दो रानियाँ / ख़लील जिब्रान / बलराम अग्रवाल
शावाकिस नगर में एक राजा रहता था। हर आदमी, हर औरत, हर बच्चा उसे चाहता था। यहाँ तक कि जंगली जानवर भी उसे प्यार देखने आते थे।
लोगों का कहना था कि रानी उसे बिल्कुल भी नहीं चाहती। यही नहीं, वह उससे नफरत भी करती है।
एक दिन पड़ोसी राज्य की रानी शावाकिस की रानी से मिलने आई। वे बैठकर बातें करने लगीं। चलते-चलते बात पतियों पर आ गई।
शावाकिस की रानी ने उत्तेजित स्वर में कहा, "मुझे तो पति के साथ तुम्हारे प्रसन्न रहने से चिढ़ हो रही है। शादी के इतने साल बाद भी तुम खुश हो! मुझे तो अपने पति से नफरत है। वह सिर्फ मेरा नहीं है। मैं नि:संदेह, दुनिया की सबसे दु:खी औरत हूँ।"
पड़ोसी रानी एकटक उसको देखती रह गई। बोली, "सखी, सचाई यह है कि अपने पति से तुम्हें असीम प्यार है। उसके लिए तुम्हारे हृदय में अभी भी असीम पागलपन है। औरत के हृदय में अनन्त वसंत होता है। मैं और मेरे पति, असलियत यह है कि साथ रहते हुए भी एक-दूसरे को हम किसी तरह बस झेल रहे हैं। और तुम और दूसरे लोग इसे प्यार समझते हो।"