धन्यवाद / रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’
बोर्ड की परीक्षा का आज तीसरा दिन है। कल तक पुलिस के जो सिपाही बीड़ी पी रहे थे आज विल्स फिल्टर पी रहे हैं। सुरेश ने दो दिन तक किसी भी छात्र को गर्दन न उठाने दीं। केन्द्र अधीक्षक बत्राजी की हिदायत थी कि नकल नहीं होनी चाहिए. इस बात से सुरेश को प्रसन्नता ही थी, लेकिन तीसरे दिन का यह परिवर्तन समझ में नहीं आया। किराए पर लाए गए कुछ दादा लॉन में टहल रहे थे। पुलिस वाले उनसे हंस–हंसकर बतिया रहे थे। सुरेश कुछ नहीं समझा। एक घण्टा बीत गया। उसे साथी चमन का कहीं पता नहीं था।
प्रश्नपत्र किसी के द्वारा नीचे पहुँचा दिया गया था। उत्तर लिखे पेपर कंकड़–पत्थर से बांधकर खिड़कियों से कमरे में फेंके जाने लगे। पुलिस वाले दूर किनारे पर खड़े थे। एक पुलिस वाला तो किसी साहब के बेटे केा पुर्जी देने के लिए कमरे में ही आ घुसा जिसको बमुश्किल बाहर निकाला गया। केन्द्र अधीक्षक ने भी नहीं रोका। कमरे के पीछे खड़े शोहदे सुरेश का नाम लेकर मोटी–मोटी गालियाँ दे रहे थे। इतने में सुखलाल जी आए. सुरेश इन्हें आदर्श शिक्षक मानता है। वे पास आकर फुसफुसाए–"इस रूम में चार अपने ही छात्र हैं। नाम ये हैं–" कहकर एक पूर्जी थमा दीं। इतने में केन्द्र अधीक्षक आए और धीरे से बोले–"सबसे पीछे जा बाब्ड हेयर लड़की बैठी है, अपने दोस्त की बहिन है। ज़रा उसका ख्याल रखना। उसे मत टोकना, जो करे करने देना।"
सुरेश जैसे दलदल में धँसता जा रहा था। वह एक छात्र के पास रुक गया जो डेस्क में पुस्तक रखे लिख रहा था। उसने टोका–"यह क्या बदतमीजी है?"
"सर, मैंने चमन जी से पूछ लिया है। इस स्कूल के प्रिंसिपल मेरे मामा हैं।"
"अच्छा!" सुरेश पराजित होकर बोला।
वह सामने आकर खड़ा हो गया और बोला–"सभी छात्र ध्यानपूर्वक सुनें..." इतना कहने पर सन्नाटा छा गया। सभी लिखना बन्द करके सुरेश की तरफ देखने लगे। वह एक क्षण रुककर फिर कहने लगा–"सभी जी खोलकर नकल करें। जो नकल नहीं करेगा उसके लिए मुझसे बुरा कोई नहीं।"
इतना कहकर वह निस्पन्द होकर कुर्सी में धंस गया। कुछ देर बाद कंकड़–पत्थर आने बन्द हो गए. परीक्षा समाप्त होने पर जैसे ही वह बाहर निकला शोहदों ने हाथ जोड़कर नमस्कार किया तथा धन्यवाद प्रकट किया। लेकिन सुरेश की आँखें ऊपर नहीं उठीं।