैसे यदि तुम्हें जल्दी हो तो जा सकते हो. मैं तुम्हारी भावनाओं को उस तक पहंुचा दूंगा.’ दर्जी ने कहा. लेकिन सड़बड़ उसके साथ चल दिया. घर पहंुचने पर दर्जी की बेटी ने उसका स्वागत किया. कुछ देर तक दर्जी और वह बात करते रहे. तब तक वह जलपान का प्रबंध कर चुकी थी.

‘तुम्हारी बुद्धिमानी की चर्चा मैं इनके मुंह से सुन चुका हूं. फिर भी जाने से पहले मैं जानना चाहूंगा कि बड़बड़ राजा का दिमाग रास्ते पर लाने के लिए तुमने कौन-सी तरकीब निकाली थी.’ दर्जी की बेटी सुनकर हंसने लगी. फिर बताने लगी— ‘ऐसे लोग दिमाग से काम नहीं लेते. इसलिए उसी रास्ते से काम निकालना पड़ता है जिसे वे अच्छी तरह समझते हों. जिस समय मैं दरबार में पहंुची, पुरोहित अपशकुनी के निदान के लिए अनुष्ठान कर रहा था. अपने साथ मैं अपनी पालतू बिल्ली को भी लेकर गई थी. अनुष्ठान संपन्न करने के बाद जैसे ही पुरोहित राजा के मस्तक पर पवित्र जल छिड़कने लगा, मेरे इशारे पर बिल्ली राजा के ठीक सामने खड़ी हो गई. उसे देखते ही सारे दरबारी सकते में आ गए. कुछ को लगा कि कोई भारी अपशकुन हुआ है.’

‘आहा…इस समय बिल्ली का आना शुभ शकुन है. हमारा अनुष्ठान अच्छी तरह संपन्न हुआ है. आपका शीघ्र ही भाग्योदय होगा.’

‘परंतु बिल्ली तो मेरी है…’ मैंने कहा. सभी को मालूम था कि बिल्ली मेरे साथ गई थी.

‘यानी बिल्ली के साथ कन्या आगमन…यह तो सोने पर सुहागे वाली बात हुई. इस समय तुम भी महाराज की शुभचिंतक बनकर आई हो. इसके लिए महाराज तुम्हें ईनाम देंगे.’ पुरोहित ने कहा. उसके कहने पर राजा ने मुझसे कुछ भी मांगने लेने को कहा. तब मैंने अपना परिचय दिया और बदले में आप दोनों की रिहाई मांग ली.’

‘तुमने बहुत खतरा उठाया. धूर्त पुरोहित राजा से और धन ऐंठने के लिए बिल्ली के आगमन को अपशकुन भी बता सकता था.’

‘दरबार में पुरोहित से ईष्र्या करने वाले लोग भी हैं. यदि वह ऐसा करता तो वे कहते कि उसने अनुष्ठान अशुभ समय पर शुरू किया था. जिससे उसमें विघ्न पड़ा.’ लड़की ने हंसते हुए कहा.

‘जैसा तुम्हारे पिता ने बताया था तुम उससे भी अधिक बुद्धिमान हो. तुम्हारा पति दुनिया का सबसे भाग्यशाली इंसान होगा.’ सड़बड़ ने कहा. यह सुनते ही लड़की तुरंत कमरे से बाहर निकल गई. दर्जी के चेहरे पर भी अवसाद छा गया. सड़बड़ को विस्मय हुआ, ‘मुझसे कोई भूल हुई है क्या?’

‘तुमने जो कहा वह ठीक ही है. पर ज्यादातर लोग तो चमड़ी की चमक को दिल और दिमाग की सुंदरता से ज्यादा मान देते हैं. मैं उसके लिए वर्षों से वर की खोज में हूं. उसकी बुद्धिमानी की चर्चा सुनकर प्रस्ताव आते ही रहते हैं. लेकिन रंग देखकर सब पीछे हट जाते हैं. तुम मेरे दुःख को समझ सकते हो.’

‘मैं तुम्हारी बेटी से जानना चाहूंगा कि बड़बड़ जैसे राजा से जिससे सारी प्रजा दुःखी है प्रजा को बचाने का कोई तो इंतजाम होगा.’

दर्जी के बुलाने पर उसकी बेटी फिर बाहर आ गई. पूछने पर बोली—‘कहावत है कि बुरा करने वाले मर जाते हैं. मगर बुराई कभी नहीं मरती. हां, उसे खदेड़ा जरूर जा सकता है. किसी ऐसी जगह जहां से वह हमको कम से कम नुकसान पहंुचा सके. पर इसके लिए प्रजा को जगाना आवश्यक है. प्रजा जाग्रत होगी तो पुरोहित और सेनापति जैसे लोग कभी मनमानी नहीं कर पाएंगे.’

‘यह कैसे होगा?’

‘लगातार कोशिश से…पर जाने दीजिए ये सब बेकार की बाते हैं. इसके लिए लोगों के पास फुर्सत ही कहां है.’

‘अगर हम दोनों मिलकर कोशिश करें, क्या तब भी…’

‘मैं भी आप दोनों के साथ हूं भइया…’ पीछे से आवाज आई. सड़बड़ ने पीछे मुड़कर देखा. उसका भाई गड़बड़ खड़ा था.

‘तुम यहां?’

‘मैं तो तुम्हारी परछाईं की तरह हूं… जहां-जहां जाओगे, वहीं मुझे पाओगे.’ गड़बड़ ने कहा.

‘ठीक है…पर इस बार कोई गड़बड़ मत करना, नहीं तो…’ सड़बड़ ने मुक्का तान लिया. इसपर सभी हंसने लगे.