धर्मनिरपेक्ष / अनिल जनविजय
Gadya Kosh से
रेल के डिब्बे में एक अंधा भिखारी चढ़ आया था । वह गा- गा कर भीख मांग रहा था। कुल चार गाने उसने गाये । पहले में हिन्दू देवी-देवताओं से दया की प्रार्थना की थी तो दूसरे में खुदा और मक्का-मदीना का गुणगान । तीसरे में गुरू गोविंद सिंह की कृपा का अनुरोध था तो चौंथे में प्रभु ईसा मसीह से शांति की प्रार्थना ।
जब वह चारों गीत गा चुका और लोगों से पैसे इकट्ठे करते हुए मेरे पास आया तो मैंने पूछा -"सूरदास, किस जाति के हो ? कौन से धर्म को मानते हो ?"
उसका उत्तर था - "बाबूजी, हमारे लिए तो हिंदू, मुस्लिम, सिख, ईसाई सभी बराबर हैं । सभी दाता हैं । इसलिए बाबूजी, हम तो धरमनिरपेक्स हैं ।"