धर्म क्षेत्र, कर्म क्षेत्र और रोटी / जयप्रकाश चौकसे

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धर्म क्षेत्र, कर्म क्षेत्र और रोटी
प्रकाशन तिथि :24 अप्रैल 2018


हिन्दुस्तान में हुकूमते बरतानिया के दौर में मेहबूब खान की फिल्म 'रोटी' में एक दृश्य इस तरह का था कि एक जनजाति का व्यक्ति रेलवे स्टेशन पर दो कप चाय पीता है। पहला चाय वाला कह रहा था 'हिन्दू चाय एक पाई', दूसरा चाय वाला कह रहा था कि 'मुस्लिम चाय एक पाई'। वह जनजाति का व्यक्ति दोनों को थप्पड़ मारते हुए कहता है कि एक ही चीज को दो नाम से बेचकर ग्राहकों को क्यों ठग रहे हो। इस फिल्म में एक धनाढ्‌य व्यक्ति का जहाज जंगल में दुर्घटनाग्रस्त हो जाता है परंतु उसकी जान बच जाती है। जनजाति के लोग अपनी जड़ी-बूटी से उसका इलाज करते हैं। उसे पूरी तरह सेहतमंद होने में समय लगेगा इसलिए वह जनजाति के एक व्यक्ति को एक पत्र देकर मुंबई भेजता है। उसकी विशाल कोठी के सामने एक भिखारी बैठता था, जो जानता था कि उसकी शक्ल धनाढ्‌य व्यक्ति से मिलती है। दुर्घटना के समाचार के बाद वह अपनी दाढ़ी व लंबे बाल कटवाता है और अमीर आदमी के रूप में सारी सम्पत्ति पर कब्जा जमा लेता है। फिल्म के क्लाइमैक्स में वह कार में सोना-चांदी रखकर भाग रहा है, क्योंकि उसका राज खुल चुका है। एक मोड़ पर कार गड्‌ढे में गिर जाती है। वह अपने लाए सोने-चांदी के ढेर के नीचे दब जाता है। केवल एक हाथ बाहर है और वह भूख से त्रस्त रोटी मांगता है।

बलदेवराज चोपड़ा की 'धर्मपुत्र' में घटनाक्रम ऐसा है कि एक मुस्लिम बालक हिन्दू परिवार में पलता है और संगी साथियों के प्रभाव में कट्‌टर हिन्दू हो जाता है। यहां तक कि उसे मुसलमान से नफरत है, शशि कपूर अभनीत इस पात्र को क्लाइमैक्स में सच्चाई का पता चलता है। जन्म से नहीं परवरिश से चरित्र का निर्माण होता है। इस तरह की कथाओं की गंगोत्री है गुरुदेव रवीन्द्रनाथ टैगोर का उपन्यास 'गोरा' जिसमें एक अंग्रेज बालक की परवरिश एक हिन्दुस्तानी परिवार में होती है और वह अंग्रेजों के खिलाफ स्वतंत्रता की लड़ाई में हिस्सा लेता है। ख्वाजा अहमद अब्बास का उपन्यास 'इन्कलाब' भी कमोबेश यही बात अभिव्यक्त करता है। पंकज कपूर अभिनीत फिल्म 'धरम' की पृष्ठभूमि पावन शहर बनारस है, जहां दंगे के समय एक रोते-बिलखते बच्चे को पंडित परिवार में पाला जाता है। वह परिवार में सबका लाड़ला है। कुछ समय बाद एक निम्न मध्यवर्ग का मुसलमान परिवार यह सिद्ध कर देता है कि वह बच्चा उनका है, जो दंगे के समय उनसे बिछड़ गया था। बच्चा अपने जन्म देने वालों को मिल जाता है। अब एक मुस्लिम परिवार में यह बच्चा गायत्री मंत्र पढ़ता है। मांस खाने से इनकार कर देता है। क्लाइमैक्स इस तरह है कि शहर में फिर दंगे हो जाते हैं। गलियां सुलगती हैं, घर-घर से धुआं उठने लगता है। उस मुस्लिम परिवार के घर में भी आग लगा दी गई है जहां वह बच्चा रहता है। जलते हुए मकान की खिड़की में खड़ा बच्चा सहायता मांग रहा है। दंगाई नंगी तलवारें लेकर घूम रहे हैं। पंडित (पंकज कपूर) सबसे लड़ता है और उस बच्चे के प्राणों की रक्षा करता है। पंडितजी ज्ञानी ध्यानी थे और उनके व्यक्तित्व की धाक ऐसी है कि कोई दंगाई उन्हें रोकता नहीं। वे बच्चे को बचाकर उसके माता-पिता को सौंपते हैं। माता-पिता कहते हैं कि भले ही उन्होंने जन्म दिया पर बच्चा पंडितजी ले जा सकते हैं।

ऋषिकेश मुखर्जी की फिल्म 'मेमदीदी' में दो अलग धर्म को मानने वाले गुंडे संकट के समय मेम दीदी की रक्षा करते हैं। दरअसल, बाबू मोशाय ऋषिकेश मुखर्जी इसके पूर्व राज कपूर अभिनीत 'अनाड़ी' बना चुके थे, जिसमें ललिता पवार ने एक सहृदय क्रिश्चियन महिला का पात्र अभिनीत किया था और उसी का एक्सटेंशन थी फिल्म 'मेमदीदी'।

विजय आनंद निर्देशित 'गाइड' के क्लाइमैक्स में केंद्रीय पात्र ने सूखा पीड़ित क्षेत्र में वर्षा के लिए असाधारण उपवास किया है। उसके संघर्ष के दौर में उसका साथी रहा मुसलमान व्यक्ति उससे मिलना चाहता है तो उसे रोका जाता है कि इस मुस्लिम का यहां क्या काम। नायक भीड़ को डांटता है और अपने पुराने मित्र के गले लगता है। गिरीश कर्नाड की फिल्म 'संस्कार' में भी दो बामन मित्रों की कथा है, जिनमें से एक को निम्न जाति की स्त्री से प्रेम हो जाता है और उसी के साथ रहने लगता है। कालांतर में उसकी मृत्यु हो जाती तो वह स्त्री उसके मित्र से पूछती है कि अब उसके मित्र का अंतिम संस्कार बामन व्यक्ति की तरह मंत्रोच्चार के साथ किया जाएगा या वह अपनी जाति की प्रथा के अनुरूप करे। कठिन निर्णय के लिए वह समय मांगता है। अगले दिन अलसभोर वह स्नान के लिए जाता है, जहां देखता है कि वह स्त्री स्नान करके तट पर खड़ी है। देह राह की ध्वनियां अत्यंत प्रभावशाली होती हैं। सारा पाखंड खंडित हो जाता है। वह निर्णय देता है कि उसके मित्र का अंतिम संस्कार धर्म की परम्परा के अनुरूप ही होगा।

आज ही मीडिया में बताया गया है कि एक व्यक्ति ने टैक्सी बुलाई परंतु ड्राइवर मुस्लिम था, अत: उसने टैक्सी में बैठने से इनकार कर दिया। विकास मार्ग में चलते हुए हम शिकार युग में लौट रहे हैं। चुनाव में जीतने के लिए जगाई धर्मान्धता अब पलटवार कर रही है। अंग्रेजों द्वारा बांटकर राज्य करना कितना भयावह हो सकता है। कई बार दुविधा होती है कि क्या अंग्रेज सचमुच लौट गए?