धरमदास रोॅ कपली गाय / अमरेन्द्र
ढीबा धरमदास केॅ पूरा नाम सें शायते कोय पुकारलकौ, पुकारलकोॅ तेॅ ढीबा जी ही कही केॅ। हों, ओकरोॅ संगी साथी ज़रूरी ढीबा धरमदास कहै, जे खाय-पीयेै में बरवक्त साथे रहे।
ढीबा। ई नाम ओकरोॅ दादीं राखलेॅ छेलै। जनमलै तेॅ एकदम लार-पुआर होय रहलोॅ छेलै। वैद-हकीम, ओझा-गुनी-मंतरिया सब कन दौड़ी-दौड़ी दादीं ओकरोॅ जान बचैलकै आरो हालत सुधरलै तेॅ हेनोॅ कि साले भरी में गोड़-हाथ कद्दू नाँखी और पेट कदीमा रँ होय गेलै; ई देखी, एक दाफी दादीं ओकरा ढीबा की कही देलकै कि ओकरोॅ नाम ढीबाहै पड़ी गेलै।
ढीबा जों-जों बढ़लोॅ गेलै, तों-तों हौलको-फुलको कामोॅ सें ओकरोॅ जी उचाट हुएॅ लागलै। देखै में भले ऊ जत्तेॅ भोकसोॅ दिखावेॅ--छेलै एकदम फोकसोॅ। भरलोॅ बड़ोॅ बाल्टी की उठावै, साँड़ोॅ हेनोॅ फू-फू करेॅ लागै। यही वास्तें ओकरोॅ मय्यो-बाप कुछ काम करै लेॅ नै कहै।
ई तेॅ भाग कहोॅ कि वहेॅ गाँव के चकबन्दी ऑफिसोॅ में दास बाबू एक अफसर बनी केॅ ऐलै आरो ढीबा के भाग खुली गेलै। एक दिन केकरो पैरवी लै केॅ ऊ दास बाबू लुग पहुँचलै, तेॅ ओकरा देखिये केॅ दास बाबू ओकरोॅ दिश खिंचाय गेलै। जटा-जूट, दाढ़ी-मूंछ रहला के बादो एकदम शहरुआ छवारिक रं चालू-पुरजा। फिनू की छेलै--दास बाबूं कन ओकरोॅ उठकिए-बैठकिए शुरू होय गेलै।
गाँव भरी में ढिंढोरा पिटी गेलै--ढीबा चकबन्दी अफसर दास बाबू के दोस्त भै गेलै।
आबेॅ की, आबेॅ तेॅ ढीबा के तूती बोलेॅ लागलै। जत्तेॅ दास बाबू के पूछ चौक-चौराहा पर नै, ओकरा सें बढ़ी केॅ ढीबा के. ढीबाहौं समय केॅ पलटा खैतें देखी आपनो चाल-ढाल में पलटी खैलकै।
आबेॅ वैं कोशिश करै कि गाँव के सब्भे लोगोॅ सें जखनी-तखनी मूँ नै लड़ावौं। अब तांय तेॅ ओकरोॅ यहेॅ आदत रहै कि जेकराहौ खैनी रटैतें देखै, ओकरे आगू हाथ फैलाय दै, आबेॅ ई आदत तेॅ वैं एकदम्में बन्द करी देलकै। बहुत होय छै तेॅ आपनोॅ जेबी सें खैनी वाला डिब्बी निकाललकोॅ आरो केकरौ थमाय देलकोॅ, मतरकि ओकरोॅ लगैलोॅ खैनी खैलकोॅ नै--ज्यादा केकरौ सें चिन-परिचय बढ़ाना ठीक नै। होन्हौ केॅ साधू-सन्यासी केॅ सबके छूलोॅ-छालोॅ नै खाना चाही।
दास बाबू कन ढीबा रोॅ बस एतन्है काम छै--हुनकोॅ साथ बैठी केॅ चाय पीयौक आरो गाँव के लोगोॅ के बारे में एक-एक जानकारी दौक। एकरा सें ई होलै कि ऊ गाँव के बारे में जत्तेॅ जानकारी दास बाबू केॅ छेलै, ओत्तेॅ ऊ गाँववालाहौ केॅ नै। ढीबां रोज-रोज नया बातोॅ के जानकारी इकट्ठा करै आरो चाय के चुस्की साथें रस लै-लै केॅ एक-एक बात बतावै। दास बाबू के साथें ई बैठकी सें ढीबाहौं बहुत कुछ नया सीखलेॅ छेलै।
वैनें दासे बाबू सें सिखलेॅ छेलै कि चाय माँढ़ नाँखी सुड़-सुड़ करी पीयै के नै होय छै। बस हेनोॅ पीयै के छेकै कि ठोर तांय के आवाज नै हुएॅ। ई हिदायत के पालन में चाय कै दाफी ढीबा के ठोर सें छुवैये केॅ रही जाय; जीहो तक नै पहुँचै।
एक दिन ढीबू दास बाबू के साथ हेन्है केॅ चाय पर बैठलोॅ छेलै तेॅ बात बाते में वैनें दास बाबू सें कहलकै, "हम्में चाहै छियै कि आफिस के सामना में, ऊ जे ठाकुरबाड़ी छै, तोहें वै में भोरे-साँझ धूप-धूपकाठी आरनी के व्यवस्था करवाय दौ। बिना पुजारी के की रं घास-पतार सें ठाकुरबाड़ी भरी गेलोॅ छै, साफ-सुथरा होय जैतै, तेॅ आखरियो-पिपरी के डोॅर नै रहतै।"
दास बाबू के चेहरा पर संतोष के भाव झलकी ऐलै, मजकि ओकरा सें ज़्यादा संतोष के भाव ढीबा के चेहरा पर छेलै। सरकारी मदद मिली गेला सें तेॅ ढनमनैलोॅ ठाकुरबाड़ी मथुरे के मंदिर बनी जैतै। वैं आपनोॅ ई खुशी एकदम सें छिपाय लेलकै। सालोॅ सें तेॅ वैं यहेॅ चाही रहलोॅ छेलै। ढीबू, आय सें तोहें ई मन्दिर रोॅ पुजारी। तोरोॅ काम आय सें मन्दिर में भगवान के सेवा। हम्में तोरोॅ लेॅ यहेॅ बगलोॅ में एक मड़ैयो बनवाय दै छियाैं। रहै-सहै में दुख नै होत्हौं। " दास बाबूं कहलकै।
आरो ठीक वहेॅ दिन सांझकी बेरा में लोगें शंखोॅ के पहिलोॅ दाफी आवाजो सुनलकै--चकबन्दी ऑफिसोॅ के सामना वाला ठाकुरबाड़ी में। सब्भे आचरज में। कोय धूप-दीप तेॅ ऊ ठाकुरबाड़ी में रखी आवै, मजकि शंख के आवाज तेॅ आय तक नै होलै। वहाँ छेवे करलै की। बस दू दिशोॅ सें गिरलोॅ दीवारी के मन्दिरे तेॅ।
कभी एकरे भीतर में अष्टधातु के एक मूर्त्ति छेलै--बड़ी पुरानोॅ आरो बड़ी कीमती; हाथ भरी के ज़रूर होतै। एक दिन हल्ला होलै कि मूर्त्ति गायब होय गेलै। आखिर के गायब करलकै? गाँववाला के शक ढिबाहै के ओर जाय। होय नै होय, ई काम ओकरे छेकै। वही महीना भरी से ठाकुरबाड़ी के पिण्डा पर ओघरैलोॅ-पटैलोॅ देखलोॅ जाय छेलै--बिहानै, दुपहरकी आरो संझकी। कै दाफी तेॅ लोगें ओकरा वहेॅ ठाकुरबाड़ी दिशोॅ सें होय केॅ आपनोॅ घोॅर जैतें देखलेॅ छै--आखिर हुन्नें सें घोॅर जाय के की मतलब, जबेॅ कि ढीबा के घोॅर पछिये पड़ै छै, फेनू पूरबें होय केॅ, एत्तेॅ घुरी केॅ, घोॅर जाय के की मतलब। संझकी वक्ती के बात होतियै, तेॅ लोगें मानियो लेतियै कि ठाकुर के दर्शन लेली घुरी केॅ घोॅर जाय रहलोॅ छै, सेहो बात तेॅ नै छेलै--दस बजे रातकोॅ बाद हुन्नें से जाय के बात केकरो दिमागोॅ में नै अटै। ...मतरकि है काम जों ढीबा के नै छेकै तेॅ केकरोॅ छेकै। सौ सालोॅ सें ऊ मूर्ति ठाकुरबाड़ी में छेलै, नै पहरा, नै पुरोहित। गाँव भरी के पहरेदारी छेलै, मजकि जहिया सें लोगें ढीबा पर एक तरह सें भरोसा करी केॅ मूर्त्ति के बारे में सोचना छोड़ी देलकै, ठीक ओकरोॅ महीना भरी के भीतर मूर्तियो अलोपित होय गेलै...बात तेॅ सहिये छेलै, मजकि ढीबाहौ कोय ऐरू-गैरू घरोॅ के तेॅ नै छेकै...ओकरोॅ एक पुश्त पुरहैतगिरिये में रहलोॅ छै।
ई बातोॅ पर जोतखी का एकदम गरम होय जाय छै--ई बात तेॅ तोरासिनी सतयुगोॅ के करी रहलोॅ छोॅ। अरे आयकोॅ बात करोॅ कि केना मन्निरे के पुजारी मूर्ति गायब करी केॅ विदेशोॅ में बेचवाय दै छै। तेॅ ढीबा कोॅन वशिष्ट आरो विश्वामित्र छेकै कि ई नै करेॅ पारेॅ।
बात यहाँ तांय बढ़लै कि पुलिसो ढीबा तांय पहुँची गेलै। आरो जबेॅ थाना पर ओकरा लानलोॅ गेलै, तेॅ ढीबा के चेहरा पर कोय रकम के अनचित वाला भाव नै छेलै। दारोगा के सब पूछला के बाद वैनें एतनै टा कहलकै, "भगवान सब देखी रहलोॅ छै दरोगा बाबू, हुनका सें बड़ोॅ सजा तोरोॅ नै हुएॅ पारेॅ। जौनें-जौंने हमरा यहाँ पहुँचैनें छै, हुनी-हुनी भगवान सें मिलै वाला सजा के इन्तजार करौक।" ढीबा के एतना भर कहना छेलै कि ढीबा के विरोधियो पलटी खाय गेलोॅ छै। सब ढीबा के पक्षोॅ में बोलेॅ लागलोॅ छेलै। सच पूछोॅ तेॅ भगवान के बात सुनी केॅ दरोगो के पसीना उतरी गेलोॅ छेलै। महीनै भरी बाद परमोशन के कागज निकलै वाला छै; की ठिकानोॅ ढीबा बेकसुरे रहेॅ, जो भगवान नाखुश होय जाय...आरो ढीबा निर्दोष घोषित होय गेलै--थानाहै सें नै, गाँववाला दिशोॅ सें भी।
कोय नै जानै छै कि थाना सें छुटला के बाद ऊ सालो भर कहाँ रहलै आरो सालो भरी के बाद जबेॅ घोॅर लौटलै तेॅ दाढ़ी, जट्टोॅ एकदम बढ़ैनें। सबनें देखलकै--ढीबा तेॅ एकदम साधू बनी गेलोॅ छै।
जोॅन दिनां ढीबां गाँव छोड़लेॅ छेलै, वही दिनोॅ सें ऊ ठाकुरबाड़ी में लोगोॅ के आनाहौ-जानाहौ बंद होय गेलोॅ छेलै। रहिये की गेलोॅ छेलै वहाँ, जे लोग जैतियै! जों कोय मंदिर के बाहरी पिन्डा पर धूप-दीप जलाय-उलाय ऐलकोॅ, तेॅ बहुत--भीतर तेॅ कोय ढुकवे नै करै।
सफाई-पोताई के बिना ठाकुरबाड़ी के दीवार ढनमनाय गेलै। अन्धड़ बरसात, धूप सें दीवार सिनी हेनोॅ होय गेलोॅ छेलै कि धीरें-धीरें यहू बात फैली गेलै--ऊ ठाकुरबाड़ी में रात-बेरात भूत बोलै छै। फेनू की छेलै--लोग दिन्हौ हुन्नें सें गुजरै तेॅ एक-दू आदमी साथ चलैवाला लै केॅ ही। जबेॅ चुल्हाय काका आपनें सें दस के बीच कहलकै--परसुके बात छेकै। ऊ गाड़ी पर बीस बोरा गहुम लादी केॅ घोॅर जाय रहलोॅ छेलै। झुकझुकी बेरा। ठीक ठाकुरबाड़ी के नगीच ऐलोॅ होवोॅ कि ओंटी औटेॅ लागलै। गाड़ी रोकलियै आरो वही ठां एक दिशोॅ में बैठी रहलियै। मिनिट भर बाद उठलियै तेॅ देखै छियै तेॅ दोनों बैल जुआ सें निकली केॅ बोरा दिश मुँ करी केॅ खाड़ोॅ होय गेलोॅ छै आरो आँख फाड़ी-फाड़ी केॅ गाड़ी पर बैठलोॅ कोय आदमी केॅ देखी रहलोॅ छै। हमरा कुछ समझै में नै ऐलै। गाड़ी पर कोय नै छेलै। हम्में एकेक करी केॅ दोनो बैल केॅ जुआ में टानी केॅ लानै के कोशिश करियै, मतरकि बैलवो एकदम सें छलांग मारी केॅ फेनू मोढ़ा दिश आवी केॅ खाड़ोॅ होय जाय आरो होन्है केॅ हड़कलोॅ-हड़कलोॅ गाड़ी पर बैठलोॅ कोय आदमी केॅ देखेॅ लागै। आबेॅ तेॅ हमरोॅ माथोॅ ठनकलै। सोचलियै, डरला सें तेॅ आरो गड़बड़। जी केॅ कड़ा करलियै, हनुमान चालीसा दुहरैतेॅ गाड़ी पर छड़पी गेलियै। आभी गाड़ी पर बैठलोॅ नै होवै कि लागलै--गाँड़ी पर हाथ धरी केॅ कोय हमरा नीचेॅ पटकी देलेॅ रहेॅ। हम्में तेॅ खच्चा में। आबेॅ हमरा सब बात समझै में आवी गेलोॅ छेलै...
ई सब बात चोलाय का बड़ी विस्तार सें सबकेॅ सुनाय छै कि केना वैं रात काटलकै।
चुल्हाय काका के बातोॅ पर के विश्वास नै करेॅ। हौ दिन सें तेॅ ऊ दिश जायवाला आदमी जों असकल्ले रहै छै तेॅ बीस बाँस हटिये केॅ पोखरिया वाला रास्ते सें होय केॅ जाय छै। थोड़ोॅ घुरावटे नी पड़ै छै, छै तेॅ सुरक्षित।
आय पहिलोॅ दाफी बहुत दिनोॅ के बाद लोगें ठाकुरबाड़ी में शंख गूंजतें सुनलकै। तबेॅ लोगें यहू जानलकै कि ढीबा ठाकुरबाड़ी के सरकारी पुजारी होय गेलोॅ छै, तबेॅ की छेलै, मूर्त्तिये गायब होय जकां ढेरे-ढेरे बात उठलै, लेकिन बात दुए टा निष्कर्षोॅ पर खतम होलै कि ढीबा आबेॅ सरकारी पुजारी होय गेलोॅ छै, यै लेली भूत-प्रेत ओकरा धरै नै पारेॅ। सरकारी आदमी तेॅ आपने भूत-प्रेत होय छै, भूत-प्रेतें ओकरा की धरतै; वहू में सरकारी पुजारी केॅ। फेनू दोसरोॅ बात ई--कि ढीबू तेॅ अपने पहिलें से सिद्ध छै। ओकरा तेॅ टैम मिललोॅ छेलै कि अमुक समय में ओकरा पूर्ण सिद्धि मिली जैतै, से आबेॅ मिली गेलै...जों नै मिली गेलोॅ छै तेॅ पटना-दिल्ली तांय पढ़लोॅ-लिखलोॅ दास बाबू हेनोॅ आदमी केना ओकरा इज्जत दै छै। " आरो ई विश्वास ही धीरें-धीरें लोगोॅ में एत्तेॅ बढ़लै कि दासे बाबू रं सौंसे गाँव ओकरा ढीबा धरमदास कहेॅ लागलै, हेना केॅ एकरा में सबसे अधिक मदद करलकै तेॅ दासे बाबूं।
आरो शंख गूंजै के ठीक चौथे दिन ठाकुरबाड़ी में हाथ भरी के मूर्त्तियो आवी गेलै, छिनमान पहिलके ठाकुर जी के मूर्त्ति नांखी। लोगें देखै तेॅ आचरज करै। अष्ट धातु वाला मूर्त्ति, मतरकि कारोॅ केना होय गेलै? ढीबां ई बात भरी इलाका केॅ समझावै कि मूर्त्ति तेॅ वहेॅ छेकै, हमरोॅ सिद्धि सें डरी केॅ चोरवैय्यां धरी ऐलोॅ छै...पाप के घरोॅ में रहलाहै सें भगवान कारोॅ पड़ी गेलोॅ छै, भगवान केॅ ई पाप के छाया सें मुक्त करै लेॅ महीना भरी के अष्टयाम करवाना ज़रूरी छै। हेनोॅ होतै तेॅ भगवानो आपनोॅ रूप में आवी जैतै आरो भरी इलाका में पुण्य फैली जैतै। कोय एक शंका करै तेॅ पाँच समझावै वाला। समझाय वाला में चुल्हाय काकाहौ शामिल छेलै। काकां समझावै, तखनियो लोगें यहेॅ शंका करलेॅ छेलै कि-कि मूर्त्ति भला दूध केना पीतै, मतरकि पीलेेॅ छेलै की नै...तबेॅ मूर्त्ति कारोॅ सें गोरोॅ केना नै होतै--भजन-कीर्त्तन आरो तंत्र-मंत्र में कोॅन ताकत नै होय छै। एक बात फेनू कैन्हेंनी समझै छैं--ढीबू धरमदास आवै के पहिलेॅ केकरौ हिम्मत छेलौ कि ठाकुरबाड़ी दिशोॅ सें दुसकल्लो टुघरी जांव। पाँच ठो मिली केॅ जाय छेलैं आरो पाँचो हनुमान चालीसा पढ़तेॅ। ई हमरोॅ ढीबू धरमदास जी ही छेकै कि भरखर राती में असकल्लोॅ वहाँ पड़लोॅ रहै छै। की हेन्है केॅ पड़लोॅ रहै छै? सिद्धि पैलेॅ छै--पाँच परैंतें दिन-राती हमरोॅ ढीबू धरमदास के आगू-पीछू करतें रहै छै। धरमदास जी के तेॅ खाली इशारा होतै, सब अटका-टोटका तेॅ दूर करतै भूत-प्रेत। करिये रहलोॅ छै, नै करी रहलोॅ छै तेॅ हमरोॅ बैलगाड़ी आबेॅ रात-बेरात निरबिघिन केना घोॅर पहुँची जाय छै। आरो फेनू एतन्है बात नै नी छै, ठाकुरबाड़िये नगीच धरमदास के गुरु महाराज देवो दास के समाधियो बनतै--ताजमहल नाँखी भव्य। सब बात बड़ी तेजी सें फैली रहलोॅ छेलै।
ढीबा सें कोय पूछै तेॅ वैं हेनोॅ आँख-मूँ बन्द करी लै, जेना ई बातोॅ पर शंका करवोॅ, एत्तेॅ बड़ोॅ पाप छेकै, जेकरा सौ अष्टयाम करला के बादो दूर नै करलोॅ जावेॅ सकेॅ। हेनोॅ शंका करैवाला केॅ देखवो पाप।
सौंसे इलाका में खलबली छेलै--रामनवमी के महीना भरी पैहिलैं संे अष्टयाम शुरू होय जैतै आरो रामनवमी के दिन खतम होतै। जे जत्तेॅ दान दिएॅ पारेॅ। आखिर इलाका भरी के मरजाद के बात छेकै आरो फेनू की हेनोॅ उत्सव बार-बार होय छै।
ढीबू साथें सौ कार्यकर्त्ता सें कम नै लागलोॅ छै--एत्तेॅ बड़ोॅ जग जे होय रहलोॅ छै। आखिर भंडारा की असकल्ले संभलै वाला छै। दस जनानी सें कम खटै वाली नै चाही। मतरकि ढीबू केॅ आन जनानी पर विश्वास नै छै। वैंने खाली आपनिये दोनों जनानी केॅ बुलैलेॅ छै, आरो आन काम संभारी दै लेॅ अपनी दू बूढ़ी सासो केॅ।
जोॅन दिनोॅ सें एक घोॅर पीछू एक पसेरी धान वसूली के काम चललै, वही दिनोॅ सें ढीबंू गद्दी धरी लेलकै। ठाकुरबाड़ी के बाहर बाँस-बत्ती छानी केॅ बड़ोॅ रँ दू कोठरी के कुटिया बनैलोॅ गेलै। एक में ढीबू आरो ओकरोॅ साथें चुल्हाय का। दुसरा में ढीबू के लॅर-जॅर सब। ई बात तेॅ कोय नै समझै कि जे चुल्हाय का के साथें ढीबू के कभियो नै पटलै, ऊ एक्के कोठरी में रात-दिन केना बिताय छै।
रामचेलवां एक दिन चुल्हाय केॅ कहलकै, "हो काका, जखनी ढीबू का प्रवचन करै छै, तखनी हुनकोॅ आवाज के पीछू आरो एक आवाज हौले-हौले उठै छै, हमरा तेॅ ऊ आवाज तोर्हे बुझावै छाैं।"
"चुप! लागै छै तोरोॅ दिन पुरी गेलोॅ छौ। अरे ऊ जे दू बार आवाज बुझाय छौ, ऊ दू दाफी बोलै वाला साउण्ड बॉक्स के कारणें।" चुल्हाय नें रामचेलवां के मुँह पर हाथ रखतें कहलकै, " तोरा मालूम नै छौ कि ढीबू सरकारी पुजारी छेकै, ई सब बोलवैं तेॅ कल्हे जेल में दिखाय पढ़वे।
जे हुएॅ ढीबू के प्रवचन सुनै लेॅ जॅर-जनानी उपटै। हफ्ता में पाँच दिन दासो बाबू आवी केॅ खाड़ोॅ होइये जाय, अलग बात छेलै कि जोतखी का हुलकियो केॅ ताकै लेॅ हुन्नें नै जाय। पूछला पर कहै, "आंय रे, जे ढीबां के चानी पर बाल नै छेलै, ई दास बाबू के कारने ओकरा नाँकी में जट्टोॅ होय गेलोॅ छै। बोलैं--जे जिनगी भर आपनोॅ मौगी सिनी केॅ वनवास देलेॅ ऐलै, आय ठाकुरबाड़ी में बिठाय केॅ गृहस्थ धरम के महत्त्व बतावै छै। कहै छै--असली संन्यास तेॅ परिवारे बीच रही केॅ भगवत रोॅ भजन छेकै। ढिंढोरा पिटवाय रहलोॅ छै कि वैं चंदा-पैसा सें आपनोॅ गुरु के समाधि ठाकुरबाड़ी सें सटलोॅ बनवैतै, आंय रे! आरो तोरा सिनी हेनोॅ कि मूर्त्ति वाला बाते भुलाय गेलैं।"
जोतखी का के बात ढीबा के कानोॅ में नै पड़ै, हेनोॅ बात नै छेलै, मतर ऊ ई सब सें हेनोॅ अनजान बनलोॅ रहै कि ओकरा खुद्दे अपना पर आचरज हुऐ. फेनू ढीबा केॅ ई सब बातोॅ पर ध्यान दै के फुर्सते कहाँ छेलै। घी रे, चॉर रे, तेल रे, दाल रे, चिकसोॅ रे, फोॅल-फलारी रे--एत्तेॅ-एत्तेॅ समान जुटी रहलोॅ छेलै--सब के ध्यान रखना छेलै। ओकरा टपैयो वाला के कमी नै छेलै--ई बात ढीबा सें बढ़ी केॅ ज़्यादा आरो के जानै छै।
मतरकि ई सब सें बढ़ी केॅ ओकरोॅ ध्यान इलाका भरी सें आवी रहलोॅ चंदा के टाका-पैसा पर छेलै। के कत्तेॅ देलकै--एकरा सें ज़्यादा वैं ई बातोॅ पर ध्यान दै कि कत्तेॅ ऐलै? के की देलकै आरो लैवालां कत्तेॅ जेबी में राखलकै--ढीबां जानै छै, एकरा पर ध्यान देला पर चंदा कटवैया के टीमे भंगटी जैतै। बाढ़ के पानी जे टा पोखरी-कुइयाँ में बची जाय, वही पानी-पानी, बाकी फानी।
खाली पाँच दिनोॅ में पन्द्रह हजार जुटी गेलै। कम बड़ोॅ बात नै छेकै। खोमचा आरो लेमनचूस बेचैवालाहौ सें चंदा उसूललोॅ गेलोॅ छै। होना केॅ ढीबां आपनोॅ आदमी सें सुनाय केॅ तेॅ यहेॅ कहलेॅ छेलै, "चंदा वास्तें केकरो तंग नै करलोॅ जाय, धरम-करम छेकै स्वेच्छा सें।" मतरकि मुखिया, सरपंच, चौधरी हेनोॅ घरोॅ केॅ छोड़ी केॅ हर घरोॅ सें पर मुंडा दस टाका आरो बाज़ार में पर दुकान सौ टाका दल बांधी केॅ वसूल भेलै। सड़क पर दौड़ैवाला मोटर-ट्रक सें मनमाना। ढीबाहै के इशारा पर मोटर-ट्रक रोकै वास्तें सड़क पर बांस के बल्ला आरो बैलगाड़ी बीचे बीच लगैलोॅ जाय छेलै आरो चंदा वसूल्है पर गाड़ी हटै। काफी उछाह छेलै चंदा उगवैया में।
ढीबां गद्दी पर बैठलोॅ-बैठलोॅ खाली गाड़ी के गिनती लिखै। टाका लिखै के ज़रूरते नै छेलै। टाका तेॅ बांधी देलोॅ गेलोॅ छेलै--ट्रक पीछू बीस टाका आरो सवारीवाला मोटर पीछू पच्चीस टाका। झारखण्ड सें जोड़ैवाला एक्के तेॅ ई सड़क छै। ढीबू तेॅ गाड़िये गिनतें औल-बौल होतें रहै। यही सें गाँववाला चन्दा पर ओकरोॅ विशेष ध्याने नै रहै। कहौं सें तेॅ आँख मून्है लेॅ लागेॅ--बहुत कुछ पावै लेॅ। ई राज केॅ ढीबूं खूब अच्छा रं जानै छै।
अष्टयाम कल सें शुरू होयवाला छेलै आरो मूढ़ी-घुँघनी, कचड़ा-फुलौड़ी, घुपचुप के ठेला-खोमचा के अइवोॅ एक दिन पहिलें सें शुरू छेलै। बिकौ कि नै बिकौ। पाँच टाका--पर ठेला। माल नै बिकौ, तेॅ पाँच टाका के समाने कार्यकर्त्ता खाय लेतै--ढीबू के व्यवस्था छेलै। ई व्यवस्था सें कार्यकर्त्तो खुश तेॅ, खोमचो वाला। वाह एकरा कहै छै धर्मी आरो भगत--आपनोॅ एक-एक आदमी के खयाल राखै वाला।
गनगन करी रहलोॅ छेलै गाँव। ठाकुरबाड़ी के पछियंे सटले बड़का पीपर रोॅ गाछ। वहेॅ पीपर गाछ के चार डाली पर चारो दिश कण्डाल लगैलोॅ गेलोॅ छेलै। दिन-रात भजन-कीर्त्तन ठनका वाला आवाजोॅ में गूंजतेॅ रहै। आबेॅ अष्टयाम छेलै, तेॅ एक्को पल रुकतियै केना। रात भरी सौंसे गाँव उधियैतेॅ रहै। जे सुतेॅ पारलोॅ--ऊ मीर, नै तेॅ अधीर। केकरोॅ मजाल कि जाय केॅ कोय ढीबू केॅ बोली दौ--जरा कण्डाल के आवाज कम करवाय दौ। ई तेॅ गनीमत समझोॅ कि इलाका भरी में जगह-जगह पर कण्डाल तारोॅ सें नै जोड़वैलकै, होना केॅ ढीबा के विचार तेॅ यही छेलै। शहरोॅ में ई वेवस्था देखलेॅ छेलै। पीपर गाछी पर चार कण्डाल लगाय के जबेॅ पहिलोॅ दाफी विरोध होलै, तेॅ ढीबां कहलकै, "जे पीपल गाछ पर तैंतीस करोड़ देवता बसै छै, हुनका सिनी केॅ, की ई चारे कंडाल सें भजन-कीर्त्तन सुनैलोॅ जावेॅ सकै छै--एक करोड़ देवता पीछू कम-सें-कम एक कण्डाल लगतै की नै? मानी कि तैंतीस कण्डाल।" एकरा सें ज़्यादा बात करै के फुर्सत ढीबू केॅ नै छै।
हुन्नें ढीबू के आदमियो कम व्यस्त नै छेलै--रोज-रोज, कुछ-नै-कुछ ढीबू के बारे में नया खबर लोगोॅ के बीच लानै--
"आय हुनी है पड़पड़िया रौदी मेंएक ठोप पानियो नै राखलकै जीहा पर"
"आय हुनकोॅ एक दिवसी साधना छेलै"
"दू दिन सें एक सबद नै बोललै"
"एकदम निराहार छै तीन दिनोॅ सें"
ढीबूं चुल्हाय का रोॅ गोड़ पकड़ी लेलकै। केन्होॅ-केन्होॅ बुद्धि लगाय रहलोॅ छै, आखिर केकरोॅ लेॅ--ओकरे लेॅ नी। चुल्हाय के भी मोॅन भरी गेलै। मनोॅ में कुछ बात उठलोॅ छेलै, वहू धोलाय गेलै, मजकि ढीबू सधलोॅ जोतसी रं ओकरोॅ मन-मिजाज केॅ गमतें कहलकै, "काका, है नै समझियोॅ कि सतकर्म के फोॅल बेरथ जाय छै। धर्म तेॅ कपली गाय होय छै, आरो कोय काम बेरथ चल्लोॅ जाय तेॅ चल्लोॅ जाय, कपली गाय के सेवा नै...काका जखनी हम्में हरीद्वार में छेलियौं, एक साधू के सेवा करै छेलियै, हुनी समाधि लेलकौं तेॅ हम्में हुनकोॅ समाधिये थान के सेवा करेॅ लागलियै। पहलेॅ तेॅ ऊ समाधि थान पाँच हाथ के छेल्हौं, दुवे साल में ऊ दस हाथ के जमीन पर फैली गेलौं। भजन करियौं, प्रवचन करियौं, भीड़ लागौं, फेनू एक दिन जहाँ तांय भीड़ लागलोॅ छेलौ, वहाँ तांय बाँसबत्ती सें घेरवाय देलियौं। पैसा तेॅ भादोॅ के पानी रं झरौं। जों ऊ सन्यासिनी के फेर नै पड़तियौं तेॅ की हम्में यहाँ होतियौं। चुड़ैल की रं हमरा आपनोॅ माया में फाँसी लेलकौं। खुल्ला बाल, हाथोॅ में कड़ा आरो चुट्टा देखी केॅ हमरोॅ मति भ्रम में पड़ी गेलौं। सब खजाना के सब तरह सें मालकिन वहेॅ होय गेलौं...मजकि जावै लेॅ दहौ सब बातोॅ केॅ। हम्में तेॅ तोरोॅ मन गमतें है सब कहीं देलियौं; फेनू यहू बात छै--हमरोॅ बाद तोंही नी धरमदास।"
चुल्हाय एकदम नरम पड़तें कहलकै, "तोहें जत्तेॅ बात मनेमन सोची गेलौ ढीबू, ओत्तेॅ दूर तांय हम्में नै सोचलेॅ छेलियै। हों एतना टा ज़रूर सोचलेॅ छेलियै कि ई अष्टयाम सें जों हमरोॅ व्यापार आरो बढ़ी जाय, तेॅ आपनोॅ आढ़त अलगे लगय्यै।"
"होतै काका, यहू होतै, मजकि पहिले अष्टयाम। आरो हों, बहुत सोच-विचार के बाद हम्में सोची लेलेॅ छियै--छाती पर कलश राखी केॅ निराहार रहै के."
फेनू की। भोर होतें न होतें खबर फैललै कि ढीबू रामनवमी के ठीक नौ दिन पहिले सें रामनौमी तांय निराहरै रहतै, छाती पर कलश धरनें--नै जीहा पर एक बूँद पानी जैतै, नै दिशा-मैदान। यहाँ तांय कि सबके छायायो सें दूर रहतै। देखियो केॅ कोय नै देखेॅ पारतै।
सबकेॅ आचरज हुऐ. फेनू यहू सोचै, ढीबा वास्तें एत्तेॅ सब बात खाली ढीव नै हुएॅ पारेॅ। पूरे इलाका में ई खबर सें सनसनी छै। मजकि जोतखी का केॅ ई सब बातोॅ पर एकदम विश्वास नै। कहै छै--जे पेटू दिन भरी में बीस बार अंगुली जुठावै छै, ऊ नौ दिन छाती पर कलश धरलें भुखलोॅ रहतै, हुवै नै पारै। सुनियैं, निराहार रहै के दिन ऐत्हैं गामोॅ सें फिरारे होय गेलोॅ छै। विश्वास नै छौ तेॅ देखी लियैं। आरो रहिये गेलोॅ छै कत्तेॅ दिन--बस आरो तीन दिन।
आय दू रोज सें ढीबा कुटिया सें बाहर नै निकली रहलोॅ छै। ई बात खाली चुल्हाय केॅ मालूम छै कि कैन्हें नी ऊ बाहर निकली रहलोॅ छै--रिहर्सल करी रहलोॅ छै, जखनी मॅन तखनी चित्त लेटी जाय छै, छाती पर भरलोॅ कलश राखी केॅ आरो फेनू आठ-नोॅ घंटा पड़ले रहै छै...तखनी ओकरोॅ मोॅन एकदम चंचल होतें रहै छै, किसिम-किसिम के बात उठतें रहै छै...दास बाबू के छाया उभरै छै, सरपंच-मुखिया के छवि उठै छै आरो सबके आँख ओकरे दिश उठलोॅ होलोॅ...तखनी ढीबा के ठोरोॅ पर मुस्की फैली जाय छै आरो ऊ बुदबुदाय उठै छै...दास बाबू, तोरोॅ कारनामा केकरा नै मालूम छै, ऊ तेॅ मुखिया-सरपंच तोरोॅ पच्छोॅ में छौं, बस यही लेॅ, है अष्टयाम में तोरोॅ दरियादिली के मतलब हम्में नै समझै छियौं की? आरो फेनू हम्में देखै नै छियै, की रं सरपंच-मुखिया तोरोॅ पीछू लागलोॅ रहै छौं एकदम दासमदास। आबेॅ जे एत्तेॅ भक्ति करै छौ तोरोॅ, ओकरोॅ विरुद्ध तोहें बोलवौ करभौ तेॅ केना केॅ। शिवाला तांय मुखिया के हाता में होय गेलै...तबेॅ की करभौ, भगवानोॅ केॅ यहेॅ मंजूर छै। हौ कहै छै नी कि भगवान तेॅ भक्त के मुट्ठी में कैद होय छै, तबेॅ मुट्ठी जेकरोॅ जत्तेॅ मजबूत, ऊ ओत्ते बड़ोॅ भक्त आरो मुट्ठी मजबूत होय वास्तें की चाहियोॅ--हड्डी-माँस? नै, एकरोॅ वास्तें चाहियोॅ टाका। ...ई सब जे हम्में एत्तेॅ उद्योग करी रहलोॅ छियै, कथी लेॅ?
सोचतें सोचतें ढीबू एत्है खुश होय जाय छै ऊ छाती पर धरलोॅ कलश केॅ एक दिश धरी, स्प्रिंग वाला पुतला नाँखी उछली केॅ खाड़ोॅ होय जाय। धोती ठेहुनां सें ऊपर उठाय केॅ ढेका खोसै आरो कोठरी में 'ता थै' के नाच शुरू करी दै--कभी थोड़ोॅ लबी केॅ दोनों टांग फैलाय लै, कभी बारी-बारी सें दाँया-बाँया कमर के बरोबर उठाय लै आरो कभियो दोनांे हाथ ऊपर नीचे करतें कोठरी के एक दिश जाय तेॅ कभी दुसरोॅ दिश। एकदम उन्मक्त होय उठलै ढीबू।
थकी गेलै तेॅ कलशोॅ छाती पर राखी केॅ होने दोनों हाथ कमर तांय सीधा करतें चित्त लेटी गेलै।
आरो ऊ दिन तेॅ सब्भे के मुँहोॅ पर बस ढीबू के चर्चा छेलै। ठाकुरबाड़ी के ठीक पीछू, पीपर गाछी सें थोड़ोॅ हटी केॅ आठ हाथ लम्बा आरो तीन हाथ चौड़ा गड्ढा खोदलोॅ गेलै--करीब पाँच हाथ गहरा। वही में पुआल पर साफ-साफ गेरूआ रं के चादर बिछेलोॅ गेलै आरो वही पर जबेॅ ढीबू चित्त लेटी गेलै--छाती पर धान सें गुंथलोॅ गिल्ला मांटी के चकती धरी केॅ आरो चकत्ती पर भारी रं कलशोॅ--जे आमोॅ के पल्लो से ढँकलोॅ छेलै, तेॅ सबके आँख लोराय गेलै।
ढीबूं एक दाफी नजर फेरी सबकेॅ निहारलकै आरो फेनू इशारा करलकै। इशारा करत्है गड्ढा के ऊपर तख्ता बिछाय देलोॅ गेलै। फेनू तख्ता पर बित्ता भरी माँटी के मोटोॅ परत। जेना कि गड्ढा पर तख्ता रखै सें पहिलें ढीबूं देखवैया केॅ देखी आहिस्ता सेे हाथ जोड़लेॅ छेलै, होने केॅ, तख्ता पर मिट्टी पड़त्है सब्भैं ढीबू के जिनगी लेॅ ठाकुर दिश मूँ करी हाथ जोड़लकै।
जमीन के सोॅर बराबर होना छेलै कि भजन-कीर्त्तन, ढोल-झाल के हेनोॅ विन्डोवोॅ उधियैलै कि मत पूछोॅ। चारे कंडाले चार सौ के काम करेॅ लागलै। कुछ हेन्हे कि आपनो बात कहै लेॅ कण्डाल के ज़रूरत पड़ेॅ। गाँव भरी के लोगोॅ के मुँहोॅ पर बस ढीबुए के चर्चा।
जों-जों दिन कटलोॅ गेलै, चर्चो गनगनैलोॅ गेलै। रामनौमी आरो अष्टयाम के जिकर के बदला ढीबुए के चर्चा छेलै।
आठमोॅ दिन बीती रहलोॅ छेलै। कल्हे ढीबू बाहर निकलतै। देखवय्या तेॅ हद-हद होॅ-होॅ करी रहलोॅ छेलै।
मतरकि है की? माँटी आरो तखता हटैलोॅ गेलै तेॅ गड्ढा में ढीबू वहाँ कहाँ छेलै। बिछैलोॅ चादर पर, ढीबू के जग्घा पर मांटी सें जेना-तेना बनैलोॅ आरो भसकलोॅ आदमी छेलै आरो धान के घास चारो दिश उगलोॅ। गाँव-टोला आरो इलाका भरी में खबर भादो के बोहोॅ रं होहाय उठलै--ढीबू धरमदासें देह तेजी देलकै, माँटी के देह माँटी बनाय लेलकै, कोय बात सें हुनकोॅ मोॅन दुखित होय गेलोॅ छेलै। " खबर दै वाला के आँख लोराय रहलोॅ छेलै।
गड्ढा देखवैय्या के तेॅ ठ्ठ्ठ लागी गेलै। इंचियो भर जग्घोॅ नै कि टाँगोॅ बीचोॅ सें निकली केॅ कोय बच्चो वहाँ तांय पहुँची जाय। लोग पीपरोॅ गाछी पर चढ़ी-चढ़ी गड्ढा हुलकी रहलोॅ छै।
सबके चेहरा पर किसिम-किसिम के भाव छै, मजकि चुल्हाय के चेहरा पर एक्के भाव--जांे केन्हौ केॅ ढीबा पकड़ाय जाय तेॅ ओकरा यही गड्ढा में जीत्ते जी भत्ती दियै। कलश में पानी राखै के जग्घा में चंदा रोॅ लाखो टका राखी केॅ गायब होय गलै। जहाँ टाकावाला कलशोॅ गाड़ी जाय के बात वैं कहलेॅ छेलै, वहाँ तेॅ पानी भरलोॅ कलशोॅ छेलै। चुल्हाय केॅ आपना आप पर भारी गोस्सा ऐलै कि तखनिये वैं एक दाफी कैने नी माँटी खोदी केॅ कलशोॅ देखी लेलकै, जे ढीबा के गायब होला के बाद देखलकै।
आरो चुल्हाय चट सना एक कसलोॅ थाप आपनोॅ दाँया गाल पर दै मारलकै। ओकरोॅ कानोॅ में जोतखी का के खिलखिलैवोॅ सुनाय पड़ै छै, मतरकि चुल्हाय इस्थिरे बनलोॅ रहै छै।
आरो ऊ जे चुप होलै तेॅ चुप्पे होय गेलै। कुछ नै बोलै छै।
ढीबा के हौ रं अलोपित होय गेलोॅ साल भरी होय गेलोॅ छै। जहाँ सें ऊ गायब होलोॅ छेलै, वहीं पर आबेॅ एक लम्बा-चौड़ा समाधि स्थान छै। समाधि पर लिखलोॅ छै--ढीबा धरमदास समाधि-स्थल। समाधि-स्थल महीना भरी में अपने आप एक हाथ बढ़ी जाय छै आरो ओकरोॅ बढ़त्हैं घेरलोॅ दीवारो अपने आप हाथ भरी बढ़ी जाय छै। केना बढ़ी जाय छै? जों कोय वांही पीपरोॅ गाछ के नीचें बैठलोॅ चुल्हाय धरमदास सें पूछै छै, तेॅ उत्तर दै के बदला खाली उल्टा राखलोॅ एक तखती सीधा करी केॅ देखाय दै छै, जै पर लिखलोॅ छै--"धरमदास ढीबू के पुण्यफल सें ई संसार में कुछुओ संभव छै, कुछुओ आचरज नै।"