धर्मेंद्र बायोपिक में सलमान खान / जयप्रकाश चौकसे
प्रकाशन तिथि :19 जून 2015
धर्मेंद्र एक सप्ताह ब्रीच कैंडी अस्पताल से इलाज कराकर घर लौट गए हैं परंतु कुछ समय बाद उन्हें कंधे की शल्य चिकित्सा करानी होगी। स्कूल टीचर के उन्यासी वर्षीय सुपुत्र धर्मेंद्र का जिस्म पंजाब की मिट्टी से बना है और वहां की आबोहवा उनकी नसों में रक्त बनकर प्रवाहित है। यह बात अलग है कि उन्होंने जितने ग्लास लस्सी के पीए हैं उससे कुछ अधिक शराब पी है। इससे कुछ जुदा है कासिफ इंदौरी का शेर 'सरासर गलत है इलजामे बला नोशी का, जिस कदर आंसू पीए हैं, उससे कम पी है शराब' वर्षों पहले सुने शेर के लफ्ज इधर-उधर हो जाने की क्षमा चाहता हूं।
इसी शेर का इस्तेमाल मैंने अपनी फिल्म 'शायद' में भी किया था। बहरहाल, जाट धर्मेंद्र के मजबूत कंधों ने कई संकट उठाए हैं और अनेक नायिकाओं को भी कंधे पर लादा है। कुछ तो चिपक ही गईं और कंधा छोड़ने को आसानी से तैयार नहीं हुईं। इन्हीं कंधों पर उन्होंने अपने लंबे और कटु संघर्ष को भी उठाया है। परिवार के साथ अपने पिंड के कई मजबूरों का बोझ भी उठाया है। उनका जुहू स्थित विशाल बंगला मुंबई में पंजाब का पिंड बना रहा। आखिर कंधों का भी अपना मिजाज होता है, एक कंधा कुछ रूठ गया है। आजकल शल्य चिकित्सा से घुटना, कंधा सब बदले जाते हैं। बस साधनहीन मजदूर और किसान का भाग्य ही नहीं बदला जा सकता। विज्ञान व टेक्नोलॉजी की मेहरबानियां हर छत पर नहीं पड़ती, वे अपनी बातें सावधानी से चुनती है। आजकल तो महानगरों में भी बरसात श्रेष्ठि वर्ग के इलाके में ज्यादा होती है और निदा फाज़ली के आशावाद पर पानी फिर जाता है कि 'बरसात का आवारा बादल क्या जाने किस छत को भिगाना है, किस छत को बचाना है।'
बहरहाल, धर्मेंद्र अपने पिंड से मीलों पैदल जाकर फिल्में देखते थे। इस जुनून के सुखद परिणाम लंबे संघर्ष के बाद अाए। यह बताना उचित है कि पहलवान धर्मेंद्र ने आशिक मिजाज दिल और शायरी का शौक भी पाया है। उन्होंने बहुत से शेर लिखें है। यह संभव है कि शायरा-कलाकार मीना कुमारी से चले इश्क के लंबे दौर में पहलवान कवि भी हो गया। दरअसल, हर सामान्य व्यक्ति के मन में एक शायर कुलबुलाता रहता है परंतु व्यावहारिकता के निर्मम तकाजे के कारण उसे अपना शायर मारना होता है। साहित्य के इन शेरों का शिकार सामान्य व्यक्ति प्राय: करते रहे हैं। मरे हुए शेरों पर पैर रखकर फोटोग्राफ राजे-महाराजे खिंचवाते रहे हैं परंतु सामान्य व्यक्ति यह नहीं करता। सच तो यह है कि कई राजों, नवाबों और हुक्मरान अंग्रेजों ने जिन शेरों के सिर पर पैर रखकर फोटो खिंचवाए हैं, उनमें से अधिकांश शेर तो अर्दली ने मारे हैं। कभी-कभी इस तरह भी दूसरोें के कंधों पर रखकर बंदूक चलाई जाती है। प्राय: नेता पूंजीपति के कंधे पर और पूंजीपति नेता के कंधे पर बंदूक रखकर अवाम का शिकार करते हैं।
बहरहाल, व्यावहारिकता के तकाजों के नाम पर क्या-क्या होता है, उसका एक नमूना इस तरह सामने आया है। धर्मेंद्र के बायोपिक को सलमान खान के साथ बनाया जाए इस तरह का विचार निर्माता कर रहे हैं। यह सत्य है कि शरीर सौष्टव का प्रदर्शन सबसे पहले धर्मेंद्र ने ही किया था। मीना कुमारी के साथ की गई फिल्म 'फूल और पत्थर' में उन्होंने अपना बदन दिखाया था। अब तो सलमान को हर फिल्म में शर्ट उतारनी पड़ती है, क्योंकि उनके प्रशंसक यही चाहते हैं। लोकप्रिय छवियां इसी तरह बेड़ियां बन जाती हैं। धर्मेंद्र बायोपिक उनके पुत्र सनी देओल के साथ भी बनाया जा सकता है परंतु आज सनी बड़े सितारे नहीं हैं, अत: सलमान खान के साथ बनाने में आर्थिक लाभ ज्यादा है। धर्मेंद्र के साम्राज्य के उतराधिकारी सनी रहेंगे परंतु बाॅक्स आफिस शासित सिनेमा में यह जगह सलमान खान की है। 'सिनेमा औघड़ गुरु का औघड़ ज्ञान, पहले भोजन फिर स्नान।'