धरती पर रेंगती, आकाश में उड़ती अफवाह / जयप्रकाश चौकसे

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धरती पर रेंगती, आकाश में उड़ती अफवाह

प्रकाशन तिथि : 18 अगस्त 2012

प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह बयान दे रहे हैं कि अफवाह फैलाने वालों को तुरंत दंडित किया जाए, लेकिन उन्हें नहीं मालूम कि हमारी सुस्त कछुआ व्यवस्था में तुरंत कुछ नहीं होता। सरकारी मशीनरी के चक्र रिश्वत का तेल डाले बिना तीव्र गति से घूमते ही नहीं। टेक्नोलॉजी हमेशा दुधारी तलवार की तरह लाभ के साथ हानि भी पहुंचाती है। आज अफवाह फैलाने के लिए कानाफूसी की आवश्यकता नहीं है। मोबाइल पर एक बटन दबाते ही सैकड़ों जगह संदेश पहुंच जाता है।

हम लोग राष्ट्रीय उत्सव या धार्मिक त्योहारों पर शुभकामना के संदेश भेजने से ज्यादा रुचि गैर-सामाजिक बातें फैलाने में लेते हैं, क्योंकि बतर्ज 'विकी डोनर' हमारे जींस में ही गरिमा गढऩे से अधिक आनंद गरिमा खंडन में आ गया है। मसलन विरोधी दल संसद में यह भी कह सकते हैं कि सूर्य पश्चिम से निकलता है। उन्हें विरोध के लिए विरोध करना है। मुंबई में हाल में हुई शर्मनाक घटना का षड्यंत्र भी संभवत: उन नेताओं ने रचा, जिन्हें महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री को अक्षम सिद्ध करना है। सत्ता की खातिर मनुष्य बनाम मनुष्य अघोषित युद्ध के हालात बनाना कुछ लोगों को जरूरी लगता है।

इतिहास गवाह है कि सामूहिक पलायन ने सभ्यताएं रची हैं और यह पलायन विकास की नई मंजिलों की तलाश के लिए किया गया है, परंतु असुरक्षा के भय के कारण हुआ पलायन सभ्यताओं को नष्ट करता रहा है। हमारा तो अडिग निश्चय है कि हम असुरक्षा-जनित पलायन को ही बढ़ाते हैं, क्योंकि इसमें दूसरों की संपत्ति को लूटने के अवसर बनते हैं। लेटिन अमेरिका की एक फिल्म में मंत्री निश्चय करता है कि बाढग़्रस्त शहर से पानी के निकास के रास्ते कुछ दिन रोके रहें, ताकि नावों के जरिए पलायन करने वालों द्वारा खाली किए गए मकानों को सस्ते में खरीदा जा सके।

मनुष्य के अवचेतन में अनेक प्रकार के रहस्यमय भय होते हैं और उनकी ही एक अभिव्यक्ति अफवाह गढऩा भी है। कल्पनाशीलता सृजन भी करती है, परंतु भीरु व्यक्ति की कल्पनाशीलता का अपव्यय अफवाह गढऩे में होता है। कुछ बच्चे खिलौनों से खेलते हैं और कुछ बच्चे खिलौने तोड़ते हैं। केवल विकास द्वारा मनुष्य की बेहतर प्रवृत्तियां विकसित नहीं होतीं। सरकारों ने अपने सिर पर बहुत से ऐसे व्यवसायों का भार ले लिया है, जो उन्हें व्यापारियों को सौंपकर अपनी शक्ति निष्पक्ष ढंग से कानून-व्यवस्था में लगानी चाहिए। दुर्भाग्यवश आर्थिक उदारवाद के द्वारा उद्योगों के विकास का लाभ उद्योगपतियों के लालच ने स्वयं के लिए समेट लिया और उनकी महत्वाकांक्षा की छलनी से गुजरकर बूंद, दो बूंद ही नीचे पहुंची, इसलिए सरकार का ध्यान मसीहा बनकर प्रगति को निचले तबके से प्रारंभ करके ऊपर तक पहुंचाने की प्रक्रिया में लगा है, क्योंकि शिखर पर डाले गए एक लोटा पानी की मात्र एक बूंद ही नीचे तक पहुंची और सारा जल व्यवस्था की घुमावदार देह में ही उलझकर रह गया।

बहरहाल, आजादी के बाद रोजी-रोटी की तलाश में कस्बों से महानगरों की ओर पलायन हुआ, जिस कारण हमारे महानगरों का विकास कुछ ऐसे हुआ कि उनकी परिधि में छोटे-छोटे अनेक कस्बे बस गए। हम न कोई शुद्ध महानगर बना पाए और न ही कस्बों का विकास कर पाए। इस पलायन से भारतीय सिनेमा को नए नायक व खलनायक मिले। राज कपूर की 'आवारा', 'श्री ४२०' और 'जागते रहो' जैसी फिल्मों के नायक कस्बों से महानगर में आए, जिनकी चकाचौंध उन्हें अपराध की संकरी गलियों में ले गई। बहरहाल, अफवाह रोकने और उस पर भरोसा नहीं करने का काम राष्ट्रीय महत्व का है। वर्तमान का पलायन विघटन का सूत्रपात कर सकता है। स्कॉटलैंड की तरह हर नागरिक को जासूस और सिपाही बनने का समय है। पंद्रह अगस्त की सुबह रेशमा शेट्टी के घर फिल्म प्रदर्शन के पूर्व की पारंपरिक पूजा में कैटरीना कैफ के माथे पर लगाया गया तिलक किंचित बढ़ा होकर उनकी मांग तक पहुंच गया और सलमान भी तिलक लगाए सिनेमाघर पहुंचे तो लोगों ने अफवाह फैला दी कि दोनों शादी कर चुके हैं। अफवाह का अंधड़ ऐसा फैला कि कैटरीना के लंदन में बसे रिश्तेदारों के फोन आने लगे और बेचारी को रोना आ गया। अफवाह के पंख नहीं डैने होते हैं।