धर्म / नीलम कुलश्रेष्ठ

Gadya Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

उस उच्चाधिकारी के पास सब कुछ था‚ कार से लेकर इलेक्ट्रानिक लाईटर तक। फिर भी एक बेचैनी थी कि मिटने का नाम नहीं लेती थी। लगता था यह चीज़ और खरीद लें तो शायद आत्मा को शांति पहुंचे … लेकिन शांति फिर किसी चीज़ की ओट में जा छिपती। बाद में उन्हें समझ आया कि उनकी आत्मा को आध्यात्म की तलाश है।

सूटेड बूटेड तन लिये‚ व्याकुल मन लिये उन्होंने उन प्रसिद्ध गुरु जी के वातानुकूलित आश्रम के कमरे में प्रवेश किया। गुरु ध्यानमग्न थे‚ थोड़ी ही देर में उन्होंने आंखें खोलीं। इन्होंने अपनी व्यथा बखान करना शुरु की।

गुरु ने उपदेश देना शुरु किया‚

" बच्चा तू अपने सब बुरे काम छोड़ देह्यजिसमें सुरा और सुंदरी भी शामिल थेहृ पाप मत कर‚ झूठ मत बोल‚ किसी को सता मत।"

" गुरुजी‚ सब मंजूर है।"

" अब कोई और शंका।"

उन्होंने कुछ हिचकिचाते हुए कहा‚ " नऽऽहीं।"

" बच्चा। शर्म मत कर। गुरु से क्या छिपाना "

" बात यह है‚" उन्होंने सकुचाते हुए कहना शुरु किया‚ " मेरा विभाग ऐसा है कि दूसरी आमदनी का रोकना बहुत मुश्किल है। न लो तो ऊपर से नीचे तक सब नाराज़। आजकल नौकरी तक को खतरा हो जाता है। मैं बड़े संकट में हूँ प्रभो कोई उपाय बताइये।"

गुरुजीें ने आंखें बंद कीं पांच मिनट बाद खोल कर बोले‚

" ऐसा करना बच्चा उस कमाई का कुछ प्रतिशत हमारे आश्रम में दान कर दिया करना। तेरे सब पाप नष्ट हो जायेंगे।"

कहकर गुरु डनलप के आसन पर आंख मूंद फिर ध्यान मग्न हो गये।