धरती स्वर्ग का कार्टून है / जयप्रकाश चौकसे
प्रकाशन तिथि :28 जनवरी 2015
गणतंत्र दिवससंविधान लागू होने का पवित्र दिन है और इसके प्रथम पृष्ठ पर अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का अवाम को वादा किया गया है और इसी दिन अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के सबसे महान योद्धा आरके लक्ष्मण का देहावसान हो गया। उनका अलविदा कहना संविधान द्वारा किए गए वादे के लिए आखिरी दीये के बुझने के समान माना जा सकता है। कोई आधी सदी तक अखबार के प्रथम पृष्ठ पर दो गुणा तीन इंच के अल्पतम स्थान पर महाकाव्य रचने वाले आरके लक्ष्मण ने समाज के हाशिए पर न्यूनतम जगह में जकड़े आदमी की खामोशी को अभिव्यक्ति दी। जिस तरह गुटका रामायण गीता प्रेस जारी करता रहा है और कुछ कलाकारों ने अनाज के दाने पर गीता सार लिखा है, उसी तरह आरके लक्ष्मण अपने कार्टून में आम आदमी की व्यथा का महाकाव्य प्रतिदिन इतने लंबे समय तक रचते रहे कि कभी-कभी सृजन के बांझ होने के स्वाभाविक सिद्धांत को उन्होंने भंग कर दिया। यह इस तरह है मानो सचिन तेंडुलकर हर मैच में शतक मारते रहे हों।
आरके लक्ष्मण अपने कार्टून द्वारा प्रथम पेज पर संपादकीय की तरह रचना करते रहे। साहित्य विधा में व्यंग्य के पुरोधा हरिशंकर परसाई और शरद जोशी जो शब्द चित्र बनाते थे उसी तरह की पैनी मार आरके लक्ष्मण करते थे। व्यंग्य और कार्टून विधा का कमाल यह है कि उनका आहत शिकार आह भरते हुए भी मुस्कुराता है- इस दृष्टि से इस विधा को साहित्य कला की अहिंसा मानना चाहिए, कहीं एक बूंद भी रक्त नहीं बहता और संहार हो जाता है। उनका कुरुक्षेत्र रक्तरंजित नहीं है और "फसल' लहराने में हजार वर्ष बंजर भी नहीं रहता। कमोबेश वह बेआवाज खुदा की मार की तरह है। लक्ष्मण अहिंसा मंत्र के उतने ही बड़े दावेदार हैं जितने महात्मा गांधी। उन्होंने आम आदमी की छवि में उसकी भूख को उसके फूले हुए पेट से चित्रित करते हुए उस भूखे आदमी को अपच का रोगी बताया, लंबे समय तक फांके रखने पर यही होता है। उसकी खोपड़ी पर दाएं, बाएं मात्र चंद बाल है जो उसका गंजापन ऐसे ही ढंकते हैं जैसे फुटपाथ पर सोता ठिठुरता नंगा मनुष्य फटे पोस्टर से अपना तन ढांकने का प्रयास करता है और उस पोस्टर पर किसी नेता का मुस्कुराता चेहरा है। याद कीजिए दुष्यंत कुमार को जो कहते हैं, "न हो कमीज तो घुटनों से पेट ढंक लेंगे, कितने मुनासिब हैं ये लोग इस सफर के लिए'। यह सुखद आश्चर्य है कि सदियाें से कराहती मानवता और रुग्ण समाज की विसंगतियों को बयां करने के लिए कबीर किस-किस रूप में अवतरित होते हैं, परंतु हमारा अभागा कालखंड अब इस नियामत से भी वंचित हो गया है। फिर भी हमें जागते रहना है और सारी रात दरवाजा खुला रखना है, वह आएगा। ऐसी क्षीण सी निर्बल आशाएं आम आदमी का संबल रही हैं।
लक्ष्मण के आम आदमी की छोटी मूंछ भी है जो हिटलर की नहीं वरन् चार्ली चैपलिन के ट्रैम्प की हैं। उनके आम आदमी का एकमात्र हथियार छाता है जो उसे अन्याय के ताप और मुसीबतों की बारिश से बचाने की तसल्ली मात्र है, क्योंकि किसी भी कार्टून में वह अपना छाता खोले हुए नजर नहीं आता। हुकूमत ने इसकी आज्ञा नहीं दी है। एक विद्वान का कहना है, जिसे अनाम होने के कारण हम मलाला या सत्यार्थी के नाम से भी पुकार सकते हैं कि खाली स्कूल या स्कूल का अभाव और 6.6 करोड़ बच्चों का शिक्षा से महरूम रहना गरीबी के कारण नहीं है और इस संदर्भ में लक्ष्मण का कार्टून कोना एक स्कूल की तरह था और इस मदरसे में उसकाे छुट्टी ना मिली जिसे सबक याद हो गया। मनुष्य की सबसे बड़ी संपदा विचार करने और उसे अभिव्यक्त करने की स्वतंत्रता है तथा इसी पर सदियों से अतिक्रमण होता रहा है। अनगिनत आम आदमियों के गले में घुट कर रह जाने वाली आवाज को लक्ष्मण प्रस्तुत करते रहे हैं। उसे आवाज नहीं वरन् सिसकी कहना बेहतर होगा।
लक्ष्मण ने गांधी, नेहरू, चर्चिल, इंदिरा, निकता ख्रुश्चेव के साथ हर क्षेत्र के महारथियों को विषय बनाया। उनके साहस के साथ उस दौर के नेताओं की सहिष्णुता को भी सलाम। अब अपने किसी और अवतार में शायद लक्ष्मण यह नहीं कर पाएं। इंदिराजी की नाक और फील्ड मार्शल मानेकशॉ की समान लंबी नाक भी उनसे बची नहीं रही। किसी भी सत्ता के सामने वे झुके नहीं। उदारवा की सुविधाओं से उभरते हुए प्रमथ्यु का कहना है कि लक्ष्मण के जाने से गरीब आदमी गुरबत की तल तक जा पहुंचा है। उसके पास खोने को कुछ नहीं। बदलती सत्ताओं ने अमीर को अधिक अमीर और गरीब को और अधिक गरीब बनाए रखने के लिए सौ-सौ जाल बिछाए परंतु अनचाहे ही लक्ष्मण उनका काम कर गए। प्रमथ्यु की यह चिंता है कि स्वर्ग में समानता न्याय अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता है, अत: बेचारे आरके लक्ष्मण वहां क्या करेंगे। नारद मुनि से क्या कहेंगे। मुतमुइन रहें, कुछ श्रेणी भेद तो वहां भी होगा क्योंकि धरती भी उस स्वर्ग का कार्टून है या उसकी उलटबांसी है। यह भी संभव है कि वहां ऊब कर वे धरती पर जल्दी लाैट आएं, इसीलिए सारी-सारी रात जागते रहना, दरवाजा खुला रखना, जाने वाला लौट कर आएगा।