धर्मेंद्र के पोते का प्रवेश / जयप्रकाश चौकसे
प्रकाशन तिथि :08 दिसम्बर 2016
आज धर्मेंद्र का जन्मदिन है और जयललिता के साथ मुंबइया फिल्म 'इज्जत' में काम करने का श्रेय भी उन्हें प्राप्त है। निकट भविष्य में उनका पोता, सनी देवल का पुत्र भी अभिनय क्षेत्र में प्रवेश करने वाला है। मुंबई के जुहू क्षेत्र में धर्मेंद्र के बंगले को पंजाब का पिंड माना जाता है। धर्मेंद्र ने लंबी और सफल पारी खेली है परंतु इतने दशकों में भी उनकी पिंडवाली सादगी कायम है। अपने शिखर दिनों में जब उनके इस बंगले में गृहप्रवेश के पूजा-पाठ और दावत के लिए उन्होंने राज कपूर को निमंत्रित किया तो उनसे पूछा गया कि कितना बड़ा बंगला बनाया है। धर्मेंद्र ने कहा कि शायद पचास मंजियां (चारपाइयां) बिछ पाएंगी। धर्मेंद्र ने अपनी पहचान को कभी छोड़ा ही नहीं। उन्होंने अपने पुत्र सनी देओल को राहुल रवैल के निर्देशन में 'बेताब' में प्रस्तुत किया था। सनी देओल अपने पुत्र को पहले शेखर कपूर के निर्देशन में प्रस्तुत करना चाहते थे परंतु अब शायद इम्तियाज अली को यह अवसर मिले। ज्ञातव्य है कि धर्मेंद्र के बड़े भाई अजीत सिंह के पुत्र अभय देवल की पहली फिल्म इम्तियाज अली ने निर्देशित की थी। अभय देओल ने कभी एक्शन फिल्म नहीं की। वह गैर देओलनुमा फिल्में ही करता आया है। हर परिवार में कोई एक सदस्य परिवार की परिपाटी को छोड़कर नया कुछ करता है। शेखर कपूर देव आनंद की बहन के पुत्र हैं परंतु उन्होंने कभी देव आनंद नुमा फिल्में नहीं बनाईं। हर एक का अंदाज-ए-बयां अलग होता है। शम्मी कपूर ने अपनी प्रारंभिक आधा दर्जन फिल्मों में अपने भाई राज कपूर की तरह अभिनय किया और वे असफल रहे। शशधर मुखर्जी ने उन्हें 'तुमसा नहीं देखा' में नए अंदाज में प्रस्तुत किया और इस सफल शैली की अन्यतम अभिव्यक्ति सुबोध मुखर्जी की 'जंगली' में हुई। इसी तरह संगीतकार अन्नु मलिक के मन में यह बात जम गई है कि उन्हें अपने पिता सरदार मलिक की तरह संगीत नहीं देना है, क्योंकि वे प्रतिभाशाली होते हुए भी सफल नहीं हुए थे। अन्नू मलिक ने जेपी दत्ता की 'बॉर्डर' में शिखर छुआ और उनकी धुन पर जावेद अख्तर का लिखा 'संदेशे आते हैं' अत्यंत लोकप्रिय हुआ और जावेद अख्तर का ही 'एक लड़की को देखा' भी खूब सफल रहा। ज्ञातव्य है कि इसके कई वर्ष पूर्व जोश मलीहाबादी का 'गद्दर अनार देखो, मौजों की बहार देखो, फौजों का ज्वार देखो' जैसा अनेक उपमाओं वाला गीत आ चुका था। बहरहाल, जावेद अख्तर के गीत में इक्कीस उपमाएं थीं।
धर्मेंद्र ने विविध प्रकार की फिल्में अभिनीत कीं और इसी कारण वे लंबी पारी खेल पाए। उन्होंने ऋषिकेश मुखर्जी की फिल्में अपने बाजार के मेहनताने से कम धन लेकर अभिनीत की और मुखर्जी ने उनके साथ सफल हास्य फिल्म 'चुपके चुपके' की तो उससे भी कम मेहनताने पर 'सत्यकाम' की तरह गंभीर फिल्म भी अभिनीत की। संभवत: 'सत्यकाम' भ्रष्टाचार के खिलाफ बनी पहली फिल्म थी। ज्ञातव्य है कि ऋषिकेश मुखर्जी पुरातन जाबाली कथा से परिचित थे। जाबाली एक दासी थी और उसके अवैध पुत्र का नाम सत्यकाम था और उसने अपने गुरु को अपने जन्म की सत्यकथा बताई थी और गुरु ने उस सत्य को जानकर भी शिक्षा दी। कालांतर में दासी जाबाली का पुत्र सत्यकाम अपने ज्ञान के लिए प्रसिद्ध हुआ। अवैध संतान की कहानियां फिल्म फॉर्मूले का हिस्सा बन गई। माता-पिता को दोष नहीं देकर संतान को अवैध कहना पागलपन है। हमारे आख्यानों में इत तरह की संतानों की कीर्ति-गाथाएं दर्ज हैं।
सनी देओल का पुत्र अपने पिता और दादा की स्थापित छवि से कितना भिन्न होगा, यह तो फिल्म के प्रदर्शन के बाद ही ज्ञात होगा। गौरतलब है कि सनी देओल की पत्नी कभी मीडिया के सामने प्रस्तुत नहीं हुई और सनी देओल ने उनकी निजता की रक्षा मुस्तैदी से की। अब उनके सुपुत्र में हम उनके प्रभाव को देखेंगे। यह सच है कि पीढ़ियों तक प्रभाव कायम रहता है परंतु यह भी सच है कि हर व्यक्ति का अपना कुछ निजी होता है, जिस पर माता-पिता, दादा-नाना का कोई प्रभाव नहीं होता। असंख्य लोग हैं परंतु हाथ की रेखाएं और आंख की पुतलियों में कभी कोई समानता नहीं देखी जा सकती, जिससे प्रकृति की सृजन क्षमता का अनुमान लगाया जा सकता है। इसी बात को एक पुराने गीत में बखूबी प्रस्तुत किया है, 'वह कौन चित्रकार है, वह कौन चित्रकार है…' फिल्म परिवारों की संतानों को फिल्म में प्रस्तुत करने की परम्परा भी राज कपूर से प्रारंभ हुई है, जब उन्होंने 'जोकर' और 'बॉबी' में ऋषि कपूर को प्रस्तुत किया। अपने छोटे पुत्र राजीव कपूर को भी उन्होंने 'राम तेरी गंगा मैली' में प्रस्तुत किया परंतु ज्येष्ठ पुत्र रणधीर कपूर के निर्देशन में 'आज, कल और आज' तथा 'धरम-करम' में अभिनय किया और उनकी मृत्यु के बाद उनकी कथा 'हिना' को भी रणधीर ने ही निर्देशित किया था। कपूर परिवार ने फिल्म निर्माण लंबे अरसे से बंद कर दिया है परंतु धर्मेंद्र घराना अब फिर सक्रिय हो रहा है