धर्मपत्नी / प्रतिभा सक्सेना
कहीं धर्मपत्नी शब्द का प्रयोग सुनती हूँ तो मन का कौतूहल जाग उठता है. सोचती हूँ धर्म-पत्नी हैं यह, सचमुच की पत्नी नहीं होंगी, तभी ! यही देखा है कि वास्तव में जो स्थिति नहीं होती उसे औचित्यपूर्ण ठहराने के लिए 'धर्म' को साथ लगा देते हैं. जैसे धर्म-भाई /बहिन. वास्तविक जीवन में भाई/बहिन का नाता नहीं है लेकिन मन से मान लिया है. धर्म का नाता है. मतलब यह कि जो असली भाई /बहिन नहीं है वह धर्म-भाई/बहिन बन सकता है. नहीं तो संबंध सहज-स्वाभाविक, स्वयंसिद्ध हो तो , धर्म को बीच में लाने की ज़रूरत ही नहीं. अपनी बहिन से 'धर्म-बहिन' कह कर देखना ज़रा, डंडा लेकर दौड़ा देगी.
और माता-पिता से धर्म का वास्ता दे कर संबंध जोड़ सकते हैं? अपनी जननी या जनक से धर्म-माता या धर्म-पिता कहने की हिम्मत पड़ेगी? सावधान, धक्का दे कर घर से निकाल देंगे
मेरी समझ में नहीं आता कि पत्नी के साथ तो धर्म जोड़ दिया, पति के साथ नहीं.. पत्नी तो पत्नी, विवाहिता या जिस भी विधि से यह संबंध जुड़ा हो. धर्मपत्नी शुरू से सुनते आए हैं. हाँ,धर्म-पति अब तक नहीं सुना. पति केवल पति होते होंगे, उनके लिए धर्म-अधर्म का कोई विचार नहीं होता होगा.
धर्म पति सुना नहीं, पर उदाहरण देखे हैं. विवाहित पति तो पति और व्यवहार या आवश्यकता के लिये जिससे जुड़ गई हो- उसे धर्मपति होना चाहिए. क्यों कि धर्म के अनुसार यह बात विहित है. जैसे कुन्ती के लिए लिए धर्म, इन्द्र, वायु आदि धर्म पति और पांडु, वैधानिक पति. - संतानें उन्हीं की कहलाएँगी ( सब पाँडव कहाए ).
धर्म का पति सामयिक होता है, केवल काम चलाऊ, नाम पति का ही रहेगा. पाँडवों में तो पाँचो द्रौपदी के पति थे, फ़ुलटाइम तो नहीं पर विधिपूर्वक विवाहित, सर्व मान्य ! जहाँ तक पत्नी का सवाल है, आदमी चाहे जितनी कर ले, पर वहाँ कोई आपसी भेद नहीं होता कि ये धर्मपत्नी है, तुम केवल पत्नी. उपपत्नी - उपपति तो ठीक हैं, वहाँ दर्जा प्रमुख और गौण होने का है पर पत्नी और धर्मपत्नी ! यह रहस्य मैं नहीं समझ पाई आज तक.
वैसे नीति या विधि-विधान के हिसाब से जैसा और संबंधों में देखा गया है- जो असली पत्नी नहीं है वही धर्मपत्नी कही जा सकती है !
अगर कोई स्पष्टीकरण दे सके तो संशय दूर हो !